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पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/२५
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Manisha yadav12
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<noinclude><pagequality level="3" user="Manisha yadav12" /></noinclude>एक दिन उसने राजकुमारी के कोमल हाथों से बुना हुआ मेज़-पोश देखा। "उसे विचार आया" कि उसने हृदय की अनगिनत धड़कनें भी उसकी छोटी-छोटी डब्बियों में गूँथ दी हों। एक बार जब वह उसके समीप ही खड़ा था, उसके हृदय में प्यार करने का विचार उत्पन्न हुआ; किन्तु जैसे ही उसने राजकुमारी की ओर देखा, तो वह मन्दिर के रूप में दीख पड़ी, जिसके साथ बनी मस्ज़िद के समान वह खड़ा था.."मस्ज़िद और मन्दिर में क्या प्यार हो सकता है?"
मुहल्ले की सभी लड़कियों से यह हिन्दू लड़की बुद्धिमान थी। इसके माथे पर एक पतली-सी रेखा अपने पाँव जमाने की चेष्टा निया करती थी, जो इसे बहुत अच्छी दीख पड़ती थी। इसके माथे को देख कर वह मन ही मन में कहा करता कि जब भूमिका इतनी सुन्दर और आकर्षक है तो मालूम नहीं पुस्तक कितनी आकर्षक होगी...मगर... पाह...ये मगर...इसके जीवन में यह मगर शब्द सच-मुच का मगर बन कर रह गया था, जो उसे डुबकी लगाने से सदा रोके रखता था।
नं० ७ फात्मा उर्फ फत्तो, खाली नहीं थी। इसके दोनों हाथ प्यार में डूबे हुए थे। एक अमजद से जो लोहे का काम किसी वर्कशाप में करता था, दूसरा उसके चाचा के बेटे से, जो दो बच्चों का बाप था, उससे प्रेम करती थी। फ़ात्मा उर्फ फत्तो इन दोनों भाईयों से प्यार कर रही थी। मानो एक पतंग से दो पेवें लड़ा रही हो। एक पतंग में जब दो और पतंग उलझ जावें तो अधिक दिलचस्पी पैदा हो जाती है; परन्तु यदि इस तिगड़े में एक और पेंच की वृद्धि हो जाये, तब यह उलझाव एक भूल-भुलइया का रूप धारण कर लेगा। इस प्रकार का उलझाव सैय्यद को अच्छा नहीं लगता था। इस के अतिरिक्त फत्तो जिस प्रकार के प्रेममय जीवन में फँस चुकी थी, वह प्रेम निकृष्टता का रूप था। सैय्यद जब इस प्रकार के प्रेम का विचार करता तो प्रेममय
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Manisha yadav12
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<noinclude><pagequality level="1" user="अनुश्री साव" /></noinclude>________________
पुरानी कहानियों की बड़ी चट्टनी' पीले काग़जों के ढेर से उठ कर उसकी आँखों के सामने लाठी टेकती हुई आ जाती और उसकी ओर इम प्रकार देखती जैसे कहना चाहती है कि मैं उस नीलपटी पर बिखरे तारों को ला सकती हूँ। बता तेरी नज़र किस लड़की पर है, ऐसे नुटकियों . में तुझसे मिलाप करा दूगी । ___उस बुढ़िया का विचार आते ही वह ‘पाईवाग' के विषय में सोचता। वह जाहरापीर और दाता गंज बख्श की समाधि उसकी आँखों के सामने आ खड़ी हो जाती। जहाँ वह बुढ़िया, उसकी प्रेमिका को किसी बहाने से ला सकती थी?...उस विचार के उठते ही उसका प्रेम सुकड़ जाता और एक ऐसी समाधि का रूप धारण कर लेता; जिस पर हरे रंग का ग़लाफ चढ़ा कर, अनगिनत हार उस पर बिखेरे गये हों ..।
कभी-कभी उसे यह ख्याल भी आता । यदि 'चट्टनी' असफल रही, तो कुछ ही दिनों के पश्चात् इस मुहल्ले से मेरा जनाजा ही निकलेगा और दूसरे मुहल्ले से मेरी उस प्रेमिका की अर्थी निकलेगी जो यौवन में पदार्पण कर चुकी थी। यह दोनों अर्थी और जनाज़ा एक दूसरे मुहल्ले से निकलते हुए टकरा जाएंगे तो फिर दोनों अथियाँ एक अर्थी का रूप धारण कर लेंगी या प्रेममय कहानियों की तरह जब मुझे और मेरी प्रेमिका को दफ़न किया जाएगा, तब एक नीहारिका प्रगट होगी पौर दोनों समाधियाँ मिल कर एक बन जायेंगी। वह यह भी सोचता यदि उसकी मृत्यु भी हो गई और उसकी प्रेमिका किसी कारणवश प्रात्म-हत्या न भी कर सकी, तब आये वीरवार को उसकी समाधि पर कोमल हाथ, उसकी याद में फूल चढ़ाया करेंगे और दीपक भी जलाया करेंगे। अपने काले और लम्बे केशों की लटाएँ खोलकर अपना सिर ( माथा ) समाधि से फोड़ा करेंगी और समाज एक तस्वीर और बना
हया के घोड़े
[२५<noinclude></noinclude>
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