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आयुर्वेद
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2022-08-01T07:47:39Z
अनुनाद सिंह
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* ''आयुरस्मिन् विद्यते अनेन वा आयुर्विन्दतीत्यायुर्वेदः।'' (चरकसूत्र १/१३)
: अर्थ- जिसमें आयु है या जिससे आयु का ज्ञान प्राप्त हो, उसे आयुर्वेद कहते हैं।
* ''हिताहितं सुखं दुःखं आयुस्तस्य हिताहितम् । ''
: ''मानं च तच्च यत्रोक्तं आयुर्वेदः स उच्यते ॥'' (च.सू.३.४१) ॥
: अर्थात् हितायु, अहितायु, सुखायु एवं दुःखायु; इस प्रकार चतुर्विध जो आयु है उस आयु के हित तथा अहित अर्थात् पथ्य और अपथ्य आयु का प्रमाण एवं उस आयु का स्वरूप जिसमें कहा गया हो, वह आर्युवेद कहा जाता है।
* प्रयोजनं चास्य स्वस्थस्य स्वास्थ्यरक्षणमातुरस्य विकारप्रशमनं च।
: '''अर्थ''' - ...और इसका (आयुर्वेद का) प्रयोजन स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना और रोगी व्यक्ति के रोग को दूर करना है।
* धर्मार्थकाममोक्षाणाम् आरोग्यं मूलमुत्तमम् । -- चरकसंहिता सूत्रस्थानम् - १.१४
: '''अर्थ''' - धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का मूल (जड़) उत्तम आरोग्य ही है।
* शरीरमाद्यं खलुधर्मसाधनम् (कालिदास)
: अर्थात् धर्म की सिद्धि में सर्वप्रथम, सर्वप्रमुख साधन (स्वस्थ) शरीर ही है। अर्थात् कुछ भी करना हो तो स्वस्थ शरीर पहली आवश्यकता है।
* ''धी धृति स्मृति विभ्रष्टः कर्मयत् कुरुत्ऽशुभम्।
: ''प्रज्ञापराधं तं विद्यातं सर्वदोष प्रकोपणम्॥ (चरकसंहिता, शरीरस्थान १/१०२)
: अर्थात् धी (बुद्धि), धृति (धैर्य) और स्मृति (स्मरण शक्ति) के भ्रष्ट हो जाने पर मनुष्य जब अशुभ कर्म करता है तब सभी शारीरिक और मानसिक दोष प्रकुपित हो जाते हैं। इन अशुभ कर्मों को 'प्रज्ञापराध' कहा जाता है। जो प्रज्ञापराध करेगा उसके शरीर और स्वास्थ्य की हानि होगी और वह रोगग्रस्त हो ही जाएगा।
* ''नात्मार्थं नाऽपि कामार्थं अतभूत दयां प्रतिः।
: ''वतर्ते यश्चिकित्सायां स सर्वमति वर्तते ॥'' (चरकसंहिता, चिकित्सास्थान १/४/५८)
: जो अर्थ तथा कामना के लिए नहीं, वरन् भूतदया अर्थात् प्राणिमात्र पर दया की दृष्टि से चिकित्सा में प्रवृत्त होता है, वह सब पर विजय प्राप्त करता है।
* ''तत्त्वाधिगतशास्त्रार्थो दृष्टकर्मा स्वयंकृती।
: ''लघुहस्तः शुचिः शूरः सज्जोपस्करभेषजः॥'' १९
: ''प्रत्युत्पन्नमतिर्धीमान् व्यवसायी विशारदः।
: ''सत्यधर्मपरो यश्च स भिषक् पाद उच्यते॥'' २० (सुश्रुतसंहिता)
: '''अर्थ''' - '''वैद्य''' उसे कहते हैं जो ठीक प्रकार से शास्त्र पढ़ा हुआ, ठीक प्रकार से शास्त्र का अर्थ समझा हुआ, छेदन स्नेहन आदि कर्मों को देखा एवं स्वयं किया हुआ, छेदन आदि शस्त्र-कर्मों में दक्ष हाथ वाला, बाहर एवं अन्दर से पवित्र (रज-तम रहित), शूर (विषाद रहित) , अग्रोपहरणीय अध्याय में वर्णित साज-सामान सहित, प्रत्युत्पन्नमति (उत्तम प्रतिभा-सूझ वाला), बुद्धिमान, व्यवसायी (उत्साहसम्पन्न), विशारद (पण्डित), सत्यनिष्ट, धर्मपरायण हो।
* ''प्रशस्तदेशसंभूतं प्रशस्तेऽहनि चोद्धृतम् ।
: ''युक्तमात्रं मनस्कान्तं गन्धवर्णरसान्वितम् ॥२२
: ''दोषध्नमग्लानिकरमविकारि विपर्यये ।
: ''समीक्ष्य दत्तं काले च भेषजं पाद उच्यते ॥ २३'' (सुश्रुतसंहिता)
: '''अर्थ''' : उत्तम देश में उत्पन्न, प्रशस्त दिन में उखाड़ी गई, युक्तप्रमाण (युक्त मात्रा में), मन को प्रिय, गन्ध वर्ण रस से युक्त, दोषों को नष्ट करने वाली, ग्लानि न उत्पन्न करने वाली, विपरीत पड़ने पर भी स्वल्प विकार उत्पन्न करने वाली या विकार न करने वाली, देशकाल आदि की विवेचना करके रोगी को समय पर दी गई औषध गुणकारी होती है।
* ''समदोषः समाग्निश्च समधातु मलःक्रियाः।
: ''प्रसन्नात्मेन्द्रियमनः स्वस्थइतिअभिधीयते॥'' -- (सुश्रुत संहिता सूत्रस्थान १५/१०)
: जिसके दोष (वात, कफ, पित्त) सम हैं, जिसकी अग्नि सम है (न धिक, न कम), धातु सम हैं, मलक्रिया ठीक है, जिसकी आत्मा, इन्द्रियाँ और मन प्रसन्न हैं, वह स्वस्थ कहा जाता है।
* ''त्रयः उपस्तम्भाः । आहारः स्वप्नो ब्रह्मचर्यं च सति।
: अर्थ - शरीररुपी भवन को धारण करनेवाले तीन स्तम्भ (खम्भे) हैं: आहार, निद्रा और ब्रह्मचर्य (गृहस्थाश्रम में सम्यक् कामभोग) ।
* ''सुखं शेते सत्यवक्ता सुखं शेते मितव्ययी।
: ''हितभुक् मितभुक् चैव तथैव विजितेन्द्रिय: ॥
: अर्थ - सत्य बोलनेवाला, कम व्यय करनेवाला, हितकारक पदार्थ आवश्यक प्रमाण मे खानेवाला, तथा जिसने इन्द्रियों पर विजय पाया है, वह चैन की नींद सोता है।
* ''शरीरं हि सत्त्वमनुविधीयते सत्त्वं च शरीरम्॥ (च.शा.४/३६)
: अर्थ - शरीर सत्त्व का अनुसरण करता है और सत्त्व शरीर का।
* ''प्राणः प्राण भूतानाम् अन्नः।
: अर्थात् प्राणियों में प्राण आहार ही होता है।
* ''अल्पमात्रोपयोगित्वादरुचेरप्रसंगतः।
: ''क्षिप्रमारोग्यदायित्वादौषधेभ्योऽधिको रसः॥
: अर्थ- रस अपनी तीन मौलिक विशेषताओं के कारण चिकित्सा सर्वोत्तम हैं, (१) अल्पमात्रा में प्रयोग, (२) स्वाद में रुचिपूर्णता, और (३) शीघ्रातिशीघ्र रोगनाशक।
