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Sumanta Pramanik1
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Sumanta Pramanik1
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Sumanta Pramanik1
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Sumanta Pramanik1
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पृष्ठम्:अद्भुतसागरः.djvu/३२७
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Sumanta Pramanik1
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Sumanta Pramanik1
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अष्टाध्यायी हिन्दी व्याख्या सहितम्
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अनुनाद सिंह
1115
" {{header | title = अष्टाध्यायी | author = पाणिनिः | translator = | section = | previous = | next = | year = | notes = }} #[[अष्टाध्यायी हिन्दी व्याख्या सहितम्/माहेश्वर सूत्राणि|माहेश्वर सूत्राणि]]..." इत्यनेन सह आधेस्य विनिमयः कृतः ।
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अनुनाद सिंह
1115
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पृष्ठम्:अद्भुतसागरः.djvu/४३९
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Priyanka hegde
7796
/* अपरिष्कृतम् */ निमित्तमशुभं तच्च ब्राह्मणानां भयावहम् ॥ <small>पराशरः ।</small> गुरुभृगुशनैश्वराणां कृतः कम्पः पुरोधसाम् । <small>बृद्धगर्गसंहिताबार्हस्पत्ययोस्तु</small> । गुरुशुक्राग्न... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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Priyanka hegde
7796
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पृष्ठम्:अन्योक्तिमुक्तावली.djvu/१५
104
126016
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Shubha
190
/* अपरिष्कृतम् */ संप्राप्तोऽर्थो जनेभास्तदनु च निखिला येन भुक्ता दिनश्चीः संप्रत्यस्तंगतोऽसौ हतविधिवशतः शोचनीयो न भानुः ॥ ५४ ॥ पूर्वाह्णे प्रतिबोध्य पङ्कजवनान्युत्सार्य... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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अष्टाध्यायी हिन्दी व्याख्या सहितम्/माहेश्वर सूत्राणि
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126017
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2022-08-16T17:05:16Z
अनुनाद सिंह
1115
[० | १ | १] '''अइउण्''' | अ, आ, इ, ई, उ, ऊ [० | १ | २] '''ऋ ऌक्''' | ऋ, ॠ, ऌ, ॡ [० | १ | ३] '''एओङ्''' | ए, ओ [० | १ | ४] '''ऐऔच्''' | ऐ, औ [० | १ | ५] '''हयवरट्''' | ह्, य्, व्, र् [० | १ | ६] '''लण्''' | ल् [० | १ | ७] '''ञमङणनम्''' | ञ्, म्, ङ्, ण्,... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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343624
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अनुनाद सिंह
1115
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अनुनाद सिंह
1115
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अष्टाध्यायी हिन्दी व्याख्या सहितम्/प्रथमः अध्यायः
0
126018
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2022-08-16T17:27:56Z
अनुनाद सिंह
1115
[१|१|१] '''वृध्दिरादैच्''' आकार " आ" व " ऐच्" " ऐ", " औ" की वृद्धि संज्ञा होती है। | ''भागः, त्यागः, यागः। नायकः, चायकः, पावकः, स्तावकः, कारकः, हारकः। शालायां भवः == शालीयः, मालेयः। उप... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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अष्टाध्यायी हिन्दी व्याख्या सहितम्/द्वितीयः अध्यायः
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2022-08-16T17:30:15Z
अनुनाद सिंह
1115
[२|१|१] '''समर्थःपदविधिः''' - पद-विधि समर्थपदाश्रित होती है। | ''आकांक्षा आदि के कारण पदों का जो परस्पर सम्बन्ध होता है उसे व्यपेक्षा कहते हैं। यह वाक्य में होती है। जैसे... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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अष्टाध्यायी हिन्दी व्याख्या सहितम्/तृतीयः अध्यायः
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अनुनाद सिंह
1115
[३|१|१] '''प्रत्ययः''' तीसरे, चौथे और पांचवें अध्याय में आने वाले सूत्रों से जिनका विधान किया जाए उनकों प्रत्यय कहते हैं। | ''कर्त्तव्यम्, करणीयम् (करना चाहिए) [३|१|२] '''परश... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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अष्टाध्यायी हिन्दी व्याख्या सहितम्/चतुर्थः अध्यायः
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अनुनाद सिंह
1115
[४|१|१] '''ङ्याप्प्रातिपदिकात्'''| ङयन्त, आबन्त और प्रतिपादिक से सुप् आदि की प्रत्यय संज्ञा होती है। [४|१|२] '''स्वौजसमौट्छष्टाभ्याम् भिसङेभ्याम्-भ्यस्-ङसोसाम्-ङ्योस्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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अष्टाध्यायी हिन्दी व्याख्या सहितम्/पञ्चमः अध्यायः
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2022-08-16T17:34:36Z
अनुनाद सिंह
1115
[५|१|१] '''प्राक् क्रीताच्छः''' - `तेन क्रीतम् (५_१_३७) सूत्र से पहले (पूर्व) `छऄ प्रत्यय होता है। | ''वत्सेभ्यो हितः वत्सीयः (वत्स + छ) [५|१|२] '''उगवादिभ्यो यत्''' तेन क्रीतम् (५_१_३... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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अष्टाध्यायी हिन्दी व्याख्या सहितम्/षष्टः अध्यायः
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126023
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अनुनाद सिंह
1115
[६|१|१] '''एकाचोद्वेप्रथमस्य''' - यहाँ से लेकर सम्प्रसारणविधान - पर्यन्त ` एकाचः` `द्वे ` तथा 'प्रथमस्य' का अधिकार। | ''जजागार, पपाच, इयाय, आर। [६|१|२] '''अजादेर्द्वितीयस्य''' अजा... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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अष्टाध्यायी हिन्दी व्याख्या सहितम्/सप्तमः अध्यायः
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अनुनाद सिंह
1115
[७|१|१] '''यु-वोरनाकौ''' - यु और वु के स्थान पर अन् और वु के स्थान पर अक् होता है। | ''कृ वु में प्रकृत सूत्र से वु के स्थान पर अक् होकर कृ अक रूप बनता यै। यहाँ णित् ण्वुल्-स्था... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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अष्टाध्यायी हिन्दी व्याख्या सहितम्/अष्टमः अध्यायः
0
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2022-08-16T17:37:47Z
अनुनाद सिंह
1115
[८|१|१] '''सर्वस्य द्वे''' - अव से लेकर `पदस्यऄ सूत्र तक `सर्वस्य द्वे ` (सब के स्थान में द्वित्व) का अधिकार। | ''पचति पचति ग्रामो ग्रामो रमणीयः। [८|१|२] '''तस्य परमाम्रेडितम्'''... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/५
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2022-08-17T00:09:35Z
Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ ६8) श्रीमतां डा० नारायण प्रसाद आखाना्नां जन्मचृत्तस् 1 २० भपरैक १८७४ *** जन्मदिवसः । १८९३... आागराकाेजतः स्नातकः सञ्जति: । १८९५... आागरानगरे वाक्कीरचृतततिः प्रारण्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/४
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2022-08-17T00:09:52Z
Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ 8 ५००५०००००0००909 09४०९९००८५००५००००००१५००० | भ्रमतां डाक्टर चारायण भसाद आस्थान कुखपतीनां आगरा विश्वविद्यालयस्य, भधानान भारतीय. विद्ा-प्रचार-समितेः 1 सहोदयानां क्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/३
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Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ ा० नत्णयण रसाद् आस्थाना नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/२
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Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ 1 मु्कः प्रकाशकश्च 1 व० श्री° सातवठेकर, बी, ्. भारत सुदणारय भानन्दाश्रम 1 पारश ( जि, पूत ) { | 1 | } } ॥ १ प्रथम चार सुदित 1 1 भ्राप्तिस्थानं { १ श्री पै. इयामकुमार भाचार्यः भारत... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१
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Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ क| (1 चक & < "5६ ~ +: पः क्य लेखक भरी प° भावाः दयाम कुमार " सिः» सादिदयरत्नः, विद्याभपण मन्त्री भारतीय-बिच्या-भखार-सखमिति जाररा-नगरम् न्न विक्रम सवंत २००६; सन १९४९ र † र क... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/६
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/* अपरिष्कृतम् */ (५) शुभकामना-प्रदशचनार्थं _ एकः प्रब्दः । [ रेखकाः~ परमोत्कपं गताः महाभागाः श्री माधव भरीहरि अणे, विहास-प्रान्ताधिपाः तथा कक्षकः; भार्तीव-विच्चा-धचार-समितेः,] घयं... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/७
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ (६) शुभकामना, । ( केखकाः- परमोत्क्ष परा्षाः महाभागाः डा० कैरासनाथ कारजु. वद्खग्रान्ताधिषः, तथ उपप्रघानाः भारतीय विद्या-प्रचार-समितेः ) ५ ५ ,*..** डा० नारायणप्रसाद धास... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/८
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ (७) ग्रन्थस्य प्रस्तावना । ( य्खित्तय परश्रीपाद्द्यर्मणादामोदरषूनुना भट सातपकेकरोपाम्दयेन, स्व्राध्याय-मण्दष्टस्य भघ्यक्षिण, पारढो-प्रौत सूरत-बरप्तम्बेन, भ... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/९
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2022-08-17T00:11:34Z
Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ (८) रोपे सति संस्कृतभाषायाः भारतीयानां निविरुख ऋपिप्रणीतसय भद्धर- सारियस्य, सनातनधरमै-पाणमृतानां वेदानां, भारतीयसंस्कृतेः च अपि भरस॑- शयं नाद एव भवेत् । एवं जा... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१०
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Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ विषय-सूची 1 विषयः ` पृष्ठसंख्या अध्याय।। १ ( विदुपां मतानि) १ (अ) ' संस्कृतम् ` पत्रस्य पक सम्पाद्कीय-दिप्पणी। =» ^“ लेखन फादशम् " (मा) पं० कारीभ्रसादह्ाखिमषद्टोदयस... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/११
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ [२] ~ विषयः अध्यायः 1३ (“चस्ारः छक्रासः'* । कारविचारः। इक्ृस्च' धानोः (१५१२) रुपाणि । ( सस्ठन ऊटिन्यस्य भीपण रूपम् ) ` स्पर्राच्रणम् । चतुखकाराणां कः खाभः ? द्विवचन... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१३
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Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ {8} विपयः पृष्ठसंख्या (९) संस्कृतं जगतः भाषा न केवर पएदियायाः ! ” डा० लुरेणठः, संस्कृतविमागाध्यक्ष, पैरिसविद्वविदयालयः। १६० चत्वारि सूत्राणि । १६३ चातप्रद्यया... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१२
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Srkris
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/* अपरिष्कृतम् */ [१९] (५ विधयः प्रएठरुख्या अध्याय । ५ १५२ “* विसर्मादहोनम् '› (भ्विष्यवाणयै 1} क नृणां विदुषां च मतानि । १५४ (१) माननीय भी जवादर्टछ नेह खः, भारत-प्रधानमत्रेणः । + (२) हि... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१५
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/* अपरिष्कृतम् */ (२) तेषां विपये यथास्थानं निवेदाथेप्यामः। दाधैकालात् देशस्य विद्वद्धिः सद पत्रव्थवहारः कुतः अस्माभिः । तेपां पत्राणां अंल्ञाः खेखाः चा अत्र दयन्त, येन ददं ज्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१६
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Srkris
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/* अपरिष्कृतम् */ (३) ऽऽगसासद्धस्तविश्वविधाठयस्थापकसमितितरन्निणः श्री र्थाम- कुमापसहटस्य । तच्च अथमो चदति- "“ पठने -सौकरय्याय विच्छिश्नपदानां सादाय्यं क्षञ्जाथते । समस्तः पदै... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१७
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/* अपरिष्कृतम् */ ८) गम्भीरङेखेषु कवितासु च हारदैव्यक्तीकरणाय तद्ावदयकता- महमनुभवामि । अजान्थेरापे विदद्धिः स्वविचारो ग्यक्तीकरणीयो यत्संस्कृतभापा कीदृशी स्यात् । रू < < 9 (अ) स... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१८
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/* अपरिष्कृतम् */ (५) कामये यदस्मिन् पत्रे भरद्धि लिषितं तस्सर्धं समीचीनम् । सन्धिस्तु केव विवक्चायामेव विध्यते, न स सर्धज् मावूयकः सन्धिम्तु हिन्दीभाषायां आड्ग्टमापायामपि... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१९
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/* अपरिष्कृतम् */ (द) (त ~ लकास्पका भवात । (२) समासविषये पद् च्छद पूचकटे खनेन न काठिन्यं भविप्यति। यथा- “ पर्वत-शिखर-स्थित-कुखुम-सखञ्चयः ° इति तु स्पष्टतरं भवति ङेखनम् । अतः सवै्न सम... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/२०
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/* अपरिष्कृतम् */ ७) ( द) सथतन्न स्वतन्त्र भ्र प० माघचाचार्यश्यं पत्रम्, मोलेभ्वर २ मादंवाडा, जरमनास्तखवर चिष्डिद्न, ५ चे माला वभ्वहं न०२ सेधायाम् ता २५--२-४८ श्रीमन्तो माननीया, भ... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/२१
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/* अपरिष्कृतम् */ (<) तेषां ञ्चटिति ज्ञानं भविप्यति । इत्थं संस्कृतं सत्वरं व्यवहारभापा म्िप्यति सर्वेषाम् । ये च उदंशव्दा आंग्टभापाशन्दरा अस्माकं भाषासु मि!रता व्यवदहियन्ते त... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/२२
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/* अपरिष्कृतम् */ (> (51२1 ४९ , सिद्धान्त फामुदी = ८१८ ) सूष्रस्य वखेन । पक यचने सु चटवचनस्यं पयोग भवात यथा ' प० रामनाथमहाद्याः माचि स. सन्ति ! एवमेव द्विवयनस्याने अपि भवेत् 1 >) चहुवीहिसमा... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/२३
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/* अपरिष्कृतम् */ (१०) अन्थः प्राप्यते । अनन्तरं दानैः शनेः संस्कृतस्य स्रंदारूपाणे विश्वे पसुतानि. यानि अदय अवखोक्यन्ते । यद् भारतसाग्रा्यं विदेषतया सास्कृतिक-विजय-पण-साग्रा... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/२४
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/* अपरिष्कृतम् */ (६९) व्याकरणनियमान् निर्माय वै्ैकमापाततः उत्पन्नीकुतम्। वैषि भाषा देवानां मापा अतव स्वर्गीया, वास्तविकरूपेण फस्याणकरा, दोपराता च, परं टोकिकसंस्कुत मनुग्ये... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/२५
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/* अपरिष्कृतम् */ (९२) (वतमाने), ल्छर् (भविप्यकारे), कुड (भूतकारे), किङ् (चिध्याद ए अथात् विधि, आज्ञा, हेतुदेतुमद्धावे च ) भयुज्यमानेः काय प्रूणतया चितं शक्नोति । विश्वस्य अन्यासु स... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/२६
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/* अपरिष्कृतम् */ (९२ प्व २५ यर्पनिन्तरं भविप्याति यद्। संस्फृतष्य देके महीयान् श्रचारः मचिष्याति। यस्य सुघ्रस्य भय आद्रायः, “ व्याकरणानुसारं विसरगस्य यथास्यानं श्ािः तु भव... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/२७
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/* अपरिष्कृतम् */ (१४) विद्धद्धिः पं. खभापतिमदोदयेः। वस्तुतः स> विद्वांसः पकमताः खन्ति यत् 'खररुतमेन संस्कृतेन भवितन्यप् ` अन्यथा तत् कदएपि दयावहारिकी मापा राप्रूभापा च न भविप... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/२८
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/* अपरिष्कृतम् */ (५) सुधदिद्धवेदक्ष-महायिद्वान् पं. छातवलेकर महोदयस्य दाब्देषु ५ यर्डितरेव माषा ञुदथथ द्रायशित्तं क्तम्यं, यतत पण्डितर्व पस्कतभषा कटिनीकता । » प. सातवलेकर मदाद... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/२९
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/* अपरिष्कृतम् */ (शदे) दति भयतत् सुधारं क्तु न उद्यताः सन्ति । प्वं प्रपि सति अस्य कः अर्थ; । ते विभ्यति यत् यदि ते अमुं मवदयक आपि सुधार करिष्यन्ति तद्रा कश्चित् अपि घेद्ान् ते... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/३०
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/* अपरिष्कृतम् */ (१७) कायैः ( २) टोक्षिकपेस्फृते मधिकाद धिकं ५ ककाराणां स्थत खद्, छट, खोर्, खडः, छिंडः ( विधिः) रकारण प्रयोगः स्यात् परं चतुखकाराणां आपै प्रयोगः मतुं अति । ( ३ ) द्विव... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/३१
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/* अपरिष्कृतम् */ (१८) अदशनं स्यात् अर्थाद् व्याकरणाजुसारं तस्य भक्तिः तु भवेद् परं छोपः मन्येत 1 अमेन बणैनातीतं सारट्थं संस्छते आगमिष्यति, तथा सस्रृतं भूयः अपि अस्य देहस्य जन... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/३२
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/* अपरिष्कृतम् */ अ्व्यातण{ > सन्धिः। “५ असंहिता वाक्ये ” दं छिखितं गताध्याये यत् ^ वाक्येषु सदिता विवक्षां अवेक्षते" अर्थात् वाक्येषु न्धिः क्रियेत न वा । सर्वेः विद्धद्धिः दय... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/३३
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/* अपरिष्कृतम् */ (२०) इमाति सत्राणि 'संज्ञा-प्रकस्णे" विदन्ते प्रथमे तु तदरिमन् प्रकरणे चरणानां अक्षराणां वा वणनं विद्यते । वणानां समूहः कदा पदम्" भवति इदं अपि दीयते तच्न । पद ख... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/३४
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/* अपरिष्कृतम् */ (२९) घा मवति! अनन्तरं सुवन्त-पक्तरणम्' दीयते । कथं प्रातिपदि- कात्पदस्य निमाणं भवति, मस्मिन् प्रकरणे इदं वार्णेतं विदयते। अनन्तरे "समस्तश्रङृरणम्' दीयते । यत्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/३५
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/* अपरिष्कृतम् */ (२२) विद्यते अत्तएव तत्र एकपदत्वं तिष्ठति । व्यपेक्षारूपसामथ्ये त॒ समासः न॒ भवति, पद्ससूहै पका्थवोधकत्वस्य समभावात्। अतएच वाक्ये अनेकपद्!नि तिष्ठन्ति, परं... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/३६
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/* अपरिष्कृतम् */ (९१) अतुलमाण्डारः भग्नाषदोपद्पेण अद्य अपिं प्राप्यते, यः तस्य गस्य उच्चतम पदं च भ्रकटयत्ति 1 चिद्यायाः काश्चित् मपि दिभा- गः नास्ति यक्षिन् पुस्तकं पुस्तशानि... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/३७
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/* अपरिष्कृतम् */ (२४) तरिपन्काले कीटक सस्कृतं प्रचलितं पण्डितेः। कादम्बरीतः एकं उद्धरणं दीयते-- ( पृष्ठसंख्या २१४ तः २१९ पर्थन्तम् ) ¢ प्रभातायां च निशीथिन्यां खमुस्थाय समभ्यनु... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/३८
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/* अपरिष्कृतम् */ (२५) प्जवितुरद्रमाचिरूढरस्पावाश्िए. सहराजदुते. "पवं मृगपति पव वराह, प्व महिष , पवं शरभ. पदं दारण इति तमेष मृगया वच्रत्तान्तमुद्यारयन् स्यभयनमाजगाम। उत्तीय च वस... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/३९
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/* अपरिष्कृतम् */ (रद) वितीय उद्धरणं गीतातः ( शां करभाष्यम् ) दौयते- '“अज्ञोच्यानन्वश्चोचस्त्वं ज्ञावादांशच भापसे 1 गताखूनगतासश्च नाचुसोचन्ति पण्डिताः ॥ १९१॥ व्याख्या--न श्लोच्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/४०
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/* अपरिष्कृतम् */ (२७) यद्शाच्यकथन, यच्च शाखाथैप्रकटनपाण्डिव्य तदेतद् दय तेजस्तिमिरवत्परस्परविरुद्ध नैश्षत्र स्थातुम्टौत्ि । अतो भवान् मूदढध प्व भवतति न तु पारुडत । तेद्यंव... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/४१
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/* अपरिष्कृतम् */ (३०) जायते, उच्यते, अयुञशोचः पदान सन्धिकारणात् शोके! जायत, उच्यत, अन्वश्चोचस् सन्धी भविष्यन्ति) यत्न वुघाः पण्डताः अपि बुर कुर्वन्ति, तत्र का कथा बालकानां प्रार... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/४२
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/* अपरिष्कृतम् */ (३१) तदा ख सन्धिः कि रूपः स्यात् तत् पव भं यथास्थानं निवेदयिष्यामि । देदे धातूपसर्गयोः सन्धिः सवन न अलक्त यथा- व्यवष्िताद् २।१।८९ अस्य उदादरणं दीयते- हरिभ्यां... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/४३
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/* अपरिष्कृतम् */ (२८) इत्यादयः दोषाः गुणाः दा स्वेन प्राप्यन्ते । एतादखायाः करन ` तायाः अन्यत् अपि कारणं आक्षि-छष्ष्यी नदति । वाक्येषु सन्धः प्रयोगः भापा-कारटिन्यं बद्धंयति । प... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/४४
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/* अपरिष्कृतम् */ मबराते । मूलग्छछकस्य अय पदच्खद् (२९) परं भाषा सरला सुयोधा च , तस्य अन्धस्य अयं महागुणः । परं तस्य न्छाकस्य रोका अवाकनीया 1 तत पाण्डित्यं तृ परचुरमात्रायां अवलाक... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/४५
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/* अपरिष्कृतम् */ (३०) जायते, उच्यते, अनुअशोचः पदानि सान्धिकारणात् शोको जायत्त, उच्यत, अन्वशोचस् सन्धौ भविष्यन्ति । यत्र बुघाः पणण्डताः आपि चदि कुवन्ति, तत्र का कथा वाकानां श्रा... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/४६
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/* अपरिष्कृतम् */ (३१) तद् स खन्धि पविः रूपैः स्यात् तद् एव मदं यथास्थानं निवेदयिष्यामि 1 वेदे धातुपक््गयोः सन्धिः सर्वव न अवलेक्यते यथा- व्यवहिताश्च १।१।८२ अस्य उदाहरणं दोयत... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/४७
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/* अपरिष्कृतम् */ (रर) खम्पणं विश्वासं" कर्ति, यः पृणरूपेण भारतोयो भारतस्य सद्यं खरूपं पयति, यस्मिन् वतेमानजगतो वातावरण नाल्पपमापे प्रभाव उत्पादयति, यश्च पव॑त इवाचलः, समुद्र श्व... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/४८
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/* अपरिष्कृतम् */ (३९३) > "हिन्दीवन्त दृस्थं प्रचारयन्ति येन परिक्लायते यद्राए्माषात्व- नर्बाणि सरकारायत्तम् 1 तेषां वुद्धो नैतसाधशाक्ते यद् रा्ूमापा- निर्माण प्रजायन्त, भाषय... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/४९
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/* अपरिष्कृतम् */ (३४६) 1 पूर्वं कदाचिन्माननीय श्री काटजूमहोदयेरकारि । पतेन तेषां संस्रृतस्य राष्रभापत्वाय कीट उत्कटाभिलप। इति निचि कस्पं क्षायते! श्री दुर्गम्बा तेषाभिपामभिल... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/५०
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/* अपरिष्कृतम् */ (३१) विभिन्नपान्तनिवग्िनां भारतीयानामेक्यं सिद्धति सखा तु ताभिः संरकृतमापातः एव प्राप्ता न तु नान्यतः । उन्तरीय भारतीयाः दिन्दीमापां राष्भाषापदासीनां कतुं... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/५१
