विकिस्रोत hiwikisource https://hi.wikisource.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%A4:%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%96%E0%A4%AA%E0%A5%83%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%A0 MediaWiki 1.39.0-wmf.21 first-letter मीडिया विशेष वार्ता सदस्य सदस्य वार्ता विकिस्रोत विकिस्रोत वार्ता चित्र चित्र वार्ता मीडियाविकि मीडियाविकि वार्ता साँचा साँचा वार्ता सहायता सहायता वार्ता श्रेणी श्रेणी वार्ता लेखक लेखक वार्ता अनुवाद अनुवाद वार्ता पृष्ठ पृष्ठ वार्ता विषयसूची विषयसूची वार्ता TimedText TimedText talk Module Module talk गैजेट गैजेट वार्ता गैजेट परिभाषा गैजेट परिभाषा वार्ता पृष्ठ:प्रेमाश्रम.pdf/२५२ 250 14405 517370 361564 2022-07-23T13:53:32Z शिखर तिवारी 633 /* शोधित */ proofread-page text/x-wiki <noinclude><pagequality level="3" user="शिखर तिवारी" />{{rh||'''प्रेमाश्रम'''|'''२५७'''}}</noinclude>खड़ी रहती थी। इनमे कितने ही महानुभाव सन्यासी थे। वह तिलकधारी पंडितों को तुच्छ समझते थे और मोटर पर बैठने के लिए अग्रसर हो जाते थे। एक सन्यासी महात्मा, जो विद्यारत्न की पदवी से अलकृत थे, मोटर न मिलने से इतनै अप्रसन्न हुए कि बहुत आरजू-मिन्नत करने पर भी फिटन पर न बैठे। सभा-भवन तक पैदल आये। लेकिन जिस समारोह से सैयद ईजाद हुसेन का आगमन हुआ वह और किसी को नसीब न हुआ। जिस समय वह पाल मे पहुँचे, जलसा शुरू हो गया था और एक विद्वान् पडित जी विधवा-विवाह पर भाषण कर रहे थे। ऐसे निन्छ विषय पर गम्भीरता से विचार करना अनुपयुक्त समझ कर वह इसकी खूब हँसी उडा रहे थे और यथोचित हास्य और व्यग, धिक्कार और तिरस्कार से काम लेते थे। 'सज्जनों, यह कोई कल्पित घटना नही, मेरी आँखो देखी बात है। मेरे पड़ोस मे एक बाबू साहब रहते हैं। एक दिन वह अपनी माता से विधवा-विवाह की प्रशंसा कर रहे थे। माता जी चुपचाप सुनती जाती थी। जब बाबू साहब की वार्ता समाप्त हुई तो माता ने बड़े गम्भीर भाव से कहा, बेटा, मेरी एक विनती है, उसे मानो। क्यों मेरा भी किसी से पाणिग्रहण नहीं करा देते? देश भर की विधवाएँ सोहागिन हो जायेंगी तो मुझसे क्यों कर रहा जायगा? श्रोताओं ने प्रसन्न होकर तालियाँ बजायी, कहकहो से पंडाल गूंज उठा। इतने में सैयद ईजाद हुसैन ने पंडाल में प्रवेश किया। आगे-आगे चार लड़के एक कतार में थे, दो हिन्दू, दो मुसलमान। हिन्दू बालको की धोतियाँ और कुरते पीले थे, मुसलमान बालको के कुरते और पाजामे हरे। इनके पीछे चार लड़कियो की पक्ति थी—दो हिन्दू और दो मुसलमान। उनके पहनाव में भी वहीं अन्तर था। सभी के हाथो में रंगीन झडियों थी, जिनपर उज्ज्वल अक्षरों में अकित था-'इत्तहादी यतीमखाना।' इनके पीछे सैयद ईजाद हुसैन थे। गौर वर्ण, श्वेत केश, सिर