: ''अनुपानं हितं युक्तं तर्पयत्याशु मानवम्।
: ''सुख पचति चाहारमायुषे च बलाय च॥'' (च सू 27/326)
* ''रोगाक्रान्तशरीस्य स्थानान्यष्टौ परीक्षयेत्।
: ''नाड़ीं जिह्वां मलं मूत्रं त्वचं दन्तनखस्वरात्॥'' (भेड़ संहिता)
: अर्थ - रोगाक्रान्त शरीर की आठ स्थानों से परीक्षा करनी चाहिये- नाड़ी, जिह्वा, मल, मूत्र, त्वचा, दाँत, नाखून औ स्वर।
* ''यस्य माता गृहे नास्ति, तस्य माता हरीतकी।
: ''कदाचिद् कुप्यते माता, नोदरस्था हरीतकी॥
: अर्थात् जिसकी माता घर में नहीं है उसकी माता हरीतकी (हर्रे) है। माता तो कभी-कभी कुपित भी हो जाती है, परन्तु उदर में स्थित अर्थात् खायी हुई हरड़ कभी भी कुपित (अपकारी) नहीं होती।
* ''भुक्त्वा शतपदं गच्छेत्।
: अर्थात् भोजन के बाद सौ कदम चलन चाहिए।
* ''भुक्त्वोपविशत:स्थौल्यं शयानस्य रू जस्थता।
: ''आयुश्चक्र माणस्य मृत्युर्धावितधावत:॥
: अर्थात् भोजन करने के पश्चात एक ही जगह बैठे रहने से स्थूलत्व आता है । जो व्यक्ति भोजन के बाद चलता है उसक आयु में वृद्धि होती है और जो भागता या दौड़ लगाता है, उसकी मृत्यु समीप आती है।
* ''पित्तः पंगुः कफः पंगुः पंगवो मलधातवः।
: ''वायुना यत्र नीयन्ते तत्र गच्छन्ति मेघवत्॥
: ''पवनस्तेषु बलवान् विभागकरणान्मतः।
: ''रजोगुणमयः सूक्ष्मः शीतो रूक्षो लघुश्चलः॥'' (शांर्गधरसंहिताः 5.25-26)
: अर्थ - पित्त पंगु है, कफ पंगु है तथा मल और धातुएँ पंगु हैं। इन्हें वायु जहाँ ले जाती है, ये सभी बादल की भांति वहाँ चले जते हैं। अतएव इन तीनों दोषों-वात, पित्त एवं कफ में वात (वायु) ही बलवान् है; क्योंकि वह सब धातु, मल आदि का विभाग करनेवाला और रजोगुण से युक्त सूक्ष्म, अर्थात् समस्त शरीर के सूक्ष्म छिद्रों में प्रवेश करनेवाला, शीतवीर्य, रूखा, हल्का और चंचल है।
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* आयुर्वेद मानता है कि जो भी पदार्थ कोई व्यक्ति खाता है वह दवा और जहर बन सकता है। यह इस पर निर्भर करता है कि कौन इसे खा रहा है, वह क्या खा रहा है और किस मात्रा में है। इस सन्दर्भ में एक प्रचलित कहावत है: “एक आदमी का खाना दूसरे आदमी का ज़हर है।” -- सेबेस्टियन पोल
* एक आयुर्वेदिक शिक्षार्थी के रूप में, मेरा मानना है कि कैंसर जैसी बीमारियों का प्रचलन आज अधिक बढ़ रहा है क्योंकि हम एक समाज के रूप में अपने दैनिक जीवन की परिस्थितियों के प्रति गलत रवैया अपना रहे हैं।
* जब आहार गलत है, तो दवा का कोई फायदा नहीं है; जब आहार सही है, तो दवा की कोई आवश्यकता नहीं।
* अच्छे स्वास्थ्य के लिए जो आयुर्वेदिक मार्ग है उसमे दो सरल कदम शामिल हैं, कम करना, अधिक होना । -- Shubhra Krishan
* अपने परमानन्द का अनुसरण करना और खुशबु, रंग एवं स्वाद के रहस्य में गोता लगाना; प्रकृति माँ की शानदार विविधता में खो जाना, और भीतरी चिन्हों का अनुगमन करके जानना कि हम सचमुच कौन हैं – यही आयुर्वेदिक पाकशास्त्र का विज्ञान है। -- Prana Gogia
* असली दवा जमीन से आती है, लैब से नहीं।
* आप घर या अन्य जगहों पर प्रतिदिन अपने यौन जीवन का आनंद लेकर और योग कक्षाओं में भाग लेकर एक वास्तविक योगी नहीं बन सकते।
* आयुर्वेद का मानना है कि शरीर की शक्तियां स्वास्थ्य और रोगों से लड़ने की क्षमता हैं। इसे बढ़ाने के लिए खान-पान का ध्यान रखना जरूरी है।
* आयुर्वेद का यही मकसद है कि स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य को बरकरार रखा जाए और बीमार व्यक्ति को ठीक कर दिया जाए।
* आयुर्वेद की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसके उपचार से हमेशा लाभ होते हैं न कि नुकसान।
* आयुर्वेद के अनुसार हमारे शरीर में इतना सक्षम होना चाहिए कि हम रोगों को रोक सके।
* आयुर्वेद के बारे में एक बहुत अच्छी बात ये है कि इसके उपचार से हमेशा साइड बेनिफिट्स होते हैं, साइड इफेक्ट्स नहीं। -- Shubhra Krishan
* आयुर्वेद केवल पोषण या जड़ी-बूटी के बारे में नहीं है, इसमें निदान के लिए एक अनूठा उपकरण है, मानव संविधान को समझने का निदान एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में भिन्न है। प्रत्येक में एक अद्वितीय चयापचय प्रणाली होती है।
* आयुर्वेद जैसा कि नाम में निहित है (‘आयु’: “जीवन” और ‘वेद’: “ज्ञान”) स्वस्थ्य रहने का ज्ञान है और सिर्फ बीमारी के इलाज तक सिमित नहीं है।
* आयुर्वेद में सिद्धांत है कि कुछ भी भोजन, दवा, या ज़हर हो सकता है, निर्भर करता है कि कौन खा रहा है, क्या खा रहा है, और कितना खा रहा है। इस सन्दर्भ में एक प्रचलित कहावत है: “एक आदमी का खाना दूसरे आदमी का ज़हर है। -- Sebastian Pole
* आयुर्वेद योग की सिस्टर फिलॉसफी है, ये जीवन या दीर्घायु होने का विज्ञान है और ये हमें प्रकृति की शक्तियों, चक्र और तत्वों के बारे में भी सिखाता है। -- Christy Turlington
* आयुर्वेद योगा के साथ की ही पद्धति है। यह हमें जीवन को बढ़ाने के बारे में बताता है और प्रकृति के साथ-साथ प्रकृति के उत्पादों के बारे में भी बताता है।
* आयुर्वेद सिखाता है कि रोगी एक जीवित पुस्तक है, और उसकी शारीरिक भलाई को समझने के लिए, इस पुस्तक को दैनिक रूप से पढ़ा जाना चाहिए।