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/* अपरिष्कृतम् */ (३६) सकरस्य भरहारयजाधिरयाजस्य समुखे मदद्धषिष्यत् तथा नगरस्य तन्निवास्जनतायाश्चापि ससुखे मह च्छपूण मविष्यद्स्ति 1 भारत- स्य नवनिर्माणि जयपुरस्य महच्यपूर्ण... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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/* अपरिष्कृतम् */ (३७) तन्तु सर अत्ति, पर तत॒ भपि जां अस्ति सखन्धिकारणात्। इद् कथ्यत विदद्धि, यत् हतिद्ासस्यकव्थितमध्यकाले प्रायं सवेषु देशेषु तत्तत् देशीया भाषा जाथ्खा अवसे... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/५३
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/* अपरिष्कृतम् */ (३८) अत्र करियारूपेण (भुतकाखनिशटायां, तयते । इदं वाक्यं आस्त "संसछृतराणएरमापात्वसम्बन्धि्तः विचाराः अधीताः पवदद् तु परते अपि आगच्छति तथा सव अववोघयितुं शक्नुव... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/५४
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/* अपरिष्कृतम् */ (३९) पतत् पतर यथा पतद्धाकतम् . 9९ पत् „ पतञक्नानम् ५१ पतल , = पतद्टिखतम् १8 एतद् ), पतडमरः शिसगेष्य ओ „ शिषोऽन्यः (२) र् „ सर्पिरवयवः ४ च् „ धचुष्कपालम् 19 २ ५ 9 दरि... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/५५
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/* अपरिष्कृतम् */ (8०) वा न ग्णन्तु कटिनतायाः उताद्नाय । वाक्येषु- सन्धि-करणे कः खाभः अहं अद्यावधि न जानामि । यदि पण्डिताः वस्तुतः इच्छन्ति यत् सखंस्छृतं केवर तेषां भाषा तिष्ठेत्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/५६
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/* अपरिष्कृतम् */ ४९ विक्चेप-नाम अपि 'विरूपतां' गच्छति । द्द् विश्वस्य सन्यास भाषासु वितु न अहंति ! न्यूनातिन्यूनं नामानि तु खस्पे तिष्ठन्तु । "विज्ेपसंक्ञानाम्' विपये अर्थीत्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/५७
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/* अपरिष्कृतम् */ शे एवमेव अन्यानि उदाहरणानि अपि मध्य-कालिक-वतेमान कालिक संस्कृतस्य । पाठकाः तानि उद्धरणानि पठेयुः, तथा स्वयमेव अचुमवेयुः यत्त तानि अवाधरूपेण पितुं शक्युवान्त... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/५८
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/* अपरिष्कृतम् */ (७५) उत्पद्यते 1 नषि, नदि अथस्य अनर्थः भवाति, यथा सत्र मवलोक्य ते। मतपव “नमः अद्तेतस्षायः कथनीयं आसीत्, येन भ्रमस्य आशङ्का अपिन भवेत् । दवमेव अन्यस्थछेषु अपि र्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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/* अपरिष्कृतम् */ (8२) पकपदे तत् भवत परं चाक्ये नियमतः वारितः स्यात्. इदानीम् । संस्कृतस्य कारिन्यकारणात् तस्य परमः दाख: सञ्जातः । यादे विदांसः अस्या दिशि ध्यानं न पदास्यन्ति... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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/* अपरिष्कृतम् */ (४३) द्या कार्यं करणीयं एव । उयावहारिकतां विहाय कथं कव्याणं भविष्यति मदं न जानामि । द्वितीये वाक्येषु वस्तुतः सान्धि- कारणात् न सोमा वद्धैयत्ति न लघुत्वं मागच्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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/* अपरिष्कृतम् */ (४४) एवमेव अन्यानि उदाहरणानि अपि. मध्य-कालिक-चतेमान कालिक संस्कृतस्य । पाठकाः तानि उद्धरणानि पठेयुः, तथा स्वयमेव अच्चभवेयुः यत्ते तानि अवाधरूपेण पठितुं शक्चुव... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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/* अपरिष्कृतम् */ (६५) उत्प्यते । नदि, नहि अथस्य अनर्थः भवात, यथा थत्र भवदोक्य- ते। अतएव नमः गद्धंततच्वाय' कथनीय आसीत्, येन भ्रमस्य आशङ्का अपि ने भवेद् । एवमेव अन्यस्थदठेपु अपि अद्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/६३
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/* अपरिष्कृतम् */ (88) अवाधरूपेण संस्कतभाषणं कक्तं समर्थाः न भवन्ति स्म । सन्धियुते मापणे एका अन्या अपि वाघा आपतति। पूर्वपदस्य रूप परपदस्यरूपात् निर्णीतं मवति यथा “भार तीयो जनः" "... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/६४
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/* अपरिष्कृतम् */ 8७) संस्कतं परमेन विना न आगन्तुं श्क्नोति । ददं सस्छेतस्य वणेनातीताया करिनंतायाः एकं उषटव् प्रमाणम् । ददर सस्छतं यत् सघः द्ी्ते कः वराकः यबाधरूपेण पठित, भावे... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/६५
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/* अपरिष्कृतम् */ (४८) इत्यथः । जनाधिपा इद्यावि्या चत्तिभेदेन वहुवचनं न त्वात्मभेदन । तद्भेदे प्रमाणाभावात् । नन्वाल्ेदे प्रमाणाभाव इति यदुक्तं नदतिसादसं, आत्मतच्चे विचायेमा... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/६६
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/* अपरिष्कृतम् */ (४९) अहि एव्र। यथा जात्रति तिष्ठतः एव तव सखम्रलम्धन्धः खे तिष्ठतः पव सुपुसम्बन्धः खुप तित पत्रे जाप्रत्सम्बन्धेः तथागतदेहे सिवः एव एतद्द् खम्बन्धः पतदहे तिष्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/६७
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/* अपरिष्कृतम् */ (५०) भिन्नः भवति व्यक्तीनां भिन्नव्वाद्वादिवच, मात्मा भिन्नः व भवति प्रतिव्यक्ताहंभरल्ययमेदात् घटादिवत् व्यादि अञ्ुमान च प्रमाणम् । (अदितिः देवाः गन्धर्व... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/६८
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/* अपरिष्कृतम् */ (५१) अनेन वालकः करं सुधाः अपि कदापि कदापि श्रमे पतत्ति यत् पूर्वच्छरः कः परस्वरः कः १ पदानां वास्तविकं रूपं यपि शतं न मदति । ते वराकाः पदानां खरूपनिण॑ये व्यथं सम... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/६९
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/* अपरिष्कृतम् */ ५५२) संरखतया बास्यन्ति, अतपव विस्व्त-व्यास्यायाः आवदयकता न प्रतीयते । इयं आपत्ति. तु पदे आपतति, परं याक्ये विविध- पदानां सन्धेः अपि दटश्शी आपात्तिः आपताति येन पद... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/७०
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/* अपरिष्कृतम् */ (५३) श्ुति-स्परति-मयविदेतत्वात्, खधर्मत्व-यचुपपत्ते , विादितत्याग- अचेर्देतकरणदोपौ । इद मतं आत्त देशस्य मह्य विदुषः पं श्रीपाद दामोदर सातवलेकरस्य तथा अल्येषप... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/७१
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/* अपरिष्कृतम् */ (५४) मद्यैः आनीतम् 1 साकं ध्मान लारम्। “वेदः आखः धर्ममूलम् ....-. » ( मच अध्याय रछो° ६) व्याख्या-- चेद्: कग्यजुःलामाथरवैरुश्चणः धमं खतः प्रमाणम्, अन्यानि सर्वांणि... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/७२
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/* अपरिष्कृतम् */ ५५2 रोकयन्ते 1 पर आद्देस्नोतः तु वैदिक भाषा एव् । तस्याः धोरतम पतने अवलोक्य दो दूयते अस्माक चेतः। यथा नखि ब्रह्माण्डस्य मृस्नोत , यस्माकं निखिर-सुख साधनस्य सादि... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/७३
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/* अपरिष्कृतम् */ (षदे) अज्ञभ्यः ग्रन्थिनः श्रेष्ठाः अ्न्थिभ्यः धारिणः वराः। धारिभ्यः ज्ञानिनः श्रेष्ठाः ज्ञानिभ्यः व्यवसायिनः ॥ (मल० अ. १२, छो. -१०३ पदच्छेदपूवेकः ) व्याख्या--अ्थ... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/७४
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/* अपरिष्कृतम् */ (५७) पदच्छेदः- स परि अगात् श्ुघ्रम् सकायम् सव्रणम् अस्ना धिरम् शुद्धम् भपापविद्धम् , कवि. मनीषी परिभू स्वयम्भूः याथा तथ्यत अथीन् चि अदधात् वरश्वततीभ्य... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/७५
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/* अपरिष्कृतम् */ (५८) अतएव ˆ अथेमावनम् ' अर्थात् "अर्थक्ञानम्' सएवदयकम्। यथ- नेन दश्वरप्राप्तिः अपि सम्भवाति न अन्यप्रकारेण यः सन्धिः गद पद्यमयः वक््यपु क्रिथत स अनैथंकरः तस्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/७६
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/* अपरिष्कृतम् */ (५२) भापि भाहताः स्युः । न्यूनातिन्यूनं भारतस्य सर्वे विर्रांसः पकती भूय अस्मिन्. विषये गम्भीरेतमे विचर टयः । फद्ायित् मार सौयाविद्या-प्रचारसमितिः, आगरनगरम... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/७७
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/* अपरिष्कृतम् */ (६०) भवेत् वाक्ये । अधिकपद्ानां सन्धिः वाक्ये नियमतः वारितः स्यात् । हितीयः निश्चयः अये स्यात् यत् केवरं चतुःसरल सधन्यः प्रचाकिताः स्युः यथा, (१) गतः+अस्मि =... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/७८
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/* अपरिष्कृतम् */ ८११) यत् सन्धिविषये उपयुंक्त-नियमाः स्वीरृताः स्युः, तद्¶ पराचीन सद्ियस्य र भविप्यति १ परं एतादद्रा शङ्का व्यर्था । भविष्य रके यद्! यद्। धरचौचसदित्यत्य प्र... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/७९
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/* अपरिष्कृतम् */ (०) उच्चारणं वा भवेत् । व्यवहारभापा कघुपदुयुक्ता भवितु अहत । ये सस्कृतं देशस्य व्यवहारभापां कामयन्ते, ये इच्छन्तं यत् तत् राष्टूभापा राजभपरा च भवेत् पूर्व... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/८०
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/* अपरिष्कृतम् */ (९३) ५५... ... -. यादे वेदाङ्गानां आपे वेदत्वं उरीरत्य अध्ययनं निीषद्धे मतं स्यात्, तदा संसारस्य सर्वा. भाषाः तत्कृते भनध्यय- नीयाः सेत्स्यन्ति, यतः ता. सर्वाः चेदमाप... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/८१
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/* अपरिष्कृतम् */ (६४) यतः हि संस्छृतं सरं मवेत् चेत्, तदा तस्य प्रचारः भविप्यति पच, सच जनाः संस्कृते पटिप्यन्ति एच । एतादरः पुरुप; इश्वरः आपे वन्द्ाकतः अय अवलोक्यते 1 पर महा पपतज... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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/* अपरिष्कृतम् */ (&भ)) अतप्य 'भसेषिता-वक्ये' मस्म भूलमन्ः तिषठेत्। असिन् प्व मनुष्याणां कल्याणं निहितं विध्यते । वस्तुतः इभ्डराक्षा इर्य युगधमेः अयम् } श्यं, हेश्यरेच्छा; देश्व... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/८३
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/* अपरिष्कृतम् */ (8६) अ्याप्यः ३ ; चत्वारः ठकाराः संस्कत -व्याकरणाजुसारं १० रकार सन्ति कालक्ञानाय ^ सद्यतन-अनद्तन भेदे अवदम्ब्य दमे कुकााः विद्यन्ते । अतत - तायाः रत्नैः अन्त्यस्य... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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/* अपरिष्कृतम् */ (९७) ८४) "चट्" "र् श्चेपे च ' (४४१) व्या्या-भविष्यद््थात् धातोः छर्. स्यात् क्रियाथायां क्रियायां सत्यां मसत्यां च । ८५ > ' लोट्" छोर च ' (४४२) व्याख्या-विध, निमन्ञ्र... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/८५
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/* अपरिष्कृतम् */ (६८) रिकदण्या च तस्य विभागः भवति । अनेन सिद्धशाते यत् तव प्व करणीयं यत् अस्माकं सोविध्याय भवेत् । वयं केवर कव्पनां कुमे यत् तत्कार" वतमानः यस्मिन् “ बतपानत्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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/* अपरिष्कृतम् */ (द) (१ >) वर्तमाने खर् (२) तकाले खड् दुङ् वा (३) भविष्यत्काठे दर् (४) विध्यादिषु देवुदेत॒मद्धाबे च लिह अरमाकं मतेन सह दे दास्य वंदवः विद्वांसः स्मरताः सन्ति ते आप... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/८७
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/* अपरिष्कृतम् */ (७०) अद्धै-धातवः उमयपदी मन्येरन् तदा एतेषां सर्वैपां धातूनां रूपाणि प्रायः २६ टक्षक्रानि भविष्यन्ति । एकस्य धातोः अपि यदा सवाणि प्रायः २५१२ रूपाणि कश्चित् प... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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d405w5yut4a226r14j98l389y3v0oz3
पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/८८
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/* अपरिष्कृतम् */ (७१) परस्मेपदे (द् ) आत्मनेपदे करिष्यति, करिप्यत,करिष्यन्ति ! करिष्यते,करिष्येते, करि ष्यन्ते। करिष्यसि,कारिप्यथ , करिष्यथ । कारिप्यसे,करिप्ये थे, करिष्यध्वे। कर... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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e5nj5fi3amm0kxr1i4u4yioeanbk9e6
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/* अपरिष्कृतम् */ (७२) परस्मैपदे (लृड्) आत्मनेपदे सकरिप्यत्, अकरिष्यताम्, करिष्यन् अकारिष्यत , अकरिष्ये- ताम्, अकारेष्यन्त) अकरिष्यः, कार्यम्, अकारि्यत, अकाशप्यथाः, अकरिष्ये-... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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/* अपरिष्कृतम् */ ८७३> ४ ( लद) कारिष्यते कारिपष्येते- कारिप्यन्ते- करिष्यते, कारेष्येते, करिष्यन्ते कारिष्यथे- कारिप्येथे- कारिष्यध्वे- करिष्यथ, करिष्येथे, करिष्यष्वे कारिष्ये- का... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/९१
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/* अपरिष्कृतम् */ (७४) छप, रपीयास्ताम्, कुपीरन् कृपीष्ठाः, कूषीयास्यम् , कुपीट्वम् कुपीय, कृपीचहि, कुषीमहि सूचना-- आत्मनेपदे समानरूपणि भवन्ति । अकारि, अकारिषाताम्, अकारिषत अक... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/९२
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/* अपरिष्कृतम् */ (७५) कारयन्ते कारेथध्वे कारयाम कारयाश्चकुः कार्यास्चक्छ कारयाञ्चकृम कारयांचक्रः कारर्याचक्र कारयांचकुम कारयाम्बभूवुः कारयाम्बभूव कारयाम्वभूविम कार्या... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/९३
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/* अपरिष्कृतम् */ कारयाञ्चक्रे, कारयाञ्चंृषे,. कारयाश्चके, कारथांचक्रे कारयांचकुपे कारयांचकरे, कार्यास्वभूवः कारयाम्बशूविथ, कारयास्वभ्रूवः कारयावभूव, कारयांवभूविंथ, कारयां... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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/* अपरिष्कृतम् */ (७७) (दुद्) . क रपिष्यति, कारयिप्यतः कारयिष्यन्ति कारयिप्यसि, कारयिष्यथ., कारयिष्यथ कारयिष्यामि, करयिष्यावः, कारयिष्यामः आत्मनेपदे कारयिष्यते, कारयिष्येते, कार... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/९५
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126119
343728
2022-08-17T00:22:55Z
Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ (७८) ( चिङ् ) परस्मैपदे कारयेत्, कारयेताम्, कारयेयुः कारेः, कारयेतम्, ~ कारगेत कारयेयम्, कारयेव, कारयेम आत्मनेपदे कारयेत, कारयेयाताम्, कार्येरन् कारयेयाः,... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/९६
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ ८७९) ( च्ड ) परस्मैपदे अकारायेधष्यत्, शकारयिप्यताम्, अकारयिष्यन् अकारययिप्य , सकारयिष्यतम्, अकारयिष्यते अकारयिष्यस्, अकारयिष्याव, अकारयिष्याम आत्मनेपदे म... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/९७
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ कारिता; कारितासे, कारिताहे, कारयिता, कारयिता, कारयितादे, कारिष्यते, कारिप्यये, कारिप्ये, कारयिष्यते, -कारयिष्यसे, कारयिष्ये, कायनाम्ः, कायंस्व, कर्य, अकारयत, अकी... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/९८
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/* अपरिष्कृतम् */ ( माशीलिंड) कारिपीट, कारिपीयास्ताम्, कारिपष्टिाः, कारिपायास्याम्, कारिपीय, कारिपवाह, कारयिपीए, कारयिषीयास्ताम्, कारयिपोरन् । कारयिषष्ठा कारयिषीयास्थाम् कारयि... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/९९
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ (८२) 'कृ' धातोः सन् प्रत्ययेकृते रूपाणि । (लट् ) चिकर्षितः, चिकीर्पति, चिकीर्पसि, चिकीपंथः, चिकीर्पामि, चिकीर्षावः, चिचिकीर्प, चिचिकीर्षिय, चिचिकीपं, (लुट्) चिकीर्पि... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१००
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ चिकोर्पेत्, चिकीर्ये चिकीर्पेयम्, चिकोर्ध्यात्, चिकीयः, चिकीयांसम्, (८३) (लिहू ) चिकीपैताम्, चिकीर्पेतम्, चिकीर्पेव, ( आशीलिंड्) चिकीप्यांस्ताम्, चिकीयस्तम्, चिकीप... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१०१
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ (८४) एवमेव परसवर्णविकल्पे अनुस्खा विशिष्टस्य रूपाणि । चिकीर्षाम्बभूवे, चिकीर्षाम्बभूवाते, चिकर्षािम्बभूविरे । चिकीर्षाम्चभूविषे, चिकीर्षांम्वभूविवाथे, चिक... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१०२
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ चिकीष्येत, चिकी येथाः, चिकीर्ष्णेय, चिकीर्पिपीट, चिकीर्पिपीष्ठाः, चिकीर्पिपीय, (८५) (लिड्) चिकीर्ष्णेयाताम्, चिकीष्येयाथाम्, चिकीष्यवहि, (आशीलिं) चिकीर्षिषीयास्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१०३
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/* अपरिष्कृतम् */ (८६) एवमेव परसवर्णविकल्पपक्षे अनुस्वार विशिष्टस्य रूपाणि । चेक्रीयाम्बभूव, चेक्रयास्वभूविथ, चेक्रीयाम्यभूव, चेक्रीयाम्चभूवतुः, चेक्रीयाम्बभूवुः चेक्रयाम्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१०४
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ चेक्रीयेत, चेत्रीयेथा, चेक्रीयेय, चेकी यिपीष्ट, चेक्रोयिषष्ठाः, चेक्रीयिषीय, (63) (लिड ) चेक्रयेयाताम्, चेक्रीयेयाथाम्, चेक्रयेवहि, ( आशीलिंद ) चेकीयिपोयास्ताम्, चेक... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१०५
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ ( Cc ) (लिंदू ) चेक्रीयांञ्चकाते, चेक्रीयाञ्चक्रे, चेक्रीयाञ्चक्रिरे चेक्रीयाञ्चकृषे, चेक्रीयाञ्चकाथे, चेक्रीयाञ्चकृढ़वे चेक्रीयाञ्चक्रे, चेक्रीयाञ्चकृवहे चे... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१०६
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ अचेक्रीय्यत, अवेकय्यिथाः, अचेकीय्ये, चेक्रीय्येत, चेक्रीय्येथाः, चेक्रांथ्येय, (८९) (लड्) अचेकीय्येताम्, अचेक्रीय्येथाम्, अचेक्रीय्यायहि, लिहू ) चेकीय्येयाताम्,... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१०७
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ (९० ) (आ) चरिकरीति, चरिकर्त्ति, चरिकृतः, चरिकरीषि, चरिकर्षि, चरिकृथः, चरिकरीमि, चरिकर्मि, चरिकृवः, (इ) चरीकरीति, चराकर्त्ति, चरीकृतः, चरीकरीषि, चरीकर्षि, चरीकृथः, चरीकर... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१०८
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ चरिकरीता, चरीकरितारौ, चरीकरितालि, चरीकरितास्थ, चरीकरितास्मि, चरीकरितास्वः, (ऌद्) चर्करिष्यति, चर्करिष्यत चरिष्यसि, चर्करिष्यथ', चर्करिष्यामि, चर्करिष्याव, चरिक... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१०९
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ अचर्करीत्- अचर्क', अचर्करी :- अचर्कः, अचर्करम्, अचरिकरीत्- अचरिकः, अचरिकरी:- अचरिकः, अचरिकरम्, अचरीकरीत्- अचरीक, अचरीकरी:- अचरीक, अचरीकरम्, चयात्, चर्कयाः, चयासम्, चरिकृ... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/११०
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ चरीकृयात्, चरीकृया, चरीकृयासम्, चर्कियात्. चर्किया, चर्क्रियासम्, चरिनियाद, चरिक्रिया, चरिक्रियासम्, चरीकियाद, चरीक्रिया, चरीक्रियासम्, अचर्कारीत, अचर्कारी , अचर... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१११
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ (लुङ्) अचर्करिष्यव, अचर्करिप्यताम्, अचर्करिष्यः, अचर्करिष्यम्, अचारकरिष्यत्, अचरिकरिष्य, (९४) चक्रयते चक्रय से चये अचर्करिष्यतम्, अचर्करिष्याव, अचरिकरिष्यताम्,... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/११२
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ एवमेव परसवर्णविकल्पपक्षे अनुस्वारविशिष्टस्य रूपाणि | तथा भू-अस्, इत्यनयो अनुप्रयोगे रूपाणि योध्यानि (लुटु) चर्कारिता, चर्कारितारौ, चर्कारितासाथे, चकरितासे, चर... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/११३
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ चक्रयताम्, चयख, चक्रये, अचयत, अचक्रयथाः, अचये, चक्रयेत, चयेथाः, चयेय, (९६) ( लोट् ) चयेताम्, चयेथाम, चक्रयाव है, ( लंड) अवक्रयेताम्, अचयेथाम्, अवयावहि, चर्कारि, चर्कारिथाः,... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/११४
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ सूचना- ( १ ) लट्, लट्, लोट्, लड, लिहू ( आशी ) लुडू, लड् लकारेषु ( आर्धधातुके) चिण्यद्भाय इटू-विकल्पपक्षे तथा रिक्, रीक् आगमे ( सार्वधातुके) रिक, रीफ् आागमे विविधानि रूपाणि भ... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/११५
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ (९८) कृता । कृतवान्, कृतवत्, कृतवती । अनेन प्रकारेण भूतकालबोधने निष्ठायाः त्रिलिङ्गेषु १४४ रूपाणि भविष्यन्ति । ( ५ ) सूचना- शत्रूशानचोः प्रयोगः कालवोधने अनेन सूत्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/११६
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ (९९) संख्याकानि कण्ठस्थी कर्तुं शक्नोति ? कश्चित् पुरुषः ईंडशः भवेत् चेत् तदा एकेन द्वाभ्यां वा भवति किम् ? द्वितीयं सर्वे धातवः १९४४ संख्याकाः सन्ति । यदि एतेषा... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/११७
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ (१००) हितं चिन्तयन्ति, ये ऋषि-मुनि-परमात्मप्रदत्तज्ञान-विज्ञानं रक्षितुं इच्छन्ति । यदि मानवाः विशेषतया भारतीयाः स्वकर्त्तव्य- पालनं न करिष्यन्ति, तदा काचित् द... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/११८
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ (१०१) लोके न जयति । सत्यं एव विजयते । संस्कृतस्य द्वार कस्मै चित् पुरुषाय भवरुद्धं न स्यात् । संस्कृत सरल स्यात् येन भूयः भारतस्य जनभाषा, राष्ट्रभाषा तथा विश्वस्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/११९
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ (१०२) आवश्यकता ! - लम्व्य वर्त्तमान-भूत-भविष्यत्कालविभाजनस्य नास्ति । विश्वस्य कस्याञ्चित् अपि भाषायां अयं भेद न विद्यते । कालस्वरूपं अपि निर्णीतं अस्माभिः | काल... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१२०
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ (१०३) द्विवचनस्य निस्सारणे कः लाभः ? पूर्व इदं अपि निवेदितं अस्माभिः सङ्केतमात्रेण यत् द्विवचनस्य लौकिकमंस्कृते आवश्यकता नास्ति । वस्तुतः एकं अनेकं वा भेदं अवल... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१२१
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ (१०४) ( १ ) तस्य वाचकः प्रणवः, ( २ ) तज्जपस्तदर्थभावनम्, सन्धि- ( ३ ) ततः प्रत्यक्चेतनाधिगमोऽप्यन्तरायाभावश्च । (पा. यो. द. समाधिपाद: २७-२९ सूत्राणि ) वैदिक साहित्ये अपि 'वा... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१२२
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/* अपरिष्कृतम् */ (१०५) "बहुलं छन्दसि " ११४१३९, ७३, ७६ इत्यादि । वैदिकभापातः विश्वस्य सर्वाः भाषा: निस्सृताः अतपव सम्पूर्ण वैदिकभाषाशानं आवश्यकम्। अनेन कारणेन अपि वैदिकव्याकरणं शब... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१२३