पर हरा अमामा, काले अल्पाके की आवा, सुफेद तजेब की अचकन, सुलेमशाही जूते, सौम्य और प्रतिभा की प्रत्यक्ष मूर्त थे। उनके हाथ में भी वैसा ही झड़ी थी। उनके पीछे उनके सुपुत्र सैयद इर्शाद हुसेन थे-लम्बा कद, नाक पर सुनहरी ऐनक, अल्वर्ट फैशन की दाढी, तुर्की टोपी, नीच अचकन, सजीवता की प्रत्यक्ष मूर्ति मालूम होते थे। सबसे पीछे साजिन्दे थे। एक के हाथ में हारमोनियम था, दूसरे के हाथ मे तवले, शेष दो आदमी करताल लिये हुए थे। इन सबो की वर्दी एक ही तरह की थी और उनकी टोपियो पर 'अजुमन इत्तहाद' की मोहर लगी हुई थी। पंडाल में कई हजार आदमी जमा थे। सब के सब 'इत्तहाद के प्रचारको की ओर टकटकी बाँध कर देखने लगें। पंडित जी का रोचक व्याख्यान फीका पड़ गया। उन्होंने बहुत उछल-कूद की, अपनी सम्पूर्ण हास्यशक्ति व्यय कर दीं, अश्लील कवित्त सुनाये, एक भद्दी सी गजल भी बेसुरे राग से गायी, पर रंग न जमा। समस्त श्रोतागण 'इत्तहादियों' पर आसक्त हो रहे थे। ईजाद हुसेन एक शनि के साथ मंच पर जा पहुँचे। वहाँ कई सन्यासी, महात्मा, उपदेशक चाँदी की कुसियों पर बैठे हुए थे। सैयद साहब को सबने ईर्षापूर्ण नेत्रो से देखा और जगह {{c|'''१७'''}}<noinclude>[[श्रेणी:प्रेमाश्रम]]</noinclude> lcim9hpbwodf87kgdzksd0q4rwr4gny पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/८२ 250 163987 517371 517369 2022-07-23T16:57:43Z Manisha yadav12 2489 /* शोधित */ proofread-page text/x-wiki <noinclude><pagequality level="3" user="Manisha yadav12" />{{rh|४८|सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय|}}</noinclude>हूँ कि अगले माहसे अ० भा० खादी-बोर्ड द्वारा समय-समयपर दी गई हिदायतोंका पूरा-पूरा पालन किया जायेगा। {{left|[अंग्रेजीसे]<br>'''यंग इंडिया,''' २८-८-१९२४}} {{c|{{x-larger|'''३२. गुलबर्गाका पागलपन'''}}}} पिछले सप्ताह मैंने इशारा किया था<ref>१. देखिए "टिप्पणियाँ", २१-८-१९२४, उप-शीर्षक "मन्दिरोंकी पवित्रताका भंग"।</ref> कि हिन्दुओंके मन्दिरोंको अपवित्र करनेकी जो हवा आजकल बह रही है उसके पीछे जरूर कोई संगठित जमात है। इस सिलसिलेमें गुलबर्गाकी मिसाल सबसे ताजा है। हिन्दुओंकी ओरसे मुसलमानोंको अगर उत्तेजनाका कोई कारण दिया गया हो तो वह चाहे कैसा भी क्यों न रहा हो, लेकिन मुसलमानोंकी हिंसात्मक कार्रवाइयाँ किसी बड़ी विपत्तिकी सूचक हैं। मन्दिरोंको अपवित्र करना तो किसी भी हालतमें उचित नहीं कहा जा सकता। मौलाना शौकत अलीने जब शम्भर और अमेठीमें मन्दिरोंको अपवित्र करनेका हाल सुना तो वे गुस्सेमें कह उठे थे कि अगर किसी दिन हिन्दू लोग मुसलमानोंकी मसजिदोंको नापाक करके इसका बदला लें तो ताज्जुब नहीं होना चाहिए। मौलाना साहबके इन क्रोधपूर्ण वचनोंको सुनकर मुमकिन है, हिन्दू लोग फूल उठें या उनको खुशी