* आयुर्वेद सिखाता है कि हर कोई खुद को स्वस्थ बनाने के लिए पर्याप्त ऊर्जा से संपन्न है।
* आयुर्वेद हमें “जैसा है” वैसे प्यार करना सिखाता है- ना कि जैसा हम सोचते हैं लोग “होने चाहिएं। -- Lissa
* आयुर्वेद हमें हमारी सहज-प्रकृति को संजोना सिखाता है- “हम जो हैं उससे प्रेम करना, उसका सम्मान करना”, वैसे नही जैसा लोग सोचते हैं या कहते हैं, “हमे क्या होना चाहिए। -- Prana Gogia
* आयुर्वेद, जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है (‘आयु‘: “जीवन और ‘वेद‘: “ज्ञान“) स्वस्थ जीवन का ज्ञान है और यह एकमात्र बीमारी के इलाज तक सीमित नहीं है।
* एक आयुर्वेद चिकित्सक ने कहा कि अगर आपको बुखार है, तो दवा न लें क्योंकि यह संकेत है कि हमारा शरीर उपचार कर रहा है।
* कोई भी आदमी अपने मन का गुलाम नहीं होना चाहिए, उसे अपने मन को नियंत्रण में रखना चाहिए।
* कोई भी दवा अन-हेल्दी लिविंग की क्षतिपूर्ति नहीं कर सकती है। -- Renu Chaudhary
* क्योंकि हम अपने अंदरुनी शरीर को स्क्रब नहीं कर सकते हमें अपने ऊतकों, अंगों, और मन को शुद्ध करने कुछ उपाय सीखने होंगे। ये आयुर्वेद की कला है। -- Sebastian
* जब आहार गलत हो, दवा किसी काम की नहीं है; जब आहार सही हो, दवा की कोई ज़रुरत नहीं है। -- Ayurvedic proverb
* जीवन केवल जीवित रहना नहीं है, बल्कि अच्छा होना है।
* जो कोई भी यह मानता है कि हर किसी के लिए कुछ भी अनुकूल हो सकता है वह एक महान मूर्ख है, क्योंकि दवा का अभ्यास सामान्य रूप से मानव जाति पर नहीं, बल्कि विशेष रूप से प्रत्येक व्यक्ति पर किया जाता है।
* डर एक ऐसी बीमारी है जो आत्मा को आराम देती है, ठीक उसी तरह जैसे शारीरिक बीमारी शरीर को आराम देती है।
* दबा हुआ भय वात को विचलित करेगा, क्रोध अधिक पित्त पैदा करेगा, और ईर्ष्या, अभिमान और आसक्ति से काम प्रभावित होगा।
* धातु के साथ किसी भी छेड़छाड़ को बीमारी कहा जाता है। दर्द बीमारी का संकेत है और खुशी स्वास्थ्य है।
* प्रत्येक उंगली का एक विशिष्ट अंग के साथ संबंध होता है। अंगूठा मस्तिष्क और खोपड़ी से जुड़ा होता है, और तर्जनी (index finger) फेफड़े से जुड़ी होती है। मध्यमा उंगली छोटी आंत से जुड़ी होती है, अनामिका गुर्दे से जुड़ी होती है, और छोटी उंगली हृदय से जुड़ी होती है।
* भोजन की मात्रा का भी बहुत महत्व है। पेट का एक तिहाई भोजन से भरा होना चाहिए, एक तिहाई पानी से भरा होना चाहिए और एक तिहाई हवा से भरा होना चाहिए। एक बार में खाया जाने वाला भोजन दो मुट्ठी भर के बराबर होना चाहिए।
* योग का विज्ञान और आयुर्वेद; चिकित्सा विज्ञान की तुलना में सूक्ष्म हैं, क्योंकि अकसर चिकित्सा विज्ञान सांख्यिकीय गड़बड़ी का शिकार हो जाता है
* शारीरिक विचार जिन्हें करने से पहले सोचना चाहिए, उनमें गुस्सा, सेक्स और उत्पीड़न शामिल हैं।
* सभी योगाभ्यास केवल मन के लिए हैं। यदि मन अच्छी स्थिति में है, तो शरीर अच्छा रहेगा।
* समय बदल रहा है और न सिर्फ भारत के नीति निर्माता, बल्कि पूरी दुनिया आयुर्वेद के महत्व को समझ रही है। कुछ साल पहले कौन सोच सकता था कि महानगरीय संस्कृति में पले-बढे लोग निकट भविष्य में कार्बोनेटेड शीतल पेय से अधिक लौकी का रस या करौंदे का रस पसंद करेंगे। -- आचार्य बालकृष्ण
* सामान्यतया, आयुर्वेद चावल, गेहूं, जौ, मूंग दाल, शतावरी, अंगूर, अनार, अदरक, घी (मक्खन), क्रीम दूध और शहद को सबसे अधिक लाभकारी खाद्य पदार्थ मानता है। -- Sebastian Pole
* हमारा जीवन देवताओं की गोद में नहीं है, बल्कि हमारे रसोइयों की गोद में है।
* हर्बल रेमेडी हो या मालिश या व्यायाम या ध्यान, ये सभी केवल हमारे शरीर की मरम्मत कर सकते हैं लेकिन अगर हम अपने शरीर को नष्ट होने से बचाना चाहते हैं तो हमें एक अच्छा आहार लेने की आवश्यकता है।
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अभिकल्पन
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अनुनाद सिंह
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* यदि जनसामान्य अभिकल्पन के मुख्य नियमों को समझ ले तो इससे बढ़कर कोई अन्य कार्य सुन्दरता, वर्कमैनशिप, उत्पादकों का मूल्यवर्धन करने वाला तथा देश के कल्याण और समृद्धि को बढाने वाला नहीं हो सकता। अभिकल्पन के नियम असानी से ग्रहण किये जा सकते हैं, और इन्हें अक्षरज्ञान के साथ से पढ़ाया जाना चाहिये। -- अर्नेस्ट फ्लैग (Ernest Flagg) , स्माल हाउसेस : देयर इकनॉमिक डिजाइन ऐण्ड कान्स्ट्रक्शन (1922)
* डिजाइन पुनर्डिजाइन है। -- जान माइकल (2002), सीइंग डिजाइन ऐज रीडिजाइन में (2002 ई)
* अच्छी डिजाइन, डिजाइनकर्ता और प्रयोक्ता के बीच सम्वाद भी है। -- डॉनाल्ड नॉर्मन (2002)
* अच्छी डिजाइन ठीक दिखती है। वह सरल (स्पष्ट और जटिलता से रहित) होती है। मानचित्र, सुहाना, विचारोत्तेजक और संवाद करने वाला होना चाहिये। -- आर्थर एच रॉबिन्सन (1953) एलिमेन्ट्स ऑफ कार्टोग्राफी, में
* औद्योगिक डिजाइन, एक सार्वभौमिक भाषा बनकर रहेगी। -- Jacques-Eugène Armengaud आदि
