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सौरभ तिवारी 05
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<noinclude><pagequality level="3" user="सौरभ तिवारी 05" />{{rh|११२|सत्यार्थप्रकाशः॥|}}</noinclude>न हो वही बुद्धिमान् पण्डित है॥४॥ जिसकी वाणी सब विद्याओ और प्रश्नोत्तरों के करने में अतिनिपुण, विचित्र, शास्त्रों के प्रकरणों का वक्ता, यथायोग्य तर्क और स्मृतिमान् ग्रन्थों के यथार्थ अर्थ का शीघ्र वक्ता हो वही पण्डित कहाता है॥५॥ जिसकी प्रज्ञा सुने हुए सत्य अर्थ के अनुकूल और जिसका श्रवण बुद्धि के अनुसार हो जो कभी आर्य अर्थात श्रेष्ठ धार्म्मिक पुरुषों की मर्यादा का छेदन न करे वहीं पण्डित संज्ञा को प्राप्त होवे॥६॥ जहां ऐसे २ स्त्री पुरुष पढ़ानेवाले होते हैं। वहां विद्या धर्म और उत्तमाचार की वृद्धि होकर प्रतिदिन आनन्द ही बढ़ता रहता है। पढ़ने में अयोग्य और मूर्ख के लक्षण:—
{{block center|<poem>{{larger|'''अश्रुतश्च समुन्नद्धो दरिद्रश्च महामनाः।'''
'''अर्थाश्चाऽकर्मणा प्रेप्सुर्मूढ इत्युच्यते बुधैः ॥१॥'''
'''अनाहृतः प्रविशति ह्यपृष्टो बहु भाषते।'''
'''अविश्वस्ते विश्वसिति मूढचेता नराधमः ॥२॥'''}}</poem>}}
ये श्लोक भी महाभारत उद्योगपर्व विदुरप्रजागर अध्याय ३२ के हैं:–(अर्थ) जिसने कोई शास्त्र न पढ़ा न सुना और अतीव घमण्डी दरिद्र होकर बड़े २ मनोरथ करनेहारा बिना कर्म से पदार्थों की प्राप्ति की इच्छा करनेवाला हो उसी को बुद्धिमान लोग मूढ़ कहते हैं॥१॥ जो बिना बुलाये सभा व किसी के घर में प्रविष्ट हो, उच्च आसन पर बैठना चाहे, बिना पूछे सभा में बहुतसा बके, विश्वास के अयोग्य वस्तु या मनुष्य में विश्वास करे वही मूढ़ और सब मनुष्यों में नीच मनुष्य कहाता है॥२॥ जहां ऐसे पुरुष अध्यापक, उपदेशक, गुरु और माननीय होते हैं वहां अविद्या, अधर्म, असभ्यता, कलह, विरोध और फूट बढ़ के दु:ख ही बढ़ जाता है। अब विद्यार्धियों के लक्षण:—
{{block center|<poem>{{larger|'''आलस्यं मदमोहौ च चापलं गोष्ठिरेव च।'''
'''स्तब्धता चाभिमानित्वं तथाऽत्यागित्वमेव च।'''
'''एते वै सप्त दोषा: स्यु: सदा विद्यार्थिनां मताः॥१॥'''
'''सुखार्थिनः कुतो विद्या कुतो विद्यार्थिनः सुखम्।'''
'''सुखार्थी वा त्यजेत्विद्यां विद्यार्थी वा त्यजेत्सुखम्॥२॥''''''}}</poem>}}<noinclude></noinclude>
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पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/५
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अजीत कुमार तिवारी
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text/x-wiki
<noinclude><pagequality level="4" user="ममता साव9" /></noinclude>
{{dhr|3em}}
{{c|{{larger|'''प्रकाशकीय'''}}}}
हिंदी साहित्य का सबसे पुराना इतिहास फ्रांसीसी विद्वान गार्सां द तासी कृत 'इस्त्वार द ल लितरेत्यूर ऐंदूई ऐ ऐंदूस्तानी' है। इसका पहला संस्करण दो भागों में १८३९ तथा १८४७ में प्रकाशित हुआ था। दूसरा परिवर्द्धित संस्करण तीन भागों में १८७०-७१ में प्रकाशित हुआ था। हिंदी में लिखा हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास शिवसिंह सेंगर कृत 'शिवसिंहसरोज' है जो १८७७ में प्रकाशित हुआ था तथा अंग्रेज़ी में लिखा हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास सर जार्ज ग्रियर्सन कृत 'वर्नाक्यूलर लिटरेचर अव् हिंदुस्तान' १८८९ में प्रकाशित हुआ था।
फ़्रेंच में होने के कारण तासी के ग्रंथ का उपयोग अभी तक हिंदी साहित्य के विद्यार्थी नहीं कर सके हैं, न हिंदी साहित्य के इतिहासों में इस सामग्री का उपयोग हो सका है। तासी के ग्रंथ में हिंदी तथा उर्दू साहित्यों का परिचय मिश्रित रूप में है। डॉ॰ लक्ष्मीसागर वार्ष्णेय ने हिंदी साहित्य से संबंधित अंश का हिंदी अनुवाद मूल ग्रंथ के आधार पर किया है। ग्रंथ अत्यंत महत्वपूर्ण है। हिंदुस्तानी एकेडेमी से इसके प्रकाशन पर हमें विशेष प्रसन्नता है।
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{{right|{{larger|धीरेंद्र वर्मा}}|5em}}
{{right|मंत्री तथा कोषाध्यक्ष|3em}}
{{right|हिंदुस्तानी एकेडेमी, उत्तर प्रदेश, इलाहाबाद।}}<noinclude></noinclude>
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पृष्ठ:भाव-विलास.djvu/३
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सौरभ तिवारी 05
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text/x-wiki
<noinclude><pagequality level="4" user="ममता साव9" /></noinclude>
{{c|{{xx-larger|'''प्रस्तावना'''}}}}
महाकवि देवदत्त उपनाम 'देव' हिन्दी भाषा के महाकवियों में गिने जाते हैं। हिन्दी के अन्यान्य महाकवियों की तरह इनके जीवन की अनेक बातों के सम्बन्ध में भी अबतक सन्देह बना हुआ है। कुछ विद्वान् इन्हें सनाढ्य ब्राह्मण मानते है और कुछ कान्यकुब्ज। यही हाल इनके जन्मस्थान के सम्बन्ध में भी है। कोई इन्हें इटावे का निवासी बतलाते हैं और कोई मौजा समान, ज़िला मैनपुरी का। शिवसिंह-सरोज में इन्हें समान जिला मैनपुरी का निवासी सनाढ्य ब्राह्मण लिखा गया है। परन्तु 'मिश्रबन्धु' इन्हें कान्यकुब्ज ब्राह्मण और इटावा-निवासी मानते हैं। अपने इस कथन के प्रमाण में उन्होंने निम्न दोहे दिये हैं:—
{{block center|<poem>द्योसरिहा कविदेव को, नगर इटायो वास।
{{***|4|char=x|4em}}
कास्यप गोत्र द्विवेदि कुल, कान्यकुब्ज कमनीय।
देवदत्त कवि जगत मैं, भए देव रमनीय॥</poem>}}
आप लोगों ने कुसुमरा ज़िला मैनपुरी से देव जी के वंशजों द्वारा प्राप्त एक वंशवृक्ष भी दिया है। इससे ज्ञात होता है कि देव जी के पिता का नाम बिहारीलाल था। जन्म के सम्बन्ध में देवजी ने इसी भाव-विलास में एक दोहा लिखा है कि:—
{{block center|<poem>सुभ सत्रहसौ छियालिस, चढ़त सोरहीं वर्ष॥
कढ़ी देव मुख देवता, भाव-विलास सहर्ष॥</poem>}}
इस हिसाब से संवत् १७४६ में जब इनकी अवस्था सोलह वर्ष की थी तब संवत् १७३० में इनका जन्म निश्चित है।
देव जी बहुत थोड़ी अवस्था से ही कविता करने लगे थे। 'भाव-विलास' उन्होंने केवल १६ वर्ष की अवस्था में ही बनाया था। यह<noinclude></noinclude>
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सौरभ तिवारी 05
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text/x-wiki
<noinclude><pagequality level="4" user="ममता साव9" /></noinclude>
{{c|{{xx-larger|'''प्रस्तावना'''}}}}
महाकवि देवदत्त उपनाम 'देव' हिन्दी भाषा के महाकवियों में गिने जाते हैं। हिन्दी के अन्यान्य महाकवियों की तरह इनके जीवन की अनेक बातों के सम्बन्ध में भी अबतक सन्देह बना हुआ है। कुछ विद्वान् इन्हें सनाढ्य ब्राह्मण मानते है और कुछ कान्यकुब्ज। यही हाल इनके जन्मस्थान के सम्बन्ध में भी है। कोई इन्हें इटावे का निवासी बतलाते हैं और कोई मौजा समान, ज़िला मैनपुरी का। शिवसिंह-सरोज में इन्हें समान जिला मैनपुरी का निवासी सनाढ्य ब्राह्मण लिखा गया है। परन्तु 'मिश्रबन्धु' इन्हें कान्यकुब्ज ब्राह्मण और इटावा-निवासी मानते हैं। अपने इस कथन के प्रमाण में उन्होंने निम्न दोहे दिये हैं:—
{{block center|<poem>द्योसरिहा कविदेव को, नगर इटायो वास।
{{***|4|char=x|4em}}कास्यप गोत्र द्विवेदि कुल, कान्यकुब्ज कमनीय।
देवदत्त कवि जगत मैं, भए देव रमनीय॥</poem>}}