हो; लेकिन मुझे नहीं होती और मैं हिन्दुओंको सलाह देता हूँ कि वे भी इसपर खुश न हों। वे इस बातको अच्छी तरह समझ लें कि मुसलमानोंके हर धर्मान्धतापूर्ण कृत्यसे बहतेरे हिन्दुओंके मुकाबले कहीं अधिक चोट मेरे दिलको पहुँचती है। मझे इस बातका पूरा ध्यान है कि इस मामलेमें मेरी जिम्मेदारी क्या है। मैं जानता हूँ कि बहुतेरे हिन्दुओंका दिल यह कहता है कि ऐसे बहुतेरे दंगे-फसादोंका जिम्मेदार मैं हूँ। क्योंकि, उनका कहना है, सोई हुई मुसलमान-जनताको जाग्रत करने में मेरा सबसे ज्यादा हाथ है। मैं इस इलजामकी कद्र करता हूँ। यद्यपि इस जागृतिमें अपने योगदानके लिए मुझे जरा भी पछतावा नहीं, तथापि मैं महसूस करता हूँ कि उनके कथनमें वजन है। इसलिए अगर और किसी वजहसे नहीं तो अपनी बढ़ी हुई इसी जिम्मेदारीके खयालसे मुझे बहुतेरे हिन्दुओंकी अपेक्षा, इन मन्दिरोंके अपवित्र किये जाने की दुर्घटनाओंपर अधिक दुःख होना चाहिए। मैं मूर्तिपूजक भी हूँ और मूर्तिभंजक भी, पर उस अर्थ में जिसे मैं इन शब्दोंका सही अर्थ मानता हूँ। मूर्ति पूजाके पीछे जो भाव है मैं उसका आदर करता हूँ। मनुष्य-जातिके उत्थानमें उससे बहुत सहायता मिलती है और मैं चाहूँगा कि अपने प्राण देकर भी उन हजारों पवित्र देवालयोंकी रक्षा करनेकी सामर्थ्य मुझमें हो, जो हमारी इस जननी जन्म भूमिको पुनीत कर रहे हैं। मुसलमानोंके साथ जो मेरी मित्रता है, उसके अन्दर यह बात पहलेसे ही ग्रहीत है कि वे मेरी मूर्तियों और मेरे मन्दिरोंके प्रति पूरी-पूरी सहिष्णुता बरतेंगे। मैं मूर्तिभंजक इस मानीमें हूँ कि मैं उस धर्मान्धताके रूपमें<noinclude></noinclude> 3m0wn9u8mwgbgiba1q8i95vc998qaet पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 28.pdf/५५३ 250 163988 517372 2022-07-23T17:29:16Z ममता साव9 2453 /* शोधित */ proofread-page text/x-wiki <noinclude><pagequality level="3" user="ममता साव9" />{{Rh||सांकेतिका|५२३}}</noinclude> {|width=100% |- |नारियलवाला, पी॰ ए॰, ४५६ || परिवर्तनवादी, १९३ |- |निरंजनबाबू, २६० || पाण्डव, ४२६ |- |निर्दलीय, ४५४ || पारसी, ११, ८१, १३६, १६६, २८७, |- |निषाद, २९७ || {{gap}}३२१, ४५७ |- |नीमु, २२५ || पारेख, देवचन्द, ८३, १४५, २५९, २६५ |- |नीरो, १२४ || ३३४, ४०४ |- |नचरल लॉ इन दि स्पिरिचुअल वर्ल्ड, ८८ || पार्वती, १०२, १८२ |- |नेणशी, जीवराज, ४६६, ४७१ || पीटर्सन, कुमारी, ३०२ |- |नेहरू, कमला, २६४ || पुणताम्बेकर, एस॰ वी॰, ३७६ |- |नेहरू, जवाहरलाल, १३, ५८, ८४, १६०, || पुरुषोत्तम भाई, ३९२ |- | {{gap}}१७४, २१८, २३७, २६४ || पेरिल, पादरी, ४१२ |- |नेहरू, मोतीलाल, १, ९, १३, १३१, १५०, || पेरीन बहन, २१६ |- | {{gap}}१६२, १६४, २२२, २३२, ३५४, || पोलक, ३७२ |- | {{gap}}३५८, ४१६, ४३८, ४५४ || प्रह्लाद, २४, ५५, 