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कर्म
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* ''कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।'' (गीता)
: अर्थ : कर्म करने में ही तुम्हारा अधिकार है, कभी भी फल में नहीं।
* सकल पदरथ एहि जग माँही । करमहीन नर पावत नाहीं॥
: अर्थ : इसी संसार में सभी पदार्थ मौजूद हैं किन्तु कर्महीन व्यक्ति को वे नहीं मिलते।
* काल्ह करै सो आज कर, अज करै सो अब।
: पल में परलय होयगी, बहुरि करैगा कब॥ (कबीरदास)
* ''कर्मणा सिद्धिः'' । (कर्म से ही सिद्धि मिलती है।)
* कर्मप्रधान बिश्व रचि राखा।
: जो जस करई सो तस फल चाखा॥ (तुलसीदास)
: अर्थ - यह विश्व कर्मप्रधान है। जो जैसा करता है वह वैसा ही फल पाता (चखता) है।
* ''ज्ञानं भारः क्रियां बिना।'' -- हितोपदेश
: आचरण के बिना ज्ञान केवल भार होता है।
* उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।
: नहिं सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः ॥ -- हितोपदेश
: कार्य उद्यम से ही सिद्ध होते हैं , मनोरथ मात्र से नहीं। सोये हुए शेर के मुख में मृग प्रवेश नहीं करते।
* देह शिवा बर मोहि इहै , शुभ करमन तें कबहूँ न टरौं ।
: जब जाइ लरौं रन बीच मरौं , या रण में अपनी जीत करौं ॥ -- गुरू गोविन्द सिंह, दसम ग्रन्थ में
* निज-कर-क्रिया रहीम कहि , सिधि भावी के हाथ ।
: पांसा अपने हाथ में , दांव न अपने हाथ ॥
* जो क्रियावान है , वही पण्डित है । ( यः क्रियावान् स पण्डितः )
* जीवन की सबसे बडी क्षति मृत्यु नही है । सबसे बडी क्षति तो वह है जो हमारे अन्दर ही मर जाती है । -- नार्मन कजिन
* आरम्भ कर देना ही आगे निकल जाने का रहस्य है। -- सैली बर्जर
* जो कुछ आप कर सकते हैं या कर जाने की इच्छा रखते है उसे करना आरम्भ कर दीजिये । निर्भीकता के अन्दर मेधा ( बुद्धि ), शक्ति और जादू होते हैं । -- गोथे
* छोटा आरम्भ करो, शीघ्र आरम्भ करो।
* प्रारम्भ के समान ही उदय भी होता है । ( प्रारम्भसदृशोदयः ) -- रघुवंश महाकाव्यम्
* यो विषादं प्रसहते विक्रमे समुपस्थिते ।
: तेजसा तस्य हीनस्य पुरुषार्थो न सिद्धयति ॥ -- वाल्मीकि रामायण
: पराक्रम दिखाने का समय आने पर जो पीछे हट जाता है, उस तेजहीन का पुरुषार्थ सिद्ध नही होता।
* हजारों मील की यात्रा भी प्रथम चरण से ही आरम्भ होती है। -- चीनी कहावत
* सम्पूर्ण जीवन ही एक प्रयोग है। जितने प्रयोग करोगे उतना ही अच्छा है। -- इमर्सन
* सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि आप चौबीस घण्टे मे कितने प्रयोग कर पाते है। -- एडिशन
* उच्च कर्म महान मस्तिष्क को सूचित करते हैं। -- जान फ़्लीचर
* मानव के कर्म ही उसके विचारों की सर्वश्रेष्ठ व्याख्या है। -- लाक
* जो जैसा शुभ व अशुभ कार्य करता है, वो वैसा ही फल भोगता है । -- वेदव्यास
* अकर्मण्य मनुष्य श्रेष्ठ होते हुए भी पापी है। -- ऐतरेय ब्राह्मण-३३।३
* मानव के कर्म ही उसके विचारों की सर्वश्रेष्ठ व्याख्या है । -- जान लाक
* मनुष्य जितना ज्ञान में घुल गया हो उतना ही कर्म के रंग में रंग जाता है । -- विनोबा
* सही स्थान पर बोया गया सुकर्म का बीज ही महान फल देता है । -- कथासरित्सागर
==इन्हें भी देखें==
* [[धर्म]]
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अनुनाद सिंह
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* ''कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।'' (गीता)
: अर्थ : कर्म करने में ही तुम्हारा अधिकार है, कभी भी फल में नहीं।
* सकल पदरथ एहि जग माँही । करमहीन नर पावत नाहीं॥
: अर्थ : इसी संसार में सभी पदार्थ मौजूद हैं किन्तु कर्महीन व्यक्ति को वे नहीं मिलते।
* काल्ह करै सो आज कर, अज करै सो अब।
: पल में परलय होयगी, बहुरि करैगा कब॥ (कबीरदास)
* ''कर्मणा सिद्धिः'' । (कर्म से ही सिद्धि मिलती है।)
* कर्मप्रधान बिश्व रचि राखा।
: जो जस करई सो तस फल चाखा॥ (तुलसीदास)
: अर्थ - यह विश्व कर्मप्रधान है। जो जैसा करता है वह वैसा ही फल पाता (चखता) है।
* ''ज्ञानं भारः क्रियां बिना।'' -- हितोपदेश
: आचरण के बिना ज्ञान केवल भार होता है।
* उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।
: नहिं सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः ॥ -- हितोपदेश
: कार्य उद्यम से ही सिद्ध होते हैं , मनोरथ मात्र से नहीं। सोये हुए शेर के मुख में मृग प्रवेश नहीं करते।
* देह शिवा बर मोहि इहै , शुभ करमन तें कबहूँ न टरौं ।
: जब जाइ लरौं रन बीच मरौं , या रण में अपनी जीत करौं ॥ -- गुरू गोविन्द सिंह, दसम ग्रन्थ में
* निज-कर-क्रिया रहीम कहि , सिधि भावी के हाथ ।
: पांसा अपने हाथ में , दांव न अपने हाथ ॥
* जो क्रियावान है , वही पण्डित है । ( यः क्रियावान् स पण्डितः )
* जीवन की सबसे बडी क्षति मृत्यु नही है । सबसे बडी क्षति तो वह है जो हमारे अन्दर ही मर जाती है । -- नार्मन कजिन
* आरम्भ कर देना ही आगे निकल जाने का रहस्य है। -- सैली बर्जर
* जो कुछ आप कर सकते हैं या कर जाने की इच्छा रखते है उसे करना आरम्भ कर दीजिये । निर्भीकता के अन्दर मेधा ( बुद्धि ), शक्ति और जादू होते हैं । -- गोथे