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ (१०६) अस्ति यत् शनैः शनैः वेदज्ञानस्य सर्वथा लोप: स्यात् । महाश्चर्य- स्य इयं वार्ता यत् द्वितीय महायुद्धस्य पूर्व जर्मनदेशे सायणा- चार्यस्य ऋग्वेदमाप्यं मिलति... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१२४
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/* अपरिष्कृतम् */ (१०७) संशोधनं कुर्वन्तु । लौकिकसंस्कृतभवनस्य मूलाधारा मूलस्त- स्माः स्वरूपे तिष्ठन्तु, परं यत्रतत्र भग्नांशाः ते दूर करणीयाः, भवनस्य दृढीकरणाय नवीनाः निर्माप... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१२५
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ (१०८) नवीनजीवनं प्रदास्यन्ति । अत्र एकं उदाहरणमपि पुनः प्रदीयते प्रचलित संस्कृतस्य, येन अस्माकं निवेदनं सुस्पष्टं स्यात् । अहं वारं वारं निवेदयामि यत् प्रचलित... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१२६
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ (१०९) लखनऊ नगरे आचार्य नरेन्द्रदेवेनोक्तमासीत् यद्भारतस्य संस्कृ तारेशियाया भाषा अध्ययनीया यतस्ताप्नु प्राचीनाः सांस्कृत. ग्रन्था अनूदिताः प्राप्यन्ते । गत... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१२७
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ (११०) वङ्गायुक्तेषु सर्वेषु प्रान्तेषु संस्कृतराष्ट्रभाषात्वपक्षपातिनां प्राचुर्यम् । अत्रापवादा न गण्यन्ते । अस्यामवस्थायां हिन्द्या राष्ट्रभाषात्व- प्र... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१२८
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/* अपरिष्कृतम् */ (१११) वा चिन्तयन्ति न कस्याश्चिद् विदेशीयायाः संस्कृतेर्वा भाषायाः । भारतीयानां विचारे तु तत्तद्देशवासिनां धर्मसम्प्रदायसंस्कृति- यथा तेषां दृष्टौ सम्मानमर... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१२९
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/* अपरिष्कृतम् */ (११२) परभाषा संस्कृत्यादिग्रहणे केचन भीता भारतीयाः स्वभाषा- संस्कृति कृत्य मनुचिन्तयन्ति । एतादृशं चिन्तनं भयानकमज्ञानं तेषां संस्कृतशक्तौ प्रकट्यति । ते न व... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१३०
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/* अपरिष्कृतम् */ → ये नक्कन्दिवं संस्कृतस्य राष्ट्रभाषात्वाय यतन्ते । संस्कृतस्य प्रचा रणे तेषां महोदयानां महान् उद्योगः वर्त्तते । तेषां द्वे प्रतिज्ञे विद्येते - ( १ ) अस्यां... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१३१
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/* अपरिष्कृतम् */ (११४) सम्मतं विद्वद्भिः स्वीकृतं भविष्यति । सर्वैः विद्वद्भिः मन्यते यत् " वाक्येषु सन्धिः विवक्षां अपेक्षते " । इयं न्यूनातिन्यूनं सर्वमान्या स्थितिः । वाक्या... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१३२
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/* अपरिष्कृतम् */ (११५)) ! *3 प अनेन प्रकारेण संस्कृत वर्णनातीत काठिन्य सजातम् । यद्य संस्कृतभाषा केवल पुस्तकभाषा' जाता। संस्कृतं व्यवहारभाषा न अवलोक्यते । व्यवहारभाषायां तु एता- दृ... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१३३
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/* अपरिष्कृतम् */ (११६) " झलां जशोऽन्ते " ८ | २ | ३९ । (सू. सं. ८२) भारताद् " इति भवति । परं "भारताव" पदस्य 'भारतान्' अपि भवितुं अर्हति यदि उत्तरपदस्य म प्रथमवर्णः स्यात् । यरो नु नासिकेऽ नुनास... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१३४
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/* अपरिष्कृतम् */ (११७) कालप्रभावात् संस्कृतज्ञानां मूर्खत्वाद वा संस्कृतं केवलं पण्डिता- नां भाषा अभवत् जनभाषा स्वपदं विहाय, यदा शासकैः संस्कृत- साहित्यं येन केन प्रकारेण नष्टी... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१३५
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/* अपरिष्कृतम् */ (११८) तावव जीर्णोद्धारोपायः करणीयः । अद्य संस्कृतं मृतप्रायं इति 'कथ्यते, मृतं न स्यात् कदाचित् तत् एव करणीयम्। संस्कृतभविष्यं भवतां हस्ते विद्यते । संस्कृतस्य... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१३६
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/* अपरिष्कृतम् */ 4 एव देयम् | यदि कश्चित् पुरुषः " जवाहरलाल इति कथ्यते तदा " जवाहरलालो वदति " जवाहरलालः वदति " वा अस्य कथनस्य का आवश्यकता ? जवाहरलाल वदति " तत् एव कथनीयम् " विसगांदर्शनम्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१३७
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/* अपरिष्कृतम् */ (१२०) आवश्यकः यत् यत्र समासे व्यक्तिस्थानवाचक संज्ञाः (प्रातिपदिक- रूपेण ) स्युः । अथवा एतादृशाः दर्घिसमासाः स्युः यत् शब्दानां शुद्धोच्चारणं असम्मतं जायेत तदा... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१३८
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/* अपरिष्कृतम् */ (१२१) चकितचकितः । प्रथमः समाचारः तु काबुलविश्वविद्यालयस्य साहित्यपाठक्रमे संस्कृतस्य अनिवार्य अध्ययनम् द्वितीयः च चिदम्बरस्थाण्णामले विश्वविद्यालयस्य पैर... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१३९
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/* अपरिष्कृतम् */ (१२२) अवस्थायां भारतं कृपमण्डूकीकर्त्तु उद्यतानां हिन्दीवतां सुदृढ़ यः विरोध: आदिष्टः विचारवद्भ्यः भारतीयेभ्यः किं डा० लुई रेणोः अपराधत्वेन गणयिष्यते । हिन्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१४०
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/* अपरिष्कृतम् */ (१२३) दायिक. सरकार साम्प्रदायिकताप्रचारकाणां न केवल विरोध एव करोति प्रत्युत तान् दण्डयति अपि । यस्य साम्प्रदायिकतावादस्य जनतायाः सरकार स्थिति न कामयते त एव सरक... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१४१
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/* अपरिष्कृतम् */ (१२४) अस्यां अवस्थायां उर्दूसंश्लिष्टायाः हिन्दुस्तान्याः विरोधे अनौ- चित्यं अवलोकयामः वयं यतः उर्दूः पश्तो अरवीभाषा प्रभाविता ततः निस्सृता च । परभाषासंस्कृ... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१४२
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/* अपरिष्कृतम् */ (१२५) एव अर्चनं करोति, प्रधानपदे च संस्थापयति । इदं एव अस्माकं विदेशीय संस्कृत समादरणस्य समुचितं उत्तरं भवितुं अर्हति यद अपेक्षते अद्य संसार. । - व्याख्या - (१) सर्व... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१४३
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/* अपरिष्कृतम् */ (१२६) अस्माभिः यत् सर्वे लकाराः संस्कृतभाषायां खरूपे तिष्ठेयुः तदा f भविष्यन्ति । प्रायः ३६ लक्षतः आधिकरूपाणि १९४४ धातूनां अयं व्यापारः संस्कृते वर्णनातीतं का... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१४४
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/* अपरिष्कृतम् */ (११७) . न भवति, अतएव तस्य निस्सारणं आवश्यकं युक्तियुक्त च । क्रियायां एवमेत्र संज्ञायां द्विवचनस्य निस्सारणात् वर्णनातीत सारल्य सस्कृते आगामेष्यति तथा क्रियाय... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१४५
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/* अपरिष्कृतम् */ परस्मैपदे अकरोत्, अकुर्वन्, अकरो, अकुरुत, अकरवम् अकुर्म, , कुर्यात्, कर्युः, कुर्यात, कुर्याः, कुर्याम्, कुर्याम, क्रियते, क्रियन्ते क्रियसे, क्रियध्वे क्रिये, क्रि... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१४६
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/* अपरिष्कृतम् */ परस्मैपदे कारयति, कारयन्ति कारयास, कारयथ कारयामि, कारयामः अकारयत्, अकारय, प्रेरणार्थे-णिच् प्रत्यये- ( लट) कारयिष्यति, कारयिष्यन्ति कारयिष्यति, कारायेष्यथ कारयि... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१४७
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/* अपरिष्कृतम् */ कारिष्यते, कारिण्य से, कारिष्ये, कारिष्यन्ते कारिप्यध्वे कारियामहे अकार्यत, अकार्यन्त अकार्यथाः, अकार्ये, कार्येत, कार्येथाः, कार्येय, अकार्यध्वम् अकार्यामहि... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१४८
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/* अपरिष्कृतम् */ चिकीर्पेत्, चिकीर्षे, चिकीर्पेयम्, चिकीयंत, निकी प्यंसे, चिकीध्ये, चिकीर्पेयुः चिकीत विकीपैम चेक्रीयते, चेक्रीयमे, चेक्रीये, (१३१) (लिड्) कर्मवाच्ये रूपाणि । (लट्)... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१४९
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/* अपरिष्कृतम् */ अचेक्रीयत, अचेक्रीयन्त अचेक्रीयथाः, अचेकीयध्वम् अचेक्रीयामहि अचेक्रीये, चेक्रयेत, चेक्रीयेरन् चेक्रीयेथाः, चेक्रीयेध्वम् चक्रीयेय, चेक्रीयेमाह चेक्रीय्यत... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१५०
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/* अपरिष्कृतम् */ (१३३) (१) व्याख्या - एकमेच द्विवचनस्य निस्सारणे भूतकाल- नेष्ठायां त्रिलिङ्गेषुक, क्तवतु प्रत्यययो. ८४ रूपाणि भविष्यन्ति यथा- (पुंलिङ्गे) कृतः, कृतम्, कृतेन, कृताय, क... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१५१
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/* अपरिष्कृतम् */ (१३४) , (३) व्याख्या - द्विवचनं निस्सारितं स्यात् इदं आस्ती अस्माकं निश्चितं मतम् । परं द्विवचनस्य ज्ञानाय प्रदर्शनाय वा एकः अन्यः अणि उपायः भवितुं अहंति बहुवचनान... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१५२
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/* अपरिष्कृतम् */ अध्यायः ४ संज्ञा । अस्मिन् सम्बन्धे अस्माकं निवेदनं इदं अस्ति यत् यथा कियासु द्विवचनस्य आवश्यकता न अस्ति, एवमेव संशासु अपि न विद्यते । इदं संशोधन आवश्यकं अस्ति... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१५३
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/* अपरिष्कृतम् */ (१३६) विविधकारकेषु विविधानि रूपाणि भवन्ति । यानि शीघ्रतया स्मृतिपये न आगच्छन्ति । काठिन्यकारणाव द्विवचनस्य प्रयोगः अपि न क्रियते जनैः । इदं अपि सिद्धं कृतं अस्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१५४
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/* अपरिष्कृतम् */ (१३७) अद्य अनेके नियमाः वार्त्तिकानि वा अनावश्यकानि जातानि सन्ति, यानि संस्कृतभाषायाः वृद्धिमा मागच्छन्ति । अare ente निश्चितं मत अस्ति यद न्यूनातिन्युनं प्रति २५... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१५५
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/* अपरिष्कृतम् */ (१३८) संस्कृतभोपा निर्मिता प्रथमं सर्ने शब्दाः संज्ञाप्रकरणे प्राति- पदिकरूपत्वेन तिष्ठन्ति । - अनन्तरं तेषु सुप्- आदि विविधप्रत्ययाः लगन्ति । अनेके प्रत्ययाः... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१५६
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/* अपरिष्कृतम् */ (१३९) 'प्रातिपदिकम्' इति कथ्यते । अनन्तरं 'सु' आदि प्रत्ययाः प्रातिपदिकेषु दीयन्ते येन प्रातिपदिकानि पदचाच्यानि स्युः | भाषा- विविधपदानां समूहः। अन्यासु भाषासु इ... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१५७
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/* अपरिष्कृतम् */ (१४०) वाचकशब्देषु विसर्गस्य प्राप्तिः तु भवत् संस्कृतव्याकरणानुसारं परं लोपः मन्येत, यथा सन्धि-नियम-वलेन स्थाने स्थाने अवलोक्यते । 'रामलालः गच्छति ' अथवा ' रामला... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१५८
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/* अपरिष्कृतम् */ (१४१) तत्र विद्वान यपि इदं सर्वे सहसा ज्ञातुं न शक्नोति, न शुद्धोधारणं कर्त्तुं शक्नोति । अतएव अयं नियमः अवश्यमेव कार्ग्य यद यत्र विशेषव्यक्तिस्थानवाचकसंज्ञान... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१५९
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/* अपरिष्कृतम् */ (१४२) एवमेव 'फारसी' ' उर्दू ' 'अंगरेजी' तथा 'अर्थी' अन्यासां विशेष- भाषाणां नाम अस्ति । एताः सर्वाः विशेषनामवाचक- संज्ञाः, न तु जातिवाचकसंज्ञाः । वस्तुतः विशेष- नामानि... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१६०
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/* अपरिष्कृतम् */ (१४३) - "हिन्दी - फारसी - उर्दू-अंगरेजी -- अर्वी भाषाओं" एवमेव आंग्लभाषायां अपि अयं समालः मस्ति- " Hindi, Persian, Urdu, English, Arabic Jangnages " हिन्यां आंग्लभाषायां तथा मौ हो समासौ स्त। अस्य प्र... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१६१
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/* अपरिष्कृतम् */ (१४४) “हिन्दीफारस्युद्वेगरेज्यर्थीभाषाणाम्" कश्चित् अपि पुरुषः पण्डितः बालकः वा अस्य समासस्य उच्चारणं कर्त्तु न शक्नोति । अयं समासः स्वयमेव एकः जटिलः प्रश्नः... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१६२
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/* अपरिष्कृतम् */ (१४५) (विशेषपुरुषवाचक संशा) ( विशेषस्थानवाचकसज्ञा ) ( विशेषभापादिचाचक संज्ञा) एकवचनम् रामः रामम् रामेण रामाय रामाद् रामस्य रामे प्रयाग प्रयागम् प्रयागेण प्रयागा... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१६३
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/* अपरिष्कृतम् */ 6 कृष्ण यथेच्छं सारल्यं आगमिष्यति । अद्य व्याकरणे 'राम इत्यादिशब्दानां (विशेषनामवाचकसंज्ञानाम् ) सर्वासु विभक्तिषु सर्वाणि रूपाणि दीयन्ते । इदं सर्वं व्यर्थ ए... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१६४
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/* अपरिष्कृतम् */ *(१४७) 5 निश्चितं मतं तु इदं अस्ति यत् यत्र समासे विशेषनामसंज्ञानां समसनं स्यात् तत्र नियमरूपेण सन्धिः न भवेत् अर्थात् सन्धिः कदापिन क्रियेत । अनेन यथेच्छ सारल्य... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१६५
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/* अपरिष्कृतम् */ (१४८) - व्याख्या - द्वितीयान्तं श्रितादिप्रकृतिकैः सुबन्तैः सह वा सम- स्यते सः तत्पुरुषसंज्ञः स्यात् । उदाहरणम्- कृष्णश्रितः इत्यादि । कृष्णं श्रितः इति विग्रहः... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१६६
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/* अपरिष्कृतम् */ (१४९) चार्थ: चतुर्विधः भवति-समुच्चयः, अन्वाचयः, इतरेतरयोगः, समाद्दारः । तत्र समुच्चये अन्वाचये च असामर्थ्यात् समासः न भवति । इतरेतरयोगे समाहारे च समासः भवति । तत... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१६७
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/* अपरिष्कृतम् */ (१५०) सेन कः लाभः । लामस्थाने हानिः सम्भवति । यत्र विशेषनाम- वाचकसंज्ञानां समसनं स्यात् तत्र समासे सन्धिः वैकल्पिकः तिष्ठेत् । अनेन महान् लाभः भवितुं अर्हति । अत... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१६८
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/* अपरिष्कृतम् */ (१५१) अहं तु अत्र महाविदुषः पं. सभापति उपाध्याय, अध्यक्ष विरलासंस्कृत महाविद्यालय, काशी, महोदयस्य कथनस्य अक्ष रशः समर्थतं करोमि । अस्य पुस्तकस्य प्रथमाध्याये तस... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१६९
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/* अपरिष्कृतम् */ (१५२) अध्याय: ५ विसर्गादर्शनम् । ( भविष्यवाणी ) - व्याख्या - लोके विसर्गस्य अदर्शनं स्यात् । अस्मिन् विषये अस्माकं निश्चितं मतं अस्ति यत् व्याकरणानुसारं विसर्गस्य... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१७०
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/* अपरिष्कृतम् */ स्थाने स्थाने कथितं अस्माभि यत् वेद अपौरुषेय, ईश्वरस्य सम्पूर्णनित्यशान यत् प्रत्येकसर्गादौ देवानां द्वारा लोककल्याणाय देववाण्यां वेदवाण्यां वा दीयते । यदा... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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/* अपरिष्कृतम् */ (१५४). क्लेशकमविपाकाशयैरपरासृष्टः पुरुषविशेपईश्वरः ॥२३॥ ': तत्र निरतिशयं सर्वशवीजम् ॥ २५ ॥ :: स. एप पूर्वेपामंपिगुरुः कालेनानवच्छेदात ' ॥२६॥ ( पात. यो. सू: समाधिपाद:,... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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/* अपरिष्कृतम् */ (१५५) अस्माक अयं विश्वास यत् कस्यचित् अपि देशस्य भाषा- चरित्रे अधिकं प्रकाशं आरोपयति । या भाषा शक्तिशालिनी, प्रेरणापूर्णा तस्याः भाषिण अपि तादृशाः भविष्यन्ति ।... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१७३
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/* अपरिष्कृतम् */ (१५६) अपि ग्रन्थाः विद्यन्ते । ज्योतिःशास्त्रं अपि एकं विज्ञानं एव । अस्माकं प्राचीनविज्ञानग्रन्थाः संस्कृत भाषायां विनिबद्धाः अत एव तेशं शानाय संस्कृतभाषाय... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१७४
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/* अपरिष्कृतम् */ (१५७) एतच्छन्दकोषस्य तुलनां संसारे काचित् अपि भाषा न कर्तुं शक्नोति । असंख्यशताब्दीः यावत् या भाषा अस्मद्राष्ट्रस्य भारं उवाह सा परित्यज्यते । स्वतन्त्रभारतस... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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/* अपरिष्कृतम् */ (१५८) । प्रचारयेयुः । भारतीयं विधानं कृषकभाषायां लिखितं स्यात् इति न अहं वाञ्छामि, इति। " , } (५) पण्डितराजदेवनायकाचार्य, प्रधानमन्त्रिण, अखिल- भारतीय संस्कृतसाहित... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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/* अपरिष्कृतम् */ कन्दमूलफलाशिनां अतिष्ठत् तत्त्यागः क्रिम् १ सस्कृतभापासदशी न काचित् पूर्णा भाषा, न कस्यचित् तादृशं पूर्ण साहित्यं, न कस्याश्चित् तादृश प्रभावः, न व्याप कता, अत... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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/* अपरिष्कृतम् */ (१६०) (अ) बम्बय्यां भाषमाणः श्री हाशिमसाइवः उक्तवान्- " अहं भारताफगानिस्तानयोः सांस्कृतिक सम्बन्धं दृढयितुं आगतः अस्मि । भारताफगानिस्तानयोः निवासिनः आर्य्याः... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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/* अपरिष्कृतम् */ (१६१) समये भारतीयां संस्कृति संस्कृतभाषां च एव आदर्शीकृत्य सः आत्मन त्राणं कर्तुं शक्नोति । अह स्वमातृविद्यासंस्थानं पैरिस गत्या युवकान् भारतं आगन्तुं प्रोत्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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/* अपरिष्कृतम् */ (१६२) इयं अस्ति यत् संस्कृतं सर्वासां भाषाणां जननी अस्ति । प्रायः सवै विद्वद्भिः इदं मन्यते । द्वितीया वार्त्ता इयं अस्ति यत् सांस्कृतिकसभ्यतायाः प्रसारात् एव... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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/* अपरिष्कृतम् */ अनेन योगिनां सद्वचनेन सिद्धयति यत् ईश्वरधर्मस्य एवमेव तस्याः भाषायाः यस्यां अयं धर्मः विद्यते नाशः भवितुं न अर्हति । मनुष्यैः तु अवश्यमेव इंदशानि कार्याणि क्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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/* अपरिष्कृतम् */ (१६४) ( ४ ) "विसर्गादर्शनम्" - व्याख्या - अस्य सूत्रस्य व्याख्या अस्मिन् अध्याये दीयते । अहं विचारयामि यत् अयं सुधारः स्वत एव संस्कृते २५ वर्षा नन्तरं आगमिष्यति । तद... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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/* अपरिष्कृतम् */ (१६५) प्रत्ययान्तः शब्दः अव्ययरूपः व्याकरणे ग्राह्यः । केवलं अन्य स्यां क्रियायां परिवर्तनं स्यात् । पूर्वोक्तानि वाक्यानि अनेन प्रकारेण लेखनीयानि- (१) स गच्छत... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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/* अपरिष्कृतम् */ (१६६) शब्दाः यदि अव्ययरूपाः भवन्ति तदा शतृप्रत्ययान्ताः अपि अव्ययीभावं गृद्धन्तु । इदं विचारणयं विद्वद्भिः । अस्माकं तु इमानि सर्वाणि विशेष - निवेदनानि सन्ति य... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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/* अपरिष्कृतम् */ (१६७) सा वेदभावाचन लोके सर्वकालीना भवितु अर्हति । यदि संस्कृतात् आनीयेत, तदा कृत्रिमता दूरीभवेत्, वेदभापावत् स्वाभाविकता संस्कृत अमर स्यात् । संस्कृत कृत्रिमं... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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/* अपरिष्कृतम् */ (१६८) सम्यक् विचार्य एतेषां अन्येषां वा संशोधनानां समर्थनं करिष्यन्ति । एतेषां संशोधनानां अध्यायक्रमानुसारं पुनः स्पष्टी- करण अत्र क्रियते । ( १ ) अस्माकं मतानु... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१८६
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/* अपरिष्कृतम् */ (१६९) काचित् अपि हानिः न अस्ति । अस्य अयं आशयः यत् वाक्येषु सन्धिविषयः इच्छाघीनत्वं प्राप्नोति । यदि कश्चित् पुरुषः वाक्येषु सन्धि न करोति तदा स लेखः अपि व्याकरण... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१८७
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/* अपरिष्कृतम् */ (१७०) दीयते । एवमेव अन्यशब्दविषये अपि सत्यं अस्ति । चङ्गाली- गुजराती-मराठी-हिन्द्यादिभाषाः तु वस्तुतः संस्कृतस्य भ्रंशरूपाः एव। यदि संस्कृतं सरलं भविष्यति तदा... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१८८
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/* अपरिष्कृतम् */ (१७१) चाक्येषु सन्धिः न क्रियेत । इदं तु वस्तुतः संशोधनं न अस्ति । इदं तु व्याकरणसम्मतं अस्ति यत् “ वाक्येषु "(गद्ये पद्ये वा ) सन्धिः कदापि न क्रियेत केवलं इदं कार्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१८९
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/* अपरिष्कृतम् */ (१७२) भवति नतु दुर्योधार्य ज्ञानमार्ग विरोधाय। ईदृशैः नियमैः संस्कृतं काठनीकृतं येन ज्ञानवृद्धिः सर्वथा अवरोधिता | ईश्वरज्ञानं अपि अवरोधितं लौकिकशानं अपि । स... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१९०
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/* अपरिष्कृतम् */ (१७३) तानि सर्वाणि प्रायः २० लक्षकानि भवितुं मर्हति । अनेन सिद्धयति यत् कृत्रिमोपायैः कथित विद्वद्भिः अनन्तानि शब्द- रूपाणि सांस्कृतायां भाषायां दत्तानि, यानि... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१९१
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/* अपरिष्कृतम् */ (१७४) चलितुं चतुर्थाध्याये च पूर्णतया स्पष्टीकृतं अस्माभिः यत् द्विवचन संसारस्य प्रायः सर्वासु भाषासु न विद्यते एकां द्वे वा भाषे न विहाय । इदं अपि सुस्पष्टीकृ... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१९२
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/* अपरिष्कृतम् */ (१७५) संज्ञासु । इदं अपि स्पीकृतं अस्माभिः यत् संम्बोधनकारकंस्य आवश्यकता न विद्यते । अतएव तत् निस्सारणीयम् । सम्प्रदान- कारकस्य एवमेव अपादानकारकस्य अवबोधनाय क... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१९३
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/* अपरिष्कृतम् */ (१७६) चेतः । अत एव इदं सर्व विचारणीयं विद्वद्भिः। यत्, यत् देश- भाषा- जाति - हिताय स्यात् तत् एव निस्स्वार्थभावेन करणीयम् । अन्यथा समय:, देशपरिस्थिति बलात् कारयिष्य... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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/* अपरिष्कृतम् */ (१७७) A पकं उदाहरणं अत्र दीयते । 'राम' एकः अर्थवच्छन्दः संस्कृत- व्याकरणानुसारं अयं शब्दः 'प्रातिपदिकं ' इति कथ्यते । इदं प्रातिपदिकं सुवन्तं तिङन्तं च पदसंज्ञं स्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१९५