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sq243n9axgrjyeh1zu1rm1ul6vztgr5 517373 517372 2022-07-23T17:39:24Z ममता साव9 2453 proofread-page text/x-wiki <noinclude><pagequality level="3" user="ममता साव9" />{{Rh||सांकेतिका|५२३}}</noinclude> {|width=100% |- |नारियलवाला, पी॰ ए॰, ४५६ || परिवर्तनवादी, १९३ |- |निरंजनबाबू, २६० || पाण्डव, ४२६ |- |निर्दलीय, ४५४ || पारसी, ११, ८१, १३६, १६६, २८७, |- |निषाद, २९७ || {{gap}}३२१, ४५७ |- |नीमु, २२५ || पारेख, देवचन्द, ८३, १४५, २५९, २६५ |- |नीरो, १२४ || {{gap}}३३४, ४०४ |- |नेचुरल लॉ इन दि स्पिरिचुअल वर्ल्ड, ८८ || पार्वती, १०२, १८२ |- |नेणशी, जीवराज, ४६६, ४७१ || पीटर्सन, कुमारी, ३०२ |- |नेहरू, कमला, २६४ || पुणताम्बेकर, एस॰ वी॰, ३७६ |- |नेहरू, जवाहरलाल, १३, ५८, ८४, १६०, || पुरुषोत्तम भाई, ३९२ |- | {{gap}}१७४, २१८, २३७, २६४ || पेरिल, पादरी, ४१२ |- |नेहरू, मोतीलाल, १, ९, १३, १३१, १५०, || पेरीन बहन, २१६ |- | {{gap}}१६२, १६४, २२२, २३२, ३५४, || पोलक, ३७२ |- | {{gap}}३५८, ४१६, ४३८, ४५४ || प्रह्लाद, २४, ५५, २९१ |- |नैयर, प्यारेलाल, १८८ ||{{gap|5em}}{{larger|'''फ'''}} |- |नौरोजी, दादाभाई, ११-१२, ४५, ८७, || 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2022-07-23T18:14:37Z ममता साव9 2453 /* शोधित */ proofread-page text/x-wiki <noinclude><pagequality level="3" user="ममता साव9" />{{Rh|५२४|सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय|}}</noinclude>{|width=100% |- |बॉन्डरिक, ४४८ || {{gap}}३४७, ३४९, ३५३, ३५६, ३७०, |- |बॉम्बे क्रॉनिकल, १६१, २५२ || {{gap}}३७१, ३७४, ३८७, ४०१, ४०५, |- |बिड़ला, घनश्यामदास, ८३, २४५, २५७ || {{gap}}४०७, ४०९, ४१२, ४१६, ४५४, |- |बिशननाथ, २५५ || {{gap}}४८०; —का कानपुर अधिवेशन, ९३, |- |बीकानेरके महाराजा, २२ || {{gap}}४०१, ४०६-७; —का संविधान, २१९ |- |बुद्ध, २, ४७३ || {{gap}}२०; _की अखिल भारतीय कमेटी, |- |बुद्ध-धर्म, ४८१ || {{gap}}५, ८४, १२१, १३१-३२, १४९, |- |बैंकर, शंकरलाल घेलाभाई, ७९, ९५, २३७, || {{gap}}२०१, २१९,-२०, २३७, २५८, २६१, |- | {{gap}}३२०, ४३६ || {{gap}}२६८,२७२, ३०१, ३०९, ३४७, |- |बोअर युद्ध, ४२६ || {{gap}}३७०, ३७७; —की अखिल भारतीय |- |बोस, सुभाषचन्द्र, ३२४ || {{gap}}कमेटी और सविनय अवज्ञा, १५-१६; |- |ब्रजवल्लभदास जयकिशनदास, १७२ || {{gap}}—की अखिल भारतीय कमेटीका प्रस्ताव, |- |ब्रह्मचर्य, २४९, २५१, २५२, ३२९ || {{gap}}२७९-८०; —के कताई सदस्य, २७० |- |ब्रह्म-समाज, ४७३-७४ || भीम, १११ |- |{{gap}}{{larger|'''भ'''}} || भीष्म, ४२६ |- |भगवद्गीता, ४४, ४६, ४९, ८३, १०५, || भोंबल, ३७२ |- |{{gap}}११७, २१७, २७४, २८४, ३२४, |- |{{gap}}३२७, ३५१, ४२७, ४२८, ४८३ ||{{gap|5em}}{{larger|'''म'''}} |- |भगवानदास, ३५५-५७, ४१३ || मंगलसिंह, २७३ |- |भट्ट, शामल, ३२८ || मजमूदार, गिरीशचन्द्र, ३०८ |- |भरत, २८८, ३३० || मथुरादास त्रिकमजी, १०१, ४६९ |- |भर्तृहरि, ११३ || मनु, ११६ पा॰ टि॰, ४७८ |- |भागवत, ११७ || मनुस्मृति, ५३ |- |भाण्डारकर, सर रामकृष्ण, १४९ || मन्दोदरी, १११ |- |भायात, आमद, १५८, १६० || मन्सूर जेठालाल, १७८, १७९ |- |भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, ९-१०, ४८, ७५, || मर्डक, २ |- |{{gap}}&०, ९१, ९२, ९५, १२१, १५०, || मलान, २५ |- |{{gap}}१५२, १५३, १६३, १८३, १९०, || मलान, एफ॰ एस॰, १५९ |- |{{gap}}२०२, २१३, २२०, २३७, २३९, || मलाबार सहायता कोष, ४४७ |- |{{gap}}२४३, २६०-६१, २६४, २६५, २६८, || मलिक, वसन्तकुमार, २५ |- |{{gap}}२६९, २७१, २७६, २८०, ३०४, || मशरूवाला, किशोरलाल, ३२५, ४०२ |- |{{gap}}३१३, ३१४, ३२०, ३२१, ३४५, || मशरूवाला, नानाभाई इच्छाराम, ११२ 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|- |ब्रह्मचर्य, २४९, २५१, २५२, ३२९ || {{gap}}२७९-८०; —के कताई सदस्य, २७० |- |ब्रह्म-समाज, ४७३-७४ || भीम, १११ |- |{{gap}}{{larger|'''भ'''}} || भीष्म, ४२६ |- |भगवद्गीता, ४४, ४६, ४९, ८३, १०५, || भोंबल, ३७२ |- |{{gap}}११७, २१७, २७४, २८४, ३२४, |- |{{gap}}३२७, ३५१, ४२७, ४२८, ४८३ ||{{gap|5em}}{{larger|'''म'''}} |- |भगवानदास, ३५५-५७, ४१३ || मंगलसिंह, २७३ |- |भट्ट, शामल, ३२८ || मजमूदार, गिरीशचन्द्र, ३०८ |- |भरत, २८८, ३३० || मथुरादास त्रिकमजी, १०१, ४६९ |- |भर्तृहरि, ११३ || मनु, ११६ पा॰ टि॰, ४७८ |- |भागवत, ११७ || मनुस्मृति, ५३ |- |भाण्डारकर, सर रामकृष्ण, १४९ || मन्दोदरी, १११ |- |भायात, आमद, १५८, १६० || मन्सूर जेठालाल, १७८, १७९ |- |भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, ९-१०, ४८, ७५, || मर्डक, २ |- |{{gap}}९०, ९१, ९२, ९५, १२१, १५०, || मलान, २५ |- |{{gap}}१५२, १५३, १६३, १८३, १९०, || मलान, एफ॰ एस॰, १५९ |- |{{gap}}२०२, २१३, २२०, २३७, २३९, || मलाबार सहायता कोष, ४४७ |- |{{gap}}२४३, २६०-६१, २६४, २६५, २६८, || मलिक, वसन्तकुमार, २५ |- |{{gap}}२६९, २७१, २७६, २८०, ३०४, || मशरूवाला, किशोरलाल, ३२५, ४०२ |- |{{gap}}३१३, 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आपद्धर्मके तौरपर और न व्यवहार-नीतिके तौरपर बल्कि अपने मजहबका एक अंग समझकर दूसरोंके मजहबके प्रति तबतक सहिष्णुता बरतें जबतक कि दूसरे लोग अपने-अपने मजहबोंको सच्चा मानते रहें और इसी तरह हिन्दुओंसे भी यह आशा की जाती है कि वे धर्म और ईमान समझकर दूसरोंके धर्मोके प्रति उसी सहिष्णुताका परिचय दें--फिर चाहे दूसरोंके धर्म उनको कितने ही प्रतिकूल क्यों न मालूम होते हों। इसलिए हिन्दुओंको चाहिए कि वे बदला लेनेकी इच्छाको अपने दिलोंमें