* छोटा आरम्भ करो, शीघ्र आरम्भ करो।
* प्रारम्भ के समान ही उदय भी होता है । ( प्रारम्भसदृशोदयः ) -- रघुवंश महाकाव्यम्
* यो विषादं प्रसहते विक्रमे समुपस्थिते ।
: तेजसा तस्य हीनस्य पुरुषार्थो न सिद्धयति ॥ -- वाल्मीकि रामायण
: पराक्रम दिखाने का समय आने पर जो पीछे हट जाता है, उस तेजहीन का पुरुषार्थ सिद्ध नही होता।
* हजारों मील की यात्रा भी प्रथम चरण से ही आरम्भ होती है। -- चीनी कहावत
* सम्पूर्ण जीवन ही एक प्रयोग है। जितने प्रयोग करोगे उतना ही अच्छा है। -- इमर्सन
* सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि आप चौबीस घण्टे मे कितने प्रयोग कर पाते है। -- एडिशन
* उच्च कर्म महान मस्तिष्क को सूचित करते हैं। -- जान फ़्लीचर
* मानव के कर्म ही उसके विचारों की सर्वश्रेष्ठ व्याख्या है। -- लाक
* जो जैसा शुभ व अशुभ कार्य करता है, वो वैसा ही फल भोगता है । -- वेदव्यास
* अकर्मण्य मनुष्य श्रेष्ठ होते हुए भी पापी है। -- ऐतरेय ब्राह्मण-३३।३
* मानव के कर्म ही उसके विचारों की सर्वश्रेष्ठ व्याख्या है । -- जान लाक
* मनुष्य जितना ज्ञान में घुल गया हो उतना ही कर्म के रंग में रंग जाता है । -- विनोबा
* सही स्थान पर बोया गया सुकर्म का बीज ही महान फल देता है । -- कथासरित्सागर
==इन्हें भी देखें==
* [[धर्म]]
==बाहरी कड़ियाँ==
*[https://www.shiveshpratap.com/sanskrit-shlokas-for-karma-with-hindi-meaning-कर्म-संस्कृत-श्लोक/ कर्म संस्कृत श्लोक]
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सदस्य वार्ता:अनुनाद सिंह
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अनुनाद सिंह
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== संदर्भ का फोर्मैट ==
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:@[[सदस्य:सूरजमुखी|सूरजमुखी जी]], जहाँ तक मुझे पता है, 'स्वीकृत फॉर्मट' जैसा यहाँ कुछ भी नहीं है। पहले जिस फॉर्मट में था, वह मुझे इसलिये ठीक नहीं लगा कि 'उक्ति' और उक्तिकर्ता - दोनों 'बुलेट' से शुरू होते थे। इससे पढ़ने में स्पष्टता की कमी थी। --[[सदस्य:अनुनाद सिंह|अनुनाद सिंह]] ([[सदस्य वार्ता:अनुनाद सिंह|वार्ता]]) १६:००, ३० जुलाई २०२२ (IST)
::[https://hi.wikiquote.org/w/index.php?title=%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A4%BE_%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B8&diff=23769&oldid=23760 दो डैश की जगह एक em-डैश ज़्यादा सही लग रहा है]। [[सदस्य:सूरजमुखी|सूरजमुखी]] ([[सदस्य वार्ता:सूरजमुखी|वार्ता]]) १६:१७, ३० जुलाई २०२२ (IST)
:::[[विकिसूक्ति:चौपाल#विकिसूक्ति_के_लेखों_का_प्रारूप|चौपाल पर एक बहुत पुरानी चर्चा]] है इस पर। कोई स्वीकृत फोर्मैट बना दें तो नए सदस्यों को ज़्यादा समस्या न हो। उचित जानें तो इसपर अपना मत रखकर स्वीकृत फोर्मैट बन सकता है। [[सदस्य:सूरजमुखी|सूरजमुखी]] ([[सदस्य वार्ता:सूरजमुखी|वार्ता]]) १६:२३, ३० जुलाई २०२२ (IST)
:::: इस विचार से सहमत हूँ कि दो डैश की जगह एक em-डैश ज़्यादा सही लग रहा है। लेकिन समस्या यह है कि दो डैश कीबोर्ड पर आसानी से उपलब्ध हैं, जबकि em-डैश लगाने के लिये थोड़ा लम्बा रास्ता अपनाना पड़ेगा। समय लगेगा। इसके अलावा, यदि आवश्यक हो तो, पूरे विकिसूक्ति में, एक साथ 'दो डैश' के स्थान पर em-डैश आसानी से किया भी जा सकता है।
:::: स्वीकृत मानक फॉर्मट तो अवश्य ही अच्छा रहेगा। लेकिन वह ऐसा होना चाहिये जो 'अच्छा' भी हो और उसे टंकित करना भी सरल हो।--[[सदस्य:अनुनाद सिंह|अनुनाद सिंह]] ([[सदस्य वार्ता:अनुनाद सिंह|वार्ता]]) १६:३१, ३० जुलाई २०२२ (IST)
:::::इसके लिए एक साँचा बना सकती हूँ जिससे <nowiki>{{--}}</nowiki> ये लिखने पर em-डैश आ जाए करेगा। [[सदस्य:सूरजमुखी|सूरजमुखी]] ([[सदस्य वार्ता:सूरजमुखी|वार्ता]]) १६:५१, ३० जुलाई २०२२ (IST)
:::::: मुझे तो ये अधिक समय लेने वाला विकल्प लग रहा है। इसके बजाय find--Replace द्वारा मैं दो डैश को एक झटके में em-डैश में बदल सकता हूँ।-- [[सदस्य:अनुनाद सिंह|अनुनाद सिंह]] ([[सदस्य वार्ता:अनुनाद सिंह|वार्ता]]) १६:५५, ३० जुलाई २०२२ (IST)
:::::::पहले से डले हुए डैश को इस तरह बदल सकते हैं, मेरा सुझाव नए पृष्ठों में em-dash डालने को लेकर था, अंग्रेज़ी विकिस्त्रोत में प्रयोग किया था ऐसा साँचा, बहुत सुविधाजनक हो जाता है। [[सदस्य:सूरजमुखी|सूरजमुखी]] ([[सदस्य वार्ता:सूरजमुखी|वार्ता]]) १७:०५, ३० जुलाई २०२२ (IST)
पहले से डले हुए डैश को इस तरह बदल सकते हैं, और नया पृष्ठ बनाते समय भी पहले दो-डैश टाइप करने के बाद सभी 'डैश-डैश' को एम-डैश से एक बार में ही बदल सकते हैं।--[[सदस्य:अनुनाद सिंह|अनुनाद सिंह]] ([[सदस्य वार्ता:अनुनाद सिंह|वार्ता]]) १७:१३, ३० जुलाई २०२२ (IST)
:find--replace विकिएडिटर का कोई फीचर है? [[सदस्य:सूरजमुखी|सूरजमुखी]] ([[सदस्य वार्ता:सूरजमुखी|वार्ता]]) १७:२४, ३० जुलाई २०२२ (IST)
