विकिस्रोत hiwikisource https://hi.wikisource.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%A4:%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%96%E0%A4%AA%E0%A5%83%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%A0 MediaWiki 1.39.0-wmf.25 first-letter मीडिया विशेष वार्ता सदस्य सदस्य वार्ता विकिस्रोत विकिस्रोत वार्ता चित्र चित्र वार्ता मीडियाविकि मीडियाविकि वार्ता साँचा साँचा वार्ता सहायता सहायता वार्ता श्रेणी श्रेणी वार्ता लेखक लेखक वार्ता अनुवाद अनुवाद वार्ता पृष्ठ पृष्ठ वार्ता विषयसूची विषयसूची वार्ता TimedText TimedText talk Module Module talk गैजेट गैजेट वार्ता गैजेट परिभाषा गैजेट परिभाषा वार्ता पृष्ठ:भाव-विलास.djvu/११ 250 62905 517573 337554 2022-08-18T04:09:44Z ममता साव9 2453 /* प्रमाणित */ proofread-page text/x-wiki <noinclude><pagequality level="4" user="ममता साव9" /></noinclude>&nbsp; {{c|{{x-larger|'''वन्दना'''}}<br> {{larger|'''दोहा'''}}}} {{block center|<poem>राधाकृष्ण किसोर जुग, पग बंदों जगबंद। मूरति रति शृङ्गार की, शुद्ध सच्चिदानंद॥/</poem/> {{larger|'''शब्दार्थ'''}}—जुग-दोनों। पग-चरण। वंदों-वन्दना करता हूँ। जगबंद (जगवंद्य) जगत् के लिए वन्दनीय। मूरति-मूर्त्ति। रति-प्रेम। सच्चिदानन्द-परब्रह्म परमेश्वर। {{larger|'''भावार्थ'''}}—मैं, प्रेम और शृङ्गार की मूर्त्ति, शुद्ध सच्चिदानन्दस्वरूप, श्री राधाकृष्ण के संसार-पूज्य चरणों की वन्दना करता हूँ।<noinclude></noinclude> 80pfuht4abksni4upf3vkh35j94mji5 517576 517573 2022-08-18T04:18:38Z ममता साव9 2453 proofread-page text/x-wiki <noinclude><pagequality level="4" user="ममता साव9" /></noinclude>&nbsp; {{c|{{x-larger|'''वन्दना'''}}<br> {{larger|'''दोहा'''}}}} {{block center|<poem>राधाकृष्ण किसोर जुग, पग बंदों जगबंद। मूरति रति शृङ्गार की, शुद्ध सच्चिदानंद॥</poem>}} {{larger|'''शब्दार्थ'''}}—जुग-दोनों। पग-चरण। वंदों-वन्दना करता हूँ। जगबंद (जगवंद्य) जगत् के लिए वन्दनीय। मूरति-मूर्त्ति। रति-प्रेम। सच्चिदानन्द-परब्रह्म परमेश्वर। {{larger|'''भावार्थ'''}}—मैं, प्रेम और शृङ्गार की मूर्त्ति, शुद्ध सच्चिदानन्दस्वरूप, श्री राधाकृष्ण के संसार-पूज्य चरणों की वन्दना करता हूँ।<noinclude></noinclude> dk96k6u7chrwvp14c5bfmxf978zz2yi पृष्ठ:भाव-विलास.djvu/१२ 250 62906 517577 337712 2022-08-18T04:35:55Z ममता साव9 2453 /* प्रमाणित */ proofread-page text/x-wiki <noinclude><pagequality level="4" user="ममता साव9" />{{rh|४||}}</noinclude>&nbsp; {{c|{{x-larger|'''ग्रन्थ-परिचय'''}}<br> {{larger|'''छप्पय'''}}}} {{block center|<poem>श्री वृन्दावन-चन्द चरणजुग, चरचि चित्त धरि। दलमलि कलिमल सकल, कलुष दुख दोष मोष करि॥ गौरी-सुत गौरीस गौरि, गुरु-जन-गुण गाये। भुवन-मात भारती सुमिरि, भरतादिक ध्याये॥