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/* अपरिष्कृतम् */ (१७८) , वलेन 'रामाः ' पदस्य विसर्गस्य लोपं मन्येत । तदा बहुवचने 'रामा' इति पदं भविष्यति । एवमेव अन्येषु स्थलेषु कल्पनीयं, यत्र विसर्गस्य प्रयोगः भवति । संस्कृतभाषात... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१९६
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/* अपरिष्कृतम् */ (१७९) 'न विभकौ तुस्माः '१३१४ व्याख्या — विभक्तिस्थाः तवर्गसमा न इत । अनेन 'राम + अस् ' इदं रूपं अभवत् । - 'प्रथमयोः पूर्वसवर्ण. ६।१।१०२ ' व्यारया - अकः प्रथमाद्वितीययो अ... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१९७
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/* अपरिष्कृतम् */ (१८०) सूचना- परं अस्माकं मतानुसारं विशेषनाम-स्थानवाचक- संज्ञानां बहुवचनानि भवितुंन अर्हन्ति, अतः 'राम' शब्दस्य कवलं इमानि रूपाणि एकचचने भविष्यन्ति - एकवचनम् राम... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१९८
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/* अपरिष्कृतम् */ (१८१) विसर्ग न अस्ति । द्वयोः शब्दयो अर्थेषु भिन्नता विद्यते । अत एव एतेषु समानशब्देषु एकस्मिन् शब्दे विसर्गः तिष्त् अर्थभिन्नतायाः शब्दभिन्नतायाः च प्रदर्शन... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
omfmfk2juzy6ihohrfbuxkulh3jp824
पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/१९९
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/* अपरिष्कृतम् */ (१८२) एव यत् यत् संस्कृतव्याकरणे दत्तं येन संस्कृतं जटिलं कठिनं जातं तत्सर्व दूरीकरणीयं भविष्यति । तावत्पर्यन्तं संस्कृतस्य राष्ट्रभाषा- त्वं विश्वभाषात्वं च... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/२००
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/* अपरिष्कृतम् */ . स्मृतय निर्भ्रान्ताः सन्ति वेदवाक्यवत् । धर्मे अद्य अयं दोष अनेन अस्माकं इयं दुर्दशा । द्वितीय उपदेश अयं यद सर्वे तर्केण विचारणीयम् । यदि तर्केण कश्चित् धर्म... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/२०१
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/* अपरिष्कृतम् */ : (१८४) संस्कृतभाषायां कथ्यते 'जवाहरलालः' तथा 'जवाहरलालो' आप सन्धिकरणे यथा 'जवाहरलालो गच्छति । हास्यास्पदं इदं सर्वम्। संस्कृतज्ञाः स्वयं स्वसन्ततीनां नामानि वि... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/२०२
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/* अपरिष्कृतम् */ (१८५) लकारेषु अद्यतन - अनद्यतन कृत्रिमभेदं अवलम्ब्य लकाराणां विभागः । संस्कृतराजभवनम् । , सर्वैः विचारशीलपुरुषैः मन्यते अद्य यत् संस्कृतं जीर्णे कठिन सञ्जातम्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/२०३
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/* अपरिष्कृतम् */ (१८६) आस्ति यत् भारतीय विदुषां घोषणामात्रेण व्यवहारेण च संस्कृतं अद्य भाषणभाषा राष्ट्रभाषा च भवितुं अर्हति । संस्कृतव्यवहारे पठनपाठने च संस्कृत - काठिन्यं एव ए... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/२०४
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/* अपरिष्कृतम् */ (१८७) J शब्दे विसर्गाने कृत्रिमता आगच्छति या सुस्पष्टा अस्ति । वस्तुतः यथा नाम तथा उच्चारणं भवेत् । अनेन सुधारेण संस्कृत- भाषाया. अयं दोषः कृत्रिमता वा दूरीभवितु... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/२०५
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/* अपरिष्कृतम् */ (१८६) संस्कृत आस्ति यत् भारतीय विदुषां घोषणामात्रेण व्यवहारेण च संस्कृतं अद्य भाषणभाषा राष्ट्रभाषा च भवितुं अर्हति । संस्कृतव्यवहारे पठनपाठने च संस्कृत-काठिन... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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पृष्ठम्:कीदृशं संस्कृतम्?.djvu/२०६
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/* अपरिष्कृतम् */ रिक्तं पृष्ठं निर्मितम्
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पृष्ठम्:Sanskrit Studies.djvu/२१
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/* अपरिष्कृतम् */ 13 'VISION OF VÄSAVADATTĀ' his sister till he returned from the pilgrimage which he pretended he had undertaken. Vasavadatta was greatly perplexed when she saw the new turn events were taking; but she kept quiet as she fully confided in the wisdom and goodness of Yaugandharāyaṇa. Besides, her love for Udayana was so deep that she deemed no hardship was too great to bear for his sake. The prayer of Yaugandharāyaṇa... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:Sanskrit Studies.djvu/२२
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/* अपरिष्कृतम् */ 14 SANSKRIT STUDIES cesses also reached in due course the palace at Rajagṛha. Though sore at heart owing to separation from her lord, Vāsavadattā appeared outwardly happy in the company of Padmavatī; and being very discreet, she gave not the slightest clue to her identity during all her long stay there. To return to Udayana: The loss of his beloved queen had made life meaningless to him. Yet nobody could suggest to h... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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/* अपरिष्कृतम् */ 'VISION OF VĀSAVADATTĀ' 15 Vasavadattā: (To herself) My partiality for my lord has made me forget my resolve. What shall I do now? Yes, I see. (Aloud) Sister, thus the people of Ujjain say. Padmavati: That is likely. He is not a stranger to Ujjain; and beauty, as they say, is a joy for all. Though this incident reassured Vasavadatta that her lord was alive and well, and was so far a source of great relief, her feeling... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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/* अपरिष्कृतम् */ 16 SANSKRIT STUDIES princess, 'Why do you not, on a fit occasion, ask your lord to teach you how to play on the viņā?' Padmavati replied 'I have already done so.' Vasavadatta then eagerly enquired-. 'And what was his reply?' and Padmāvatī said 'Without uttering a syllable, he fetched a deep sigh and kept quiet.' It was certain from this that Udayana, recollecting the excellent qualities of Vasavadattā, was about to w... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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/* अपरिष्कृतम् */ 'VISION OF VĀSAVADATTĀ' 17 bold to stay there for sometime longer in order to have the satis- faction of looking well upon her lord. Udayana went on speaking in his dream; and Väsavadatta taking up the conversation gave answers to his dream questions: Udayana: Ah! Dear! Ah! Dear pupil! Why don't you speak to me? Vasavadattā: Speak? Dear! I am speaking. Udayana: Are you angry with me? Vasavadattā: No, No, sad rather.... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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/* अपरिष्कृतम् */ 18 SANSKRIT STUDIES let me throughout be so deluded'. The incident only made his grief for the lost queen all the more poignant. About this time Udayana had to leave Rājagṛha as the arrange- ments for the expedition against Aruni were complete, thanks chiefly to the untiring exertions of Yaugandharāyaṇa. Placing himself at the head of the allied armies of Vatsa and Magadha, he marched against the enemy and easily va... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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/* अपरिष्कृतम् */ 'VISION OF VĀSAVADATTĀ' 19 stances in which she had come to be with Padmavati. Meanwhile Yaugandharāyaṇa also was there under the pretext of taking back his sister, and when the lady was sent for in response to his call, the identity of Vāsavadattā was at once made known. Yaugan- dharāyaṇa also revealed himself and, though he was conscious that he had striven all along for nothing but what was good for the king,... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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/* अपरिष्कृतम् */ KĀLIDĀSA Ever since the discovery of Sanskrit', Kālidāsa has received the attention of Orientalists, but their attention has hitherto been mainly directed to what seems to be the well-nigh impossible task of fixing the age in which he lived. The determination of the date of a poet like Kālidāsa has, no doubt, its own importance in literary history, but we should not forget that his works are to be valued for other r... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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/* अपरिष्कृतम् */ KĀLIDĀSA 21 The next noticeable feature in Kalidāsa is his vast learning. That he wrote in a language which had long ceased to be spoken is in itself a sufficient proof of this; but there are other evidences as well in support of this conclusion. The formal comparisons of which not a few are met with in his works (vide, e.g., Raghuvamsa, xv. 7) can be accounted for only by his superabundant learning. He was well-versed... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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/* अपरिष्कृतम् */ SANSKRIT STUDIES 22 actions sink to the level of the lower beings ; but his final aim ought to be to escape from the trammels of re-birth, whether high or low. Kalidasa believes in the ultimate existence of one Supreme Being from which the universe emanates and into which it is finally absorbed. This Being, Kalidasa terms, in agreement with the teaching of the Upanisads, almighty, absolute, omniscient... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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/* अपरिष्कृतम् */ KĀLIDĀSA 23 epithets are always fully suggestive. In propriety of dialogue and sentiment he is unsurpassed. More striking than all these, is his strong love for Nature. He looks upon things in Nature with a peculiarly tender feeling, and we may regard him as another St. Francis of Assissi, calling the very flowers his sisters and mothers, and 'looking upon the hill with tenderness and making dear friendship with the str... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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/* अपरिष्कृतम् */ 24 SANSKRIT STUDIES would sacrifice that very self for the sake of the object loved. Love thus casts off self-love and becomes but another form of the love of the Yogin for the universe with which he feels his kinship (Ïśā Up. 6)-but another means of realizing unity by break- ing through the bonds of selfishness. It is love in this highest sense that we find in Kālidāsa and to him belongs the credit of having given t... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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/* अपरिष्कृतम् */ THE VOCABULARY OF THE 'MEGHA-SANDESA' This is an alphabetical list of the words found in the Megha- sandeśa of Kālidāsa; and, although it does not cite the actual pas- sages in which the several words occur, it gives complete references to the places in the poem where they do. The Swamiji, who has compiled it, is now engaged in preparing similar lists for the remaining poems and plays of the same poet. A concordance of... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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/* अपरिष्कृतम् */ 38 SANSKRIT STUDIES not knowing what it might be and marvelling at the sport of fate as it seemed to him, resolved to go and report the whole matter to Kāmandakī. She and her friends, disgusted with the turn which affairs had taken in spite of their best efforts, had meanwhile repaired to the same wood, there to fall from some precipice and kill themselves. As Makaranda was relating to them what had happened, there was... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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/* अपरिष्कृतम् */ ‘ uttara-rAmacarita’ 4 1 Rama — a change which gives a happy ending to the story, and is to be traced to the Indian aversion to a tragic close. The above are the main deviations from the original story, but if we take the spirit into consideration, it has undergone a total transformation in the hands of the dramatist. For example, the incidents connected with Lavana and Sambuka, and even the Asvamed... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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/* अपरिष्कृतम् */ 42 SANSKRIT STUDIES essential to remember that types are not of necessity generalized. A generalized character is one that is devoid of all individual traits, but this charge cannot be brought against the characters that appear in a Sanskrit drama for they do exhibit special traits over and above what is common to their class. Thus, while Rama and Duşyanta are both of the dhīrodātta type, they, as represented by the dr... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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/* अपरिष्कृतम् */ 'UTTARA-RĀMACARITA' 43 into tears more than once. This intensely human side of Rāma contributes to the heightening of pathos. A hero of epic severity would not appeal to us in the same manner. One of the first glimpses we get of Sītā reveals her inner nature. When she is asked by Rāma what pastime would please her most, she proposes to go to the forest, although the forest has been so fruitful of misery to her. This... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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/* अपरिष्कृतम् */ 44 SANSKRIT STUDIES hesitate to undertake what is described as dhātrīkarma towards the tender children of Sitä. He is a picture of compassion-a perfected saint using his spiritual power for the good of all, a feature which harmonises so well with his character as a poet. RASA The prevailing rasa is karuna, or pathos, which has for its background love-not youthful love, which is apt to be tinged with sensuality, but mat... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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/* अपरिष्कृतम् */ विषयानुक्रमणिका | विषयः । पृ० द्वित्वादीनां जातित्वनिरास साधक मनुमानप्रदर्शनम् । क०३४९ वदलभोक्तानुमाने विशेष प्रदर्शनम् । अतिदेशेनैकत्व जातिनिरासपूर्वकं... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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/* अपरिष्कृतम् */ विषयानुक्रमणिका | विषयः । पृ० पृथक्त्वस्य द्वित्वावधित्वना भेदातिरिक्तत्व सिद्धिरिति मु. रारिमिभ्रमतम् । ( वि० ) पृथक्त्वस्य भावरूपत्वे प्रमाणकथनम् | ( २१ ) (प्र... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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/* अपरिष्कृतम् */ विषयानुक्रमणिका | विषयः । अवच्छेदक भेदेनोपलंभानुपलंमयोरेकत्र सम्भवादित्यभि प्रायेण समाधानम् । पृ० ३८९ अवयववर्तिसंयोगाभावेनावयविनि संयोगस्य सादृश्यव्य- पद... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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/* अपरिष्कृतम् */ १८ विषयः । विषयानुक्रमणिका | ( २६ ) संशयपरीक्षाप्रकरणे - → विशेषाग्रहविशिष्ट समानधर्मदर्शनस्य संशयहेतुत्वव्यव स्थापनम् । संशयविरोधस्य वाकारार्थत्वम् । संशयलक... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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/* अपरिष्कृतम् */ विषयानुक्रमणिका | विषयः । सन्निकर्षा भावाद्विशिष्टज्ञानरूपान्यथाख्यातिरनुपपनेत्या प्रायेणाशङ्का तत्वमाधानं च | दोषाणामयथार्थजनकत्वे दृष्टान्तप्रदर्शनम... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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/* अपरिष्कृतम् */ २ विषयः । पृ० संशयस्यानध्यवसायहेतुत्व निरासोऽविद्यात्वस्थापनं चान- व्यवसाये । ४५३ संशयानध्यवसाययोर्विशेषः । ( प्र० ) ४५४ विषयानुक्रमणिका | ( २९) स्वप्नपरीक्षाम... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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/* अपरिष्कृतम् */ विषयानुक्रमणिका | विषयः । पृ० विषयस्य प्रकाशेन सार्धे विषयविषयिभावसम्बन्धस्य ख. ४६४ ण्डनम् । असम्बद्धस्य सम्बद्धव्यवहारजनकत्वनिरासः । तन्निरूपणाधीननिरूपण... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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/* अपरिष्कृतम् */ २२ विषयः । पृ० परमाणुचाक्षुषत्वे रसे चाक्षुषत्वप्रसङ्गनिवारणम् । ४७९ करितुरगादावापादित सार्वव्यापत्तिनिरासः । ११' योगी न सर्वशः प्राणित्वादहमिवेत्यनुमानस... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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/* अपरिष्कृतम् */ विषयानुक्रमणिका | विषयः । पृ० वादिप्रतिवादिसाधनयोश्च प्रत्यक्षेण सम्वादानुपलब्ध्या तत्वनिर्णयविजयव्यवस्थापकत्वादनुमानासाद्धः । ४९२ व्यक्तिसहितजातिनिर... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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/* अपरिष्कृतम् */ विषयानुक्रमणिका | साध्य व्यापकोपाधिसाधारणोषा. २४ विषयः । पक्षधर्मसाधनावच्छिन्न धिपदार्थ खण्डनम् | ( प्र०) पृ० ५०६ १२ प्रवृत्तिनिमित्ताभावात् विषमव्याप्तस्यो... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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/* अपरिष्कृतम् */ बिषयः । विषयानुक्रमणिका २५ पृ० पं० AC ५२३ ( ३६ ) परामर्शपरीक्षाप्रकरणे- व्यातिपक्षधर्मंताज्ञानाभ्यामेवानुमिति निष्पत्ति सम्भवे किं तृतीयलिङ्गपरामर्शेनेति मी... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३९
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/* अपरिष्कृतम् */ विषयानुक्रमणिका | विषयः । पृ० शाब्द ( शाबर ) उपमान स्थानुमानेऽन्तर्भाववर्णनम् । ५३७ ( ३९ ) अर्थापत्तिभङ्गमकरणे - www मीमांसकाभिमतार्थापत्तिप्रमाणस्यानुमानेऽन्तर... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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/* अपरिष्कृतम् */ विषयानुक्रमणिका | विषयः । १० स्वरूपभेदस्यापि व्यावर्तकधर्माधीनत्वादभावासोद्धैः । ५५८ प्रयोगः । व्यवहारवैलक्षण्यादण्यभावसिद्धावनुमान सघटभूतलविलक्षण प्रम... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/४१
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/* अपरिष्कृतम् */ X विषयानुक्रमणिका | विषयः । अन्योन्याभावलक्षणप्रदर्शनम् । भित्रबुद्धे: स्वरूपालम्बनत्वादन्योन्याभावे मानाभाव इत्याक्षेपः, तत्समाधानञ्च | पृ० पं० ५७६ ( ४३ ) अपव... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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/* अपरिष्कृतम् */ विषयानुक्रमणिका | विषयः । उक्ताक्षपेाणां समाधानायाने कदुःखानुत्पादावस्थाया जीवन्मुक्तिश्वप्रदर्शनार्थ संसारितो वैलक्षण्यप्रतिपाद नाय संसारकथनम् । 99 मुक्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/४३
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/* अपरिष्कृतम् */ विषयानुक्रमणिका । विषयः । (४५) हेत्वाभासपरीक्षाप्रकरणे- असिद्धादिभेदेन चतुर्विधहेत्वाभासकशनम् । बाघप्रतिरोधयोर्हेत्वाभासान्तरत्वशङ्का तत्समाधानं च | हेत्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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/* अपरिष्कृतम् */ विषयानुक्रमणिका | विषयः । स्मृतिकरणस्य तृतीयस्य सरवात्कथं द्वे एव प्रमाणे ? इत्याक्षेपस्य समाधानम् । स्मृतेरप्रमात्वे युक्त्यन्तरम् । स्मृतेरप्रमात्वसाधका... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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/* अपरिष्कृतम् */ विषयानुक्रमणिका विषयः । उक्तानुमाने व्यभिचारवारणाय पतनस्यार्थान्तरम् । वल्लभमते प्रत्यक्षेणापि गुरुत्वस्य साधनम् | गुरुवातीन्द्रियत्वेऽपि तत्रेन्द्रियप... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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/* अपरिष्कृतम् */ विषयानुक्रमणिका विषयः । पृ० ६५० प्रोक्षणादिजन्य पुरुषनिष्ठसंस्कारेणैव कर्मत्वोपपत्तौ किं श्रीह्यादिनिष्ठातिशयेनेत्याशयेनोक्ताक्षेपसमाधिः । पुरुषनिष्ठ... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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/* अपरिष्कृतम् */ ३४ विषयः । विषयानुक्रमणिका | ( ५३ ) शब्दपरीक्षाप्रकरणे- ६६७ शब्दस्य स्पर्शवस्व स्वगिन्द्रियवेद्यत्वापस्याऽस्पर्शवरखे चातीन्द्रियस्वापश्या परिशेषादद्रव्यस... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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/* अपरिष्कृतम् */ विषयानुक्रमणिका | विषयः । उत्क्षेपणत्वादीनामपि साङ्कसम्भवाजातित्वाभावादु- पाधिपञ्चकेनापि विभागोपपादकं मतान्तरम् । (५६) सामान्यतद्विभागपरीक्षाप्रकरणे- गौर... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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/* अपरिष्कृतम् */ विषयानुक्रमणिका | बिषयः । उक्तानुमाने पृथक्त्वेन सिद्धसाधनान विशेषसिद्धि- रित्यभिप्रायेणाक्षेपः । सम/नजातिगुणादीनामणूनां द्रव्यत्वेनान्योन्यव्यावर्तकस.... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
34sgzbjzzabdsa48otd6hwc0vqb677u
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/* अपरिष्कृतम् */ विषयानुक्रमणिका | विषयः । जातिव्यक्तिभ्यां सह स्वरूपेणानुभवात् लमवायः प्रत्यक्ष इति समानतन्त्रसिद्धान्तवर्णनम् । गोत्वसमवायीतिवद्विनैष सम्बन्धावभासं गो... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/५१
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/* अपरिष्कृतम् */ विषयानुक्रमणिका | विषयः । वैधर्म्य व्यतिरेक्यिनुमानं, तच्च पक्षविशेषणाप्रसिध्या. दिदोषसम्भवान्न प्रमाणमित्याशयेनाक्षेपः । अप्रसिद्धसाध्य संसर्गमिवाप्रस... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/५२
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/* अपरिष्कृतम् */ विषयानुक्रमणिका | अव्यापकातिव्यापकधर्ममात्रोपदेशो लक्षणं न त्वनुमा- नमिति पूर्वपक्षोपसंहारः । रत्नस्य क्रयादिव्यवहारयोग्यतानुमानवत्कर्तव्य. थिवीत्युपदे... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/५३
