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अजीत कुमार तिवारी
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अजीत कुमार तिवारी
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अजीत कुमार तिवारी
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ममता साव9
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|-
| {{gap}}७१, ३९५, ४२५, ४३०-३३, ४३७, || इस्लाम, २२, २८५, ४३२
|-
| {{gap}}४४९, ४७२, ४७३, ४८९; –और || {{gap|5em}}{{larger|'''ई'''}}
|-
| {{gap}}कताई, २३४; –और वर्णाश्रम, ६४- || ईश्वर, १३४-३५, १५५, १७४, २१६-१७
|-
| {{gap}}६६; –और हिन्दू-धर्म, ६४-६६, ३६३- || {{gap}}३२३, ३९९, ४००, ४२०, ४३६, ४७१
|-
| {{gap}}६४, ३९४ || {{gap}}४७२
|-
| अहिंसा, ३, ४, २३, ४३, ४९, ५२-५३, || ईसाई, ११, १८-२४, ८१, ९७-९९, १३६,
|-
| {{gap}}६३, १०५, १०७, ११७, १२४, १५६- || {{gap}}१४१-४३, २८३, २८७, ३०६-७,
|-
| {{gap}}५७, १७४, २१६, २२९, २२९-३०, || {{gap}}३२१, ४५७, ४७२, ४७३
|-
| {{gap}}२३६, २४९, २५०, २५३, २६३, || ईसाई-धर्म, २२, १४१, १४२, १५५, २०३;
|-
| {{gap}}२८५, ३०२, ३१५-१७, ३२८, || {{gap}}–और धर्म-परिवर्तन, ९८, ३०६-७
|-
| {{gap}}३२९, ३३०, ३३१, ३३५, ३३६, || ईसा मसीह, २, २१, २३, ९७, १४१, ४७३
|-
| {{gap}}३६२, ४०९, ४१५, ४१८, ४२०, || ईस्ट इंडिया कम्पनी, ८९
|-
| {{gap}}४२५, ४५१, ४७२ || {{gap|5em}}{{larger|'''उ'''}}
|-
| {{gap|5em}}{{larger|'''आ'''}} || उदारदलीय, ४५५
|-
| आंग्ल भारतीय, १७; –[ों] द्वारा यूरो- || उपनिषद्, ४१, ४४६
|-
| {{gap}}पीयोंकी नकल करना, ९८ || उर्मिला देवी, १८८, २१८
|-
| ऑगस्टीन, १ || उस्मान, २२६
|-
| आगा खां, ४३२, || {{gap|5em}}{{larger|'''ए'''}}
|-
| आनन्दानन्द, स्वामी, १०८ पा॰ टि॰ || एग्रिकल्चरल प्रोग्रेस इन वेस्टर्न इंडिया, ३५०
|-
| आरोग्य दिग्दर्शन, ८३ || एन्ड्रयूज, सी॰ एफ॰ २९, ५८, ८२, ११२,
|-
| आरोग्य विषे सामान्य ज्ञान, २४९ || {{gap}}१२९, १४४, १४७, २६७, ४४७, ४५९,
|-
| आर्नोल्ड, सर एड्विन, ३२८, ३५२ पा॰ टि॰ || {{gap}}४६८
|-
| ऑलवुड, रेवरेंड, १ || एमहर्स्ट, ४७५,
|-
| आसर, लक्ष्मीदास, ३३२ || एलिजाबेथ, रानी, ८९
|-
| {{gap|5em}}{{larger|'''इ'''}} ||
|-
| इंग्लिशमैन, १, १०३ || {{gap|5em}}{{larger|'''ओ'''}}
|-
| इंडियन ओपिनियन, २१८ || ओ'डायर, सर माइकेल, ५१
|-
| इंडियन डेली टेलिग्राफ, ४०८ || {{gap|5em}}{{larger|'''क'''}}
|-
| इंडियन सोशल रिफॉर्मर, १९१ || कच्छके महाराव, २९६, २९७, ३९६
|-
| इब्राहीम प्रधान, ४२५, ४३२ || कताई, ६, २७, ३५, ५५-५७, ७०, ७२
|-
| इमाम अली, सर, २२१ || {{gap}}८८, १००, १२०, १२३, १२३, १५२,
|}<noinclude></noinclude>
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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 28.pdf/५४९