जगह न दें। सृष्टिकी उत्पत्तिसे लेकर आजतक हम बदले अर्थात् प्रतिहिंसाकी नीतिकी आजमाइश करते आ रहे हैं और अबतक का अनुभव हमें बतलाता है कि वह बुरी तरह बेकार साबित हई है। उसके जहरीले असरसे हम आज बेतरह छटपटा रहे हैं। जो भी हो; पर हिन्दुओंको चाहिए कि मन्दिरोंके तोड़े जानेपर भी वे मसजिदोंकी ओर अँगुलीतक न उठायें। यदि वे बदलेका अवलम्बन करेंगे तो उनकी बेड़ियाँ और भी हो जायेंगी और ईश्वर जाने, उनकी क्या-क्या दुर्गति होगी। इसलिए चाहे हजारों मन्दिर तोड़-फोड़कर मिट्टी में क्यों न मिला दिये जायें, मैं एक भी मसजिदको न छुऊँगा और इस तरह धर्मान्ध, दीवाने लोगोंके तथाकथित धर्मसे अपने धर्मको ऊँचा साबित करनेकी उम्मीद रखूगा। अलबत्ता यदि मैं यह सुनूंगा कि पुजारी लोग अपने मन्दिरों और मतियोंकी रक्षा करते-करते काम आ गये तो मेरे दिलकी कली खिल उठेगी। ईश्वर घट-घट व्यापी है। वह मूर्ति में भी विद्यमान है। फिर भी वह अपने और अपनी मूर्तिके अपमान और तोड़-फोड़को चुपचाप सहनकर लेता है। पुजारियोंको भी चाहिए कि वे अपने भगवान की तरह ही अपने मन्दिरोंकी रक्षाके लिए कष्ट-सहन करना और मरना सीखें। यदि हिन्दू लोग बदलेमें मसजिदें तोड़ने लगेंगे तो वे अपनेको भी उन्हीं लोगोंकी तरह धर्मान्ध साबित करेंगे जो कि मन्दिरोंको अपवित्र करते हैं और इस तरह वे अपने धर्म अथवा अपने मन्दिरोंकी रक्षा तो कर ही नहीं पायेंगे। अब उन अज्ञात मुसलमानोंसे, जो निःसन्देह इन मन्दिरोंकी तोड़-फोड़में भीतरही-भीतर शरीक है, मैं कहता हूँ: याद रखो, इस्लामकी जाँच तुम्हारी करतूतोंसे हो रही है। मैंने अभीतक एक भी ऐसा मुसलमान नहीं देखा, जिसने इन हमलोंकी ताईद की हो--फिर वे भले ही किसीके उभारे जानेपर ही क्यों न किये गये हों। मुझे जहाँतक दिखाई देता है, हिन्दुओंकी तरफसे आपको उत्तेजित होनेका मौका या तो दिया ही नहीं गया है या दिया भी गया है तो बहुत ही 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आशा की जाती है कि वे धर्म और ईमान समझकर दूसरोंके धर्मोंके प्रति उसी सहिष्णुताका परिचय दें--फिर चाहे दूसरोंके धर्म उनको कितने ही प्रतिकूल क्यों न मालूम होते हों। इसलिए हिन्दुओंको चाहिए कि वे बदला लेनेकी इच्छाको अपने दिलोंमें जगह न दें। सृष्टिकी उत्पत्तिसे लेकर आजतक हम बदले अर्थात् प्रतिहिंसाकी नीतिकी आजमाइश करते आ रहे हैं और अबतक का अनुभव हमें बतलाता है कि वह बुरी तरह बेकार साबित हई है। उसके जहरीले असरसे हम आज बेतरह छटपटा रहे हैं। जो भी हो; पर हिन्दुओंको चाहिए कि मन्दिरोंके तोड़े जानेपर भी वे मसजिदोंकी ओर अँगुलीतक न उठायें। यदि वे बदलेका अवलम्बन करेंगे तो उनकी बेड़ियाँ और भी मजबूत हो जायेंगी और ईश्वर जाने, उनकी क्या-क्या दुर्गति होगी। इसलिए चाहे हजारों मन्दिर तोड़-फोड़कर मिट्टी में क्यों न मिला दिये जायें, मैं