</poem>}} {{block center|<poem>कवि देवदत्त शृङ्गार रस, सकल-भाव-संयुक्त सँच्यो। सब नायकादि-नायक सहित, अलंकार-वर्णन रच्यो॥</poem>}} {{larger|'''शब्दार्थ'''}}—श्रीवृन्दावन-चन्द-श्रीकृष्ण। चरचि-पूजाकरके। दलमलि-नष्ट करके। कलिमल-कलियुग के दोष। कलुष-पाप। मोष करिनाश करके। गौरीसुत-श्रीगणेश। गौरीस-महादेव। गौरि-पार्वती। भुवनमात-संसार की माता, जगज्जननी। भारती-सरस्वती। भरतादिकभरत आदि आचार्य। संयुत-सहित। सँच्यो-संचित किया। रच्यो-बनाया। {{dhr}} {{c|{{x-larger|'''भाव'''}}<br> {{larger|'''दोहा'''}}}} {{block center|<poem>अरथ धर्म तें होइ अरु, काम अरथ तें जानु। तातें सुख, सुख को सदा, रस शृङ्गार निदानु॥ ताके कारण भाव हैं, तिनको करत विचार। जिनहिं जानि जान्यो परै, सुखदायक शृंगार॥</poem>}} {{larger|'''शब्दार्थ'''}}—ते-से। अरु और, तथा। तातें-इसलिए। निदानु-<noinclude></noinclude> 5pvdbvvv6znjlf6qud9qyp2xgjahidm पृष्ठ:भाव-विलास.djvu/१३ 250 62908 517578 483578 2022-08-18T04:41:21Z ममता साव9 2453 /* प्रमाणित */ proofread-page text/x-wiki <noinclude><pagequality level="4" user="ममता साव9" />{{rh||स्थायी-भाव लक्षण|५}}</noinclude>कारण। ताके-उनके। जिनहिं जानि-जिनको जान लेने पर। जान्यो परै-ज्ञात होता है। {{larger|'''भावार्थ'''}}―धर्म से अर्थ, अर्थ से काम और काम से सुख प्राप्त होता है। सुख का कारण शृङ्गार रस है। शृङ्गार रस के कारण भाव हैं। यहाँ पर उन्ही का वर्णन किया जाता है; क्योंकि उन्हें जान लेने पर शृङ्गार सुखदायक प्रतीत होता है। <poem>{{c|{{larger|'''दोहा'''}}}} {{block center|थिति, विभाव, अनुभाव अरु, कह्यो सात्विक भाव। संचारी अरु हाव ये, वरण्यो षड्विधि भाव॥}}</poem> {{larger|'''शब्दार्थ'''}}―कह्यो-वर्णन किये हैं। षड्विधि-छः तरह के। {{larger|'''भावार्थ'''}}―स्थायी, विभाव, अनुभाव, सात्विक, संचारीभाव और हाव-ये भावों के छः भेद कहे गये हैं। <poem>{{c|{{x-larger|'''१–स्थायी-भाव-लक्षण'''}} {{larger|'''दोहा'''}}}} {{block center|जो जा रस की उपज में, पहिले अंकुर होइ। सो ताको थिति भाव है, कहत सुकवि सब कोइ॥ नवरस के थिति भाव हैं, तिनको बहु बिस्तारु। तिन में रति थिति भाव तें, उपजत रस शृङ्गारु॥}}</poem> {{larger|'''शब्दार्थ'''}}―अंकुर होइ-पैदा होता है, उत्पन्न होता है। थिति भाव-स्थायी भाव। बहु-बहुत। बिरतारु-फैलाव, वर्णन। उपजत-पैदा होता है।<noinclude></noinclude> sqon2rcg7swhpkbkfmmpt0photi8cm6 पृष्ठ:भाव-विलास.djvu/१४ 250 62909 517579 338075 2022-08-18T05:00:10Z ममता साव9 2453 /* प्रमाणित */ proofread-page text/x-wiki <noinclude><pagequality level="4" user="ममता साव9" />{{rh|६|भाव-विलास|}}</noinclude> {{larger|'''भावार्थ'''}}—जिस रस के अनुसार जो भाव सर्व प्रथम हृदय में उत्पन्न होता है उसे कवि लोग उसका स्थायी भाव कहते हैं। नव रसो में नौ ही स्थायी भाव हैं और फिर उनके भी अनेक भेद हैं। इनमे जो रति स्थायी भाव है; उससे शृङ्गार रस की उत्पत्ति हुई है। {{c|{{x-larger |'''रति-लक्षण'''}}<br> {{larger|'''दोहा'''}}}} {{block center|<poem>नेक जु प्रियजन देखि सुनि, आन भाव चित होइ। अति कोविद पति कविन के, सुमति कहत रति सोइ॥