आप लोगों ने कुसुमरा ज़िला मैनपुरी से देव जी के वंशजों द्वारा प्राप्त एक वंशवृक्ष भी दिया है। इससे ज्ञात होता है कि देव जी के पिता का नाम बिहारीलाल था। जन्म के सम्बन्ध में देवजी ने इसी भाव-विलास में एक दोहा लिखा है कि:—
{{block center|<poem>सुभ सत्रहसौ छियालिस, चढ़त सोरहीं वर्ष॥
कढ़ी देव मुख देवता, भाव-विलास सहर्ष॥</poem>}}
इस हिसाब से संवत् १७४६ में जब इनकी अवस्था सोलह वर्ष की थी तब संवत् १७३० में इनका जन्म निश्चित है।
देव जी बहुत थोड़ी अवस्था से ही कविता करने लगे थे। 'भाव-विलास' उन्होंने केवल १६ वर्ष की अवस्था में ही बनाया था। यह<noinclude></noinclude>
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पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/१०८
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सौरभ तिवारी 05
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text/x-wiki
<noinclude><pagequality level="1" user="सौरभ तिवारी 05" /></noinclude>
{{c|॥श्री:॥}}
<center><poem>{{xxx-larger|'''भूतनाथ'''}}
{{larger|दूसरा भाग}}
{{x-larger|'''पहिला बयान'''}}</poem></center>
रात बहुत कम बाकी थी जब विमला और इन्दुमति लौट कर घर में आई जहांँ कला को अकेली छोड़ गई थी। यहाँँ आते ही विमला ने देखा कि उसकी प्यारी लौंडी चन्दो जमीन पर पड़ी हुई मौत का इन्तजार कर रही है, उसका दम टूटा ही चाहता है, आखें बन्द हैं, अधखुले मुँँह से रुक रुक कर सास आती जाती है, बीच बीच में हिचकी भी आ जाती है। कला झारी में गंगाजल लिये उसके मुंह में शायद टपका चुकी या टपकाया चाहती है।
यह अवस्था देख कर विमला घबरा गई और ताज्जुब करने लगी कि उसकी इस थोड़ी ही गैरहाजिरी में यह क्या हो गया और चन्दो यकायक किस बिमारी में फंस गई जो इस समय उसकी जिन्दगी का चिराग इस तरह टिमटिमा रहा है बल्कि बुझा चाहता है। विमला ने घबरा कर कला से पूछा, "यह क्या मामला है और कम्बख्त को हो क्या गया है।"
कला॰। मुझे इस बात का बड़ा ही दुःख है कि चन्दो सब इस असार संसार को छोड़ा ही चाहती है, अपने पाप का प्रायश्चित करने के लिए इस कम्बख्त ने जहर खा लिया है और जब रग रग में जहर भीन गया है तब यहां आकर सब हाल कहा है। मैंने जहर उतर जाने के लिये दवा<noinclude></noinclude>
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पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/७
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अनिरुद्ध कुमार
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text/x-wiki
<noinclude><pagequality level="4" user="ममता साव9" />{{c|(२)}}</noinclude>{|width=85%
|[[भारतेंदु-नाटकावली/३–प्रेमजोगिनी|३––प्रेमजोगिनी]]||१२९––१७७
|-
|[[भारतेंदु-नाटकावली/४–श्रीचंद्रावली|४––श्रीचंद्रावली]]||१७९––२६२
|-
|[[भारतेंदु-नाटकावली/५–मुद्राराक्षस|५––मुद्राराक्षस]]||२६३––४५४
|-
|[[भारतेंदु-नाटकावली/६–भारत दुर्दशा|६––भारत दुर्दशा]]||४५५––४९८
|-
|७––[[भारतेंदु-नाटकावली/नीलदेवी|नीलदेवी]]||४९९––५४२
|-
|८––अंधेर नगरी||५४३––५७०
|-
|९––सतीप्रताप||५७१––६१३
|-
|१०––पात्र-सूची||१––७
|-
|११––संस्कृतादि अंशों के अर्थ||८––१२
|-
|१२––प्रेमयोगिनी के मराठी अंश का हिंदी रूपांतर||१३––१७
|}
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{{rule|3em}}<noinclude>[[श्रेणी:भारतेंदु नाटकावली]]</noinclude>
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पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/२२४
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सौरभ तिवारी 05
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text/x-wiki
<noinclude><pagequality level="1" user="सौरभ तिवारी 05" /></noinclude>रूप-विचार
१९९
अर्थात् प्रकृति और दूसरा साधक अंश अर्थात् प्रत्यय । प्रकृति दो प्रकार
की होती है-(१) तत्त्ववाचक और (२) भाववाचक । और प्रत्यय भी
प्रधान रूप से दो प्रकार के होते हैं (१) विभक्ति प्रत्यय और (२)
सामान्य प्रत्यय । इन प्रत्ययों का इस प्रकार वर्गीकरण किया जा
सकता है-
मारोपीय प्रत्यय
विभक्ति
(रूप-साधक प्रत्यय)
प्रत्यय
(शब्द-साधक प्रत्यय)
1
परप्रत्यय
पुर:प्रत्यय
६
तद्धित प्रत्यय
कृत् प्रत्यय
७
कारक विभक्ति (सुप्)
क्रिया विभक्ति (तिङ्)
कारक विभक्ति अव्यय विभक्ति
२
पुरुषवाचक प्रत्यय
(ति)
विकरण आगम
आदि<noinclude></noinclude>
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पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/२२५
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सौरभ तिवारी 05
49
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text/x-wiki
<noinclude><pagequality level="1" user="सौरभ तिवारी 05" /></noinclude>भाषा-विज्ञान
उन्हीं प्रस्थयों का दूसरे ढंग से वर्गीकरण इस प्रकार हो सकता है-
भारोपीय प्रत्यय
रूप-साधक प्रत्यय
(व्याकरणिक)
शब्द-साधक प्रत्यय
(रचनात्मक)
याख्यात प्रत्यय
नाम प्रत्यय
(संज्ञा)
(क्रिया)
पुरुषप्रत्यय (तिङ)
विशेषक प्रत्यय
३
विकरण आदि
क्रियारूपीय विकार
प्रागम
५
४
परप्रत्यय
पुरः प्रत्यय
६
कारक प्रत्यय
(सुप)
क्रियाविशेपक
अर्थात्
अव्यय-सुलभ
प्रत्यय
२
प्रधान प्रत्यय
अर्थात्
धातु प्रत्यय
७
गौण प्रत्यय
अर्थात्
अधातु प्रत्यय
पीछे हम दातारम्' का उदाहरण देकर समझा चुके हैं कि उसमें
'दा' प्रकृति है, 'तृ' शब्द-साधक प्रत्यय है और 'अम्' रूप-साधक<noinclude></noinclude>
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पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/७७३
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सौरभ तिवारी 05
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text/x-wiki
<noinclude><pagequality level="1" user="सौरभ तिवारी 05" /></noinclude>Skortur
२०२ तैमूरशाह *
४९२०
२०
प्रबंध किया । ११७९ में बड़ी बड़ी लड़ाई हुई ।
११८४ में गद्दी पर बैठा । ३ महीने बड़ा भूकंप हुआ ।
पहले वजीर ने बड़ा उपद्रव किया, बहुत से लोग जल में
डुबा दिये । तब पंडित दिलाराम नामक बड़ा बुद्धिमान यहाँ
का सूबा हुआ । यह बड़ा बुद्धिमान था । अंत में पहले वज़ीर
के बेटे को फिर सूबेदारी मिली और इसने भी बाप की भांति
महा अनर्थ किया ।
१२०८ हिजरी में गद्दी पर बैठा । दीवान नंदराम कश्मीर का
सूबेदार हुआ ।
इन दोनों के काल का विशेष वृत्त नहीं जात हुआ ।
जमांशाह के २६ वर्ष में इन दोनों का भी समय समझना
चाहिये।
२०३ ज़माशाह
४९४६
२६
२०४ सुलतानमहमूद
*
काश्मीर कुसुम ७२९
*
0
२०५ शाहशुजा
२०६ महाराजरणजीतसिंह ४९४६
२१
महाराज रणजीतसिंह ने कोहनूर हीरा इसी से लिया था ।
१२३४ हिजरी अर्थात् १८१८ ईस्वी १८७५ संवत् में
कश्मीर जीता। कश्मीर जीतने की तारीख ।
बोलो जी वाह गुरूजी का खालसा, बोलोजी वाह गुरूजी की
फतेह ।
२०७महाराजखड़गसिंह | ४९४७
१।४
१८९६ संवत् में महाराजा रणजीतसिंह मरे और ये राज पर
बैठे।
२०८ कुंअरनौनिहालसिंह ४९४७
01012
ये अपने पिता की क्रिया करके आये उसी समय पत्थर के
नीचे दबकर मर गये ।
इनको सिंघावालों ने मार डाला ।
२०९ महाराजशेरसिंह
४९५०
३
'तैमूरशाह (सन् १७७३-९३), जमांशाह (सन १६९३-१८०० ई.) सन् १८१८ ई. में रणजीतसिंह के कश्मीर विजय
करने तक महमूद, दोस्त महम्मद और शुजा का समय है। (स.)