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/* अपरिष्कृतम् */ विषयानुक्रमणिका विषयः । संख्यापरिमाणपृथक्त्वानां वैधर्म्यम् । संयोग विभागपरत्वापरत्वानां वैधर्म्यम् । बुद्धि वैध ) लक्षणत द्विभागयोः कथनम् । अविद्यालय बुद... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/५४
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/* अपरिष्कृतम् */ विषयानुक्रमणिका विषयः । धर्म्यान्तरानभिधाने हेतुः । ५० ७७७ (६४) पदपदार्थसाधर्म्याक्षेपप्रकरणे- साधर्म्यवर्णनारम्भ हेतुप्रदर्शनम् । अभावोऽस्तीति प्रयोगदर्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
ft1hio7rk4mgtwto7zj0d8204kvt4zl
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/५५
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/* अपरिष्कृतम् */ विषयानुक्रमणिका | ४२ बिषयः । अरष्टत्वं च संस्कारत्ववज्जातिः स्यादित्याक्षेपः । अदृष्टत्वजातिलाधकानुमानखण्डनम् | शब्दादावेकत्वजातिः स्यादित्याक्षेपः | १० ७... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
4cqw4k9z2jb82bwwkwtjakdhv0or15s
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/५६
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/* अपरिष्कृतम् */ विषयानुक्रमणिका विषयः । तुल्ययुक्त्या गुणत्वापलापनिराकरणम् । असत्यपि प्रमाणे भूतत्वस्य जातित्वे जातिलाङ्कर्यापत्तिः किंशुक पुष्पादिकार्यस्व वसन्तादयुत... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
t0qm5r2kkdlkbcx3c2tcfr9rhz68f6q
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/५७
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/* अपरिष्कृतम् */ विषयः । १० अनुपाधित्वस्याप्रतिबन्धत्वादन्वयी हेतुरेव नास्ति तत् कथमुक्तसाधर्म्यव्यवस्थापनमित्याशङ्का | ८१८ केवलाम्वयिसाध्ये साधनवति साध्यायोगव्यवच्छेद... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
i7y27dox7g0q4iy3ssju4sc9gx7gcrj
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/५८
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/* अपरिष्कृतम् */ विषयः । विषयानुक्रमणिका | पृ० यणुकसाधकोपष्टम्भकव्याप्त्यन्तरप्रदर्शन र । ८२५ कार्यस्य दृश्योपादानकत्वे इन्द्रियासिद्धिप्रसङ्गापादनम् | ८२७ आरभ्यारम्भकवा... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
rr9ufedljhud5rac6ssvpovu8jqbbre
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/५९
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/* अपरिष्कृतम् */ विषयानुक्रमणिका | विषयः । । स्वमतेनोक्ताक्षेपसमाधानम् तंत्र क्षणप्रक्रिया सूचनम् । ( क० ) त्र्यणुकनाशस्यासमवायिनाशनाश्यत्वात्कथं यणुकना- शानन्तरं त्र्यणुकन... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
k5kxy0orf1shflv6hr6phklcrw6wtpl
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/६०
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/* अपरिष्कृतम् */ विषयानुक्रमणिका | विषयः । आपादिते संख्या परिमाणयोस्तुल्ये परिमाणानारम्भकत्वे विनिगमकप्रदर्शननापादननिरासः । चतुर्विधमपि जन्यपरिमाणं भाष्यस्याक्षेपः | उक्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/६१
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/* अपरिष्कृतम् */ ४८ विषयानुक्रमणिका । विषयः । यांगाधविभागजतकं न तदविरोधिविभागजनकमि. तिव्य तो विरोधिविभागार्जनानुकूल कर्मवैचित्र्यनिबृ त्तिोपाधिनिरासः । तुल्ययुक्त्याऽजन... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/६२
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/* अपरिष्कृतम् */ अशुद्धिः पुत्रः श्री पष्टष बवेवं स्तत् न्यादिलक्षण तिभावः तजज्ञान धत्वनेति भावदिति नीलत्वान षट्पदार्थाः। विधर्मे स्तु वैशिष्ट्ये पुरुष व्यङ्गस्वात् त्व सि... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/६३
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/* अपरिष्कृतम् */ अशुद्धिः, सामाप्रथ नवस्या स्यन्दा विराधि न्धे नैर भावस्या बर्दिभाव भावेन षडेव द्रव्यानीति रीक्षकानां तत्मात्र बेति मण्यादो वेनै बढ्य स्यस्येर्थः च्छेन पदेन... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/६४
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/* अपरिष्कृतम् */ अशुद्धिः वायुत्वदि विनिगकं श्रीव्याप्तिः मनस्वदि यद्रव्ये सिद्धर्थ भूमी नत्वाग दीति ब्राह्मणोप साधने मे. रो द्रव्या वोश्वाधी योगोपपास्थ पक्षाता कालीश यास्त... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/६५
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/* अपरिष्कृतम् */ अशुद्धिः त्वं स्यात् कारण व्यदष्ट त्मनःसंयो हाजहा ·ष इत्याह स्यातू वैशेषिकारणां तर्मात महद्य गोचरबहुत्व · एव तावन्ति • समन्धा सम्बन्ध पेक्ष कोप तिपिद्धम ह्यभ... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/६६
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/* अपरिष्कृतम् */ July. Re.fistered According To det XX: se: (All Rights Reserved.) THE CHOWKHAMBA SANSKRIT SERIES; COLLETION OF RARE & EXTRAORDINARYSANSKRIT WORKS. A NO.355 न्यायलीलावती श्रीवल्लभाचार्य्यविरचिता श्रीभगीरथटक्कुरकृतववृतिमनाथेन श्रीवर्धमानोपाध्यायकृन--... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
7ywndrx7ybjchja43hvn8ov8vm59o1w
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/६७
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/* अपरिष्कृतम् */ 1 2 3 Agents: Luzac & co, Booksellers, LONDON, Otto Harrassowitz, Leipzig: GERMANY. The Oriental Book supplying Agency, POONA, नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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dzak3fh3fhuhj1pv7i3dzleemvszpuk
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/६८
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/* अपरिष्कृतम् */ निवेदनम् श्रीकण्ठाश्लिष्टत नुर्हत बलिदानवविजृम्भमानश्रीः । कौमारजन्महेतुर्गौरी वा शौरिरस्तु भव्याय ।। १ ।। लकेशपूज्यचरणं मुकुन्दबल्लभमुमासमायुक्तम् । श... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
2o239vdn20y5kew3t4wr4djbconcjo9
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/६९
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/* अपरिष्कृतम् */ ल् निवेदनम् संस्कृत पुस्तकमालाप्रचारकर्म्मतैकनिष्ठो यः | जनयति बुधजनचित्ते नित्यं नवनवमुदास्वादम् ॥ १२ ॥ परिशेषे चास्माकं विलसतु तस्मिन् शुभाशिषां राशिः ।... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/९४
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता न्न | तदनभिधानात् । ततो भावाभावयोरपि तत्स्वीकारो दुर्वार एव । दण्डी पुरुष इति प्रतीतेश्च । शब्दमात्रामदामेति च... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
da59ulje207cw5jfaxaa0ywa10lnkq5
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/९५
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती आधाराधेयभावश्च मेयान्तरम् । संयोगसमवायावेव सप्त- मीत्रथमाभ्यामभिलप्यमानसम्बन्धिनौ तद्द्व्यहारहेतू इति चेन्न, न्यायलीलावतीकण्ठाभरणम् ति प्र... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
jv9b2o5qh5sfswpmnvwj2q3e18f8mir
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/९६
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण-सविवृतिप्रकाशोद्भासिता २७ इहायमितिप्रतीतिर्वैचित्र्यात् । शब्दमात्रत्वे तु सम्बन्धापलाप- प्रसङ्गात् । सादृश्यं च (१) गुणवृत्तित्वान... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
9sxhjzinlrhdnv42zcasewf8b75azhd
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/९७
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती २८ नाद्यः । प्रतियोगिनोऽनवभासे सादृश्यबुद्धेरभावात् । अस्त्येव च बुद्धिर्न व्यपदेशभागिनीति चेन्न, ब्राह्मणत्वा (१) देरपि निर्वि- न्यायलीलावतीक... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
dye77xdrfwb6n9sy7qu3d0fpd2k17wt
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/९८
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता २९ कल्पकबुद्धिवेद्यत्वापत्तेः । नान्त्यः | अवयवसामान्यानां मागेव ज्ञानात्सामान्यस्य च सामान्यान्तरेऽभावात... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
3a6okv1pabsvyaluyuu6zg13mvrzvy6
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/९९
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/* अपरिष्कृतम् */ ३० न्यायलीलावती द्रव्यादिषट्कविच्छेदमेलकेन विवर्जिताः ॥ भावत्वाधिष्ठानै कैकव्यक्तिमात्रे षड्लक्षणानां मिलितोऽ- योगो व्यवच्छिद्यते न तु मिलितानामयोगः | अय... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
gb9m4djffb4aggfdkkshqdc3nwybevv
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता न्यायलीलावती प्रकाशः नामध्यभावः सिद्ध्यति तर्हि मेलकिनामभावानामे कैकानामभावे वि धीयमाने कचिद्वाधः क्वचित्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
8m46p6g2z35m1zyv2qb27txb4irmoup
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१०१
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती गतोऽत्र समारोग्य निषिध्यते भूतले चैत्रवत् । ततश्च पलक्ष- न्यायलीलावतीकण्ठाभरणम् - ननु भावव्यक्तिषु प्रसक्तिरेव नास्ति कुतो निषेध इत्यत आह - समार... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
bp7cnd129t86cywnlykrz8lrilxzyao
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१०२
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण-सविवृतिप्रकाशोद्भासिता ३३ न्यायलीलावती प्रकाशविवृतिः गतधर्म्मपक्षता । षड़लक्षणावच्छेद्यं च षड्लक्षणत्वावच्छेद्यत्व मन्य- था षड्लक... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
n2b0pitup7whgztq9ienvi5jlzn1ulj
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१०३
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती णवदेव भावजातीयं मेयं (१) वाच्यमेवेतिवत् अयोगव्यवच्छेदस्य न्यायलीलावतीकण्ठाभरणम् लक्षणवत्त्वं षोढ़ा लक्षणवत्त्वमेको धर्मः स च प्रत्येकलक्षणव... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
fnuye52eyneijpbvwkp52cd8zz9w7lo
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१०४
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण-सविवृतिप्रकाशोद्भासिता पदार्थान्तरे भावत्वं नास्तीत्यन्ययोगव्यवच्छेदस्य वा विभा- गार्थत्वात् । अभावस्य च समानतन्त्रसिद्धस्याप्रत... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
q7poks958zfz9xhuifun0coftfcv81x
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१०५
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती मानसेन्द्रियतासिद्धिवदत्राप्यविरोधात् अभ्युपगमसिद्धान्तसि- द्धन्वात् । नीलं रूपमिति प्रतीतिश्च तमोविषयिणी यद्यपि अप सारितबाधा तदा ( १ )रूपमे... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
biu33j47fa11kvtbw3ex9arzyqa5ykk
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१०६
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण-सचिवृतिप्रकाशोद्भासिता ३७ सम्भवद्भाधा तदा आरोप एव, स्वभावभातनीलिमवत् । अथ रू- पाश्रयत्वबुद्धिस्तमसि तदा वाधावाधाभ्यां न पदार्थान्तरत... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
5k302pobqdohxbl07pyc0vyked6jkv8
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१०७
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती श्यः। न च तस्यैवोत्पादनाशहेतुत्वे युगपद्विनाशोत्पादप्रसङ्गः, अन्त्य, शब्दसहकृतस्यैव तस्य नाश हेतुत्वात् । एतेन प्रध्वंसहेतुकत्वमपा- स्तम् । अ... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
s4ktfysqhim10cearqfk5slx4byw2zc
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१०८
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण-सविवृतिप्रकाशोद्भासिता ३९ त्रिक्षणावस्थायित्वव्यवहारो न स्यात् । देशान्तरोदीरितान्त्यश- ब्दोपाधिकोऽसाविति चेन, उपाधेरनिश्चयेनान्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
ivk2zyemde2eyra1vgzl56f2e7qhhxr
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१०९
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती त (अ.) त्राभावस्वरूपं वोपाधिः, कर्मस्वरूपं वा, तयोः संवन्धो वा । नायौँ । तयोरनेककालव्यापित्वात् । नान्त्यः (न तृतीय: १ )। तस्या . न्यायलीलावतीकण्ठाभर... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
tmwpj2iy90v7odym6ykjksushdcbxc0
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/११०
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण-सविवृतिप्रकाशोद्भासिता ४१ नेककालव्यापित्वे क्षणव्यवहारविरोधात् । एकक्षणावस्थायित्वे च क्षणिकत्वापत्तेः । समानाधिकरणो सूर्यसंयोगव... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१११
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/* अपरिष्कृतम् */ ४२ न्यायलीलावती तस्यैव क्षणिकत्वस्वीकारात् । सत्यं, किं पुनः क्षण (१) सिद्धौ न्यायलीलावतीकण्ठाभरणम् द्वयसम्बन्धयोरित्यर्थः । तस्यैवेति । मेलकस्यातिरिक्तस्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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7j4i5nowr1j4nmdaqfb3z5su3pvku34
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/११२
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण-सविवृतिप्रकाशोद्भासिता ४३ मानं, क्षणवेदनम् । किं क्षणवेदनम् | अस्तमितपूर्वापर भाववस्तु- वेदनं वा क्रियावेदनं वा (१) तदुभयसंसर्गवेदनं वा... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/११३
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343923
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Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ 3 न्यायलीलावती इति प्रत्यक्षादेव क्षणनिरीक्षणमस्तीति चेन्न, क्रमिकसंयोगविभा गायुपाधित एव तत्प्रतीतेः । अनुमानादस्तीति चेन्न, लिङ्गा- भावात् । क्षणप्रयोगात्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/११४
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण-सविवृतिप्रकाशोद्भासिता नि क्षणशब्दप्रयोगः, तस्माच्च तदनुमानमितीतरेतराश्रयात् । न च प्रत्यक्षानुमानयोरभावे मानान्तरावकाशः । ततो मान... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/११५
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ ४६ न्यायलीलावती भावादिरूपश्चोपाधिः । केवलेऽपि तर्हुषाधावुपाधिमति च तद्रव्यव हारप्रसङ्गः । विशिष्टमिति चेन्न । किं वैशिष्ट्यं, ज्ञानविशेषस्तस्य न्यायलीलाव... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/११६
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Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण-सविवृतिप्रकाशोद्भासिता ४७ न्यायलीलावतीप्रकाशः त्यर्थः । तच्च स्वसामग्यधीनं कदाचिदेव तथा च विजातीयज्ञान- विशेषविषयौ कर्मतजन्यविभागप... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/११७
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Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती चान्यदाभावान व्यवहारः । तदभावश्च तत्सामग्रीविरहात् । रवेः स्पन्दः क्षणस्तस्य नानाक्षणविशिष्टता । क्रमिनानाविधोपाधिसम्बन्धः परिकीर्त्यते ॥... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/११८
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता असम्बद्धेषु तत्त्रेषु ज्ञानं सम्वन्धवत्पुनः । स्वभावनियमेनैव तत्सम्बन्धफलापकम् || अतिप्रसङ्गदोषस्य निराकरण... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/११९
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Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती स्वविषयेणोपाधिना तद्वता वा सहकृतं क्षणज्ञानं विशिष्ट व्यवहार समर्पकम् । यदा तु तदुभयसहकारिसम्पन्नं न भवति तदा केवलव्यवहारं करोति न विशिष्टव्य... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१२०
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Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण-सर्विवृतिप्रकाशोद्भासिता न्यायलीलावतीप्रकाशः द्वद्विषयत्वं वेत्यत्रानास्थेत्यर्थः । ननु क्षणव्यवहारोऽनुगतोऽननुगते- नोक्तनिमित्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१२१
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ ५२ न्यायलीलावती न्यायलीलावतीप्रकाशः अत्राहुः । स्वजन्यविभागप्रागभावसहितं कर्मैव क्षणः प्रलयेऽप्यणुकर्म. णः सखात । यद्यपि कर्मविभागप्रागभावयोः स्थायित्व... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१२२
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण-सविवृति प्रकाशोद्भासिता न्यायलीलावतीप्रकाशः ना विशिष्टधीजननयोग्यत्वरूपस्य तस्य क्षणिकत्वात् । न वान्यतर वैयर्थ्य नाप्यननुगमः । न च... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१२३
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ 30 न्यायलीलावती शक्तिरपि न (१)पदार्थान्तरम् । प्रमाणाभावात् (२) । अर्था- न्यायलीलावतीकण्ठाभरणम् 1 न च शक्तिरपीति । शक्तिपदवाच्यं वस्तु न पदार्थान्तरमित्यर्थः । क... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१२४
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता न्यायलीलावतीप्रकाशः भयाभावेष्वनुगतत्वादिति वाच्यम्, विशिष्टस्यातिरिक्तस्यानभ्युपग मेनानुगमात् । न च विशि... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१२५
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती पतिस्तत्र (१) मानमिति चेन्न, अन्यथैवोपपत्तेः । मणिमन्त्रादि- ना दाहप्रतिपक्षभूतस्य क्षेत्रज्ञसमवायिनोऽदृष्टभेदस्योत्पादनात् । अग्न्यन्तरेणा... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१२६
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ स्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता ५७ पकारिपुरुष समवेतादृष्टस्य दाहप्रतिपक्षभूतस्योत्पादनात् । प्रति- पक्षसाने धानोत्पादकादृष्टविशेषस्य वा द... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१२७
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती शेषार्जित करतलानलसंयोगस्य वा दाहमतिपक्षत्वम् । स च वि. शेषो दाहादाहाभ्यामेव कल्पयिष्यते । विवादास्पदं स्वरूपमात्र A न्याय लीलावती कण्ठाभरणम् य... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१२८
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता सम्बन्ध (१) सापेक्षं जनकत्वात् आत्मवदिति चेन्न, अत एव सं- स्कारादृष्टसापेक्षत्वप्रसङ्घात् । तत्रात्मत्वमुपाध... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१२९
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती न्यायलीलावतीप्रकाशः क्षया साध्याव्यापकत्वात् । अत्राहुः । अत्र यदि द्रव्यं पक्षस्तदाऽवय- विनि स्यन्दानुकुलस्थितिस्थापकेन नित्यद्रव्ये च योग... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१३०
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता ६९ कृतेऽपि । शक्तेरपि शक्त्यन्तरापेक्षायामनवस्थितेः । अनपेक्षत्वे तथैव (१) व्यभिचारात् । जननशक्तियोग्यत्वं ज... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१३१
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती न्न, आसिद्धेः । तस्माद्विवादाध्यासितं न निजरूपमात्र सम्बद्धाती- न्द्रियसापेक्षं प्रमाणेन तथानुपलभ्यमानत्वात् । यत्प्रमाणेन य न न्यायलीलावतीक... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१३२
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ म्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशासिता ६३ न्यायलीलावतीप्रकाशः ल्पनादुपजीव्याविरोधात् सहकारिप्रत्याख्याना पत्तेश्च व्यक्त्यैक्ये चास- न्यायलीलावतीप्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१३३
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ म्यायलीलावती था नोपलभ्यते न तत्तथाभूतं, यथा नीलं न पीतं रूपम् । न्यायलीलावतीकण्ठाभरणम् भावः । ननु अर्थापत्तावुक्तान्यथोपपत्तिर्न सम्भवति न हि मणिज- न्यमदृष्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१३४
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता न्यायलीलावतीकण्ठाभरणम् रिति वाच्यम्, एवं सत्युत्तेजक कालेऽपि दाहो न स्यात् प्रतिबन्ध काभावस्य सहकारिणोऽभाव... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१३५
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती न्यायलीलावती कण्ठाभरणम् काभावस्य कारणत्वमुत्तेजकाभावावच्छिन्न प्रतियोगिक प्रतिबन्धका- भावस्येति यावत् । प्रतियोगितावच्छेदक भेदेनाभावभेदा... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१३६
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता न्यायलीलावतीप्रकाशः । शेष्याभावे तदुभयाभावे च साधारणत्वात् । एतेन कारणानि स्वज. न्यजनकाद्विष्ठातीन्द्रियभा... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१३७
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती नापि ज्ञातता | निराकरिष्यमाणत्वात् । नापि वैशिष्टयम् | न्यायलीलावतीकण्ठाभरणम् तत् पदार्थान्तरं स्यादित्यत आह - नापीति । नापि वैशिष्ट्यमिति । प न... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१३८
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण-सविवृतिप्रकाशोद्भासिता ६९ घटाभावभूतलयोस्तदननुभवात् । इह भूतले घटो ना. स्तीति व्यपदेशमात्रम् । असति सम्बन्धेऽत्र घटाभावो नान्यत्रे ति... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१३९
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती कत्वं पुरुषस्य दण्डाघारत्वं प्रतीयते व्यपदेशमात्रं वा । बिप रीतस्तु न व्यपदेशोऽनभिधाननिरस्तत्वात् ।तद्धि तस्य विशेषणं विशेष्यं च तत्सम्बन्धफ... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१४०
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठामरण- सविवृतिप्रकाशोद्भ- सिता ७१ ज्ञानरूपं स्वसामर्थ्याद्वैशिष्ट्यमिति कीर्तितम् || न्यायलीलावतीकण्ठाभरणम् दि तदर्पकं तज्जनकं शेषण यंत्र... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१४१
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती न्यायलीलावतीप्रकाश: सत्वात् | भावत्वे च पटस्य प्रतिबन्धकत्वे पटाभावस्य पटाभावधी- हेतुतापत्तेः, तस्य च वैशिष्ट्य सम्बन्धेन तत्र सत्त्वात् । वैशि... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१४२
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता आधारत्वं तु गुरुत्वप्रतिबन्धकत्वं कचित्समवायिकारणत्व मभिव्यञ्जकत्वं वेत्यूहनीयम् । अन्यथा तस्योभयवृत्तित... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१४३
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती न्यायलीलावतीकण्ठाभरणम् तथा प्रतीतावपीष्टत्वात् । आश्रयासिद्धिरपि तद्विशेषणवत्तासिद्धिरे वानुगता। भूतले घटाभाव इत्यत्रापि अभावस्यैव विशेष... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१४४
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Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता त्रापि सप्तमी स्यात् । एकवृत्तित्वे च सम्बन्धत्वव्याकोपः । ७५ न्यायलीलावतीप्रकाशः तत्तत्प्रतिबध्यपतनाश्रय... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१४५
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/* अपरिष्कृतम् */ ७६ न्यायलीलावती नापि सादृश्यम् | तद्धि सामान्यादेरनेकवृत्तित्वम् । तच्चे- कव्यक्तिग्रहणसमयेऽगृहीतमपि प्रतियोगिग्रहेऽवगम्यत इति सिद्धं न्यायलीलावतीकण्ठा... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१४६
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण-सविवृतिप्रकाशाद्भासिता ७७ पडेव पदार्था इति । विचारासहत्वाच । तथाहि तत्स्पर्शवन्न वा । नेति पक्षे एकवृत्ति न वा । आद्ये द्रव्यत्वम् । द्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१४७