:: मैं प्रायः एक अलग टेक्स्ट एडिटर में find--replace का काम कर लेता हूँ। वहाँ आसान पड़ता है और जल्दी हो जाता है। हिन्दी विकिपिडिया पर जो एडिटर है (WikEd) उसमें find--replace की सुविधा है। यहाँ पर शायद नहीं है। मैंने देखा नहीं कि यहाँ सम्पादक के कितने विकल्प मौजूद हैं।--[[सदस्य:अनुनाद सिंह|अनुनाद सिंह]] ([[सदस्य वार्ता:अनुनाद सिंह|वार्ता]]) १७:३७, ३१ जुलाई २०२२ (IST)
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राजनय
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अनुनाद सिंह
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[[कूटनीति]] को अनुप्रेषित
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#पुनर्प्रेषित [[कूटनीति]]
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वैद्य
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अनुनाद सिंह
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' * ''तत्त्वाधिगतशास्त्रार्थो दृष्टकर्मा स्वयंकृती। : ''लघुहस्तः शुचिः शूरः सज्जोपस्करभेषजः॥ : ''प्रत्युत्पन्नमतिर्धीमान् व्यवसायी विशारदः। : '' सत्यधर्मपरो यश्च स भि...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
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* ''तत्त्वाधिगतशास्त्रार्थो दृष्टकर्मा स्वयंकृती।
: ''लघुहस्तः शुचिः शूरः सज्जोपस्करभेषजः॥
: ''प्रत्युत्पन्नमतिर्धीमान् व्यवसायी विशारदः।
: '' सत्यधर्मपरो यश्च स भिषक् पाद उच्यते॥ -- सुश्रुतसंहिता
: अर्थ - वैद्य उसे कहते हैं जो ठीक प्रकार से शास्त्र पढ़ा हुआ, ठीक प्रकार से शास्त्र का अर्थ समझा हुआ, छेदन स्नेहन आदि कर्मों को देखा एवं स्वयं किया हुआ, छेदन आदि शस्त्र-कर्मों में दक्ष हाथ वाला, बाहर एवं अन्दर से पवित्र (रज-तम रहित), शूर (विषाद रहित) , अग्रोपहरणीय अध्याय में वर्णित साज-सामान सहित, प्रत्युत्पन्नमति (उत्तम प्रतिभा-सूझ वाला), बुद्धिमान, व्यवसायी (उत्साहसम्पन्न), विशारद (पण्डित), सत्यनिष्ट, धर्मपरायण हो।
* तर्कविहीनो वैद्यः लक्षण हीनश्च पण्डितो लोके ।
: भावविहीनो धर्मो नूनं हस्यन्ते त्रीण्यपि ॥
: तर्कविहीन वैद्य, लक्षणविहीन पंडित, और भावरहित धर्म – ये अवश्य ही जगत में हंसी के पात्र बनते हैं।
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* ''तत्त्वाधिगतशास्त्रार्थो दृष्टकर्मा स्वयंकृती।
: ''लघुहस्तः शुचिः शूरः सज्जोपस्करभेषजः॥
: ''प्रत्युत्पन्नमतिर्धीमान् व्यवसायी विशारदः।
: '' सत्यधर्मपरो यश्च स भिषक् पाद उच्यते॥ -- सुश्रुतसंहिता
: अर्थ - वैद्य उसे कहते हैं जो ठीक प्रकार से शास्त्र पढ़ा हुआ, ठीक प्रकार से शास्त्र का अर्थ समझा हुआ, छेदन स्नेहन आदि कर्मों को देखा एवं स्वयं किया हुआ, छेदन आदि शस्त्र-कर्मों में दक्ष हाथ वाला, बाहर एवं अन्दर से पवित्र (रज-तम रहित), शूर (विषाद रहित) , अग्रोपहरणीय अध्याय में वर्णित साज-सामान सहित, प्रत्युत्पन्नमति (उत्तम प्रतिभा-सूझ वाला), बुद्धिमान, व्यवसायी (उत्साहसम्पन्न), विशारद (पण्डित), सत्यनिष्ट, धर्मपरायण हो।
* ''तर्कविहीनो वैद्यः लक्षण हीनश्च पण्डितो लोके ।
: ''भावविहीनो धर्मो नूनं हस्यन्ते त्रीण्यपि ॥
: तर्कविहीन वैद्य, लक्षणविहीन पंडित, और भावरहित धर्म – ये अवश्य ही जगत में हंसी के पात्र बनते हैं।
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* ''तत्त्वाधिगतशास्त्रार्थो दृष्टकर्मा स्वयंकृती।
: ''लघुहस्तः शुचिः शूरः सज्जोपस्करभेषजः॥
: ''प्रत्युत्पन्नमतिर्धीमान् व्यवसायी विशारदः।
: '' सत्यधर्मपरो यश्च स भिषक् पाद उच्यते॥ -- सुश्रुतसंहिता
: अर्थ - वैद्य उसे कहते हैं जो ठीक प्रकार से शास्त्र पढ़ा हुआ, ठीक प्रकार से शास्त्र का अर्थ समझा हुआ, छेदन स्नेहन आदि कर्मों को देखा एवं स्वयं किया हुआ, छेदन आदि शस्त्र-कर्मों में दक्ष हाथ वाला, बाहर एवं अन्दर से पवित्र (रज-तम रहित), शूर (विषाद रहित) , अग्रोपहरणीय अध्याय में वर्णित साज-सामान सहित, प्रत्युत्पन्नमति (उत्तम प्रतिभा-सूझ वाला), बुद्धिमान, व्यवसायी (उत्साहसम्पन्न), विशारद (पण्डित), सत्यनिष्ट, धर्मपरायण हो।
* ''तर्कविहीनो वैद्यः लक्षण हीनश्च पण्डितो लोके ।
: ''भावविहीनो धर्मो नूनं हस्यन्ते त्रीण्यपि ॥
: तर्कविहीन वैद्य, लक्षणविहीन पंडित, और भावरहित धर्म – ये अवश्य ही जगत में हंसी के पात्र बनते हैं।
==इन्हें भी देखें==
* [[औषधि]]
* [[आयुर्वेद]]
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* ''तत्त्वाधिगतशास्त्रार्थो दृष्टकर्मा स्वयंकृती।
: ''लघुहस्तः शुचिः शूरः सज्जोपस्करभेषजः॥
: ''प्रत्युत्पन्नमतिर्धीमान् व्यवसायी विशारदः।
: '' सत्यधर्मपरो यश्च स भिषक् पाद उच्यते॥ -- सुश्रुतसंहिता
: अर्थ - वैद्य उसे कहते हैं जो ठीक प्रकार से शास्त्र पढ़ा हुआ, ठीक प्रकार से शास्त्र का अर्थ समझा हुआ, छेदन स्नेहन आदि कर्मों को देखा एवं स्वयं किया हुआ, छेदन आदि शस्त्र-कर्मों में दक्ष हाथ वाला, बाहर एवं अन्दर से पवित्र (रज-तम रहित), शूर (विषाद रहित) , अग्रोपहरणीय अध्याय में वर्णित साज-सामान सहित, प्रत्युत्पन्नमति (उत्तम प्रतिभा-सूझ वाला), बुद्धिमान, व्यवसायी (उत्साहसम्पन्न), विशारद (पण्डित), सत्यनिष्ट, धर्मपरायण हो।