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ममता साव9
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<noinclude><pagequality level="4" user="सौरभ तिवारी 05" />{{rh||सांकेतिका|५१९}}</noinclude>{|width=110%
|-
| {{gap}}१६२, १७२, २०५, २१३, २१७, || कुन्ती, ३३०
|-
| {{gap}}२२१, २२५, २२६, २३३, २३६, || कुरान, २२३, ४७८
|-
| {{gap}}२३९, २४७, २४८, २७०, २७५, || कुरेशी, शुएब, २४, २३७
|-
| {{gap}}२७६, २८२, २९९, ३००, ३०८, || कुशारी, जितेन्द्रनाथ, ७२, २९५
|-
| {{gap}}३१०-१२, ३२२, ३३४, ३४२, ३४४, || कृष्ण भगवान, २, १११, १४४, २०३,
|-
| {{gap}}३४९, ३५०, ३६९, ३७७, ३८५, || {{gap}}२१६, २१८, २७३, २७४, ३३१,
|-
| {{gap}}३९०, ३९१, ४०५, ४०६, ४१३, || {{gap}}३९६, ४२६, ४३६, ४५०, ४६५
|-
| {{gap}}४२५, ४३२, ४४४, ४४८, ४६२, || केनेडी, २२९, २३०
|-
| {{gap}}४६७, ४७०; –अमेरिकामें, ४८३; || केलकर, न॰ चि॰, २६१
|-
| {{gap}}–और अस्पृश्यता, २३४; –और खद्दर, || कोठारी, मणिलाल वल्लभजी, ३८,३९, १४६,
|-
| {{gap}}२३८, २६९; –और चरखा, २६३; || {{gap}}१७४
|-
| {{gap}}–मण्डल, २०३; –सरकारी शिक्षा || कौंसिल, २७०, ३१३, ३७४, ४५५, ४६०;
|-
| {{gap}}संस्थाओंमें, १५३-५५; –स्कूलोंमें, || –[लों] में प्रवेश, ९३, ३१४;
|-
| {{gap}}२४३, ३८७ || {{gap}}–प्रान्तीय (कौंसिलों) में भारतीय राष्ट्रीय
|-
| कताई-सदस्यता, ९२, ९३, १२१, २०२, || {{gap}}कांग्रेसका प्रतिनिधित्व, ३४६
|-
| {{gap}}२१२, २१९-२२, २२६, २३३, २६९, || कौंसिल-कार्यक्रम, ९२, २६९
|-
| {{gap}}३४९, ३७०; –की प्रगति सम्बन्धी || कौरव, २१४, ४२६
|-
| {{gap}}गुजरातके आँकड़े, २०१; –के दो || क्षितीश बाबू, २२६
|-
| {{gap}}प्रकार, २६५, || क्षेत्र-निर्धारण और प्रवास तथा पंजीयन
|-
| कर्जन, लॉर्ड, ८७, २१०, ३६९ || {{gap}}सम्बन्धी (अतिरिक्त धारा) विधेयक,
|-
| कांग्रेस –की सेवा, ३५३ || {{gap}}१५८, पा॰ टि॰, ३०३ पा॰ टि॰
|-
| कांग्रेसी, १०४, १२३, १२८, १५०-५२, || {{gap|5em}}{{larger|'''ख'''}}
|-
| {{gap}}१९०, २०२, २१९, २३३, २५८, || खादी (खद्दर), १०, १२, २७, ३१, ३३,
|-
| {{gap}}२७०, २७१, ३०६, ३१३, ३२१, || {{gap}}३७, ४५, ५४-५५, ६२-६७, ६८,
|-
| {{gap}}३६१, ३७१, ३७५, ३८४, ३८५, || {{gap}}८०, ८१, ८४, ९२, १०२, १०४,
|-
| {{gap}}४०५, ४०९, ४१४, ४१७, ४७९-८१ || {{gap}}१११, १२३-२४, १३२, १४०, १४३,
|-
| कार्नेगी, १४ || {{gap}}१४५, १५२-५३, १६१, १६३, १७२,
|-
| कालेलकर, काका, ३२४ || {{gap}}१७४, १७५, १८३, १८६, १८७,
|-
| कासिम बाजारके महाराजा, ३९, ४२, ३०८ || {{gap}}१९१, १९३, २०२, २०५, २१३, २२१,
|-
| किंग्सफोर्ड, डा॰ एना, २२ || {{gap}}२२२, २२४, २२६, २३७, २३९,
|-
| क्रिस्टोदास, ३८, १८८, २६८ || {{gap}}२४५, २४६-४८, २५५, २५९, २६३,
|-
| कीटिंग, ३५० || {{gap}}२६६-६७, २७५, २८६, २८७, २९३,
|}<noinclude></noinclude>