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती वृत्तित्वादि गुणादित्वे न स्यादिति किं प्रसङ्गमात्रम्, अथ गुणवृत्तित्वादेः स्वीकृतपदार्थातिरेकसाधनम् । नायः । स्वत न्त्रतर्कस्यादूषकत्वात्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१४८
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण-सविवृतिप्रकाशोद्भासिता ७९ षट्पदार्थातिरेकित्वस्य विरोधादशक्यसाधनत्वात् । न्यायलीलावती कण्ठाभरणम् त्वं चेत्युक्तरूपचतुष्टयम् । चत... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१४९
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती न्यायलीलावतीप्रकाशः ननु स्वत्वं पदार्थान्तरमस्तु । तद्धि न सामान्यादित्रयात्मकमु- त्पत्तिविनाशशालित्वात् । नापि द्रव्याद्यात्मकं गुणेऽपि व... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१५०
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण-सविवृतिप्रकाशोद्भासिता न्यायलीलावतीकण्ठाभरणम् स्य तत्र क्रमेण विनियोगः | न च तद्धनविनियोगे शास्त्रशिष्टवि भागाभाव (१) प्रसङ्गः, द्यूत... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१५१
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती न्यायलीलावतीकण्ठाभरणम् - त्यपि यथेष्टविनियोगप्रतिबन्धो वाचनिकः । यथा - "एको धनीकः (शः १) सर्वत्र दानाघमन (१) विक्रय” (२) इत्यादौ, “सा यथा कामम श्रीयात... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१५२
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता नन्तरं यथेष्टविनियोगदर्शनात्तयोः कार्यकारणभावः, स च न सा- क्षात्सर्वत्र प्रतिग्रहादीनां आशुविनाशित्वात्, वि... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१५३
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/* अपरिष्कृतम् */ ❤ म्यायलीलावती न्यायलीलावतीप्रकाशः विनियोगे फले विशेषाभावात् । न हि परकीयस्वत्वास्पदान्नभ क्षणे न बुभुक्षा प्रशाम्यति । मैवम् । शब्द एव हि स्वत्वे मानम् । तथ... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१५४
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशाद्भासिता ८५ न्यायलीलावतीप्रकाशविवृतिः लमस्वत्वापत्तिः । नोपलक्षणं क्रीत्वा विक्रीते प्रसङ्गतादवस्थ्यात् । न च तत्र... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१५५
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती न्यायलीलावतीप्रकाशः इत्यनेन स्थावरे स्त्रीणां भोग एव स्वत्वं न दानविक्रययोः । अत्रोच्यते । स्वत्वं न यथेष्टविनियोगविषयत्वं स्वं नियु. ज्यते न... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१५६
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता ८७ न्यायलीलावतीप्रकाशः न तद्वत्पदार्थान्तरत्वम् । न च क्रयादीनामननुगमाद्योग्यताननुगमो लक्षणदोषः, स्वत्वस्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१५७
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती नन्वेवमपि न्यून (?) त्वम् । तथाहि क्षित्यादिकं द्रव्यत्वाद् न्यायलीलावतीकण्ठाभरणम् एवमपीति । अतिरिक्तपदार्थनिषेधेऽपि न्यूनत्वं विभागस्य दुष्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१५८
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता गुणवत्वाद्वा भिद्यते । नायः । तदसिद्धेः । अनुगतमतेः सन्दि- ग्धत्वात् । स्वातन्त्यूधीरिय ( १ ) मिति चेन, शब्देऽपि... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१५९
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती रूपस्य भागासिद्धेः । आदित्वस्यैव प्रतिक्षेपात् । अन्यतमत्वस्य न्यायलीलावतीकण्ठाभरणम् विंशतौ गुणत्वमेकमनुगतं स्यात्तदा क्षित्यादिनवकभेदकं... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१६०
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता न्यायलीलावतीकण्ठाभरणम् पवत्वरसवत्वादावेव पर्यवस्येत, तच्च भागासिद्धमेवेत्यर्थः | नवा नां समवायिकारणत्वेनॅ... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१६१
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती भागासिद्धेः। (१) असमवायिकारणत्वेन (२) गुणकर्मणोररूप्येकत्वे षडेवेति नियमानुपपत्तेः(३) । कार्याश्रयत्वं यज्जाति पुरस्कारातत्त- न्यायलीलावतीकण्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१६२
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशाद्भासिता ९३ द्रव्यत्वं भेदकमिति चेन, तां विनापि (१) तदुपपत्तेः । अ कार्यजात्याश्रयत्ववत्कारणत्वमसति बाधके सामान्य एव पर... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१६३
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती श्र गुणशब्द सङ्केतो, न चासौ व्यक्तिपु शक्यो, व्यभिचारात् । नाप्युपलक्षणान्तरेण | कर्मव्यावृत्तेरशक्यत्वात् । तदन्यत्वस्थान- पेक्षितव्यावृत्ति... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१६४
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता न्यायलीलावतीकण्ठाभरणम् धयति — कालेति । संयोगजनकत्वेन विभागजनकत्वेन चेत्यर्थः । तथा कालाकाशादयः सत्तेतरजाति... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१६५
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती न्यायलीलावतीकण्ठाभरणम् मत् समवायिकारणत्वात् आकाशवदिति तत्रापि तत्सिद्धेः सम वायिकारणतावच्छेद कजात्यनङ्गीकारे नियामकमन्तरेण तदाकस्मिकं स्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१६६
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण-सविवृतिप्रकाशोद्भासिता ९७ भागजनकत्वेन कर्मवत्सत्तेतरजातिमत्त्वसिद्धेः स्पर्श समवायिकारणत्वनिर्वाहकजातिस्वीकारे बाधकः । न च कर्मत... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१६७
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/* अपरिष्कृतम् */ V न्यायलीलावती न्यायलीलावती प्रकाशः वादिति वाच्यम्, नित्यस्य स्वरूपयोग्यस्य सहकारियोग्यतावश्य म्भावात् । एतश्च स्पर्शत्वस्य कार्य्याकार्य्यवृत्तित्वेन क... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१६८
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/* अपरिष्कृतम् */ म्यायलीलावतीकण्ठाभरण-सविवृतिप्रकाशोद्भासिता त्वात् । न चानुगतबुद्धिगम्या जातिस्तदपायाद् व्यावर्तते । गृहीत- समयस्य रत्नतश्ववद्भानात् ( १ ) | प्रतारणैवेय ( २ )... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१६९
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/* अपरिष्कृतम् */ १०० न्यायलीलावती मेकव्यक्तिजनकत्वे व्यक्त्यन्तरे तद्बुद्धिविरहापत्तिः । भावे वा सर्वव्यक्ति ष्वतिप्रसङ्गः । कतिपयव्यक्तिनिष्ठत्वं तु यदि जातिमन्त रेण तद... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१७०
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/* अपरिष्कृतम् */ tonida accordina Act ofXXV of 1867.4l Rights Reserved.) April THE |CHOWKHAMBA SANSKRIT SERIES, A COLLECTION OF RARF & EXTRAORDINARY SANSKRIT WORKS. NO. 376 न्यायलीलावती श्रीवल्लभाचार्यविरचिता श्रीभगीरथठक्कुरकृतविवृतिसनाथेन श्रीवर्धमानोपाध्यायकृत- "प... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१७१
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/* अपरिष्कृतम् */ 1 2 3 * श्रीः आनन्दवन विद्यौतिसुमनोभि. सुसंस्कृता । सुवर्णाऽङ्कित भव्याभशतपत्रपरिष्कृता ॥ १ ॥ चौखम्बा - संस्कृत ग्रन्थमाला मञ्जुलदर्शना । रसिकालिकुलं कुर्यादमन... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१७२
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण-सविवृतिप्रकाशोद्भासिता १०१ न्यवश्वात् कर्म्मवत् | उपदेशश्च यत्र सामान्यवच्चे सति संयोगवि भागात्मक कार्यद्वयाभावस्तद्गुणत्वव्यञ्जक... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१७३
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/* अपरिष्कृतम् */ १०२ न्यायलीलावती ब्राह्मण्यमितिवत् अर्थत्वमपि स्यादिति चेन, तस्य सत्तासम्ब न्यायलीलावतीकण्ठाभरणम् जाति: स्यादित्यत आह - अर्थत्वमिति । अन्यथा त्रयाणामर्थशब... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१७४
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता १०३ न्धित्वपर्यायत्वात् । अन्यथा बुद्धित्वज्ञानत्वादिनानासामान्या पत्तेः । न चात्र व्यतिरेकशङ्का निरुपाधि... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१७५
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती न्यायलीलावतीप्रकाशः रणत्ववन्ये जातिमति यत्कारणत्व तदसति बाधके जातिरूपधर्मा. वच्छेद्यमिति गुणत्वं सामान्यमवश्यमङ्गीकार्य रूपत्वादीनां मिथो... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१७६
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासितां १०५ न्यायलीलावतीप्रकाशः द्रव्यस्य तन्निमित्तकारणत्वेन समावेशात् । सामान्यस्य तो कारणतापि न सामान्यसमानाध... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१७७
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती न्यायलीलावतीप्रकाशः संयोग तिरिक्तकारणत्वेन गुणकर्मणोरेका जातिः सिद्धयेत् तस्य जात्यव्यव स्थापकत्वात् । अन्यथा निमित्तकारणतातिरिक्तकारणत्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१७८
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण-सर्विवृतिप्रकाशोद्भासिता १०७ , पृथिवी तावत्पृथिवीत्व जातियोगान भिद्यते तत्र माना- भावात् । पृथिवीत्यनुगतव्यवहारादिति चेन्न, घृतादौ त... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१७९
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती न्याय लीलावतीकण्ठाभरणम् इत्यत आह -- आगमने वेति । उपलभ्यमानगन्धाश्रया भागा यदि दूरोपलभ्यमानचम्पकयुतसिद्धाः स्युश्चम्पकावयवा न स्युरित्यर्थः ।... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१८०
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता १०९ चम्पकदलानां सच्छिद्रत्व ( १ ) प्रसङ्गात् ( २ ) | कर्पूरे च भवनोदर मधिवासयति मापकादित्रुटिसङ्गात् । न चापरपरमाण... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१८१
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती द्धिरिति चेन्न, व्यावर्त्यजलरूपसंख्यादी नामपाक जत्वामतीतौ विशे- षणवैयर्थ्यात् । अवैलक्षण्यात्तत्प्रतीतौ तु अत्रापि तद्विपर्ययावसायात् न्या... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१८२
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता १११ न्यायलीलावतीप्रकाशविवृतिः धिकरणा द्रव्यत्वसाक्षायाच्या जातिर्जलत्वादिः, तत्समानाधिकरणो गुणः स्नेहादि... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१८३
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/* अपरिष्कृतम् */ ११२ न्यायलीलावती बाघः । विशेषगुणत्वं च एकद्रव्यवृत्तित्वं (१) कतिपयद्रव्यवृत्तित्वं न्यायलीलावती कण्ठाभरणम् तदित्यपि म्यम् । स्वासमानाधिकरणद्रव्यत्वसाक्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
is5l68g1fc5n4ijd0cxtsjce84knz90
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१८४
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता ११३ वा | नाथः । स्पर्शस्यानेकद्रव्य वृत्तित्वात् । पाकजत्व विशेष (१)- न्नैवमिति चेन्न, तस्यैवासिद्धेः । द्वितीये... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
cdoac6xk72f62ki00eevzkgqxwonhgl
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१८५
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/* अपरिष्कृतम् */ ११४ न्यायलीलावती त्वम् । न चैतन्नानाव्यक्तिनिष्ठम्, सति भावमात्रस्याहतुत्वात्मक स्वात् (१) | सावधारणस्य ( २ ) च व्यभिचाराचासु सिद्धे: । ततस्त- त्प्रयोजक जातियोगि... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१८६
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण-सर्विवृतिप्रकाशोद्भासिता ११५ न्यायलीलावतीप्रकाशः सङ्गः | अपि च पाकाद्रपादीनां परावृत्तिरुत्पत्तिश्च दृश्यते, जलादौ च नियमेन न दृश्यत... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१८७
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती गन्धवस्वमेवातिप्रसङ्गीति वाच्यम्, अनिलादौ चम्पकगन्धिकर्पूर- - गन्धीत्युपाधिभेदसम्भेदेनैव (१) कुङ्कुमारूणा तरुणीत्यादिवत् तत् प्रतीतेः (२) । न च... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१८८
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण-सविवृतिप्रकाशोनासिता १९७ कादौ सच्छिद्रतापत्तिरिति(२) । वायोर्गन्धवचे उद्भूतस्पर्शस्य (२) चाक्षुषतापत्तेः । रूपवत्वं प्रयोजकमिति चेन्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१८९
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती स्पर्शभेदस्य प्रतीतेः । अन्यत्रापि च तीव्रसुकुमारादिभावन विशेषप्रतीतेः । यत्र तु न प्रतीयते विशेषस्तत्रापि पार्थिवस्पर्श- न्यायलीलावती कण्ठा... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१९०
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126387
344000
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Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ म्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता १९९ त्वेनैव रूपादिवदनुमानम् । न चैवं तोयादौ प्रसङ्गः । तज्जा- भ्यायलीलावतीप्रकाशः - पक्षेतरत्वात् । न च साधनाव... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
qat1qcwix3t8mjdkhxwixewnlbemfc1
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१९१
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ १२० न्यायलीलावती तीये कचिदपि विशेषाप्रतीतेः । तस्मादेभिरेव लक्षणैः पृथिवी- तरेभ्यो भियते इति सर्वे रमणीयम् । सा चेयमवयवजन्या न त्वणुसंहतिमात्रम् | स्थूलप्रत... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१९२
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Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण-सविवृतिप्रकाशोद्भासिता १२१ परमाणावनुपपत्तौ तदतिरिक्तवस्त्वालम्बनत्वात् । तथा हि अणवो नापरोक्षबुद्धिविपयाः, परमसूक्ष्मत्वादेकाणुव... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१९३
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126390
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Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती " विशिष्टोत्पादादैन्द्रिय क त्वमिति चेन, तदनभिधानात् । तथा हि किं चक्षुरादिभिः सहोत्पादो विशिष्टोत्पादः उत तद्दर्शनजन- कतयोत्पादः अथ तदर्शन विष... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१९४
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Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता १२३ यवित्वं वाऽणूनां न सम्भवति । स्वरूपभेदस्तु अदृश्यरूपसन्त- तौ यदि नयनादिसाहित्येनोत्पद्यते [तदा] अदृश्येन... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१९५
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ १२४ व्यायलीलावती चेन, एक [:१]स्थूल इत्यनुभवात् । एक इति विकल्पमात्रमिति चेन, अणूनां यथानुभवं निश्चयविषयत्वे अनेकतानिश्चयमसङ्गात् । अयथानुभव (१) तु निश्चय विषयत... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१९६
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Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता १२५ रुद्धधर्मसंसर्गात् । अत्र तु तद्विरहात् । अत्रा [य]ता [कृत- त्वा] नावृतत्वविरुद्धधर्मसंसर्ग इति चेन, अर्धावर... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१९७
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती १२६ एव । द्वितीय तु तत्परिमाणं परिमाणसामान्यविशेषो वा अभि. व्यञ्जक भूयोऽवयवेन्द्रिय सन्निकर्षमोषान्न प्रतीयते, न त्ववयविन आवरणात् । अवयवि[स्व]र... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१९८
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता १२७ धर्मिंप्रतीतावपि च धर्माणामप्रतीतिर्व्यञ्जकाभावादुपपत्स्यते । अस्तु तर्हि सकम्पत्वनिष्कम्पत्वमिति चे... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/१९९
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Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ १२८ न्यायलीष्टाचती अनिस्यसम्बन्ध एव युतसिद्धिरिति चेन्न, चराचटस्वस्य तेन प्रतिबन्धाभावात् । अत्र हि तेन व्यभिचारायुषरम्भो वा प्रति बन्धनिश्चयहेतु (१) व्य... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२००
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण-सविवृतिप्रकाशोद्भासिता १२९ गोचरत्वमपि स्यात् । आक्रान्तदेश विभागेऽपरदेशावष्टम्भः कम्पो भागिनि प्रत्यक्षसिद्धः, पाणौ भागान्तरे [तु] न... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२०१
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ १३० न्यायलीलावती द्यत्वं वा । नाद्यौ । असिद्धेः । न तृतीयः । महारजनस्यैक स्योभयावच्छेदकत्वात् । न तुरीयः । ज्ञानस्यैवोभयावच्छेद्य- त्वात् । किञ्चिदेव केनचिन्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२०२
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण-सर्विवृतिप्रकाशोद्भासिता १३१ दिति मूकीभव । (इति) पृथिवी । शुक्लमेव रूपमपामिति न सङ्गच्छते, नीलिमादेरप्युपल- म्भात् । औपाधिकं तच्चन्द्र... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२०३
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/* अपरिष्कृतम् */ १३२ न्धायदीरावतौ नीलिमापि तरि प्रतीयेत, घटादाविष तेजोमध्यवर्तिनीति चेन्न; पित्तामिभूततेजसः श्वैत्यवन्नीलिम्नोऽप्यप्रतीतेरुपपत्तेः । स्फ- यिकादिविद्या !... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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3283
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२०४
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतकण्ठाभरण-सविवृप्रकाशोद्भासिता १३३ दिविलक्षणवेदनमेव माधुर्यवेदनमिति चेन्न, मधुरत्वा (१) दि. विपरीत ( २ ) वेदनमेव हि तिक्ता दिवेदनमित्यपि तुल्यत्वात... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२०५
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती स्वाश्रयमत्यासत्च्या तदुपलम्भ इति चेत् (१), आप्यत्वे बाध काभावात् । अन्यत्र तद्विरहेणैवापामुपलम्भादिति चेन्न, पृथिव्या अपि मधुरताया आप्यत्वापत... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२०६
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Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता १३५ प्रत्यक्षमिति चेन्न, तिमिरे उष्णोदकचाक्षुषतापत्तेः । तदा क चित्स्वभावतोऽप्युष्णतोपलभ्येतेति चेन, कनकाद... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२०७
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ १३६ न्यायरीलावती त्रापि परं तस्मरतिवद्धमिति चेन्न, घृतादावपि तुल्यत्वात् । तैरेऽपि सखा । तत्राप्यमेव द्रवत्यमिति चेन्न, तत्रापसम्बन्धे(९) तैरस्य दहनप्रति... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२०८
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता १३७ स इति चेन्न, द्रवत्वस्यापि तथात्वप्रसङ्गात् । क्षितिपयसो- रभेदे गन्धानुपलम्भो वाधक इति चेन्न, नियतावान्तर... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२०९
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती मानाभावादिति मुकीभव | जलमतन्न पृथिवीति चेन्न, घृतमे तन्त्र पृथिवीत्यत्रापि तुल्यत्वात् । मैवम् । शुक्लमेव रूपमभास्वरमपां १३८ न्यायलीलावतकण्ठा... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२१०
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतकण्ठाभरण-सर्विवृतिप्रकाशोद्भासिता १३९ । लक्षणमिति । न च तेजसा नीलिमाभिभवः | घटादावभावात् | न. चस्वाच्छयोगात् स्फटिकवदिति वाच्यम्, इन्द्रनीलादावभ... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२११
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ १४० न्यायलीलावती त् । तथा हि स्नातकस्य हरीतकीरसस्वादानन्तरं (१) वाराणसी- परिसरे कमण्डलुपरिस्खलद मलजाइ वीजल (२) विमलधारासु म न्यायलीलावतीकण्ठाभरणम् समानाधिकरण... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२१२
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण-सविवृतिप्रकाशोद्भासिता १४९ धुराकारा मनीषोन्मिषति । न च कषायद्रव्यस्यैव तत् | रसा- न्यायलीलावतीप्रकाशः त्तेः । अत्राहुः । रसनाप्यत्वसा... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२१३
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती न्तराणामप्युपलम्भापत्तेः । न च जलेनैव तत्र माधुर्यमुत्पाद्यते । ९४२ न्यायलीलावतीकण्ठाभरणम् पलभ्यत इति तिक्तमपि जलं स्यादिति वाच्यम्, तैक्त्य... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२१४
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण-सविवृतिप्रकाशोद्भासिता १४३ पृथिवीरसस्या कारण गुणपूर्वकस्य पाकजत्वनियमात् । न च हरी- तकीमाधुर्यस्य प्रकर्ष एवाम्भसा व्यज्यते । तदीयकष... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२१५
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती १४४ दि विमलजलदव्यूहानिरर्गल विगलदमलजलभारधारासारसञ्चा. रिनभस्तलनिहितविमलभाजनसम्भृतमपगत विविधोपाधिव्याधिस म्भेदम मृतद्रवमीतममानन्दजनकमम्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२१६
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण-सविवृतिप्रकाशोद्भासिता १४५ मात्रस्यान्नादिसाधारण्यस्यानुभवात् । अन्यथा मेरुसर्षपयोरपि सत्ताविलयापत्तेः । न तुरीयः । व्यवहारबाधित... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२१७
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ १४६ न्यायलीलावती Sपि स्पर्शप्रतीतेरविरोधात् । आप्यद्रवत्वस्यापाकजत्व (१) व्याप्त त्वात् । ( न च ) कनकद्रवत्वव नैमित्तिकत्वं, न च घृतद्रवत्वप्रति- वन्दी ग्रह: (२) ।... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२१८
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण-सविवृतिप्रकाशोद्भासिता १४७ स्य स्नेहमकर्षवश्वेन दहनानुकूलत्वात् । आप्यमेव द्रवत्वं घृतद्र. वत्वस्य पाकजत्वेन पार्थिवत्वात् । एवं च स... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२१९
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती स्नेहस्य दहनानुकूलतोपपत्तेः । (इति) जलम् | न्यायलीलावतीकण्ठाभरणम् तुत्वादित्यर्थः । तदुपचयहेतुत्वं च तदुत्कर्षापकर्षप्रयोजकोत्क र्षांपकर्षव... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
dm0nbf8nz8pt87yyv88rhhetpthrqmi
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२२०
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतकण्ठाभरण-सर्विवृतिप्रकाशोद्भासिता १४९ शुक्रमेव भास्वरं च रूपं तेजस इत्यसङ्गतम् । अग्नेररुणादिरू- पोपलब्धेः कनकरूपस्य चाभास्वरत्वात् । संयोगिप... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२२१
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/* अपरिष्कृतम् */ १५० न्यायलीलावती रूपं न गृह्यत इति ( १ ) चेन्न, रूपस्पर्शयोस्तैजसयोश्चाग्रहे कनकद्रव्यस्याप्रत्यक्षतापत्तेः । अभास्वरमिति (२) चेत्, सिद्ध- मीहितम् ( ३ ) | नाप्युष्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
ax0du30aqhiniqzus58tgnx1k3i0o4a
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२२२
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता १५१ ( मात्र ) विलयात् | मैवम् । अग्नेररुणादिरूपप्रती तेरौपाधिक त्वात् । कनकरूपं च पार्थिवरूपाभिभूतमेव हीनत्वात... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२२३
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती न्यायलीलावतीकण्ठाभरणम् स्यादिनि यदुक्तं तत्राह- -तेजोंऽश इति । कार्थ्यलक्षणेन कनकलक्षणं तेजोनि मिति तद्रूपं पार्थिवरूपाभिभाव्यमिति कल्पनीयम... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२२४