* ''तर्कविहीनो वैद्यः लक्षण हीनश्च पण्डितो लोके ।
: ''भावविहीनो धर्मो नूनं हस्यन्ते त्रीण्यपि ॥
: तर्कविहीन वैद्य, लक्षणविहीन पंडित, और भावरहित धर्म – ये अवश्य ही जगत में हंसी के पात्र बनते हैं।
*'' वैद्यराज नमस्तुभ्यं यमराज सहोदर:।
:'' यमस्तु हरति प्राणान् वैद्य: प्राणान् धनानि च।
:हे यमराज के भाई वैद्यराज! तुम्हें प्रणाम। यमराज तो सिर्फ प्राणों का हरण करता है परन्तु आप प्राण और धन दोनों का हरण कर लेते हो।
==इन्हें भी देखें==
* [[औषधि]]
* [[आयुर्वेद]]
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* ''तत्त्वाधिगतशास्त्रार्थो दृष्टकर्मा स्वयंकृती।
: ''लघुहस्तः शुचिः शूरः सज्जोपस्करभेषजः॥
: ''प्रत्युत्पन्नमतिर्धीमान् व्यवसायी विशारदः।
: '' सत्यधर्मपरो यश्च स भिषक् पाद उच्यते॥ -- सुश्रुतसंहिता
: अर्थ - वैद्य उसे कहते हैं जो ठीक प्रकार से शास्त्र पढ़ा हुआ, ठीक प्रकार से शास्त्र का अर्थ समझा हुआ, छेदन स्नेहन आदि कर्मों को देखा एवं स्वयं किया हुआ, छेदन आदि शस्त्र-कर्मों में दक्ष हाथ वाला, बाहर एवं अन्दर से पवित्र (रज-तम रहित), शूर (विषाद रहित) , अग्रोपहरणीय अध्याय में वर्णित साज-सामान सहित, प्रत्युत्पन्नमति (उत्तम प्रतिभा-सूझ वाला), बुद्धिमान, व्यवसायी (उत्साहसम्पन्न), विशारद (पण्डित), सत्यनिष्ट, धर्मपरायण हो।
* ''तर्कविहीनो वैद्यः लक्षण हीनश्च पण्डितो लोके ।
: ''भावविहीनो धर्मो नूनं हस्यन्ते त्रीण्यपि ॥
: तर्कविहीन वैद्य, लक्षणविहीन पंडित, और भावरहित धर्म – ये अवश्य ही जगत में हंसी के पात्र बनते हैं।
*'' वैद्यराज नमस्तुभ्यं यमराज सहोदर:।
:'' यमस्तु हरति प्राणान् वैद्य: प्राणान् धनानि च।
:हे यमराज के भाई वैद्यराज! तुम्हें प्रणाम। यमराज तो सिर्फ प्राणों का हरण करता है परन्तु आप प्राण और धन दोनों का हरण कर लेते हो।
* ''सामुद्रिकं वणिजं चोरपूर्वं शलाकधूर्तं च चिकित्सकं च ।
: ''अरिं च मित्रं च कुशीलवं च नैतान्साक्ष्येष्वधिकुर्वीत सप्त ॥
: हस्तरेखा व शरीर के लक्षणों के जानकार को, चोर व चोरी से व्यापारी बने व्यक्ति को, जुआरी को, चिकित्सक को, मित्र को तथा सेवक को - इन सातों को कभी अपना गवाह न बनाएँ, ये कभी भी पलट सकते हैं।
==इन्हें भी देखें==
* [[औषधि]]
* [[आयुर्वेद]]
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अनुनाद सिंह
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* ''तत्त्वाधिगतशास्त्रार्थो दृष्टकर्मा स्वयंकृती।
: ''लघुहस्तः शुचिः शूरः सज्जोपस्करभेषजः॥
: ''प्रत्युत्पन्नमतिर्धीमान् व्यवसायी विशारदः।
: '' सत्यधर्मपरो यश्च स भिषक् पाद उच्यते॥ -- सुश्रुतसंहिता
: अर्थ - वैद्य उसे कहते हैं जो ठीक प्रकार से शास्त्र पढ़ा हुआ, ठीक प्रकार से शास्त्र का अर्थ समझा हुआ, छेदन स्नेहन आदि कर्मों को देखा एवं स्वयं किया हुआ, छेदन आदि शस्त्र-कर्मों में दक्ष हाथ वाला, बाहर एवं अन्दर से पवित्र (रज-तम रहित), शूर (विषाद रहित) , अग्रोपहरणीय अध्याय में वर्णित साज-सामान सहित, प्रत्युत्पन्नमति (उत्तम प्रतिभा-सूझ वाला), बुद्धिमान, व्यवसायी (उत्साहसम्पन्न), विशारद (पण्डित), सत्यनिष्ट, धर्मपरायण हो।
*'' संचयंच प्रकोपंच प्रसरं स्थानसंश्रयम्।
:'' व्यक्ति भेदंच यो वेत्ति दोषाणां स भवेद्धिषक् ॥ -- सुश्रुत संहिता २१/३६
: अर्थात दोषों का संचय, प्रकोप, प्रसर, स्थानसंश्रय, व्यक्ति और भेद को जो जानता है, वही यथार्थ वैद्य है। (इन्हें 'षट् क्रियाकाल' कहते हैं।)
* ''तर्कविहीनो वैद्यः लक्षण हीनश्च पण्डितो लोके ।
: ''भावविहीनो धर्मो नूनं हस्यन्ते त्रीण्यपि ॥
: तर्कविहीन वैद्य, लक्षणविहीन पंडित, और भावरहित धर्म – ये अवश्य ही जगत में हंसी के पात्र बनते हैं।
*'' वैद्यराज नमस्तुभ्यं यमराज सहोदर:।
:'' यमस्तु हरति प्राणान् वैद्य: प्राणान् धनानि च।
:हे यमराज के भाई वैद्यराज! तुम्हें प्रणाम। यमराज तो सिर्फ प्राणों का हरण करता है परन्तु आप प्राण और धन दोनों का हरण कर लेते हो।
* ''सामुद्रिकं वणिजं चोरपूर्वं शलाकधूर्तं च चिकित्सकं च ।
: ''अरिं च मित्रं च कुशीलवं च नैतान्साक्ष्येष्वधिकुर्वीत सप्त ॥
: हस्तरेखा व शरीर के लक्षणों के जानकार को, चोर व चोरी से व्यापारी बने व्यक्ति को, जुआरी को, चिकित्सक को, मित्र को तथा सेवक को - इन सातों को कभी अपना गवाह न बनाएँ, ये कभी भी पलट सकते हैं।
==इन्हें भी देखें==
* [[औषधि]]
* [[आयुर्वेद]]
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निदान
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'* आयुर्वेद केवल पोषण या जड़ी-बूटी के बारे में नहीं है, इसमें निदान के लिए एक अनूठा उपकरण है। मानव संविधान को समझने का निदान एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में भिन्न है। प्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
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* आयुर्वेद केवल पोषण या जड़ी-बूटी के बारे में नहीं है, इसमें निदान के लिए एक अनूठा उपकरण है। मानव संविधान को समझने का निदान एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में भिन्न है। प्रत्येक में एक अद्वितीय चयापचय प्रणाली होती है।
