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पृष्ठ:हिंदी व्याकरण.pdf/४१२
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नीलम
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<noinclude><pagequality level="1" user="कन्हाई प्रसाद चौरसिया" />{{rh||(३९१)|}}</noinclude>(आ) किसी-किसी धातुओं में '''त''' और '''न''' दोनों प्रत्ययों के लगने से दो-दो रूप होते हैं।
पूर-पूरित, पूर्ण, त्रा-त्रात, त्राण।
(इ) '''त''' के स्थान मे कभी-कभी क, म, व आते हैं।
शुष् (सूखना)=शुष्क, क्षै-क्षाम, पच्-पक्व।
'''ता''' (तृ)—(कर्त्तृवाचक)—
मूल प्रत्यय तृ है, पर तु इस प्रत्ययवाले शब्दों की प्रथमा के पुल्लिंग एकवचन का रूप ताकारांत होता है, और वही रूप हिंदी में प्रचलित है। इसलिए यहाँ ताकारांत उदाहरण दिये जाते हैं।
दा-दाता नी-नेता श्रु-श्रोता
वच्-वक्ता जि-जेता भृ-भर्ता
कृ-कर्ता भुज्-भोक्ता हृ-हर्त्ता
<small>
[सू॰—इन शब्दों का स्त्रीलिंग बनाने के लिए (हिंदी में) तृ प्रत्यवात शब्द में ई लगाते हैं (अ॰—२७६ इ)। जैसे, ग्रंथकर्त्री, धात्री, कवयित्री।]</small>
तव्य (योग्यार्थक)—
कृ-कर्तव्य भू-भवितव्य ज्ञा-ज्ञातव्य दृश -द्रष्टव्य श्रु-श्रोतव्य
दा-दातव्य पठ -पठितव्य वच-वक्तव्य ति ( भाववाचक )कृ-कृति प्रो-प्रीति शक-शक्ति
स्मृ-स्मृतिरीरीति स्था-स्थिति (अ) कई-एक नकारात और मकारांत धातुओं के अंत्याक्षर का
लोप हो जाता है, जैसे,
मन्-मति, क्षण-क्षति, गम-गति, रम्-रति, यम्-यति । (आ) कही-कहीं सधि के नियमों से कुछ रूपांतर हो जाता है।
बुध -बुद्धि, युज-युक्ति, सृज-सृष्टि, दृश-दृष्टि, स्था-स्थिति ।<noinclude>[[श्रेणी:हिंदी व्याकरण]]</noinclude>
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नीलम
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वर्तनी सुधारी। प्रारूप सुधार शेष।
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<noinclude><pagequality level="1" user="कन्हाई प्रसाद चौरसिया" />{{rh||(३९१)|}}</noinclude>(आ) किसी-किसी धातुओं में '''त''' और '''न''' दोनों प्रत्ययों के लगने से दो-दो रूप होते हैं।
पूर-पूरित, पूर्ण, त्रा-त्रात, त्राण।
(इ) '''त''' के स्थान मे कभी-कभी क, म, व आते हैं।
शुष् (सूखना)=शुष्क, क्षै-क्षाम, पच्-पक्व।
'''ता''' (तृ)—(कर्त्तृवाचक)—
मूल प्रत्यय तृ है, पर तु इस प्रत्ययवाले शब्दों की प्रथमा के पुल्लिंग एकवचन का रूप ताकारांत होता है, और वही रूप हिंदी में प्रचलित है। इसलिए यहाँ ताकारांत उदाहरण दिये जाते हैं।
दा-दाता नी-नेता श्रु-श्रोता
वच्-वक्ता जि-जेता भृ-भर्ता
कृ-कर्ता भुज्-भोक्ता हृ-हर्त्ता
<small>
[सू॰—इन शब्दों का स्त्रीलिंग बनाने के लिए (हिंदी में) तृ प्रत्यवात शब्द में ई लगाते हैं (अ॰—२७६ इ)। जैसे, ग्रंथकर्त्री, धात्री, कवयित्री।]</small>