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- -सविवृतिप्रकाशोद्भासिता १५३ हीनतायाः कार्यैकगम्यत्वात् । प्रभास्पर्शस्त्वतीन्द्रियोऽनुमाना- दुष्ण एव तेजस्त्वादवगम्यते । ननु सुवर... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२२५
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/* अपरिष्कृतम् */ १५४ न्यायलीलावती धिकत्वेन शङ्कितमिति चेत्, (१) तुल्यं द्रवत्वेऽपि | मैवम् । पीतिमा च गुरुत्वं च दाहे यत्र ( २ ) च रक्तता | तस्य लोकप्रसिद्धस्य स्वर्णत्वं केन वार्यत... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२२६
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीटरावतीकण्डाभरण-सविवतिप्रकारोद्धसिता १५५ वस्तुभेदे प्रसिद्धेऽपि शब्दसाम्यं प्रवर्तेते । रसः स्वमावमधुरो ध्वनिश्च मधुरो पथा॥ भूसंसगवसाचास्य रूप... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२२७
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126424
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2022-08-17T08:35:31Z
Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती न चात्यन्तानलसंयोगेऽप्यनुच्छिद्यमानत्वा गुरुत्वमध्यभौमं स्यात् । अत्यन्ताग्निसंयोगेन नष्टगुरुत्वस्यैव पुनरुत्पत्त्याविरोधात् काठिन्यवत... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
rk389bi59v03xa5bzphawbfb4qpiuew
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२२८
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता १५७ रापत्तिश्चेद्भवत्येव न प्रतीयते च तदा [ रूपं, ] तेजोरूपेणाभि- भूतत्वात् । प्राकृतरूपशपत्तिस्तु अग्निसंयोगन... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
e0lnz8zqgsh0a73xduaxr1se3aw4epb
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२२९
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती न्यायलीलावतीकण्ठाभरणम् र्थिवभागे व्यभिचारि च तदानीं तस्यापि द्रुतत्वात् । यदि च तैजसत्वं साध्यं तदा जलपरमाणौ व्यभिचारः, सपक्षाच्च प्रदी- पादेर... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२३०
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ ज्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता १५९ न्याय लीलावती कण्ठाभरणम् द्रुततैजसत्वस्य काव्यप्रसिद्धेः । न च तेजस्त्वं द्रवस्ववत्ति रूपवद्वृत्ति- द्र... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२३१
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ ब्यायलीलावती न्याय लीलावतीकण्ठाभरणम् न च पूर्वहेतुना तैजसत्वं न साध्यं किन्त्वपार्थिवत्वं तथा च जन्य- परमाणुरन्वयदृष्टान्त इति वाच्यम्, उपष्टम्भकभागे व्यभ... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२३२
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायकीलावतीकष्ठाभरण-सविन्ुतिश्रकाशोद्धासिता १६९१ न्यायरीलावतीकण्ठाभरणम् सयोगेऽपि भस्मानारम्मकन्वादिति मानम् ,घरदौन्यभिचारात्।नच परमाणुत्वेन धिश... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
pndr92747jk8123sz3thpy5qff8j31w
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२३३
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ म्यायलीलावती न्यायला लावतीकण्ठाभरणम् यतम्, घृतद्रवत्वे तु न तथा, तत्रात्यन्तनाशस्यैवोपलब्धेः । अत्र तु ता. रतम्य मात्रानुमेयो नाशः । एवं च द्रवत्वसामग्य समवह... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२३४
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता १६३ द्रव्यसंयुक्तमत्यन्ताग्निसंयोगेऽपि पूर्वरूपविजातीयरूपानाधारपार्थि. वत्वात् क्वथ्यमानजलमध्यस्थपीतपट... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२३५
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती न्यायलीलावतीप्रकाशः , अत्रोच्यते । विवादाध्यासितं द्रवत्वाधिकरणं तैजसं असति विरो. धिद्रवद्रव्य सम्बन्ध अत्यन्ताग्निसंयोगानुच्छेद्यानित्यद्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२३६
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण-सविवृतिप्रकाशोद्भासिता १६५ न्यायलीलावती प्रकाशः ग्यवृत्तिद्रवत्वत्वव्याप्यजातिमद्रवत्व हेतुः । उपष्टम्भके च न द्रवत्वं पार्थिवद्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२३७
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126434
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती ननु वायुसत्वे किं मानम्, अध्यक्षमनुमानं वा । नायः, न्याय लीलावतीकण्ठाभरणम् नन्विति । नीरूपे स्पर्शाश्रयत्वे कि मानमित्यर्थः । मीमांसकमते मानमध... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२३८
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता १६७ अरूप (१)द्रव्यत्वात् । नेतरः, (२) लिङ्गाभावात् । स्पर्शादिचतुष्कं न्यायलीलावतीकण्ठाभरणम् एकग्रन्थेन वा विक... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२३९
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती न्यायलीलावतीप्रकाशः हेऽपि त्वचाग्रहात् तज्जातीये च फूत्कारादौ संख्याग्रहात् । न च प्रत्यक्षविषयत्ववत वहिरिन्द्रियजन्यतद्विषयत्वमपि नैकरूप... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२४०
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशांद्भासिता १६९ न्यायलीलावतीप्रकाशः प्रत्यक्षत्वात् । न च पूर्वोत्तरदेशानुपलम्भोपलम्भाभ्यां तयोरनुमानं पूर्वोत्तरदे... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२४१
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती लिङ्गमिति चेन्न, स्पर्शस्य घराश्रयत्वेनाप्युपपत्तेः । रूपाभावाचैव मिति चेन्न, उष्णस्पर्शशीत स्पर्शयोरपि वायवीयत्वापत्तेः । तयोर १७० न्यायलील... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२४२
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशांद्भासिता १७१ अनुभूत नुद्भूतरूपत्वा (१) दग्रहणमिति चेत्, तुल्यमनुष्णाशी तेऽपि (२) | शब्दोऽपि चोद्भूतस्पर्शवद्वेगवत्पृथि... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
t9w1xaizvweo8tthokqbmwj1dz4wprn
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२४३
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ १७२ न्यायलीलावती द्रव्यान्तरताप्रसङ्गात् । कल्पनालाघवाद्धर्ममात्रमुपकल्प्यते न तु धर्मीति चेत्, तुल्यं वायावपि । धृतिरपि तत्संयोगादेवोपपत् स्यते ( १ ) । ब्र... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२४४
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण-सविवृतिप्रकाशांद्भासिता १७३ मैवम् | त्वगिन्द्रियस्य गन्धाग्राहकत्वेन रसनवदपार्थिव- त्वात् रूपरसाग्राहकत्वेनैवातैजसानाप्यत्वात् ।... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२४५
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ १७४ न्यायलीलावती शद्याश्रयः सिद्ध इति । स एवान्यन्त्र (१) कल्प्यते लाघवात् । पृथि वीत्वे तु रूपानुद्भवादिकल्पनागौरवमेव । व्यजनानिलश्च ग्राह्य जातीयासाधारणग... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
jlvyeev6ufqqm6l57wpbw9omnh4l98s
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२४६
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण-सविवृतिप्रकाशोद्भासिता १७५ न्यायलीलावतीप्रकाशः नभिभूतत्वात् | मैवम् । इन्द्रियान्यत्वेन हेतुविशेषणात् । तथाप्युद्भू. तेति साध्ये वि... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२४७
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/* अपरिष्कृतम् */ १७६ न्यायलीलावती • स्थापक गुणेष्वेकस्यैव व्यञ्जकत्वात्, आलोकवत् न चेदेवं मेदस्वि- नां स्वेदिनामन्धकारे समस्त [रूपि] वस्त्ववभासापत्ति: (१) | अनुद् भूतस्पर्शानिल... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
9a4ljjplco8rxqm9lty451ho4e8ontg
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२४८
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126445
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता १७७ द्भवः पार्थिवरूपस्पर्शयोः समानयोगक्षेमत्वात् । अन्यथा उद्धृतरूपा- नुभूतस्पर्शस्यापि पार्थिवस्य सखापत्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२४९
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ १७८ न्यायलीलावती कश्चिदेव स्पर्श: तथा, न सर्व इति चेन्न, दृश्यादृश्योपाधिव्यु- दासे व्यतिरेकशङ्कानवकाशात् । अनभिव्यक्तत्वात्कुङ्कुमगन्धवत् पूर्व नावभासते,... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२५०
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायला लावतीकण्ठाभरण-सविवृतिप्रकाशांद्भासिता १७९ वात्याघातशब्दानुमाने अवश्योनेयपरस्पगहतरवोद्गमनोपपत्तौ स्वभाव कल्पना नवकाशात् || वायुः । ( इत्यनिलः) | न्य... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
dgyzp4mjyc6b4x6q6i5d7bf5vfxk34q
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२५१
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ 3490 न्यायलीलावती न्यायलीलावतीकण्ठाभरणम् वा, वायूपनीतसुरभिभागस्य प्रत्यक्षतापत्तेः । उद्भूतस्पर्शवत्वस्य तन्त्रत्वे चलत्पक्षिकाण्डादावानुमानिकमपि कर्म्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
kgqizl0vdstf7n85snpccj1kbj3mohj
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२५२
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलालीवतीकण्ठाभरण-सविवृतिप्रकाशोद्भासिता १८१ ननु बहिरिन्द्रियाणीतरेभ्यो भियन्ते इन्द्रियत्वान्मनोवत् | मनसोऽपि भिद्यन्ते अनात्मगुणग्राहकेन्द्रियत्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
0l1vujwn0isw72kmh897l9i2zo6e6fa
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२५३
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/* अपरिष्कृतम् */ १८२ न्यायलीलावती स्यादिति चेन्न, महतः पार्थिवस्य गन्धरूपरसस्पर्शेषु अन्यतमो- न्यायलीलावतीकण्ठाभरणम् त्मगुणाग्राहकेन्द्रियत्वादित्यर्थः । इन्द्रियत्वेन... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
nbicl5tur0ps0jtmu2rdv66lew9o0gv
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२५४
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता १८३ दूभूतत्वेन व्याप्तत्वात् । तादृशस्य च प्रत्यक्षबाधितत्वात् । अ न्यथा वायावपि पार्थिवस्पर्शस्यैव प्रतीत... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
pok7dbce2btwm825nemgfatayt4ndzg
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२५५
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती १८४ जलं गन्धोत्पादकमिति चेन्न, कणभक्षमते आश्रयनाशं विना तद्नुपपत्ते: । तन्नष्टमिति चेन, तन्नाशहेतोर्घनद्रव्य भिघात- स्याभावात् । स्पर्शस्थापि... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
2rm02grmlgt3zabfgpvwo2ebinks3af
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२५६
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता १८५ चात् । अन्यस्य चाननुभवात् । चक्षुरपि न तैजसम् । तस्य क्रोशादिव्यापिनो रूपस्पर्शयोरन्यतरोद्भवनियमात् । अन... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
rp6dyuay6do1fiy1youaxx5ljv8d9k2
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२५७
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/* अपरिष्कृतम् */ १८६ न्यायलीलावती रसनमपि नाप्यम् । इन्द्रियत्वंनाभौतिकत्वात् मनोवत् । न चेदेवं मनसोऽपि पार्थिवत्वापत्तिः । श्रोत्रं च न स्वगुणग्राहकम्, इन्द्रियत्वात् मनोव... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
me26j85ku2p7u0q9nbrhy8tnydwh42m
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२५८
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशांद्भासिता १८७ इन्द्रियाणि न भौतिकानि इन्द्रियत्वात् मनोवत् (१)। अन्यथा मनोऽपि भूतात्मकमेव स्यात् । अनारम्भकत्वं तत्र ब... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
mc91x9bx0b5fihd2jcq32hulzk4miu8
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२५९
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती मारप्स्यते (१) ऽपीत्य विरोधात् । प्रयोजनाभावात्तत्सिद्धि (२) रिति चेन्न, सर्वप्रयोजनानामस्मादृशैरनाकलनात् । अपि चान्धतम समचाक्षुषम्, आलोकासहकु... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
flqiom90b3d9fw8id619zop8alykf0g
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२६०
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलालीवतीकण्ठाभरण-सविवृतिप्रकाशोद्भासिता वृत्ति चस्यादितीन्द्रियनानात्वापलापः । वेद्यप्रच्युति ( १ ) परिच्छेदे नेन्द्रियाणां विषयसहकारित्वं सर्वत्रा... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२६१
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती यद्यद्वारा विशेषगुणव्यञ्चकं (?) तत्तद्वाह्यविशेषगुणाश्रय एव, यथा वायुतेजसी (२) न चास्य शतिव्यभिचारित्वम् दृश्यादृश्योपाधि- व्युदासे साध्येतरतो... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
q7ma7436bdcar7v78atfpf1bs1ldy5c
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२६२
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता १९१ न्यायलीलावती प्रकाशः , करणजन्यत्व मात्र व्याप्तेः तस्य चाद्रव्येऽपि सत्त्वात् । अत्राहुः । गन्धोपलब्धी र... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२६३
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/* अपरिष्कृतम् */ १९२ न्यायलीलावती नुपपत्तेः । न च जलेन व्यभिचारः, रसेऽपि ( १ ) व्यञ्जकत्वात् । नापि पार्थिवे योग्यतानियमः, तेजोवदनुभूतरूपस्पर्शत्वाद्य विरो न्यायलीलावतीकण्ठा... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२६४
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता १९३ धात् (१) । न च (२) वायुवन्दीग्रहः (३) तत्र विशेषस्योक्त त्वात् । चक्षुच विचित्रमपि स्यादबिन्धनतेजोवत् तैजसं, ग... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२६५
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Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती न्यायलीलावतीप्रकाशविवृतिः षणम् । तदर्थस्तु पर: (१) स्वाश्रयस्तद्विशेषणकत्वम् । एवं चाश्रयविशे षणकगन्धाभिव्यक्तिजनकान्यत्वं सत्यन्तार्थः । उप... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
9dd9lde54wo5adlecnblgctqnfwyjz2
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२६६
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126463
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Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण-सविवृतिप्रकाशोद्भासिता १९५ रूपस्यैव व्यञ्जकत्वात् दीपवत् । एवं रसनमपि । क्षित्यादेर श्रोत्रत्वे अजसंयोगाभावात् । शब्दद्रव्यत्वनिषे... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
4ri5cmfrxq53izkpxwi8vadxt7m0prb
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२६७
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ म्यायलीलावती कत्वात् । न चान्धकारग्राहकमन्यत् | निषेध्यनिषेधयोः समा. नेन्द्रियवेद्यत्वनियमात् । व्याघाताच । प्रतियोगित्व सहकारि न्यायलीलावतीकण्ठाभरणम् भु... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२६८
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण-सविवृतिप्रकाशोद्भासिता १९७ त्वस्यापि प्रतिक्षेपात् । मनःप्रतिबन्दिग्रहस्य [च] मनस्येव नि रसनात् । तथापि विशिष्टादृष्टोपगृहीतं गोलकम... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
g0b8r93jsyoqkywb0gjqak9jgw44rjx
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२६९
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती भ्यामप्यनावरणापत्तेः । शाखाचन्द्रमसोः समसमयवेदनाच्च (१) । न च तद् भ्रान्तं, यौगपद्यमात्रप्रतिक्षेपापत्तेः । तत्र बाधका- भावादिति चेन, तुल्यत्वा... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२७०
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ म्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता १९९ स्वविरोधात् । ज्ञातृभेदेनैकस्यैव ज्ञातृपुरोवर्तिकुड्यादिपरापरदेश- संयोगित्वं तत्त्वमविरुद्धमिति चेन्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
lr51sl3xvxcshd9j2510iv0ohinb0nx
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२७१
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती २०० यसिद्धेः । ऋजुवस्तुग्रहोऽपि तस्यातिशयितवेगवचेनाप्रति बन्धात् । तस्य च फलोन्नेयत्वात् अचिरदीधितिसंयोगवत् । अत एव यौगपद्यस्य भ्रान्तत्वं (... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
4s8ny5anqpsp9nip4ci39bhz5lbb4jw
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२७२
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ Registered According to Act X.XV of 1867. (All Rights Reserved.) July THE 19:29. | CHOWKHAMBA SANSKRIT SERIES, A | COLLECTION OF RARE & EXTRAORDINARY SANSKRIT WORKS. NO. 379 न्यायलीलावती श्रीवल्लभाचार्य्यविरचिता श्रीभगीरथठक्कुरकृत विवृतिसनाथेन श्रीवर्धमानोपाध्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
mmokddj0she59b6b8shmng2xnhwpv0y
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२७३
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126470
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ ** श्रीः * आनन्दवनविद्योतिसुमनोभिः सुसंस्कृता । सुवर्णाऽङ्कितभव्याभशतपत्रपरिष्कृता ॥ १ ॥ चौखम्बा - संस्कृत ग्रन्थमाला मञ्जुलदर्शना रसिकालिकुलं कुर्यादमन्दा... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२७४
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोनासिता २०५ मनोवत् बाहरिन्द्रियाण्यनुरूपानि स्युरिति शङ्कां निरस्यति- न्यायलीलावतीप्रकाशः शरीरेणानैकान्तः अन्त्याव... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२७५
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ २०२ न्यायलीलावती शङ्का, निरुपाधित्वात् । स्पर्शवदिन्द्रियत्वाच्च । रसनादयोऽप्यव यविन इति सिद्धमिन्द्रियम् । ननु शरीरं नाम द्रव्यान्तरं, भूतचतुष्कप्रकृतिक... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२७६
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126473
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशांद्भासिता २०३ एतेनोष्णं जलं शीत: शीतमयूखरश्मिरित्युपपद्यते । न चैतदुपष्ट- म्भकसन्निधिप्रयुक्तं, गन्धेऽपि तथाप्रसक्ते... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२७७
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती न्यायलीलावतीकण्ठाभरणम् सर्वत्राव्यपार्थिवभागे सम्भूय वस्तुकत्वसम्भवादित्यर्थः । न च भागारम्भकजलादावेव साध्यप्रसिद्धिस्तत्रापि सम्भूयारम... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
qi6gyrgaaw4fivb0jzzkr627kkwapvt
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२७८
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण-सविवृतिप्रकाशोद्भासिता २०५ २ रब्धस्यागुणत्वं ( १ ) स्यादिति तत्सिद्धिरिति चेन, तदसिद्धे । शीतोष्णयोर्भास्वरा भास्वरयो रसतदभावयो रूपरू... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
hyslbrzc34ty1b4fjr5q4vy93qbqgqw
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२७९
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ २०६ न्यायलीलावती दिरूपकदम्बस्य यथा विचित्ररूपजनकत्वमध्यक्षसिद्धं न तथा पृथिव्यादीनां विचित्रकार्यजनकत्वं भूजलप्रभवे वस्तुनि , न्यायलीलावतीकण्ठाभरणम् पट... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
izycnulwvson8tpzvylxa9wd147yz6a
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२८०
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता २०७ , , , विलक्षणे मानाभावात् ततो गन्धवतां गन्धवत्पृथिवीजाती. यजनकत्वनियमात् जलस्य निर्गन्धजनकत्वनियमस्या विप... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
8c6sht6cd3gbu73k8bxwbzf7vket9b5
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२८१
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ २०८ न्यायलीलावती भवसिद्धत्वात् । तद् (१) द्विविधं योनिजमयोनिजं च । शेषे प्रमाणं नास्तीति चेन्न, पृथिवी अयोनिजशरीरारम्भिका आरम्भहेतुत्वात् जलव- न्यायलीलावतीक... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
bldyi3s1a17gpg636no52yryjiml0ic
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२८२
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126479
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण-सविवृतिप्रकाशोद्भासिता २०९ न्याय लीलावतीकण्ठाभरणम् तत्वात् । जलीयं च शरीरं बरुणलोकेऽस्तीत्यागमसिद्धत्वान्न दृष्टा. न्तस्य साध्यवैक... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
br7wx8ycb31c0gbodsc071jp2qdtzvq
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२८३
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ २१० न्यायलीखावती दिति तच्सिद्धेः । तदसिद्धमिति चेन्न, जरं शरीरजनकं इद्धया म्यायङीलावतीकण्ठाभरणम् माशाङ्कते- तदिति । जरमिति । जलत्वं शरी राम्भकचुत्ति स्पर... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२८४
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायङाङावतीकण्डाभरण-साविन्रृतिभकाशोद्ासिता २११ रम्भकसवात् पृथिक्रीवदिति ततितद्धिः । अन्यथा इद्दियमपि नारभेत, अदृष्टरूपत्वात् । अप्य शरीरं यानिजमिति... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
81ecb801d713v5j2yy7lai3jhjxcsxg
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२८५
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती २१२ त्वमिति चेन्न, भौमेनोष्मणा विलयनाभावात् । भूवर्त्तिनां श- रीराणां गन्धवत्वेन पार्थिवत्वात् तदौपाधिकं किं न स्यादिति चेन्न, आनाशमनपगामित्वा... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२८६
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता २१३ शैत्यादिना (१) देहशोषे निवृत्युपपत्तौ तदेव बाधकम् । तथा हि न तावद् वायवीयं, रूपवत्वात् । न तैजसम्, दहनसंयोगे... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
28yukt0l2zda0ld7tzo68o510y04ojh
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२८७
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती इति वाच्यम्, कल्पनागौरवात् । न च तद्योनिजं, गर्भवासा- दिदुःखवेदनादिभिः स्वर्गित्वव्याघातात् | तन्न दुःखहेतुरिति चेन, अदृष्टकल्पनापत्तेः, शिववरु... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
nqh7km5ilf6u7iu0qbqj8crh9w4b6i0
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२८८
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायद्धीदावतीकण्डाभरण-सबिदतिग्रकारोद्धास्िता २१५ कादौ[अपि) प्रृत्तिभपेः, अथित्वयैचित्याद्विचित्रवित्तव्ययानतु- ्ानापतते्च । अन्यथा बेदाचाराणामपि विष्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
o4buni6f689qo43m4i15mqfhjqwsf09
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२८९
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ २१६ स्यायरीरावती नतु मृ्वाषाणमणिवजसरित्सयुद्रकरकादीनि द्रव्यान्तराणि [भवन्तु] विटक्षणबुद्धिवे्यत्वाल्लख्वत्। अन्यथा तदप्येकजातीयं स्यादिति चेन्न, भु... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
n0h9fzixo9rxj1jpvgpjcg4b3kk8bds
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२९०
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण-सविवृतिप्रकाशोद्भासिता २१७ जलादिमति बन्दीग्रहः, स्नेहादिसमवायिकारणत्वेन (१) भिन्नजाती- न्यायलीलावतीकण्ठाभरणम् तीयत्वसाधनादित्याह -... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२९१