wa<noinclude></noinclude>
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भारतेंदु-नाटकावली/५–मुद्राराक्षस
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अनिरुद्ध कुमार
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[[श्रेणी:भारतेंदु-नाटकावली]]
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अनिरुद्ध कुमार
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[[श्रेणी:भारतेंदु-नाटकावली]]
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भारतेंदु-नाटकावली/५–मुद्राराक्षस/तृतीय अंक
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अनिरुद्ध कुमार
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विकिस्रोत:विषय/हिंदी/नाटक
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अनिरुद्ध कुमार
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/* मौलिक नाटक */
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यह हिंदी नाटक से संबंधित पुस्तकों की सूची है।
== मौलिक नाटक ==
# [[भारतेंदु-नाटकावली]]
##[[भारत दुर्दशा]]
# [[एक घूँट]]
# [[कामना]]
# [[चन्द्रगुप्त मौर्य्य]]
# [[नाट्यसंभव]]
# [[न्याय]]
# [[संग्राम]]
# [[स्कंदगुप्त]]
== अनूदित नाटक ==
# [[हड़ताल]]
# [[चाँदी की डिबिया]]
== सुधारी जा रही पुस्तकों की सूची ==
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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 28.pdf/४६४
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ममता साव9
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{{c|{{xx-larger|'''२२७. भाषण : अंजारमें'''<ref>महादेव देसाईने अपनी टिप्पणियोंमें कट्टरपंथी हिन्दुओंकी इस सभाकी पूर्व-पीठिकाका वर्णन किया है। इससे इस बातपर भी प्रकाश पड़ता है कि अस्पृश्यता निवारणके काममें गांधीजीके सामने यहाँ किस प्रकारकी कठिनाइयाँ आने लगी थीं। यहाँ उसका जो अंश दिया जा रहा है उससे इस समस्याके प्रति गांधीजीके अपने रवैयेका भी खुलासा होता है। अंश इस प्रकार है:<br>
{{gap}}"उन्होंने (गांधीजीने) कट्टरपंथियों के अध्यक्षको, जो हमारे मेजवान भी थे, सुझाव दिया कि कट्टरपंथियोंकी सभा करने और मानपत्र भेंट करनेका खयाल छोड़ दिया जाये और उसके बदले अस्पृश्यों के हलकेमें एक आम सभा बुलाई जाये, और तव अगर ज़रूरी हो तो कट्टरपंथियोंके साथ भी एक विचार-गोष्ठी आयोजित की जाये। इसपर अध्यक्षने कहा : लेकिन हमने तो पहलेसे ही सारा इन्तजाम कर रखा है। अगर हम आपके कुछ विचारोंसे सहमत न हों तो इसमें अस्वाभाविक क्या है? हम आपका सम्मान करना चाहते हैं। और आपको हम लोगोंको आपकी सलाह सुननेके सौभाग्यले वंचित नहीं करना चाहिए। गांधीजीने कहा : "लेकिन जब आप उसी चीजको स्वीकार नहीं करते जो मेरे हृदयको सबसे अधिक भाती है, जब आप उन्हीं लोगोंका अपमान करते हैं जो मुझे प्राणोंसे भी प्यारे है, तब फिर मेरा सम्मान करने में क्या तुक है? और फिर कुछ औचित्यका खयाल भी होना चाहिए, थोड़ी शिष्टता भी बरतनी चाहिए। मैंने ऐसे यूरोपीयोंकी सभाओं में भाषण दिये हैं, जो मेरे एक भी विचारसे सहमत नहीं थे। लेकिन, वे अपना कर्तव्य बहुत अच्छी तरह समझते हैं। वे इस बातको छिपाते नहीं कि सभामें मेरे साथ कोई मुरौवत नहीं की जायेगी। लेकिन वे स्वागत और सम्मान करना जानते हैं। कलकत्तामें सिर्फ मेरा खयाल करके उन्होंने विशुद्ध निरामिष भोजकी व्यवस्था की थी। और यहाँ? यहाँ तो आप ऐसा करते हैं कि मैंने भुजमें जिस अस्थायी व्यवस्थाका सुझाव दिया था उसको तोड़-मरोड़कर आपने ऐसा रूप दे दिया जो आपके मनके अनुकूल था और मुन्द्रामें तो आप उस छूटका उपयोग बेहूदगीकी सीमातक करने में भी नहीं हिचकिचाये। अगर मैं अपने लड़केसे कहूँ कि तुम मुझे जितनी गालियाँ देना चाहो, दो और वह मुझे हर सुबह जी-भर कर गालियाँ देना अपना कर्तव्य बना ले तो यह कैसा लगेगा? आपने यही तो किया है। माण्डवीमें पहले दिनकी सभामें मैंने कहा कि अध्यक्ष महोदय जरा दूरसे ही मानपत्र मेरे हाथमें डाल दे सकते थे और दूसरे दिनकी सभाके अध्यक्षने मेरे इस सुझावका लाभ उठानेमें तनिक भी विलाव नहीं किया। क्या आप इसी तरहसे मेरा सम्मान करना चाहते हैं?"
अध्यक्षने आग्रहपूर्वक कहाँ, "नहीं, लेकिन आपको अपने विचार बार-बार दोहराते लेना चाहिए, ताकि किसी दिन वे लोगोंके हृदयमें जड़ पकड़ लें"।
गांधीजीने अपना पक्ष विस्तारसे समझाते हुए कहा : मैं उन उपदेशोंके साथ होड़ करने नहीं जा रहा हूँ। जो अनिच्छूक श्रोताओंके सामने दिन-रात अपना उपदेश झाड़ते रहते हैं। अगर आप मेरे विचार जानना और समझना चाहते हैं तो अच्छा होता, आप साबरमती आश्रम चले आते उस छोटे-से स्थान भुजपारमें जब संयोजकोंने देखा कि मेरी शर्तोंपर मेरा स्वागत नहीं किया जा सकता और मुझे मानपत्र नहीं दिया जा सकता, तो उन्होंने स्वागत करने और मानपत्र भेंट करनेका इरादा छोड़ दिया और अस्पृश्योंके हल्केमें सभाकी। यह उनकी ईमानदारी और साहसका सूचक था। मैं आपसे विनती करता हूँ कि इन झूठ-मूठके प्रर्दशनोंसे बाज आयें। मैं तो यह भी नहीं चाहता कि आप मेरे और मेरे साथियोंकी खातिरदारी करें। अस्पृश्योंका अतिथि होना मुझे खुशी होगी। अपनी शक्तिके अनुसार वो मेरा जो भी थोड़ा-बहुत किंतू सच्चा आतिथ्य करेंगे उनसे मेरी आत्मा प्रसन्न होगी।"
लेकिन अध्यक्ष महोदय इतनेसे ही अपना आग्रह छोड़नेवाले नहीं थे। उन्होंने कहा : "लेकिन हमनेतो सारा इन्तेज़ाम कर दिया है। स्वागत समितिभी मानपत्र भेंट करनेके लिए काफी उत्सुक हैं। आपकी बात मैं समझता हूँ, लेकिन हमने तो आपको जाने बिना ठीक-ठीक सारा प्रबन्धन कर लिया है।"
"आप तो मुझे जान भी कैसे सकते हैं? मुझे तो आप लोग तभी जानेंगे, जब मैं दुनियाँमें नहीं रहुँगा।"
अंडर कट्टरपंथियोंकी सभा पहले कि जाती और अस्पृश्योंकी बादमें तो अध्यक्ष महोदय शाय़द संतुष्ट हो जाते लेकिन जो बात गांधीजीने सुझाई थी वह उनकेे लिए अपमानजनक थी। इसपर गांधीजीने उनसे स्वागत समितिकी बैठकमें बुलाकर अपना सुझाव उसके सामने रखनेकी सलाह दी उसके बाद ही निर्णय लेने को कहा। अंतमें उन्होंने साफ कहा कि : "लेकिन याद रखिए बीच के रास्ते से काम नहीं चलेगा। या तो मेरा सुझाव ज्योंका त्यों स्वीकार कीजिए या फिर अपने जैसा प्रबन्ध किया है और उसके अनुसार अपना कार्यक्रम पुरा कीजिए"। समीतिकी बैठक दो घंटे तक चली। उसने बात और मंच बनाने की विस्तृत योजना बनाई। तब पाया गया कि अध्यक्ष थोड़ी दूरीसे ही भाषण करेंगे। समितिके आठ सदस्य अस्पृश्योंके पास बैठेंगे, और शहरके सेठ गांधीजीको मान-पत्र भेंट करेंगे; ना कि माण्डवी की तरह दूरसे ही हाथमें ढाल देंगे। अलबता घर जाकर वे शुद्धिके करेंगे! अब दलिलके लिए कोई गुंजाइश नहीं रह गई थी। सब-कुछ जानकर गांधीजीने कहा : "तो आप मेरी इच्छानुसार नहीं चलना चाहते, बल्कि चाहते हैं कि; मैं आपकी इच्छा अनुसार चलूँ"। इसपर अध्यक्षने कहा : "हाँ श्रीमान! समितिकी यही इच्छा है।" गांधीजीने इस पराजय को खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया, और सभामें जाकर मानपत्र स्वीकार कर लिया।</ref>}}}}