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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 28.pdf/५५२
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ममता साव9
2453
proofread-page
text/x-wiki
<noinclude><pagequality level="3" user="ममता साव9" />{{rh|५२२|सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय|}}</noinclude>{|width=110%
|-
|{{gap|5em}}{{larger|'''त'''}} || देशपाण्डे, गंगाधरराव, ६२
|-
| तलाटी, गोकुलदास, १०८ || देसाई, डा॰ हरिप्रसाद, ४१८, ४४०, ४४१,
|-
| तिलक, बाल गंगाधर, ५, २६, ३४, ५४ || {{gap}}४५८
|-
| {{gap}}५५; —स्वराज्य कोष, ७९, ९४-९५, || देसाई, दुर्गा, १८८, २१८, ३७२
|-
| {{gap}}१७०, १७२ || देसाई, प्रागजी, १०२
|-
|तुकाराम, १२७ || देसाई, महादेव, ३८, ८२, १०१, १०२,
|-
|तुलसीदास, २, ११७, १२६, १२७, १८७, || {{gap}}१८८, २१८, ३५१, ३७२, ४१६,
|-
| {{gap}}२०५, २४२, २८९, ३३० || {{gap}}४३१, ४६९
|-
| {{gap|5em}}{{larger|'''द'''}} || देसाई, वालजी गोविन्दजी, २५६, ४२१, ४३९
|-
|||द्रौपदी,१११, ४३६
|-
|दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास, || {{gap|5em}}{{larger|'''ध'''}}
|-
| {{gap}}१०६ || धर्म, ७८, ९९, १११, १४०, १४२, १५५,
|-
|दत्त, आर॰ सी॰, ८७ || {{gap}}१६७, १६८, १८२, २९५, २९८, ३२६,
|-
|दत्त, माइकेल मधुसूदन, ६० || {{gap}}३३१, ४२५-२७, ४६८, ४७२, ४७४
|-
|दमयन्ती, १११, १८५, ४६५ || धृतराष्ट्र, २०४
|-
|दलाल, १८८ || ध्रुव, आनन्दशंकर, ४०६, ४६०
|-
|दवे, कालीदास, २५४ ||
|-
|दास, एस॰ आर॰, ९६ || {{gap|5em}}{{larger|'''न'''}}
|-
|दास गोपबन्धु, २६० || नंजप्पा, २६१
|-
|दास, चित्तरंजन, १, ६, ७, ९, १२, || नगीनदास अमुलखराय, २१२
|-
| {{gap}}१३, १५, २६, ३४, ३७, ४०, १०३, || नरगिस बहन, ४६९
|-
| {{gap}}१३८, १६०, १६४, १७४, १७९, || नल, ४६५
|-
| {{gap}}१८१, १८६, २२७, २३६, २९७, || नवजीवन, १३, १५, १०५-९, १४६-४७,
|-
|{{gap}}४६० || {{gap}}१८८, २१५, २५४, २६०, ३२१,
|-
|दास, मधुसूदन, २५७ || {{gap}}३६७, ३७८, ४१८, ४३२, ४४७,
|-
|दास, मोना, १८८, ३७२ || {{gap}}४६४, ४८३
|-
|दास, वासन्ती देवी, १३, ५६, १६० || नवयुग, १०२
|-
|दासगुप्त, सतीशचन्द्र, १००, १०१, १८८, || नवाब सरफराज हुसैन खाँ, खान बहादुर,
|-
| {{gap}}२२४, २३७ || {{gap}}२४०, २४१
|-
|दास्ताने, वी॰ वी॰, ४०१ || नानक, गुरु, २७३
|-
|दुर्योधन,३३१ || नायडू, सरोजिनी, १६१, २०५ पा॰ टि॰,
|-
|देवधर, २१८, २४५, २४६ || {{gap}}३१९, ३५९, ४५४, ४६८
|}<noinclude></noinclude>
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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/८४
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Manisha yadav12
2489
/* शोधित */
proofread-page
text/x-wiki