</poem>}} {{larger|'''शब्दार्थ'''}}—नेक-थोड़ा भी। आन भाव-अन्य प्रकार का भाव। अतिकोविद-दिग्गज पंडित। पति कविन के-कवियों के सिरताज। सुमतिविद्वान। सोइ-उसे। {{larger|'''भावार्थ'''}}—अपने प्रियजन को देखकर अथवा उसके विषय में सुनकर जो एक तरह का भाव (अर्थात् गुदगुदी या उमंग) हृदय में उत्पन्न होता है, उसे कवि, पंडित तथा बुद्धिमान लोग रति कहते हैं। {{c|{{x-larger|'''उदाहरण पहला—(प्रियदर्शन से)'''}}<br> {{larger|'''कवित्त'''}}}} {{block center|<poem>संग ना सहेली केली करति अकेली, ::::एक कोमल नवेली वर बेली जैसी हेम की। लालच भरे से लखि लाल चलि आये सोचि, ::::लोचन लचाय रही रासि कुल नेम की॥</poem>}}<noinclude></noinclude> barmdwd362vrbc63rgxmhqh6io0txka पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/४१ 250 83956 517574 347429 2022-08-18T04:09:44Z Manisha yadav12 2489 /* शोधित */ proofread-page text/x-wiki <noinclude><pagequality level="3" user="Manisha yadav12" /></noinclude>{{right|'''३'''}} {{right|***}} नया साल धूप सेंक रहा था। सैय्यद अभी तक बिस्तर में ही पड़ा था, केवल लेटा ही नहीं, अपितु गहरी नींद सो रहा था। वह रात भर जागता रहा, सात बजे के लगभग उसकी आँख लगी थी। यही कारण है कि बारह बजने पर भी उसने जागने का नाम न लिया था। सिरहाने लगे घंटे ने भी बारह बार टन-टन की; किन्तु धातु की ध्वनि के स्थान पर उसके कानों ने राजो की आवाज़ सुनी, जैसे बड़ी दूर से आ रही हो। वह घबड़ा उठा और इस प्रकार जागने के हेतु वह ऐसा अनुभव करने लगा, मानो वह घबड़ा कर उठा हो। उसके रेशमी पाज़ामे ने फिसल कर उसकी क्षमता का परिचय दे ही दिया और इसकी हल्की-फुलकी निद्रा ने आँखें खोली, उसकी बौखलाहट में<noinclude>{{rh||४० ]|हवा के घोड़े}}</noinclude> ihkvlsfag2eex51qrbgb8x015a5nuka 517575 517574 2022-08-18T04:10:43Z Manisha yadav12 2489 proofread-page text/x-wiki <noinclude><pagequality level="3" user="Manisha yadav12" /></noinclude>{{right|'''३'''}} नया साल धूप सेंक रहा था। सैय्यद अभी तक बिस्तर में ही पड़ा था, केवल लेटा ही नहीं, अपितु गहरी नींद सो रहा था। वह रात भर जागता रहा, सात बजे के लगभग उसकी आँख लगी थी। यही कारण है कि बारह बजने पर भी उसने जागने का नाम न लिया था। सिरहाने लगे घंटे ने भी बारह बार टन-टन की; किन्तु धातु की ध्वनि के स्थान पर उसके कानों ने राजो की आवाज़ सुनी, जैसे बड़ी दूर से आ रही हो। वह घबड़ा उठा और इस प्रकार जागने के हेतु वह ऐसा अनुभव करने लगा, मानो वह घबड़ा कर उठा हो। उसके रेशमी पाज़ामे ने फिसल कर उसकी क्षमता का परिचय दे ही दिया और इसकी हल्की-फुलकी निद्रा ने आँखें खोली, उसकी बौखलाहट में<noinclude>{{rh|४० ]||हवा के घोड़े}}</noinclude> k2iriaa13z3pxggmast1jevabq9cdtw