{{right|२ नवम्बर १९२५}}
कच्छमें यह मेरी अंतिम सभा है। अभी कार्यक्रम में दो तीन चीजें रह गई है। परन्तु यह सभा तो अन्तिम ही है। अब मेरी इच्छा यह नहीं हैं कि जो बातें अनेक सभामें अनेक प्रकार से दोहरा चुका हूँ, उन्हें फिर दोहराऊँ। मेरे विचार आप अनेक जगह पर अनेक प्रकारसे जान चुके हैं—उन्हें बार-बार सुनना निरर्थक है।
मैं इतना ही कहता हूँ कि जिस तरह समस्त भारत-वर्षमें उसी तरह कच्छमें भी प्रत्येक स्थानपर मैंने अपने प्रति प्रेम—और केवल प्रेम भावना का अनुभव किया है। मुझे अपने लिए जितनी सेवाकी ज़रूरत है उससे कई ज्यादा सेवा मुझे कच्छसे प्राप्त हुई है। प्रत्येक स्थानपर भाई-बहनोंने मुझे सुखी करनेमें, मेरी निजि आवश्यकताओं-<noinclude>{{dhr}}
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ममता साव9
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अध्यक्षने आग्रहपूर्वक कहाँ, "नहीं, लेकिन आपको अपने विचार बार-बार दोहराते लेना चाहिए, ताकि किसी दिन वे लोगोंके हृदयमें जड़ पकड़ लें"।
गांधीजीने अपना पक्ष विस्तारसे समझाते हुए कहा : मैं उन उपदेशोंके साथ होड़ करने नहीं जा रहा हूँ। जो अनिच्छूक श्रोताओंके सामने दिन-रात अपना उपदेश झाड़ते रहते हैं। अगर आप मेरे विचार जानना और समझना चाहते हैं तो अच्छा होता, आप साबरमती आश्रम चले आते उस छोटे-से स्थान भुजपारमें जब संयोजकोंने देखा कि मेरी शर्तोंपर मेरा स्वागत नहीं किया जा सकता और मुझे मानपत्र नहीं दिया जा सकता, तो उन्होंने स्वागत करने और मानपत्र भेंट करनेका इरादा छोड़ दिया और अस्पृश्योंके हल्केमें सभाकी। यह उनकी ईमानदारी और साहसका सूचक था। मैं आपसे विनती करता हूँ कि इन झूठ-मूठके प्रर्दशनोंसे बाज आयें। मैं तो यह भी नहीं चाहता कि आप मेरे और मेरे साथियोंकी खातिरदारी करें। अस्पृश्योंका अतिथि होना मुझे खुशी होगी। अपनी शक्तिके अनुसार वो मेरा जो भी थोड़ा-बहुत किंतू सच्चा आतिथ्य करेंगे उनसे मेरी आत्मा प्रसन्न होगी।"
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अंडर कट्टरपंथियोंकी सभा पहले कि जाती और अस्पृश्योंकी बादमें तो अध्यक्ष महोदय शाय़द संतुष्ट हो जाते लेकिन जो बात गांधीजीने सुझाई थी वह उनकेे लिए अपमानजनक थी। इसपर गांधीजीने उनसे स्वागत समितिकी बैठकमें बुलाकर अपना सुझाव उसके सामने रखनेकी सलाह दी उसके बाद ही निर्णय लेने को कहा। अंतमें उन्होंने साफ कहा कि : "लेकिन याद रखिए बीच के रास्ते से काम नहीं चलेगा। या तो मेरा सुझाव ज्योंका त्यों स्वीकार कीजिए या फिर अपने जैसा प्रबन्ध किया है और उसके अनुसार अपना कार्यक्रम पुरा कीजिए"। समीतिकी बैठक दो घंटे तक चली। उसने बात और मंच बनाने की विस्तृत योजना बनाई। तब पाया गया कि अध्यक्ष थोड़ी दूरीसे ही भाषण करेंगे। समितिके आठ सदस्य अस्पृश्योंके पास बैठेंगे, और शहरके सेठ गांधीजीको मान-पत्र भेंट करेंगे; ना कि माण्डवी की तरह दूरसे ही हाथमें ढाल देंगे। अलबता घर जाकर वे शुद्धिके करेंगे! अब दलिलके लिए कोई गुंजाइश नहीं रह गई थी। सब-कुछ जानकर गांधीजीने कहा : "तो आप मेरी इच्छानुसार नहीं चलना चाहते, बल्कि चाहते हैं कि; मैं आपकी इच्छा अनुसार चलूँ"। इसपर अध्यक्षने कहा : "हाँ श्रीमान! समितिकी यही इच्छा है।" गांधीजीने इस पराजय को खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया, और सभामें जाकर मानपत्र स्वीकार कर लिया।</ref>}}}}
{{right|२ नवम्बर १९२५}}
कच्छमें यह मेरी अंतिम सभा है। अभी कार्यक्रम में दो तीन चीजें रह गई है। परन्तु यह सभा तो अन्तिम ही है। अब मेरी इच्छा यह नहीं हैं कि जो बातें अनेक सभामें अनेक प्रकार से दोहरा चुका हूँ, उन्हें फिर दोहराऊँ। मेरे विचार आप अनेक जगह पर अनेक प्रकारसे जान चुके हैं—उन्हें बार-बार सुनना निरर्थक है।
मैं इतना ही कहता हूँ कि जिस तरह समस्त भारत-वर्षमें उसी तरह कच्छमें भी प्रत्येक स्थानपर मैंने अपने प्रति प्रेम—और केवल प्रेम भावना का अनुभव किया है। मुझे अपने लिए जितनी सेवाकी ज़रूरत है उससे कई ज्यादा सेवा मुझे कच्छसे प्राप्त हुई है। प्रत्येक स्थानपर भाई-बहनोंने मुझे सुखी करनेमें, मेरी निजि आवश्यकताओं-<noinclude>{{dhr}}
{{smallrefs}}</noinclude>
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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 28.pdf/५५०
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ममता साव9
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|-
| {{gap}}२९७, ३०१, ३०४, ३०७, ३०८, || गांधी, मगनलाल खुशालचन्द, २३७, २५६,
|-
| {{gap}}३१०-१२, ३२०, ३२१, ३३२, ३३८, ||{{gap}}३९२
|-
| {{gap}}३४०, ३४१, ३४४, ३४७, ३५०, || गांधी, रामदास, १८८, २२५
|-
| {{gap}}३५३, ३५४, ३६०, ३६९, ३७४, || गांधी, हरिलाल, ३७२
|-
| {{gap}}३७७, ३८६, ३८८, ३८९, ३९१- || गॉर्डन, जनरल, २२
|-
| {{gap}}९३, ४०१-२, ४१४, ४१५, ४२७, || गुजरात खादी मण्डल, –द्वारा प्रकाशित
|-
| {{gap}}४३२, ४३७, ४४७, ४५०, ४५८, || {{gap}}आँकड़े, ५७
|-
| {{gap}}४६०-६३, ४६७, ४७०, ४७४, ४७६; || गुह, १८७
|-
| {{gap}}–और कताई, २३८, २६९; –और || गुहराज, २८८
|-
| {{gap}}चरखा, ५, १०, १२, १३, १७९, || गुहराय, प्रतापचन्द्र, १४८
|-
| {{gap}}२०६, २२३, २४१, २४२, २७६, || गेट, सर एडवर्ड, ४९
|-
| {{gap}}२९६, ३०६, ३०९, ३४४, ३६९, || गेटे, ५६, ८८
|-
| {{gap}}३९०; –और रामनाम, ४६४-६६; || गेलीलियो, २१४
|-
| {{gap}}–बिहारमें, १५१; –महागुजरातमें, ५७ || गैड्स, डानस्के मैगासिन, ३४८
|-
| खादी कार्यकर्त्ता, ३१, १५०, २०१, २४६, || गैरिसन, विलियम लॉयड, १९१
|-
| {{gap}}३०१, ३२०; –[ओं] की जनगणना, || गोकुलदास, खीमजी, ४२७, ४३२
|-
| {{gap}}१९४ || गोखले, गोपाल कृष्ण, ३४, ३०५, ३७१,
|-
| खादी प्रतिष्ठान, १००, २२६ || {{gap}}४२३
|-
| खिलाफत, ४५० || गो-रक्षा, १५, ८१, ११९, १२०, १४४,
|-
| खिलाफत सम्मेलन, २२३-२४, २२६ || {{gap}}१५३, १६७-६८, २५६, २५७, २८३,
|-
| खिलाफतवादी, १०० पा॰ टि॰ || {{gap}}२९२-९४, २९८, ३०५, ३६६-६८,
|-
| खुदाबक्स, खान बहादुर, ३०९ || {{gap}}३८५, ३९२, ३९८, ३९९, ४०६, ४२०-
|-
| {{gap|5em}}{{larger|'''ग'''}} || {{gap}}२१, ४२७, ४३८-४०, ४६०, ४७४;
|-
| गंगाराम, सर, ४४५ || {{gap}}–और गोशालाएँ, १६७-६९, २१२,
|-
| गांधी, कस्तूरबा, २२५, ४६९ || {{gap}}२५४, २९४, २९८, ३०५, ३६६-६८,
|-
| गांधी, काशी, ३८ || {{gap}}३८५
|-
| गांधी, छगनलाल, ३८, २२५, २५६, ३३४, || गोविन्द सिंह, गुरु २७३
|-
| {{gap}}३७२ || गौड़, रामदास, ३५७, ४१३
|-
| गांधी, जमनादास, ३८, २२५ || ग्रन्थ साहब, २७३
|-
| गांधी देवदास, २१८, ४६९ || ग्रिफिथ डेन, ३८०
|-
| गांधी, नारणदास, ९० || {{gap|5em}}{{larger|'''घ'''}}
|-
| गांधी, प्रभुदास, ३८ || घोष, प्रफुल्ल, १८८