<noinclude><pagequality level="3" user="Manisha yadav12" />{{rh|५०|सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय|}}</noinclude>बाजे बजाये और यहाँतक कि किसी मीनारपर से एक पत्थर उखाड़ लिया, तो भी मैं कहनेका साहस करता हूँ कि मुसलमानोंको मन्दिरोंको अपवित्र नहीं करना चाहिए था। बदला भी आखिर एक हदतक ही लिया जा सकता है। हिन्दू लोग अपने देवालयको जानसे अधिक मानते हैं। हिन्दुओंकी जानको नुकसान पहुँचानेकी बात तो किसी हदतक समझमें आ सकती है; पर उनके मन्दिरोंको हानि पहुँचानेकी बात समझमें नहीं आ सकती। धर्म जीवनसे बढ़कर है। इस बातको याद रखिए कि दूसरे धर्मों के साथ तात्त्विक दृष्टि से तुलना करनेमें चाहे किसीका धर्म नीचा बैठता हो, परन्तु उसे तो अपना वही धर्म सबसे सच्चा और प्रिय मालूम होता है। परन्तु जहाँतक अनुमान किया जा सकता है, हिन्दुओंकी तरफसे मुसलमानोंको उत्तेजनाका मौका ही नहीं दिया गया। मुलतानमें जब मन्दिर अपवित्र किये गये तब बिना-किसी उत्तेजनाके ही किये गये थे। हिन्दू-मुस्लिम तनावके विषयमें लिखे अपने लेखमें<ref> २. देखिए खण्ड २४, पृष्ठ १३९-५९। </ref> मैंने कुछ ऐसे स्थानोंकी चर्चा की है, जहाँ हिन्दुओं द्वारा मसजिदोंके अपवित्र किये जानेकी बात कही जाती है। मैं इन आरोपोंके सम्बन्धमें सबूत एकत्र करनेकी कोशिश कर रहा हूँ। परन्तु अबतक मुझे उनका कुछ भी सबूत नहीं मिला है। अमेठी, शम्भर और गुलबर्गाकी जो खबरें प्रकाशित हुई हैं, ऐसे काम करके आप इस्लामकी कीर्तिको बढ़ाते नहीं है। अगर आप इजाजत दें तो मैं कहूँगा कि इस्लामकी इज्जतका भी मुझे उतना ही खयाल है जितना कि खुद अपने मजहबका। यह इसलिए कि मैं मुसलमानोंके साथ पूरी, खुली और दिली दोस्ती रखना चाहता हूँ। पर मैं यह कहे बिना नहीं रह सकता कि मन्दिरोंको अपवित्र करनेकी ये घटनाएँ मेरे हृदयके टुकड़े-टुकड़े कर रही हैं।
दिल्ली के हिन्दुओं और मुसलमानोंसे मैं कहता हूँ:
यदि आप इन दो जातियोंमें मेल-मिलाप कराना चाहते हों, तो आपके लिए यह अनमोल अवसर है। अमेठी, शम्भर और गुलबर्गामें जो-कुछ हुआ है, उसे देखनेके बाद आपका यह दुहरा कर्तव्य हो जाता है कि आप इस मसलेको हल कर डालें। आपको अपने बीच हकीम अजमलखाँ साहब और डा० अंसारी-जैसे मुसलमान सज्जनोंके होनेका सौभाग्य प्राप्त है, जो अभी कलतक दोनों जातियोंके विश्वासपात्र थे। इस तरह आपकी परम्परा उच्च रही है। अपनी दलबन्दियोंको तोड़कर और ऐसी दिली दोस्ती कायम करके जो किसी तरह न टूट पाये, आप इन लड़ाई-झगड़ोंकी शुभ परिणति कर सकते हैं। मैंने तो अपनी सेवाएँ आपके हवाले कर ही दी हैं। यदि आप मुझे दोनोंका मध्यस्थ बनाना पसन्द करें तो मैं दिल्लीमें जमकर बैठने के लिए तैयार हूँ और उन दूसरे सज्जनोंके साथ, जिन्हें आप चुनें, सच्ची बातोंका पता लगानेकी कोशिश करूँ। इस सवालके स्थायी निपटारेके लिए यह आवश्यक है कि पहले हम इस बातकी पूरी तहकीकात करें कि पिछली जुलाईमें दरहकीकत क्या-क्या हुआ और वह क्योंकर हो पाया। मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ कि आप शीघ्र ही इस सम्बन्धमें कोई निर्णय लीजिए। हिन्दू-मुसलमानोंका सवाल एक ऐसा सवाल है जिसके ठीकठीक हल होनेपर ही निकट भविष्यमें भारतका भाग्य निर्भर करता है। दिल्ली इस<noinclude></noinclude>