'''तव्य''' (योग्यार्थक)—
कृ-कर्तव्य भू-भवितव्य ज्ञा-ज्ञातव्य
दृश्-द्रष्टव्य श्रु-श्रोतव्य दा-दातव्य
पठ्-पठितव्य वच्-वक्तव्य
'''ति''' (भाववाचक)
कृ-कृति प्री-प्रीति शक्-शक्ति
स्मृ-स्मृति री-रीति स्था-स्थिति
(अ) कई-एक नकारात और मकारांत धातुओं के अंत्याक्षर का
लोप हो जाता है, जैसे,
मन्-मति, क्षण्-क्षति, गम्-गति, रम्-रति, यम्-यति।
(आ) कही-कहीं संधि के नियमों से कुछ रूपांतर हो जाता है।
बुध्-बुद्धि, युज्-युक्ति, सृज्-सृष्टि, दृश्-दृष्टि, स्था-स्थिति।<noinclude>[[श्रेणी:हिंदी व्याकरण]]</noinclude>
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पृष्ठ:हिंदी व्याकरण.pdf/४१३
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नीलम
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वर्तनी सुधार। प्रारूप सुधार शेष।
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<noinclude><pagequality level="1" user="कन्हाई प्रसाद चौरसिया" />{{rh||(३९२)|}}</noinclude>(इ) कहीं-कहीं ति के बदले नि आती है।
हा-हानि, ग्लै-ग्लानि, इत्यादि।
'''त्र''' (करणवाचक)—
नी-नेत्र, श्रु-श्रोत्र, पा-पात्र, शास्-शास्त्र।
अस्-अस्त्र, शस्-शस्त्र, क्षि-क्षेत्र।)
(ई) किसी किसी धातु में त्र के बदले इत्र पाया जाता है।
खन्-खनित्र, पृ-पवित्र, चर्-चरित्र।
'''त्रिम''' (निवृत्ति के अर्थ में)—
कृ-कृत्रिम।
'''न''' (भाववाचक)—
यत् (उपाय करना)-यत्न स्वप्-स्वप्न प्रच्छ-प्रश्न
यज्-यज्ञ याच्-याचा तृष्-तृष्णा
'''मन्''' (विविध अर्थ में)—
दा-दाम कृ-कर्म सि(बाँधना)-सीमा
धा-धाम छद् (छिपाना)-छद्म चर्-चर्म
वृह्-ब्रह्म
<small>[सू॰—ऊपर लिखे अकारांत शब्द 'मन्' प्रत्यय के न् का लोप करने से बने हैं। हिंदी में मूल व्य जनांत रूप का प्रचार न होने के कारण प्रथमा के एकवचन के रूप दिये गये हैं।]</small>
'''मान'''—
यह प्रत्यय अत् के समान वर्तमानकालिक कृदंत का है। इस प्रत्यय के योग से बने हुए शब्द हिंदी में बहुधा संज्ञा अथवा विशेषण होते हैं।
यज्-यजमान वृत्-वर्तमान वि+रज्-विराजमान
विद्-विद्यमान दीप्-देदीप्यमान ज्वल्-जाज्वल्यमान<noinclude>[[श्रेणी:हिंदी व्याकरण]]</noinclude>
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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 17.pdf/२६१
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अनुश्री साव
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/* अशोधित */ 'पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्धमें कांग्रेसकी रिपोर्ट २२९ दे सकता है, वह एक इतने ऊँचे पदपर बैठनेका उपयुक्त पात्र नहीं हो सकता, जिस- पर कर्नल जॉन्सन आसीन थे। उनके पूरे व्य...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