|}<noinclude></noinclude>
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|-
| {{gap|5em}}{{larger|'''च'''}} || जनकधारी बाबू, ४११
|-
|चटर्जी, हरिपद, ६२ || जयकर, मु॰ रा॰, ४८९
|-
|चतुर्वेदी, बनारसीदास, ९१ || जयकृष्ण इन्द्रजित, ४७५, ४८६
|-
|चरखा १०, २६, ३१, ३०, ४४, ४५, ५४, || जयरामदास दौलतराम, ४२७
|-
| {{gap}}५७, ६३, ७२, ७८, ८०, ८१, ८३- || जलियाँवाला बाग स्मारक कोष, ७९, ९४,
|-
| {{gap}}८९, ९३, १००, १०२, १०७, ११५, ||{{gap}}९४-९७
|-
| {{gap}}१२०, १३०, १३२, १३९, १४४, || जॉनसन-हिक्स, सर विलियम, ४७०
|-
| {{gap}}१४८, १५२, १५४, १६३, १६९, १७२, || जिनराजदास, श्रीमती डोरोथी, १२१
|-
| {{gap}}१८०, १८१, १८६, २८९, ११७, || जीवराम, कल्याणजी, ४३२
|-
| {{gap}}२०५, २१३, २१७, २२२, २३६, || जुबेर, मौलवी, २२६
|-
| {{gap}}२४४, २५८, २६६, २७५, २८१-८२, || जन-धर्म, ४२७
|-
| {{gap}}२८६, २८७, २९७, २९९, ३००, || {{gap|5em}}{{larger|'''झ'''}}
|-
| {{gap}}३०६-८, ३१०, ३१४, ३२२, ३३२, || झवेरी, रेवाशंकर जगजीवन, १६१, ३७६,
|-
| {{gap}}३३८, ३४२, ३४७, ३५४-५७, ३६०, || {{gap}}३९२, ४०६
|-
| {{gap}}३६९, ३७८, ३८६, ३८९, ३९५,४०७, || {{gap|5em}}{{larger|'''ट'''}}
|-
| {{gap}}४१३, ४१५, ४२२, ४३६, ४४१-४७, || टाटा, आर॰ डी॰, ५८, ८२
|-
|{{gap}}४५८, ४६०, ४७०, ४७४, ४८३; -और || टाटा, जमशेदजी, ८१
|-
|{{gap}}असहयोग, ४८३; -और कताई, २६३ || टाटा, सर रतन, ५०
|-
|{{gap}}-और खद्दर, ५, १०-११, १२, १३, || टॉमस, ५८
|-
|{{gap}}१७९, २०६, २२३, २४१, २४२ || टालस्टाय, २२, ४४८
|-
|{{gap}}२७६, २९६, ३०६, ३०९, ३४४, || टेंडरिक, डा॰ १२९
|-
|{{gap}}३६९, ३९०; -और समाज सेवा, || टेनीसन, ४४६
|-
|{{gap}}२०९-१०; -और स्वराज्य, ११ || {{gap|5em}}{{larger|'''ठ'''}}
|-
|चरित्रविजयजी, ४०३ || ठाकुर, रवीन्द्रनाथ, १२, १३, १२६, २६७,
|-
|चेट्टी, कुलधर, ४६० || {{gap}}३६७, ४१५, ४४१-४७, ४७३
|-
|चैतन्य, २, १२४ || ठाकुर, द्विजेन्द्रनाथ, ४८१
|-
|चैपमैन, १३७ || ठाकोर साहब, २६०
|-
|चैम्बरलेन, जोजेफ, ३८४ , || {{gap|5em}}{{larger|'''ड'''}}
|-
|चौंडे महाराज, २१२ || डायर, जनरल, ५१, ११०, ३१६
|-
| {{gap|5em}}{{larger|'''ज'''}} || डाविन, २२
|-
|जनक, ४४३ || ड्रुमंड, ८८
|}<noinclude></noinclude>
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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 28.pdf/५५२
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ममता साव9
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|-
|{{gap|5em}}{{larger|'''त'''}} || देशपाण्डे, गंगाधरराव, ६२
|-
| तलाटी, गोकुलदास, १०८ || देसाई, डा॰ हरिप्रसाद, ४१८, ४४०, ४४१,
|-
| तिलक, बाल गंगाधर, ५, २६, ३४, ५४- || {{gap}}४५८
|-
| {{gap}}५५; -स्वराज्य कोष, ७९, ९४-९५, || देसाई, दुर्गा, १८८, २१८, ३७२
|-
| {{gap}}१७०, १७२ || देसाई, प्रागजी, १०२
|-
|तुकाराम, १२७ || देसाई, महादेव, ३८, ८२, १०१, १०२,
|-
|तुलसीदास, २, ११७, १२६, १२७, १८७, || {{gap}}१८८, २१८, ३५१, ३७२, ४१६,
|-
| {{gap}}२०५, २४२, २८९, ३३० || {{gap}}४३१, ४६९
|-
| {{gap|5em}}{{larger|'''द'''}} || देसाई, वालजी गोविन्दजी, २५६, ४२१, ४३९
|-
|||द्रौपदी,१११, ४३६
|-
|दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास, || {{gap|5em}}{{larger|'''ध'''}}
|-
| {{gap}}१०६ || धर्म, ७८, ९९, १११, १४०, १४२, १५५,
|-
|दत्त, आर॰ सी॰, ८७ || {{gap}}१६७,१६८, १८२, २९५, २९८, ३२६,
|-
|दत्त, माइकेल मधुसूदन, ६० || {{gap}}३३१, ४२५-२७, ४६८, ४७२, ४७४
|-
|दमयन्ती, १११, १८५, ४६५ || धृतराष्ट्र, २०४
|-
|दलाल, १८८ || ध्रुव, आनन्दशंकर, ४०६, ४६०
|-
|दवे, कालीदास, २५४ ||
|-
|दास, एस॰ आर॰, ९६ || {{gap|5em}}{{larger|'''न'''}}
|-
|दास गोपबन्धु, २६० || नंजप्पा, २६१
|-
|दास, चित्तरंजन, १, ६, ७, ९, १२, || नगीनदास अमुलखराय, २१२
|-
| {{gap}}१३, १५, २६, ३४, ३७, ४०, १०३, || नरगिस बहन, ४६९
|-
| {{gap}}१३८, १६०, १६४, १७४, १७९, || नल, ४६५
|-
| {{gap}}१८१, १८६, २२७, २३६, २९७, || नवजीवन, १३, १५, १०५-९, १४६-४७,
|-
| {{gap}}४६० || {{gap}}१८८, २१५, २५४, २६०, ३२१,
|-
|दास, मधुसूदन, २५७ || {{gap}}३६७, ३७८, ४१८, ४३२, ४४७,
|-
|दास, मोना, १८८, ३७२ || {{gap}}४६४, ४८३
|-
|दास, वासन्ती देवी, १३, ५६, १६० || नवयुग, १०२
|-
|दासगुप्त, सतीशचन्द्र, १००, १०१, १८८, || नवाब सरफराज हुसैन खाँ, खान बहादुर,
|-
| {{gap}}२२४, २३७ || {{gap}}२४०, २४१
|-
|दास्ताने, वी॰ वी॰, ४०१ || नानक, गुरु, २७३
|-
|दुर्योधन,३३१ || नायडू, सरोजिनी, १६१, २०५ पा॰ टि॰,
|-
|देवधर, २१८, २४५, २४६ || {{gap}}३१९, ३५९, ४५४, ४६८
|}<noinclude></noinclude>
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ममता साव9
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<noinclude><pagequality level="3" user="ममता साव9" />{{Rh||सांकेतिका|५२३}}</noinclude>
{|width=110%
|-
|नारियलवाला, पी॰ ए॰, ४५६ || परिवर्तनवादी, १९३
|-
|निरंजनबाबू, २६० || पाण्डव, ४२६
|-
|निर्दलीय, ४५४ || पारसी, ११, ८१, १३६, १६६, २८७,
|-
|निषाद, २९७ || {{gap}}३२१, ४५७
|-
|नीमु, २२५ || पारेख, देवचन्द, ८३, १४५, २५९, २६५
|-
|नीरो, १२४ || {{gap}}३३४, ४०४
|-
|नेचुरल लॉ इन दि स्पिरिचुअल वर्ल्ड, ८८ || पार्वती, १०२, १८२
|-
|नेणशी, जीवराज, ४६६, ४७१ || पीटर्सन, कुमारी, ३०२
|-
|नेहरू, कमला, २६४ || पुणताम्बेकर, एस॰ वी॰, ३७६
|-
|नेहरू, जवाहरलाल, १३, ५८, ८४, १६०, || पुरुषोत्तम भाई, ३९२
|-
| {{gap}}१७४, २१८, २३७, २६४ || पेरिल, पादरी, ४१२
|-
|नेहरू, मोतीलाल, १, ९, १३, १३१, १५०, || पेरीन बहन, २१६
|-
| {{gap}}१६२, १६४, २२२, २३२, ३५४, || पोलक, ३७२
|-
| {{gap}}३५८, ४१६, ४३८, ४५४ || प्रह्लाद, २४, ५५, २९१
|-
|नैयर, प्यारेलाल, १८८ ||{{gap|5em}}{{larger|'''फ'''}}
|-
|नौरोजी, दादाभाई, ११-१२, ४५, ८७, || फडके, वि॰ ल॰, १६१
|-
|{{gap}}१४५, १६३, १६३-६४, २१०, २३४ || फॉरवर्ड, १६४, ३२४,
|-
|न्यू टेस्टामेंट, २३, ९८ || फॉस्ट ५६
|-
|{{gap|5em}}{{larger|'''प'''}} || फूकन, ४६०
|-
|फ्रान्स, अनातोले, २०४ || पटवारी, रणछोड़दास, ३९२, ४०४, ४१९
|-
|पटेल, डाह्याभाई, ३८, ९०, २१८, २४५, ||{{gap|5em}}{{larger|'''ब'''}}
|-
| {{gap}}३०४, ३३२, ३७२, ४०४ || बंगाली, ६१
|-
|पटेल, मणिबहन, ३८, ९०, २४५, २४६, || बजाज, जमनालाल, २३७, २४५, २४६,
|-
| {{gap}}४०४ || {{gap}}२५७, २५८
|-
|पटेल, वल्लभभाई, ८४, १६१, २१८, २४५, || बनर्जी, कालीचरण, ६०, ९८, १४१
|-
|२५४, ३७२, ४२३, ४४० || बनर्जी, जे॰ के॰, १४१ पा॰ टि॰
|-
|पटेल, विठ्ठलभाई, १६४, २५४ || बनर्जी, डा॰ सुरेश, ६२
|-
|पट्टणी, सर प्रभाशंकर, ५६ || बनर्जी, सर सुरेन्द्रनाथ, ४८, ६०, ७४-७५
|-
|पढ़ियार-कोष, ८० || बर्कनहेड, लॉर्ड, ५, ९, १५, ९१, १६३
|-
|पण्डित, वसुमती, ५९, ८४, १०१, २५६, || बाइबिल, २०४