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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 28.pdf/२९३
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अजीत कुमार तिवारी
12
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ममता साव9
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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 28.pdf/२९४
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अजीत कुमार तिवारी
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अजीत कुमार तिवारी
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ममता साव9
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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/८५
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Manisha yadav12
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/* अशोधित */ '________________ आँकड़ोंपर विचार सवालको हल कर सकती है क्योंकि दिल्ली जो कुछ करेगी, उसीका अनुसरण दूसरी जगहोंपर होगा। [अंग्रेजीसे] यंग इंडिया, २८-८-१९२४ ४२९ ३६ ३६ ३३. आँकड़ोंपर व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
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आँकड़ोंपर विचार सवालको हल कर सकती है क्योंकि दिल्ली जो कुछ करेगी, उसीका अनुसरण दूसरी जगहोंपर होगा। [अंग्रेजीसे] यंग इंडिया, २८-८-१९२४
४२९ ३६
३६
३३. आँकड़ोंपर विचार १५ अगस्तको खत्म होनेवाले महीने के लिए आये सूतकी आखिरी फेहरिस्त नीचे दी जाती है। २५ अगस्ततक जितना सूत आया है, वह इसमें शामिल किया गया है। इसके बाद जो सूत आयेगा वह अगले महीने में गिना जायेगा। प्रान्तका नाम
प्रतिनिधियोंकी सदस्य कतैये गैर-सदस्य कुल सूत संख्या
कतैये भेजनेवाले आन्ध्र
१,६५३ ३०२
१२७ असम
२५० अजमेर बम्बई
२४२ बर्मा बिहार
१,०७४ बंगाल
१,५४९
४०१ बरार
२५५ मध्य प्रान्त (मराठी) ९४२ मध्य प्रान्त (हिन्दी) १,३२४
७१ दिल्ली
१८५ गुजरात
४०८ १७७
८४५ *कर्नाटक केरल महाराष्ट्र
६७४ १३७
१६२ *पंजाब २५५
२३ *सिन्ध २६२
४८ *तमिलनाड ८२६
११ संयुक्त प्रान्त १,५८१ १ ३५
२७
१६२ उत्कल ४१३३२
३७ - कुल योग १२,२०२१,७४६ १,०३४ २,७८० *यहाँके रजिस्टर अधूरे हैं।
१२
४१
२
७९
१. साधन-सूत्रमें यह संख्या
११,३०२' है।
Gandhi Heritage Portal<noinclude></noinclude>
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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/८६
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Manisha yadav12