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text/x-wiki
<noinclude><pagequality level="1" user="अनुश्री साव" /></noinclude>पंजाबके उपद्रवोंके सम्बन्धमें कांग्रेसकी रिपोर्ट
२२९
दे सकता है, वह एक इतने ऊँचे पदपर बैठनेका उपयुक्त पात्र नहीं हो सकता, जिस-
पर कर्नल जॉन्सन आसीन थे। उनके पूरे व्यवहारसे भारतीय प्रतिष्ठाके प्रति उनका
अवमान-भाव टपकता है, जो सम्राट्के मुलाजिमोंमें बिलकुल नहीं होना चाहिए ।
(4
इन अधिकारी महोदयका दिमाग सचमुच खूब चलता था, सो इन्होंने लोगोंको
यन्त्रणा देनेका एक और तरीका यह सोच निकाला था कि जिन्हें वह बुरी प्रवृत्ति
के लोग" मानते थे उनके घरोंपर अपने नोटिस चिपकवा दिया करते थे। उन नोटिसोंको
कोई नुकसान न पहुँचने देने, यहाँतक कि गन्दातक न होने देने की जिम्मेदारी घरके
मालिककी मानी गई थी। सर चिमनलालने उनसे पूछा कि "बुरी प्रवृत्तिकें लोग" से
उनका क्या मतलब है और क्या वे जिनपर सन्देह करेंगे वे सब लोग "बुरी प्रवृत्ति-
वाले" माने जायेंगे ? उन्होंने अपने इस जवाबसे सबको हैरत में डाल दिया कि “यदि
आप [ इसे ] इसी ढंगसे कहना चाहे तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है। " सर चिमनलालने
उनसे पूछा : 'म यह जानना चाहता हूँ कि आप इसका क्या अर्थ लगाते हैं ? "
"
"
"C
उनका उत्तर था :
मेरा खयाल था कि जो लोग बिलकुल जाने-माने तौरपर राजभक्त न हों,
उनको इस कामपर लगाना चाहिए और राजभक्तिके गुणसे होन व्यक्तियोंका
चुनाव खुफिया पुलिस द्वारा किया जाता था।
सर चिमनलालने बतलाया कि इसका मतलब तो यह था कि जिनको भी इस काम-
पर लगाया गया, उन्हें एक अरसेतक लगातार चौबीसों घंटे इन नोटिसोंकी चौकसी
करनी थी। कर्नल जॉन्सनन ऐसी चौकसीकी आवश्यकता स्वीकार की, और इसे
सर्वथा उचित भी बतलाया । यह आदेश वैसे तो हर सूरत में असह्य था ही, किन्तु जब
एक पूरी संस्थाको ही इसके लिए जिम्मेदार बना दिया गया, तब तो यह हजार
गुना ज्यादा असह्य हो गया था।
और अब इसी प्रसंग में काले जके विद्यार्थियों तथा प्रोफेसरोंके साथ की गई हिंसा-
पूर्ण कार्रवाई की कहानी हमारे सामने आती है। कर्नल जॉन्सनके सोचने के तरीकोके भली
प्रकार समझाने के लिए सर चिमनलाल सीतलवाड और उनके बीच हुए प्रश्नोत्तरको
यहाँ उद्धृत करना जरूरी है :
प्र० - क्या यह नोटिस चिपकाने के लिए चुनी गई इमारतोंमें सनातन
कालेजकी इमारत भी एक थी ?
धर्म
उ० - मैं समझता हूँ कि थी ।
प्र० - क्या ऐसा है कि पहली सूचीमें यह शामिल नहीं थी, और उसका
नाम बादमें ही जोड़ा गया ?
उ० - जी हाँ, बादमें सूचीमें फेरबदल किये गये ।
प्र०- और इस कालेजकी चारदीवारीपर चिपकाये गये नोटिसको किसीने
फाड़ दिया ?
उ० - पुलिसने तो नहीं, पर किसी औरने मुझे ऐसी ही सूचना दी।
Gandhi Heritage Porta<noinclude></noinclude>
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