|-
| {{gap}}२५९ || बाढ़ सहायता कोष,—दक्षिणमें, ९४२
|}<noinclude></noinclude>
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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 28.pdf/५५४
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ममता साव9
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<noinclude><pagequality level="3" user="ममता साव9" />{{Rh|५२४|सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय|}}</noinclude>{|width=110%
|-
|बॉन्डरिक, ४४८ || {{gap}}३४७, ३४९, ३५३, ३५६, ३७०,
|-
|बॉम्बे क्रॉनिकल, १६१, २५२ || {{gap}}३७१, ३७४, ३८७, ४०१, ४०५,
|-
|बिड़ला, घनश्यामदास, ८३, २४५, २५७ || {{gap}}४०७, ४०९, ४१२, ४१६, ४५४,
|-
|बिशननाथ, २५५ || {{gap}}४८०; —का कानपुर अधिवेशन, ९३,
|-
|बीकानेरके महाराजा, २२ || {{gap}}४०१, ४०६-७; —का संविधान, २१९
|-
|बुद्ध, २, ४७३ || {{gap}}२०; _की अखिल भारतीय कमेटी,
|-
|बुद्ध-धर्म, ४८१ || {{gap}}५, ८४, १२१, १३१-३२, १४९,
|-
|बैंकर, शंकरलाल घेलाभाई, ७९, ९५, २३७, || {{gap}}२०१, २१९,-२०, २३७, २५८, २६१,
|-
| {{gap}}३२०, ४३६ || {{gap}}२६८,२७२, ३०१, ३०९, ३४७,
|-
|बोअर युद्ध, ४२६ || {{gap}}३७०, ३७७; —की अखिल भारतीय
|-
|बोस, सुभाषचन्द्र, ३२४ || {{gap}}कमेटी और सविनय अवज्ञा, १५-१६;
|-
|ब्रजवल्लभदास जयकिशनदास, १७२ || {{gap}}—की अखिल भारतीय कमेटीका प्रस्ताव,
|-
|ब्रह्मचर्य, २४९, २५१, २५२, ३२९ || {{gap}}२७९-८०; —के कताई सदस्य, २७०
|-
|ब्रह्म-समाज, ४७३-७४ || भीम, १११
|-
|{{gap}}{{larger|'''भ'''}} || भीष्म, ४२६
|-
|भगवद्गीता, ४४, ४६, ४९, ८३, १०५, || भोंबल, ३७२
|-
|{{gap}}११७, २१७, २७४, २८४, ३२४,
|-
|{{gap}}३२७, ३५१, ४२७, ४२८, ४८३ ||{{gap|5em}}{{larger|'''म'''}}
|-
|भगवानदास, ३५५-५७, ४१३ || मंगलसिंह, २७३
|-
|भट्ट, शामल, ३२८ || मजमूदार, गिरीशचन्द्र, ३०८
|-
|भरत, २८८, ३३० || मथुरादास त्रिकमजी, १०१, ४६९
|-
|भर्तृहरि, ११३ || मनु, ११६ पा॰ टि॰, ४७८
|-
|भागवत, ११७ || मनुस्मृति, ५३
|-
|भाण्डारकर, सर रामकृष्ण, १४९ || मन्दोदरी, १११
|-
|भायात, आमद, १५८, १६० || मन्सूर जेठालाल, १७८, १७९
|-
|भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, ९-१०, ४८, ७५, || मर्डक, २
|-
|{{gap}}९०, ९१, ९२, ९५, १२१, १५०, || मलान, २५
|-
|{{gap}}१५२, १५३, १६३, १८३, १९०, || मलान, एफ॰ एस॰, १५९
|-
|{{gap}}२०२, २१३, २२०, २३७, २३९, || मलाबार सहायता कोष, ४४७
|-
|{{gap}}२४३, २६०-६१, २६४, २६५, २६८, || मलिक, वसन्तकुमार, २५
|-
|{{gap}}२६९, २७१, २७६, २८०, ३०४, || मशरूवाला, किशोरलाल, ३२५, ४०२
|-
|{{gap}}३१३, ३१४, ३२०, ३२१, ३४५, || मशरूवाला, नानाभाई इच्छाराम, ११२
|}<noinclude></noinclude>
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ममता साव9
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|-
|बॉन्डरिक, ४४८ || {{gap}}३४७, ३४९, ३५३, ३५६, ३७०,
|-
|बॉम्बे क्रॉनिकल, १६१, २५२ || {{gap}}३७१, ३७४, ३८७, ४०१, ४०५,
|-
|बिड़ला, घनश्यामदास, ८३, २४५, २५७ || {{gap}}४०७, ४०९, ४१२, ४१६, ४५४,
|-
|बिशननाथ, २५५ || {{gap}}४८०; —का कानपुर अधिवेशन, ९३,
|-
|बीकानेरके महाराजा, २२ || {{gap}}४०१, ४०६-७; —का संविधान, २१९
|-
|बुद्ध, २, ४७३ || {{gap}}२०; —की अखिल भारतीय कमेटी,
|-
|बुद्ध-धर्म, ४८१ || {{gap}}५, ८४, १२१, १३१-३२, १४९,
|-
|बैंकर, शंकरलाल घेलाभाई, ७९, ९५, २३७, || {{gap}}२०१, २१९,-२०, २३७, २५८, २६१,
|-
| {{gap}}३२०, ४३६ || {{gap}}२६८,२७२, ३०१, ३०९, ३४७,
|-
|बोअर युद्ध, ४२६ || {{gap}}३७०, ३७७; —की अखिल भारतीय
|-
|बोस, सुभाषचन्द्र, ३२४ || {{gap}}कमेटी और सविनय अवज्ञा, १५-१६;
|-
|ब्रजवल्लभदास जयकिशनदास, १७२ || {{gap}}—की अखिल भारतीय कमेटीका प्रस्ताव,
|-
|ब्रह्मचर्य, २४९, २५१, २५२, ३२९ || {{gap}}२७९-८०; —के कताई सदस्य, २७०
|-
|ब्रह्म-समाज, ४७३-७४ || भीम, १११
|-
|{{gap}}{{larger|'''भ'''}} || भीष्म, ४२६
|-
|भगवद्गीता, ४४, ४६, ४९, ८३, १०५, || भोंबल, ३७२
|-
|{{gap}}११७, २१७, २७४, २८४, ३२४,
|-
|{{gap}}३२७, ३५१, ४२७, ४२८, ४८३ ||{{gap|5em}}{{larger|'''म'''}}
|-
|भगवानदास, ३५५-५७, ४१३ || मंगलसिंह, २७३
|-
|भट्ट, शामल, ३२८ || मजमूदार, गिरीशचन्द्र, ३०८
|-
|भरत, २८८, ३३० || मथुरादास त्रिकमजी, १०१, ४६९
|-
|भर्तृहरि, ११३ || मनु, ११६ पा॰ टि॰, ४७८
|-
|भागवत, ११७ || मनुस्मृति, ५३
|-
|भाण्डारकर, सर रामकृष्ण, १४९ || मन्दोदरी, १११
|-
|भायात, आमद, १५८, १६० || मन्सूर जेठालाल, १७८, १७९
|-
|भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, ९-१०, ४८, ७५, || मर्डक, २
|-
|{{gap}}९०, ९१, ९२, ९५, १२१, १५०, || मलान, २५
|-
|{{gap}}१५२, १५३, १६३, १८३, १९०, || मलान, एफ॰ एस॰, १५९
|-
|{{gap}}२०२, २१३, २२०, २३७, २३९, || मलाबार सहायता कोष, ४४७
|-
|{{gap}}२४३, २६०-६१, २६४, २६५, २६८, || मलिक, वसन्तकुमार, २५
|-
|{{gap}}२६९, २७१, २७६, २८०, ३०४, || मशरूवाला, किशोरलाल, ३२५, ४०२
|-
|{{gap}}३१३, ३१४, ३२०, ३२१, ३४५, || मशरूवाला, नानाभाई इच्छाराम, ११२
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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 28.pdf/५५६
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|-
|रामराज्य, २९४, २९८, ३०६ || वसुमती, ५९
|-
|रामानुज, ६४ || वाइकोम सत्याग्रह, १७७
|-
|रामायण, ११७, १८७, ३३०, ३९४ || वाल्मीकि, ३५४
|-
|राय, एन॰ के॰, ३०८ || विद्यासागर, ईश्वरचन्द्र, ७६
|-
|राय, डा॰ विधानचन्द्र, ८०, ९६ || विधान सभा, १९३; —का कार्यक्रम, १९३
|-
|राय, डा॰ प्रफुल्लचन्द्र, ४४, २२४, ४४२ || {{gap}}९४
|-
|राय, राजा राममोहन, ४४६, ४७३, ४७४ || विराट्, ५२
|-
|राव, एस॰ के॰, ३०८, ३१० || विलसन, राष्ट्रपति, २४
|-
|रावण, १८२, २०४, ३९६ || विलिंग्डन, लॉर्ड, ७७
|-
|राष्ट्र-संघ, ४५५, ४५७-५९ || विष्णु, भगवान, ३२६
|-
|राष्ट्रीय पंचायत, २३१ || वेव, ११६ पा॰ टि॰, १६८, १८७, २८८,
|-
|राष्ट्रीय, पाठशाला, ७३, ८०, १७८, १८१, || {{gap}}२९८, ३६२
|-
|{{gap}}३८६-८७ || वैद्य, सी॰ वी॰, ४०६, ४६०
|-
|राष्ट्रीय शिक्षा, ३४१-४२ || वैस्टन, ए॰ टी॰, ८८
|-
|रीडिंग, लॉर्ड, ३७० || व्यास, ३३०
|-
|रुद्र, सुधीर, ११२ || {{gap|5em}}{{larger|'''श'''}}
|-
|रुद्र, सुशील कुमार, ६०, ९८ || शंकर, ४४४
|-
|रौलट अधिनियम, २३२ || शफी, मौलाना, ३३७
|-
|{{gap|5em}}{{larger|'''ल'''}} || शम्भुनाथ, ३६१
|-
|लक्ष्मण, १८२, १८७ || शर्मा टी॰ एन॰, १७६
|-
|लक्ष्मी, ३८, २५९, ४२ || शान्ति, ४०२
|-
|लक्ष्मी, देवी, ३५७ || शान्ति कुमार मोरारजी, ४५६
|-
|लाजपतराय, लाला, ४१० || शाह, फूलचन्द, २६०, ३३४, ४०३
|-
|लायड जॉर्ज, ४५१ || शाहनामा, ३०९
|-
|लिटन, लॉर्ड, १ || शिव भगवान, ४२५
|-
|||शिवप्रसाद, ३५५, ३५६
|-
|{{gap|5em}}{{larger|'''व'''}} || शिवाजीभाई, ४०३
