विकिस्रोत hiwikisource https://hi.wikisource.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%A4:%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%96%E0%A4%AA%E0%A5%83%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%A0 MediaWiki 1.39.0-wmf.23 first-letter मीडिया विशेष वार्ता सदस्य सदस्य वार्ता विकिस्रोत विकिस्रोत वार्ता चित्र चित्र वार्ता मीडियाविकि मीडियाविकि वार्ता साँचा साँचा वार्ता सहायता सहायता वार्ता श्रेणी श्रेणी वार्ता लेखक लेखक वार्ता अनुवाद अनुवाद वार्ता पृष्ठ पृष्ठ वार्ता विषयसूची विषयसूची वार्ता TimedText TimedText talk Module Module talk गैजेट गैजेट वार्ता गैजेट परिभाषा गैजेट परिभाषा वार्ता पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/२४ 250 83810 517543 347270 2022-08-11T04:49:01Z Manisha yadav12 2489 proofread-page text/x-wiki <noinclude><pagequality level="1" user="अनुश्री साव" /></noinclude>करता, तो स्पष्ट है कि संसार की सभी गाएँ और सूअर मुहल्ले में डेरा लगा लेते। हिन्दू मुस्लिम फसाद से सैय्यद को घृणा थी। इसलिये नहीं कि एक दूसरे का सर फोड़ देते और खून के छीटे उड़ाते, नहीं इसलिए कि सिर बड़े भद्दे ढ़ग से बखेरे जाते थे। राजकुमारी जो उन दोनो मे छोटी थी। वह उसको पसन्द थी उसके अधर स्वॉस की कमी के कारगा थोडे़ से खुले रहते थे, जो उसे बहुत पसन्द थे। इनको देखकर इसे हमेशा यही विचार आता कि एक चुम्बन इनको छूकर आगे निकल गया है। एक बार उसने राजकुमारी को जो अभी चोदहवी मंजिल को पार कर रही थी। अपने घर की तीसरी छत के गुसलखाने में स्नान करते सैय्यद ने अपने घर के झरोखों से जब उसकी ओर देखा तो उसे ऐसा अनुभव हुआ कि इसके गन्दे विचार दिमाग से निकल कर सामने आ खड़े होगे। सूर्य की मोटी-मोटी किरणे जिन में से अनगिनत सोने-चाँदी की तारे छिड़काव सा करती हुई उसके नग्न शरीर पर फिसल रही थी। इन किरणो ने उसके गोरे-बदन पर सोने-चाँदी के मानो पतरे चढ़ा दिये हो। बाल्टी मे से जब उसने गड़वा निकाला और खड़ी होकर अपने शरीर पर पानी डाला तो वह सैय्यद को सोने की पुतली-सी जान पड़ी। पानी की मोटी-मोटी बूँदे उसके शरीर से लुढक कर गिर रही थी। जैसे सोना पिघल कर गिर रहा हो। राजकुमारी, पुष्पा और कमलेश से चतुर थी। इसकी पतली-पतली उँगलियाँ इस ढ़ग से हिलती रहती कि वह कोई बड़ी भारी फिलासफर हो। उसे बहुत पसन्द थी। इन उँगलियो में खिचाव था। इस खिचाव का प्रमाण करोशिया और सूई के काम से मिलता था, जिसे वह कई बार देख चुका था। हवा के घोड़े [२३<noinclude></noinclude> 1qzyby3hfhzvr2uri6ll9ov0csqf7et 517544 517543 2022-08-11T04:49:55Z Manisha yadav12 2489 /* शोधित */ proofread-page text/x-wiki <noinclude><pagequality level="3" user="Manisha yadav12" /></noinclude>करता, तो स्पष्ट है कि संसार की सभी गाएँ और सूअर मुहल्ले में डेरा लगा लेते। हिन्दू मुस्लिम फसाद से सैय्यद को घृणा थी। इसलिये नहीं कि एक दूसरे का सर फोड़ देते और खून के छीटे उड़ाते, नहीं इसलिए कि सिर बड़े भद्दे ढ़ग से बखेरे जाते थे। राजकुमारी जो उन दोनो मे छोटी थी। वह उसको पसन्द थी उसके अधर स्वॉस की कमी के कारगा थोडे़ से खुले रहते थे, जो उसे बहुत पसन्द थे। इनको देखकर इसे हमेशा यही विचार आता कि एक चुम्बन इनको छूकर आगे निकल गया है। एक बार उसने राजकुमारी को जो अभी चोदहवी मंजिल को पार कर रही थी। अपने घर की तीसरी छत के गुसलखाने में स्नान करते सैय्यद ने अपने घर के झरोखों से जब उसकी ओर देखा तो उसे ऐसा अनुभव हुआ कि इसके गन्दे विचार दिमाग से निकल कर सामने आ खड़े होगे। सूर्य की मोटी-मोटी किरणे जिन में से अनगिनत सोने-चाँदी की तारे छिड़काव सा करती हुई उसके नग्न शरीर पर फिसल रही थी। इन किरणो ने उसके गोरे-बदन पर सोने-चाँदी के मानो पतरे चढ़ा दिये हो। बाल्टी मे से जब उसने गड़वा निकाला और खड़ी होकर अपने शरीर पर पानी डाला तो वह सैय्यद को सोने की पुतली-सी जान पड़ी। पानी की मोटी-मोटी बूँदे उसके शरीर से लुढक कर गिर रही थी। जैसे सोना पिघल कर गिर रहा हो। राजकुमारी, पुष्पा और कमलेश से चतुर थी। इसकी पतली-पतली उँगलियाँ इस ढ़ग से हिलती रहती कि वह कोई बड़ी भारी फिलासफर हो। उसे बहुत पसन्द थी। इन उँगलियो में खिचाव था। इस खिचाव का प्रमाण करोशिया और सूई के काम से मिलता था, जिसे वह कई बार देख चुका था। {{left|'''हवा के घोड़े'''}} {{right|[२३}}<noinclude></noinclude> hnnagfhnhxvl9ltu60e42j1ba6bhpff