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* आयुर्वेद केवल पोषण या जड़ी-बूटी के बारे में नहीं है, इसमें निदान के लिए एक अनूठा उपकरण है। मानव संविधान को समझने का निदान एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में भिन्न है। प्रत्येक में एक अद्वितीय चयापचय प्रणाली होती है।
* उपलब्ध युक्तियों का प्रयोग करते हुए मैंने आत्म-निदान किया और समय से पहले मरने से बच गया। -- Steven Magee, Magee’s Disease
==इन्हें भी देखें==
* [[वैद्य|वैद्य या चिकित्सक]]
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* आयुर्वेद केवल पोषण या जड़ी-बूटी के बारे में नहीं है, इसमें निदान के लिए एक अनूठा उपकरण है। मानव संविधान को समझने का निदान एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में भिन्न है। प्रत्येक में एक अद्वितीय चयापचय प्रणाली होती है।
* उपलब्ध युक्तियों का प्रयोग करते हुए मैंने आत्म-निदान किया और समय से पहले मरने से बच गया। -- Steven Magee, Magee’s Disease
* सही निदान मुझे पुस्तकों में और इन्टरनेट पर मिला। ― Steven Magee, Hypoxia, Mental Illness & Chronic Fatigue
==इन्हें भी देखें==
* [[वैद्य|वैद्य या चिकित्सक]]
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अनुनाद सिंह
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*'' रोगमादौ परीक्षेत ततोनन्तरं औषधम् ।
:'' ततः कर्म भिषक् पश्चात् ज्ञानपूर्वं समाचरेत् ॥
:'' यस्तुरोगं अविज्ञाय कर्मान्यरभते भिषक।
:'' अपि औषधविधानज्ञः तस्य सिद्धि यद्रच्छया ॥
:'' यस्तु रोगविशेषज्ञः सर्वभैषज्यकोविदः।
:'' देशकालप्रमाणज्ञः तस्य सिद्धिरसंशयम् ॥ -- चरकसंहिता, सूत्रस्थान, २०/२०,२१,२२
: अर्थात् चिकित्सा के पूर्व परीक्षा अत्यन्त आवश्यक है। परीक्षा की जहां तक बात आती है तो परीक्षा रोगी की भी होती है और रोग की भी। रोग-रोगी दोनों की परीक्षा करके उनका बलाबल ज्ञान करके ही सफल चिकित्सा की जा सकती है।
* आयुर्वेद केवल पोषण या जड़ी-बूटी के बारे में नहीं है, इसमें निदान के लिए एक अनूठा उपकरण है। मानव संविधान को समझने का निदान एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में भिन्न है। प्रत्येक में एक अद्वितीय चयापचय प्रणाली होती है।
* उपलब्ध युक्तियों का प्रयोग करते हुए मैंने आत्म-निदान किया और समय से पहले मरने से बच गया। -- Steven Magee, Magee’s Disease
* सही निदान मुझे पुस्तकों में और इन्टरनेट पर मिला। ― Steven Magee, Hypoxia, Mental Illness & Chronic Fatigue
==इन्हें भी देखें==
* [[वैद्य|वैद्य या चिकित्सक]]
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अनुनाद सिंह
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text/x-wiki
*'' रोगमादौ परीक्षेत ततोनन्तरं औषधम् ।
:'' ततः कर्म भिषक् पश्चात् ज्ञानपूर्वं समाचरेत् ॥
:'' यस्तुरोगं अविज्ञाय कर्मान्यरभते भिषक।
:'' अपि औषधविधानज्ञः तस्य सिद्धि यद्रच्छया ॥
:'' यस्तु रोगविशेषज्ञः सर्वभैषज्यकोविदः।
:'' देशकालप्रमाणज्ञः तस्य सिद्धिरसंशयम् ॥ -- चरकसंहिता, सूत्रस्थान, २०/२०,२१,२२
: अर्थात् चिकित्सा के पूर्व परीक्षा अत्यन्त आवश्यक है। परीक्षा की जहां तक बात आती है तो परीक्षा रोगी की भी होती है और रोग की भी। रोग-रोगी दोनों की परीक्षा करके उनका बलाबल ज्ञान करके ही सफल चिकित्सा की जा सकती है।
* '' निदानं पूर्वरूपाणि रूपाण्युपशयस्तथा।
: '' सम्प्राप्तिश्चेति विज्ञानं रोगाणां पञ्चधा स्मृतम् ॥'' -- वाग्भट विरचित अष्टाङ्गहृदयसंहिता के 'निदानस्थान' नामक प्रथम अध्याय में
: निदान, पूर्वरूप, रूप, उपशय और सम्प्राति - ये रोगों के पाँच प्रकार के विज्ञान हैं।
* आयुर्वेद केवल पोषण या जड़ी-बूटी के बारे में नहीं है, इसमें निदान के लिए एक अनूठा उपकरण है। मानव संविधान को समझने का निदान एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में भिन्न है। प्रत्येक में एक अद्वितीय चयापचय प्रणाली होती है।
* उपलब्ध युक्तियों का प्रयोग करते हुए मैंने आत्म-निदान किया और समय से पहले मरने से बच गया। -- Steven Magee, Magee’s Disease
* सही निदान मुझे पुस्तकों में और इन्टरनेट पर मिला। ― Steven Magee, Hypoxia, Mental Illness & Chronic Fatigue
==इन्हें भी देखें==
* [[वैद्य|वैद्य या चिकित्सक]]
hgqejsijmg9xased3keozk9ab20xpef
सदस्य वार्ता:करुणेश कुमार शुक्ल
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2022-08-01T10:57:00Z
New user message
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स्वागत
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{{साँचा:स्वागत|realName=|name=करुणेश कुमार शुक्ल}}
-- [[सदस्य:New user message|New user message]] ([[सदस्य वार्ता:New user message|वार्ता]]) १६:२७, १ अगस्त २०२२ (IST)
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