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<noinclude><pagequality level="3" user="Manisha yadav12" />{{rh|५२|सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय|}}</noinclude>कांग्रेसके प्रस्तावके अनुसार जिन सदस्योंने सूत भेजा है उनकी तादाद रजिस्टरमें दर्ज संख्याकी सिर्फ १४ फीसदी है। गैर-सदस्य सूत भेजनेवालोंकी संख्या सूत कातनेवाले सदस्योंकी ६७ फीसदी है। प्रायः हरएक प्रान्तने इस बार कम सूत भेज पानेके लिए माफी चाही है। अगले महीने में वे इससे कहीं अच्छा नतीजा दिखानेकी आशा रखते हैं। इस सूचीमें गुजरातका नम्बर सबसे पहला है। पर इसमें कोई आश्चर्यकी बात नहीं। क्योंकि सूत कातनेकी शिक्षा देनेकी सुविधाएँ और व्यवस्था यहाँ सबसे अच्छी है। बरार सबसे फिसड्डी रहा। मैं तो आशा कर रहा था कि बरारका विश्वास चरखेपर न होनेपर भी वह कांग्रेसकी आज्ञाका पालन अवश्य करेगा और मैं उसे बधाई दूँगा। मैं बरारकी प्रान्तिक समितिसे अनुरोध करता हूँ कि वह नियमोंका पालन करे। फिर क्या बरारमें ऐसे लोग नहीं हैं, सदस्य चाहे न हों, जो चरखे के कायल हैं? गुजरातके बाद दूसरा नम्बर है बंगालका। यह बात ध्यान देने लायक है। ऐसा मालूम होता है कि वह गुजरातको हरा देगा। होना भी यही चाहिए। क्योंकि बंगाल तो उन नफीस कतैयोंकी जन्मभूमि है जिनकी टक्करके कतैये दुनियामें कहीं पैदा ही नहीं हुए। बंगालको ही ईस्ट इंडिया कम्पनीकी क्रूरताका पूरा-पूरा शिकार होना पड़ा था। ऐसी हालतमें इससे बढ़कर ठीक बात दूसरी हो ही नहीं सकती कि बंगाल भारतको सबसे अधिक सूत कातनेवाले स्वयंसेवक देकर औरोंको रास्ता दिखाये। गुजरातके बाद बंगालके दूसरे नम्बरपर होनेका रहस्य वहाँ डाक्टर राय द्वारा किया गया संगठन और व्यवस्था है। यदि नेता लोग आगे बढ़ें तो कार्यकर्ता बढ़ने के लिए तैयार हैं। मैं आशा करता हूँ कि मैं अगले सप्ताह सूतकी अच्छाई-बुराई आदिकी तफसील दे सकूँगा। फिलहाल तो इतना ही कहना काफी होगा कि यदि लोगोंके उत्साहका यही क्रम रहा तो हम बिना दिक्कत ऊँचे नम्बरका बुनने लायक सूत प्राप्त करनेकी समस्या हल कर सकेंगे। खादी-प्रचारके रास्ते में यही सबसे बड़ी बाधा रही है।
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कांग्रेसका कताई सम्बन्धी प्रस्ताव कांग्रेसियोंकी मनोवृत्तिके अध्ययनकी खासी सामग्री पेश कर रहा है। जब अ० भा० कांग्रेस कमेटीने चरखा कातनेका प्रस्ताव किया तब कहीं कांग्रेसियोंकी समझमें आया कि चरखा कातना तभी लोकप्रिय और सार्वत्रिक हो सकता है जब कमसे-कम कांग्रेसके प्रतिनिधि केवल कताई सीखना ही नहीं बल्कि रोज चरखा कातना भी अपना कर्तव्य मानें। अब वे इस बातका महत्त्व समझने लगे हैं। अबतक तो कांग्रेसके इस आशयके एक पिछले प्रस्तावके रहते हुए भी कि तमाम कांग्रेसियोंको कमसे-कम चरखा कातनेकी कला सीख लेनी चाहिए, बहुतोंने उसे छुआतक न था।<noinclude></noinclude>