|-
|वरदाचारी, एन॰ एस॰, ३७६ || शीतलसहाय, २६४
|-
|वर्डस्वर्थ, ४६ || शेक्सपियर, ४३, ४४६
|-
|वर्णाश्रम, १४, ३३७, ४५३; -और अस्प || शौकत अली, २१८, २३७, २७५, २८५,
|-
|{{gap}}श्यता, ६४-६६ || {{gap}}२८७, ३१९, ३२०, ३३६, ३६९,
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|-
|रामराज्य, २९४, २९८, ३०६ || वसुमती, ५९
|-
|रामानुज, ६४ || वाइकोम सत्याग्रह, १७७
|-
|रामायण, ११७, १८७, ३३०, ३९४ || वाल्मीकि, ३५४
|-
|राय, एन॰ के॰, ३०८ || विद्यासागर, ईश्वरचन्द्र, ७६
|-
|राय, डा॰ विधानचन्द्र, ८०, ९६ || विधान सभा, १९३; —का कार्यक्रम, १९३
|-
|राय, डा॰ प्रफुल्लचन्द्र, ४४, २२४, ४४२ || {{gap}}९४
|-
|राय, राजा राममोहन, ४४६, ४७३, ४७४ || विराट्, ५२
|-
|राव, एस॰ के॰, ३०८, ३१० || विलसन, राष्ट्रपति, २४
|-
|रावण, १८२, २०४, ३९६ || विलिंग्डन, लॉर्ड, ७७
|-
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|-
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|-
|राष्ट्रीय, पाठशाला, ७३, ८०, १७८, १८१, || {{gap}}२९८, ३६२
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|-
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|-
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|-
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|-
|रुद्र, सुशील कुमार, ६०, ९८ || शंकर, ४४४
|-
|रौलट अधिनियम, २३२ || शफी, मौलाना, ३३७
|-
|{{gap|5em}}{{larger|'''ल'''}} || शम्भुनाथ, ३६१
|-
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|-
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|-
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|-
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|-
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|-
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|-
|||शिवप्रसाद, ३५५, ३५६
|-
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|-
|वरदाचारी, एन॰ एस॰, ३७६ || शीतलसहाय, २६४
|-
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|-
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|-
|{{gap}}श्यता, ६४-६६ || {{gap}}२८७, ३१९, ३२०, ३३६, ३६९,
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|-
|महाभारत, २२, ४३, २०४, २१८, २७४, ||मेहता, फीरोजशाह, २६
|-
|{{gap}}३३० || मेहर, तुलसी, ३९७, ४०२
|-
|महावीर सिंह, २६० || मैन, डा॰ २८२
|-
|मारवाड़ी, ३६५-६८ || मैन, सर हेनरी, ११३
|-
|मालवीय, मदनमोहन, १३, ३७, ७९, ९५, || मोक्ष, ५३, ६५, २१८, २५०, ३३१, ४००
|-
|{{gap}}११०, ४१० || {{gap}}४६४
|-
|मिरबेल, आँत्वानेत, ७१ || मोरेनो, डा॰ एच॰ डब्ल्यू॰ बी॰, १७
|-
|मिलनर (मलान), ४४ || {{gap|5em}}{{larger|'''य'''}}
|-
|मिल्टन, ४३, ४४६ ||
|-
|मीराबाई, १११ ||यंग इंडिया, २८, ३७, ६९, ११६-१८
|-
|मुदाबलियर, पी॰ एस॰ डोरायस्वामी, ३७९ || {{gap}}१४६, १६३, १७४, २०४, २३४,
|-
|मुरारीलाल, डा॰, ४०७ || {{gap}}२५६, २७३, २८२, ३१५, ३२३,
|-
|मुसलमान, ११, १२, १७, १८, २०, || {{gap}}३४१, ३४८, ३५१, ३५२, ३७२,
|-
|{{gap}}९९, ११८, १२०, १२३, १३६, १४२ || {{gap}}३७८-७९, ३८१, ३८६, ४४३, ४४७,
|-
|{{gap}}१६६, १७२, २०६, २८३, २९२, || {{gap}}४४८, ४५१, ४५५, ४७४
|-
|{{gap}}३०५, ३२०, ३२१, ३६२, ३९८, || यहुदी, २८७, ३२२
|-
|{{gap}}युधिष्ठिर, ५२, २९७, ३३१ ४०९, || {{gap}}४१०, ४१४-१६, ४२५,
|-
|{{gap}}४५१, ४५७, ४७२, ४७३, ४७८; || {{gap|5em}}{{larger|'''र'''}}
|-
|{{gap}}—और हिन्दू, २, २९-३०, २२४,२४०, || रमणीकलाल, ३२४
|-
|{{gap}}२४१, २६४, २८३-८७, ३५६, ३५९, ||रसेल, बट्टैण्ड, ३१
|-
|{{gap}}३६०, ३७९, ४५८ || रहीम, २१६
|-
|मुहम्मद, २, ४७३ || राजगोपालाचारी, च॰, २१६
|-
|मुहम्मद अली, ४१५, देखिए 'अली भाई' || राजचन्द्र, ४१९
|-
|{{gap}}भी || राजेन्द्रप्रसाद, १५०, १८८, २१८, २२२,
|-
|मेघजी, ४३२ || {{gap}}२३७, २७९, २८८, ३०९, ३८८,
|-
|मेघनाद, १८२ || {{gap}}४१२,
|-
|मेनन, एस्थर, ३०२ || राम, भगवान, ३०, ५५, १११, ११७,
|-
|मेनली, ४०२ || {{gap}}१८२, १८७, २१४, २१६, २१७,
|-
|मेरी, कुमारी, ४५० || {{gap}}२८८, २९७, ३३०, ३५७, ३९४,
|-
|मेहता, कल्याणजी, १०२ || {{gap}}३९५, ४३६, ४६४, ४६५, ४८९
|-
|मेहता, डा॰ सुमन्त, २५६, ३३२, ३३३ || रामजीभाई, १७८
|-
|मेहता, नरसिंह, २१७, ४०० || राममूर्त्ति, १८९
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|-
|{{gap}}पा॰ टि॰, ४१०, ४१५, ४२४ || सेठी, जी॰, ५८, ८२
|-
|{{gap}}—देखिए 'अली भाई' भी || सेन, १८८
|-
|श्रद्धानन्द, स्वामी, ३७१ || सेनगुप्त, जे॰ एम॰, ४३८
|-
|||स्कीन, सर एन्ड्र्यूज, १६४
|-
|{{gap|5em}}{{larger|'''स'''}} || स्टीवेन्स, १०२
|-
|||स्नेहलता, ४२
|-
|सत्यवान, १८२ || स्मट्स, जनरल, १५८
|-
|सत्याग्रह, १३५, २३४, २६०, ३१५-१८, || स्वदेशी, ५, ५५, १०८, १३९-४०, २०५,
|-
|{{gap}}३९५, ४२६, ४४८, ४६८ || {{gap}}४६२
|-
|सत्याग्रही, १३५, २३४, ३१६, ३८०, ३९५; || स्वराज्य, ५, २६, ३४, ३७, ४२, ४८,
|-
|{{gap}}—देखिए 'असहयोगी' भी || {{gap}}५०, ५४-५६, ७२, ९९-१०१, १०७,
|-
|सभ्यता, —आधुनिक, १३५ || {{gap}}११६, १२२-२४, १३०, १४३, १४८,
|-
|सरकार, सर नीलरतन, ९६ || {{gap}}१५२, १५५, १५६, १६३, १७४,
|-
|सरस्वती, ३५७ || {{gap}}१७५, १८२, १८७, १९६, २०२,
|-
|सर्वाधिकारी, डा॰ ८९ || {{gap}}२०५, २१३, २२०, २२८, २४५,
|-
|सविनय अवज्ञा, १०, ९२, २२१, २८९, || {{gap}}२९८, २९९, ३०६, ३४५, ३६९,
|-
|{{gap}}३४४, ४०९; —और भारतीय राष्ट्रीय || {{gap}}३७४, ३७५, ४१७, ४४१, ४६२,
|-
|{{gap}}कांग्रेस, १५-१६ || {{gap}}४६४, ४६७, ४८०; —और असहयोग,
|-
|साम्बमूर्त्ति, ७३ || {{gap}}२४१; —और गोआवासी, ३७९;
|-
|साराभाई, अम्बालाल, ३७६ || {{gap}}—और चरखा, ११
|-
|सॉलोमन, ४४३ || स्वराज्यवादी, ९-१०, ७६, ९१-९३, १०३,
|-
|सावित्री, १८२ || {{gap}}१६२, १६४, १७४, १९०, १९३,
|-
|सिख, ८१, २७३ || {{gap}}२२२, २३१, २३२, २६५, २६८-७१,
|-
|सिख-धर्म, २७३-७४ || {{gap}}२७५, ३१३, ३४६, ३७०, ३७९,
|-
|सीता, ३०, १०४, १११, १८५, १८७, || {{gap}}४०९, ४१४, ४४१, ४५४
|-
|{{gap}}३०६, ३३०, ३५४, ४३६, ४४३ ||
|-
|सील, आचार्य, ४४२ || {{gap|5em}}{{larger|'''ह'''}}
|-
|सुधार-कार्य, २२७ || हंटर, सर विलियम, १८, ८५
|-
|सुमन्त, डा॰, ४२३ || हनुमान, २१७
|-
|सुहरावर्दी, डा॰ अब्दुल्ला, १०३, १६४ || हार्डविक, कैसी, ४८३
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ममता साव9
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|-
|हाडिंग, लॉर्ड, ३०३ || {{gap}}२८५, २८८, २९७, ३०४, ३२५,
|-
|हिन्दी, -अहिन्दी भाषी क्षेत्रोंमें, ३६८; || {{gap}}३६०, ३६२, ३६४, ३६६, ३७०,
|-
|{{gap}}—मद्रासम, २९४, ३६८ || {{gap}}३७१, ३८५, ३९४, ३९८, ४१५,
|-
|हिन्दू, ११, १२, १४, २०, २३, ६८, ९९, || {{gap}}४२६, ४५२, -और अस्पृश्यता,