एक भी मसजिदको न छुऊँगा और इस तरह धर्मान्ध, दीवाने लोगोंके तथाकथित धर्मसे अपने धर्मको ऊँचा साबित करनेकी उम्मीद रखूँगा। अलबत्ता यदि मैं यह सुनूँगा कि पुजारी लोग अपने मन्दिरों और मूर्तियोंकी रक्षा करते-करते काम आ गये तो मेरे दिलकी कली खिल उठेगी। ईश्वर घट-घट व्यापी है। वह मूर्तिमें भी विद्यमान है। फिर भी वह अपने और अपनी मूर्तिके अपमान और तोड़-फोड़को चुपचाप सहनकर लेता है। पुजारियोंको भी चाहिए कि वे अपने भगवान की तरह ही अपने मन्दिरोंकी रक्षाके लिए कष्ट-सहन करना और मरना सीखें। यदि हिन्दू लोग बदलेमें मसजिदें तोड़ने लगेंगे तो वे अपनेको भी उन्हीं लोगोंकी तरह धर्मान्ध साबित करेंगे जो कि मन्दिरोंको अपवित्र करते हैं और इस तरह वे अपने धर्म अथवा अपने मन्दिरोंकी रक्षा तो कर ही नहीं पायेंगे। अब उन अज्ञात मुसलमानोंसे, जो निःसन्देह इन मन्दिरोंकी तोड़-फोड़में भीतरही-भीतर शरीक है, मैं कहता हूँ: याद रखो, इस्लामकी जाँच तुम्हारी करतूतोंसे हो रही है। मैंने अभीतक एक भी ऐसा मुसलमान नहीं देखा, जिसने इन हमलोंकी ताईद की हो--फिर वे भले ही किसीके उभारे जानेपर ही क्यों न किये गये हों। मुझे जहाँतक दिखाई देता है, हिन्दुओंकी तरफसे आपको उत्तेजित होनेका मौका या तो दिया ही नहीं गया है या दिया भी गया है तो बहुत ही कम। पर अच्छा, फर्ज कीजिए कि बात इसके खिलाफ हुई है अर्थात् हिन्दुओंने मुसलमानोंको दिक करने के लिए मसजिदके नजदीक {{left|२५-४}}<noinclude></noinclude> 37rg01qcvo7wh0n54z5x3z4k8znfu11 सदस्य:सुप्रभात 2 163991 517377 2022-07-24T05:03:07Z सुप्रभात 4341 'सुप्रभात := विकीसोर्स में मुझे शामील करने का धन्यवाद.' के साथ नया पृष्ठ बनाया wikitext text/x-wiki सुप्रभात := विकीसोर्स में मुझे शामील करने का धन्यवाद. mcp2djpvdt8usuri1d6im3get7iukix पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/८४ 250 163992 517379 2022-07-24T05:17:48Z Manisha yadav12 2489 /* अशोधित */ '________________ ५० सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय बाजे बजाये और यहांतक कि किसी मीनारपर से एक पत्थर उखाड़ लिया, तो भी मैं कहनेका साहस करता हूँ कि मुसलमानोंको मन्दिरोंको अपवित्र नहीं क...' के साथ नया पृष्ठ बनाया proofread-page text/x-wiki <noinclude><pagequality level="1" user="Manisha yadav12" /></noinclude>________________ ५० सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय बाजे बजाये और यहांतक कि किसी मीनारपर से एक पत्थर उखाड़ लिया, तो भी मैं कहनेका साहस करता हूँ कि मुसलमानोंको मन्दिरोंको अपवित्र नहीं करना चाहिए था। बदला भी आखिर एक हदतक ही लिया जा सकता है। हिन्दू लोग अपने देवालयको जानसे अधिक मानते हैं। हिन्दुओंकी जानको नुकसान पहुँचानेकी बात तो