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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/८७
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Manisha yadav12
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दो पहलू ऐसी अवस्थामें क्या आश्चर्य कि चरखा-कताई इतनी नहीं बढ़ पाई जिससे विदेशी कपड़ेका बहिष्कार सफलतापूर्वक हो सके। पर अब तो वे लोग भी कातने लगे हैं जो यह समझते थे कि हम तो कभी कात ही न सकेंगे। यही नहीं, वे उसे पसन्द भी करने लगे हैं। एक महाशयके पत्रका कुछ अंश मैं नीचे देता हूँ, जिससे यह बात और स्पष्ट हो जाती है :
कातनका काम मैंने कुछ देरसे शुरू किया। सामग्री जुटाने में कुछ दिन और बीत गये। फिर, कुछ दिनोंतक मुझे अपने औजारोंसे झगड़ना पड़ा। इस तरह पता चला कि मैं किस किस्मका कारीगर हूँ। जब चरखेने बुद्धिके आगे सिर झुकाया, तो पूनियोंने बगावत शुरू कर दी। नालायक पूनियाँ अड़ने लगों, धागा देनेसे इनकार करने लगीं, लेकिन दिल्लगी यह कि ये सबकी-सब एक रस्सा बनकर निकलने में जरा न सकुचाती थीं। मुझे ऐसा मालूम हुआ कि तत्त्वज्ञानकी कुर्सीपर पड़े-पड़े सूक्ष्म काल्पनिक विचार-मालाका महीन तार निकालना बड़ा आसान था। चरखेपर वास्तविक सूत कातना कहीं कठिन है। यदि मुझे यह पहलेसे मालूम होता कि नटखट महात्मा हमें आगे चलकर इस झंझटमें फँसायेंगे तो मैं १९२१ में उनकी पुकारके अनुसार कालेजको अपनी आरामकुर्सीसे असहयोग करनेसे पहले हजार बार सोचता। उस समय मैंने यह खयाल किया था कि मैं तो एक नेताको हैसियतसे सैकड़ों सभा-मंचोंपर जाकर चरखेपर लम्बे-लम्बे व्याख्यान झाड़ा करूँगा। यह तो मैंने ख्वाबमें भी न सोचा था कि मुझे चरखा कातना पड़ेगा। पर अब मेरा भ्रम बुरी तरह दूर हो गया। अच्छा, तो मैं इस होनहारके आगे सिर झुकाता हूँ। अब पीछे कदम हटानेका तो सवाल ही कैसे खड़ा हो सकता है ? मैं अपनी मेहनतका तुच्छ फल आपकी सेवामें भेज रहा हूँ। जो शर्ते लगाई है, उनमें से एकका भी पालन नहीं हो पाया है। पर मैं आपको यकीन दिलाता हूँ कि मेरा दिल निराश नहीं हुआ है और अब भी मुझे आशा है कि मैं बहुत बढ़िया नतीजा दिखा सकूँगा।
मैं ऐसे और भी कितने ही उदाहरण दे सकता हूँ, जिनमें लोग जरा देर करके, पर झपाटे और दृढ़ताके साथ कताईमें जुट पड़े हैं।
पर पाठकोंको दूसरा पक्ष भी जता देना उचित है। मैं नीचे एक पत्र देता हूँ। यह एक कांग्रेस कमेटीके सभापतिका भेजा हुआ है। इस किस्मका यह एक ही खत मुझे अबतक मिला है। वे कहते हैं :
में अ०भा० कांग्रेस कमेटीके इस प्रस्तावको नाजायज मानता हूँ। आज कहा जाता है कि या तो चरखा कातो या इस्तीफा दो। कल कहेंगे अपना खाना खुद पकाओ या इस्तीफा दे दो या यह भी कहा जा सकता है कि अपना सिर मुड़ाओ, नहीं तो इस्तीफा दो। इस चरखेके सिद्धान्तपर मुझे विश्वास
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