|-
|{{gap}}११६-२०, १२२, १२३, १३६, १४२, || {{gap}}६४-६६, ३६३-६४, ३९४
|-
|{{gap}}१५३, १६६, १६७, १८६, १८७, || हिन्दू-मुस्लिम एकता, ५५, ९९,१००,१०४,
|-
|{{gap}}१९१, २०६, २१७, २२८, २४५, || ११६, १२८, २२३, २४०, २४१,
|-
|{{gap}}२६३-६४, २८७, २८९, २९८, ३०५, || २४५, २६४, ३४१, ३५९,४१५, ४५८
|-
|{{gap}}३६२, ३७०, ३८५, ३९३, ३९८, || हिन्दू-मुस्लिम तनाव, ११८, १६२, २०६,
|-
|{{gap}}४०९, ४१०, ४१४-१६, ४२५, ४२७, || २८३, २८५, २९८, ३३५-४०, ३ ६९,
|-
|{{gap}}४३१, ४३२, ४४९, ४५२, ४ ५४, || ३८१-८३, ४०९, ४१४, ४१६, ४७२
|-
|{{gap}}४७२; —और मसलमान, २,२९-३०, || हिल, मेजर बर्कले,११५
|-
|{{gap}}२२४, २४०, २४१, २६४, २८३-८७, || हुगवर्फ, १५३, १५४
|-
|{{gap}}३५६, ३५९, ३६०, ३७९, ४५८ || हेमप्रभा, देवी, १८८
|-
|हिन्दू-धर्म, १४, २२, ११६, पा॰ टि॰, १२२, || हैबर, पादरी, १
|-
|{{gap}}१३६, १५३, २०३-४, २४५, २७३, || हैरिस, थॉमस विलफ्रेड, २४
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ममता साव9
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|-
|हाडिंग, लॉर्ड, ३०३ || {{gap}}२८५, २८८, २९७, ३०४, ३२५,
|-
|हिन्दी, —अहिन्दी भाषी क्षेत्रोंमें, ३६८; || {{gap}}३६०, ३६२, ३६४, ३६६, ३७०,
|-
|{{gap}}—मद्रासमें, २९४, ३६८ || {{gap}}३७१, ३८५, ३९४, ३९८, ४१५,
|-
|हिन्दू, ११, १२, १४, २०, २३, ६८, ९९, || {{gap}}४२६, ४५२, —और अस्पृश्यता,
|-
|{{gap}}११६-२०, १२२, १२३, १३६, १४२, || {{gap}}६४-६६, ३६३-६४, ३९४
|-
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|{{gap}}१९१, २०६, २१७, २२८, २४५, || {{gap}}११६, १२८, २२३, २४०, २४१,
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|-
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ममता साव9
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|हिन्दू, ११, १२, १४, २०, २३, ६८, ९९, || {{gap}}४२६, ४५२,—और अस्पृश्यता,
|-
|{{gap}}११६-२०, १२२, १२३, १३६, १४२, || {{gap}}६४-६६, ३६३-६४, ३९४
|-
|{{gap}}१५३, १६६, १६७, १८६, १८७, || हिन्दू-मुस्लिम एकता, ५५, ९९,१००,१०४,
|-
|{{gap}}१९१, २०६, २१७, २२८, २४५, || {{gap}}११६, १२८, २२३, २४०, २४१,
|-
|{{gap}}२६३-६४, २८७, २८९, २९८, ३०५, || {{gap}}२४५, २६४, ३४१, ३५९,४१५, ४५८
|-
|{{gap}}३६२, ३७०, ३८५, ३९३, ३९८, || हिन्दू-मुस्लिम तनाव, ११८, १६२, २०६,
|-
|{{gap}}४०९, ४१०, ४१४-१६, ४२५, ४२७, || {{gap}}२८३, २८५, २९८, ३३५-४०, ३६९,
|-
|{{gap}}४३१, ४३२, ४४९, ४५२, ४ ५४, || {{gap}}३८१-८३, ४०९, ४१४, ४१६, ४७२
|-
|{{gap}}४७२;—और मुसलमान, २,२९-३०, || हिल, मेज़र बर्कले,११५
|-
|{{gap}}२२४, २४०, २४१, २६४, २८३-८७, || हुगवर्फ, १५३, १५४
|-
|{{gap}}३५६, ३५९, ३६०, ३७९, ४५८ || हेमप्रभा, देवी, १८८
|-
|हिन्दू-धर्म, १४, २२, ११६, पा॰ टि॰, १२२, || हैबर, पादरी, १
|-
|{{gap}}१३६, १५३, २०३-४, २४५, २७३, || हैरिस, थॉमस विलफ्रेड, २४
|}
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भारत दुर्दशा
0
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517425
2022-07-25T06:05:26Z
अनिरुद्ध कुमार
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[[भारतेंदु-नाटकावली/६–भारत दुर्दशा]] को अनुप्रेषित
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text/x-wiki
#पुनर्प्रेषित [[भारतेंदु-नाटकावली/६–भारत दुर्दशा]]
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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 17.pdf/२६०
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2022-07-25T08:44:55Z
आँचल तिवारी
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/* अशोधित */ 'सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय रिहाईके दिन, १६ मईकी सुबहतक में इसी वार्डमें रहा। मेरा खयाल है, इस दौरान मैंने अपने मित्रों और सम्बन्धियोंसे बाकायदे तीन बार मुलाकातें कीं जिन...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
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<noinclude><pagequality level="1" user="आँचल तिवारी" /></noinclude>सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
रिहाईके दिन, १६ मईकी सुबहतक में इसी वार्डमें रहा। मेरा खयाल
है, इस दौरान मैंने अपने मित्रों और सम्बन्धियोंसे बाकायदे तीन बार मुलाकातें
कीं जिनमें से एक बहुत ही थोड़ी देरके लिए थी, और दूसरी मैंने विशेष तौर-
पर कुँवर दलीपसिंहसे की थी, क्योंकि सरकारने उनको ऐसे कैदियोंके मुकदमे
लड़नेके लिए नियुक्त किया था जो अपने वकील खड़े नहीं कर सकते थे और
इस सिलसिलेमें वे अक्सर जेल आते-जाते रहते थे; और एक तीसरी मुला-
कातका मौका तब मिला जब सुपरिटेंडेंटन खास मेहरबानी करके मेरे भाईको जो
लाहौरसे होकर गुजर रहा था, मुझसे मिल लेने दिया।
इस पूरे दौरान मुझे बिलकुल नहीं बतलाया गया कि मुझपर क्या आरोप
लगाया गया है। मुझे सर्वथा अनिश्चयात्मक स्थितिमें रखा गया।
श्री मनोहरलालते हमें इसका भी थोड़ा आभास दिया है कि उनकी बीमार पत्नी और
बच्चोंपर क्या गुजरी ? वे कहते हैं :
२२८
जेलकी एक मुलाकातके दौरान मुझे पता चला कि मेरी गिरफ्तारीके बाद
मेरे घरकी तलाशी हुई। मेरी गिरफ्तारीके मुश्किलसे पौन घंटे के बाद ही उस-
पर ताला ठोक दिया गया। मेरी बीमार पत्नी और मेरे बच्चोंको अहातेमें बनी
नौकरोंकी कोठरियों और रसोईघरमें शरण लेनी पड़ी और उनको मित्रों द्वारा
दिये गये बिस्तरोंको इस्तेमाल करना पड़ा। तलाशी १९ अप्रैलको हुई और उस
दिन शामको करीब ६ बजे मेरे परिवारके लोगोंको मकानमें वापस जानेकी
इजाजत मिल पाई।
पुलिस दो-तीन कीमती किताबें भी अपने साथ ले गई, जो श्री मोहनलाल द्वारा
बयान दिये जानेके दिनतक उन्हें वापस नहीं की गई थीं। उन्होंने अपनी गिरफ्तारीकी
कहानीका अन्त इन शब्दों में किया है :
मुझे आजतक भी पता नहीं चल पाया है कि मुझपर क्या आरोप लगाया
गया था, या वह कौन-सी चीज थी जिसके कारण मुझे गिरफ्तार करके जेलमें
रखना जरूरी हो गया था।
अपनी गिरफ्तारीके सम्भावित कारणोंका अनुमान लगाते हुए वे कहते हैं :
मुझे अपनी वकालतके कामके बाद जितना भी समय मिलता है वह सब
में अध्ययन में लगाता हूँ, इसलिए में शहरके सक्रिय जीवनमें भाग नहीं लेता।
डिप्टी कमिश्नरने कई बार जनताके प्रतिनिधियोंकी जो बैठकें बुलाई, उनमें मुझे
कभी भी नहीं बुलाया गया था; न में उनमें कभी अन्य किसी प्रकारसे गया;
और हड़ताल बन्द कराने के तरीके सोचनेके लिए गैर-सरकारी लोगों द्वारा बुलाई
गई किसी बैठक में भी में शामिल नहीं हुआ। (बयान १५०, पृष्ठ १९८) ।
कोई भी अधिकारी, जो श्री मनोहरलालके समान किसी प्रतिष्ठित व्यक्तिको
बिना पूरी-पूरी जाँच पड़ताल और छानबीन कराये ही गिरफ्तार करने की अनुमति
Gandhi Heritage Porta<noinclude></noinclude>
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