किसी हदतक समझमें आ सकती है; पर उनके मन्दिरोंको हानि पहुँचानेकी बात समझमें नहीं आ सकती। धर्म जीवनसे बढ़कर है। इस बातको याद रखिए कि दूसरे धर्मों के साथ तात्त्विक दृष्टि से तुलना करनेमें चाहे किसीका धर्म नीचा बैठता हो, परन्तु उसे तो अपना वही धर्म सबसे सच्चा और प्रिय मालूम होता है। परन्तु जहाँतक अनुमान किया जा सकता है, हिन्दुओंकी तरफसे मसलमानोको उत्तेजनाका मौका ही नहीं दिया गया। मुलतानमें जब मन्दिर अपवित्र किये गये तब बिना-किसी उत्तेजनाके ही किये गये थे। हिन्दू-मुस्लिम तनावके विषयमें लिखे अपने लेखमें मैंने कुछ ऐसे स्थानोंकी चर्चा की है, जहाँ हिन्दुओं द्वारा मसजिदोंके अपवित्र किये जानेकी बात कही जाती है। मैं इन आरोपोंके सम्बन्धमें सबूत एकत्र करनेकी कोशिश कर रहा हूँ। परन्तु अबतक मुझे उनका कुछ भी सबूत नहीं मिला है। अमेठी, शम्भर और गुलबर्गाकी जो खबरें प्रकाशित हुई हैं, ऐसे काम करके आप इस्लामकी कीर्तिको बढ़ाते नहीं है। अगर आप इजाजत दें तो मैं कहूँगा कि इस्लामकी इज्जतका भी मुझे उतना ही खयाल है जितना कि खुद अपने मजहबका। यह इसलिए कि मैं मुसलमानोंके साथ पूरी, खुली और दिली दोस्ती रखना चाहता हूँ। पर मैं यह कहे बिना नहीं रह सकता कि मन्दिरोंको अपवित्र करनेकी ये घटनाएँ मेरे हृदयके टुकड़े-टुकड़े कर रही हैं। दिल्ली के हिन्दुओं और मुसलमानोंसे मैं कहता हूँ: यदि आप इन दो जातियोंमें मेल-मिलाप कराना चाहते हों, तो आपके लिए यह अनमोल अवसर है। अमेठी, शम्भर और गुलबर्गामें जो-कुछ हुआ है, उसे देखनेके बाद आपका यह दुहरा कर्तव्य हो जाता है कि आप इस मसलेको हल कर डालें। आपको अपने बीच हकीम अजमलखाँ साहब और डा० अंसारी-जैसे मुसलमान सज्जनोंके होनेका सौभाग्य प्राप्त है, जो अभी कलतक दोनों जातियोंके विश्वासपात्र थे। इस तरह आपकी परम्परा उच्च रही है। अपनी दलबन्दियोंको तोड़कर और ऐसी दिली दोस्ती कायम करके जो किसी तरह न टूट पायं, आप इन लड़ाई-झगड़ोंकी शुभ परिणति कर सकते हैं। मैंने तो अपनी सेवाएँ आपके हवाले कर ही दी हैं। यदि आप मुझे दोनोंका मध्यस्थ बनाना पसन्द करें तो मैं दिल्लीमें जमकर बैठने के लिए तैयार हूँ और उन दूसरे सज्जनोंके साथ, जिन्हें आप चुनें, सच्ची बातोंका पता लगानेकी कोशिश करूँ। इस सवालके स्थायी निपटारेके लिए यह आवश्यक है कि पहले हम इस बातकी पूरी तहकीकात करें कि पिछली जुलाईमें दरहकीकत क्या-क्या हुआ और वह क्योंकर हो पाया। मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ कि आप शीघ्र ही इस सम्बन्धमें कोई निर्णय लीजिए। हिन्दू-मुसलमानोंका सवाल एक ऐसा सवाल है जिसके ठीकठीक हल होनेपर ही निकट भविष्यमें भारतका भाग्य निर्भर करता है। दिल्ली इस २. देखिए खण्ड २४, पृष्ठ १३९-५९ । Gandhi Heritage Portal<noinclude></noinclude> npqumjsro8uodb4lpbw5cybbpm800r5