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ २१८ न्यायङीलावती यत्वसाधनात् ¦ वजेऽप्य टोहरेख्यतवं बाधकम्। करकादौ खाभा- विकमद्रवत्वं शीतमयुखमयूखाद्ं च रोत्यामिति चेन्न, द्रव्यं हि द्िषिधं] स्पश्षोधिक... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
chsyvwes1keiqx1mnvldlw804a2xasq
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२९२
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता २१९ ताधिकरणमेव | अन्यादृशस्पर्शानुपलब्धेः । तत्र द्वितीये अनि त्यताब्याघातः । प्रथमे तेजस्त्वं द्वितीये जलत्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२९३
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ २२० न्यायलीलावती भाष्ये संहारविधिरुक्तः स (च) नास्ति प्रमाणाभावादित्येके । न्यायलीलावतीकण्ठाभरणम् द्रव्यचतुष्टयनिरूपणानन्तरं भाष्ये संहारावीधरुक्तः, तयै... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२९४
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण-सविवृतिप्रकाशोद्भासिता २२१ तथा हि विश्वसन्तानोऽयं दृश्य सन्तानशून्यैः समवायिभिरारब्धः न्यायलीलावतीकण्ठाभरणम् कार्यकारणप्रवाहो यत... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२९५
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126492
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ २२२ न्यायलीलावती सन्तानत्वादारणेय सन्तानवदित्यत्र विश्वशब्देन ब्रह्माण्डपक्षीकरणे चतुर्महाभूतसन्तानावासस्य तस्यासिद्धावाश्रयासिद्धिः। कार्य[स. न्यायल... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
c5gi4aajvh3ih4969hej5z3q3x0edqa
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२९६
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण-सविवृतिप्रकाशोद्भासिता २२३ न्तान] मात्रपक्षीकरणे क्रमारब्धदहनपवन सन्तानन्यायात् आरम्भे ऽपि प्रलयासिद्धेः सिद्धसाधनात् । एकदैवेति व... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
nstak5k9ggxpj3b8hstyujts4411rxt
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२९७
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ २२४ न्यायदीलखाघती व्यभिचारित्वात्। एकदारस्महेतसाकस्ये सतीति विरोषणे विरोषणा सिद्धेः । एकदापीति पक्षे विरोधात् । स्वकार्याणां युगपदवुत्प- तेश्च । एतेन ब... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
6k1r4ddq48grw6aw4dqtcyjy1si6kay
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२९८
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ म्यायलीलावतीकण्ठाभरण-सविवृतिप्रकाशोद्भासिता २२५ प्रतिक्षितम् | बाल- परमाणुत्वात् दीपारम्भकपरमाणुवदित्यादि वृद्धतरुण (१) देहसन्तानवदारम्भस्वीकारात् । न च... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
2y1zwl5w20dvtk6c24d76wblo1kmexo
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/२९९
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ २२६ न्यायलीलावती स्तु स्यादृत्वयनवत् । न च सन्तानाः कदाचित्सहोच्छिद्यन्ते (१) सन्तानत्वात् [ सम्प्रतिपन्नसन्तानवत् ] इति वाच्यम्, क्रमोच्छि- - न्यायलीलावतीकण्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
q90twex9z0ed06ooc236f7h976g9eko
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३००
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2022-08-17T09:54:58Z
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण-सर्विवृतिप्रकाशोद्भासिता २२७ नानां सन्तानानां कदाचिदपि तदभावेन व्यभिचारात्, विप रीतनिश्चयाच | ब्रह्मवर्षशतमिति गणितभेदगम्यः कालो मह... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
s92eyyi6uv0fexoejtlf72emjcqfj9y
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३०१
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ २२८ न्यायलीलावती चारणि[मणि] प्रभवज्वलनन्यायः, असति बाधके निश्चितहेतु- फलाभावस्य विशेष (१) निष्ठत्वविरोधात् । अन्यथेन्धनधूमादा- वपि तथात्वापत्तेः | मैवम् | सर्व... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
mskd5d6jrfma18ji7yqvbe2bchidd2h
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३०२
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण-सविवृतिप्रकाशोद्भासिता २२९ ग्रोपादेयमबन्धशून्या आरम्भकत्वात् नष्टपवनारम्भकपरमाणुवत् । न च किञ्चिदेतादृशं न भविष्यतीत्यनेकान्तता... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
avrd2bszf9kzqxcx1a0txajwrzdyckg
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३०३
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2022-08-17T09:55:49Z
Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ ३० न्यायी खावती न्यायलीरखवतीध्रकाशः मानम् ऽतन्न, कायद्वश्यानधिकरणस्वस्यो पाधित्वाव । अ्राहुः। एकका- दीना इतिपश्चविकशेषणादेककालीनत्वं साध्यस्य सिध्यति... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
hwuawdr3z66zngpn2m7u5mgmo4wjmki
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३०४
104
126501
344188
2022-08-17T09:56:19Z
Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता २३१ न्याय लीलावती प्रकाश विवृतिः करणकालाप्रसिद्ध्या मात्रपदव्यवच्छेद्याप्रसिद्धिः । यद्यप्युपाधिदातृमते... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३०५
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126502
344189
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Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ २३२ न्यायलीलावती न्यालालावतीप्रकाशः अत्र वदन्ति | समयसमवायिकारणातिरिक्तवृत्तिध्वंसप्र तियोग्यवृत्तिकार्यद्रव्यत्वं कार्यद्रव्यप्रागभावसमानकालीनारम्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३०६
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126503
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2022-08-17T09:56:33Z
Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ स्यायलीलावतीकण्डाभरण-सविन्रुतिध्रकाशोद्धासिता २३३ हनादाधिव(१) सम्भयेनातुपाधित्वात्। भूगोरकसन्तानश्च कदा- चित्साकल्येनोच्छियते सन्तानतवात् दीपसन्ता... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३०७
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126504
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2022-08-17T09:57:49Z
Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ २३४ न्यायलीलावती क्रमनाशे सिद्धसाधनम्, यौगपद्ये तु व्यभिचार इति चेन्न, न्यायलीलावतीकण्ठाभरणम् मिति शङ्कते - व्यभिचार इति । क्रमनष्टद्हनपवनादावित्यर्थः । एक... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३०८
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126505
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2022-08-17T09:57:54Z
Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता २३५ एवं सति तरुगिरिदहनपवनादिष्वपि संयोगादेकस्थूलबोधोपप- तौ सर्वत्रावयविनोऽसिद्धिमाप्तेः । तदसिद्धावपि चैक... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३०९
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126506
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Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती यवति कर्मवत् न चैवम्भूतोच्छेदानुपलब्धेनैवम् । उत्पत्तेरनुपलम्भादनुत्पत्तिप्राप्ते : (१) स्वभावादेव चावयवित्वमस- न्यायलीलावतीकण्ठाभरणम् प्रत... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३१०
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126507
344194
2022-08-17T09:58:09Z
Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता २३७ ङ्गात् | घटादेरपि वा तथाभूतस्य नित्यतापत्ते : (१) । न च ब्रह्म वर्षशतनियमः प्रलयस्य पुराणप्रसिद्धेः । समयप्र... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३११
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126508
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2022-08-17T09:58:15Z
Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती तत्संग्राह्यप्रलय समयाप्रतीतेः । प्रतीतौ [तु] बाधात् । एतद्धा- धकवलेन वर्णव्यवस्थापि आरणेयसन्ततिवदिति [ मलयः ] | न्यायलीलावतकण्ठाभरणम् स च न सिद्ध... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३१२
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126509
344196
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Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता २३९ ईश्वरो न द्रव्यान्तरं, प्रमाणाभावादसिद्धेरित्येके । तन्न | विवादाध्यासितं सकर्त्तृकं कार्यत्वात् घटवदित... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३१३
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126510
344197
2022-08-17T09:58:28Z
Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ ४० न्यायदछीखावती म्यायर्छरवतीप्रकादीः दकं तेन शा ब्दज्ञनेच्छादैनामृपि पक्षत्वं शब्दस्य जन्यङतिजन्यस्वे. ऽपि उपादानगोचरतदजन्यत्वात् ! न च तौ जन्यत्वविदष... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३१४
104
126511
344198
2022-08-17T09:58:34Z
Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ ग्यायङीलावतीकण्डाभरणनसविश्ुतिभकाशोद्धासिता २४१ त्रत्। सक चतृत्वं चोपादानविषयापरोक्षविन्नतिविकीषांङ़ति(१) न्यायक्छीलावतीकण्ठाभरणम् सूकत्वासकन्तु... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३१५
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126512
344199
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Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ २२७९ भ्यायङीखावती म्यांयरीरावर्तीप्रकाश्चः दादिनाऽथान्तरम्, अथ ज्ञानादीनाम्रपि ज्ञनकव्व विवक्चितंन च घटो. पादानगोचरक्ञानादीनां श्िल्यादिजनकत्वं व्यभ... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३१६
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126513
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2022-08-17T09:58:50Z
Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्याथङीलावतीकण्डाभरण-सविव्रतिभकारोद्धासिता २४३ म्यायलीलावतीप्रकन्ष योभिज्ञनादिजन्यत्वस्य स्वजनकारष्ात्तरवसिज्ञानादिजन्यत्वस्य वा साधनेनाऽदष्टद्वा... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३१७
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126514
344201
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Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ २७४ न्यायद्ीखावती न्थायलीलावतीप्रकादयः यतया सिद्धविष्रथं भत्यक्षमपि हेतुः मदवयवानां सस्थानविशेषस्य छतिसाध्यष्साधनस्वेन ज्ञनेऽप्यवयवगोचरपत्यक्षं विन... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३१८
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2022-08-17T09:59:12Z
Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ रिक्तं पृष्ठं निर्मितम्
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३१९
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126516
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2022-08-17T09:59:25Z
Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ २४६ न्यायलीङावतीं चेन्न, व्यापकानुपछम्मस्यातुमानतया बाधथ्ुपक्रम्थ सपति पक्षतामापादयतोऽक्तवान्तिप्रसङ्गात् । शरीरिकचसाधनादमिः मतविशेषतिषटदधो हेतुरि... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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344206
344203
2022-08-17T10:00:07Z
Srkris
3283
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३२०
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126517
344204
2022-08-17T09:59:33Z
Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ व्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता २४७ अपसिद्धान्तात् । नेतरः । परस्यासिद्धेः । परं प्रति साधितेन नियमेनेति चेन्न, प्रमाणेन तत्साधनेऽपसिद्धान्त... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३२१
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126518
344205
2022-08-17T09:59:51Z
Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती . परस्य मतेऽप्यसर्बज्ञ कर्तृकत्व सिद्धेदुर्वारत्वात् । नापि व्याप्तिपक्ष- धर्मत योरनीश्वरेश्वर कर्त्तगोचरयोर्विरोधाद्विशेषविरोधः । सामा- न्य... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३२२
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126519
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Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण-सविवृतिप्रकाशोनासिता २४९ केन पुनः साध्ये शरीरादिमत्कत्तृकत्वमाक्षितम् । कर्त्तमत्त्वे- नेति चेत्, अप्रतीतेन मतीतेन वा । नायः । अप्रती... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३२३
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126520
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Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ २५० न्यायलीलावती मर्थ्यात् । सामर्थ्य वा विटपादिना व्यभिचारात् । किं च साधा- रेणनापि [ रूपेण ] व्यासिं गृहदध्यक्षं देशकालव्यवधानादृश्य- मेव विषयीकरोति न स्वरूप... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३२४
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126521
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Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता २५१ न्वयेन प्रतिबन्धावधारणात्, कार्यकारण[ भाव ] योरिव | अन्यथा कार्य्यमात्रस्य कारणमात्रेण प्रतिबन्धावधारणेऽ... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३२५
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126522
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Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ २५२ न्यायलीलावती मिति चेन, अहेतुकत्वस्याकादाचित्कत्वेन प्रतिबन्धासिद्धेः । व्यभिचारानुपलम्भेन तत्सिद्धिरिति चेत्, न । सर्वादृष्टेश्च सन्देहात्स्वादृष्ट... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३२६
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Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ भ्यायलीखावतीकण्ठडामरण-सविनतिप्रकारोद्धास्िता २५३ विपर्यये बाधकासतिषन्धनिश्चय इति चेन्न, अहेतुकस्य कादाचित्कत्वे बाधकाभावात् । शरशविषाणमरैतुकं कादाचि... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
dpxcg5yfh30sqnlhfovxkhzo72qswvc
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३२७
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Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ २५४ भ्यायद्धीराषती भेदा उपाधयः सामान्यव्याप्तयुच्छेदग्रसङ्गात् । न चावान्तरना- तिभेदा घटत्वादय उपाधयः । तेषां परस्परन्यभिवारित्वात् व्य- क्ति मेदवत् ।... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३२८
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Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण-सविवृतिप्रकाशोद्भासिता २५५ न्यायलीलावतीप्रकाशः सोपाधित्वात् उपाधेश्च निरुपाधित्वान्न तुल्ययोगक्षेमत्वं तथापि यथा साध्यव्यापकाव्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३२९
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126526
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Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती न्यायलीलावतीप्रकाशः धनाव्यापकत्व संशयवत् साध्यव्यापकतासन्देहेऽप्यविशेषात् पक्षेतर. खोपाधेश्च निराकरिष्यमाणत्वात् | मैवम् । कर्तृजन्यत्वे ल... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३३०
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126527
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती कण्ठाभरण- सबिवृतिप्रकाशोद्भासिता २५७ सद्भावासिद्धेः । न च मैत्र(१) तनयत्वश्यामतासाहचर्येऽप्येष न्यायः तत्रोपाधिसाधनस्य (२) न्यायस्यावश्यं व्य... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३३१
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ २५८ न्यायलीलावती कर्तृव्यापकशरीरानुपलम्भेन सत्प्रतिपक्षत्वमस्तिषति चेन, ईश्वरमधिकृत्याश्रयासिद्धेः | क्षित्यादिकमधिकृत्य सिद्धसाधनात् । शरीरिकर्तृकत्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३३२
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण-सविवृतिप्रकाशोद्भासिता २५९ मतीतं चेदशरीरि (१) कर्तृकत्वसिद्धौ व्यभिचारः | प्रतीतं शरीरवि शेषणानवच्छिन्नत्वेन व्याप्पं, शरीरविशेषणावच... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३३३
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ २६० न्यायलीलावती । सकर्तृकत्वेन न हि यावव्याप्यत्वेन विवेचितं तावदेव विशे षणान्तरावच्छेदेन व्यापकमिति शक्यते वक्तुम् | व्याप्तिग्राहक [स्य] प्रमाणस्य सर्वत... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
dsutpjo4jed95h5a7pfrwdtf7m2q19b
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३३४
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता २६१ न द्वितीयः । अनुमानरूपसाकल्ये (१) तस्यानुमित्युत्पत्ति प्रतिवन्ध कत्वानिश्चयेन दूषणत्वानिश्चयात् । अन्य... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३३५
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती २६५ नियमात् । [इतीश्वरसिद्धिः ] अणुर्नाम (१) द्रव्यान्तरमिति चेत् तन्त्र, तदसिद्धेरित्येके ( २ ) । न्यायलीलावतीकण्ठाभरणम् इति । विषाणस्वजातेयोग्य... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३३६
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Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता २६३ अणुपरिमाणतारतम्यं कचिद्विश्रान्तमिति चेन्न, तदसिद्धावणु- -- न्यायलीलावतीकण्ठाभरणम् तदसिद्धाविति । यद्यण... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३३७
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती न्यायलीलावती प्रकाशः त्वम् | त्रसरेणुपरिमाणमत्र दृष्टान्तः, न त्वाकाशपरिमाणं (१) घट. परिमाणाल्पत्व निरूपणे तस्यावधित्वात् । यद्वा तारतम्यमुत्क... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३३८
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता २६५ परिमाणस्यासिद्धेः (१) । महत्वापकर्ष इत्थं व्यपदिश्यत इति चेन, तस्य त्रुटावेव विश्रामात् | अणुव्यवहाराम्पदम... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३३९
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती व्यवहारास्पदत्वेन महत्त्व भेदा दन्यस्य व्यवहारास्पद ताप्रतिक्षेपात् । त्रसरेणुर्भागवान् चाक्षुषद्रव्यत्वात् । अन्यथा तन्न स्यात् । महत्त्व... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३४०
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण-सर्विवृतिप्रकाशोद्भासिता २६७ महत्ये सति क्रियावत्यादिति चेन, महच्याविशेषणव्यावर्त्त्या- प्रतीताव सामर्थ्यात् ( १ ) | तस्यान्यतः (२) प्रत... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३४१
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Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती पकृष्टमहत्त्वसम्बन्ध प्रतिबद्धम् । घटो हि कुतश्चिदल्प इति ( १ ) कुतश्चिन्महत्तरो भवति न त्वेवं गगनं, कुतोऽप्यल्पताया अभा वात् ( २ ) । त्रसरेणोर्महस... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
71tur2hgubk6r2ka68yj7kqb3f0wy5z
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३४२
104
126539
344228
2022-08-17T10:05:18Z
Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता २६९ (१) तदिदमसङ्गतम् | यथा तैजसानां कारणानां न दृश्यतानि यमस्तथेहापि । अन्यथा नयनविलयात् । न च वसरेणु- महत्त्वं न... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
fvoheno8po6uc22pptpo8vficc579ni
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३४३
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126540
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Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती च नित्यत्र सरेणुमहत्त्वापकर्षविरहमात्रस्य महत्त्वैकाधिकर- णस्य नियमग्राहकमानगोचरत्वात् । अनुमानादेव परमाणु- २७० न्यायलीलावतीकण्ठाभरणम् चाक... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
ovn2e3qubxwe892cfylj4kagy7tjrks
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३४४
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126541
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Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती अन्यथा स्फटिकलौहताम्रादिजातेरप्यनुमानापत्तेः । ततः परम महद्गगनबदणवोऽपि द्रव्यान्तरमेव । अन्यथा तत्रापि का प्रत्या शेति स्थितम् । मैवम् । तदस... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
pvccygl40nnze817n3qrvlw0e17h49o
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३४५
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ ज्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता २७३ अन्यथा गन्धसमवायिकारणत्वानुपपत्तेः । गन्धस्नेहभास्वररू- पापाकजस्पर्शेन क्षितित्वादिजात्यनुमानात्, स्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
p17uwqh5t62dsj6tivu7kdmtu9hhh23
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३४६
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Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती शब्दो गुणो, जातिमत्त्वे सति अस्मदादिबाह्याचाक्षुषप्रत्य- न्यायलीलावतीकण्ठाभरणम् परमाणुषु नास्तीति न तत्र स्फटिकत्वादि । तत्सत्वे वा तजातीय- प... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
n98ehqrlqe1wc6ub9sls7iu1nnhw9p5
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३४७
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Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता २७५ क्षत्वात् गन्धवत् | यदि तु निरवयद्रव्यं (१) स्यात् बाह्येन्द्रिय ग्राह्य न स्यात् । निरवयत्रद्रव्यस्य बाह्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
4eq9erendrxsulvy9hs4sd33a0vh7l3
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३४८
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Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ २७६ न्यायलीलावती प्रत्यक्षत्वे सति अकारणगुणपूर्वकत्वात् अयावद्रव्यभावित्वात्, न्यायलीलावतीकण्ठाभरणम् आकाशमाक्षिपेत् तत्रान्यथासिद्धिं निराचष्टे - प्रत... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
3uv4a73dvnnew2psbfgf41bwayu8y4z
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३४९
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोन्द्भासिता २७७ आश्रयादन्यत्रोपलब्धेश्च न स्पर्शवद्विशेषगुण: । वायुरेव यावद्वेगं चलन् शब्दनिमित्ततयाऽभ्युपगतोऽस्त्वा... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
d9m3itnunp0ce2ds8v7o19250o36rjf
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३५०
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ २७८ न्यायलीलावती ध्वनिरस्तु, स्थूलेब्वैन्द्रियकः कारणगुणपूर्वकः । स चोत्पत्तौ भे- रदिण्डाद्यभिघातसापेक्षो (१) याबद्रव्यभावी च आश्रय (२) एवो. पलभ्यते चेति किमस... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
65epg6eev3iq2xzs2walq0jhp6a0fl3
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३५१
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण-सविवृतिप्रकाशोद्भासिता २७९ हृदाकाशमितरेभ्यो भिद्यते शब्दसमवायित्वात् । न यदेवं न तदेवं यथा घटः । इति [ आकाशः । ] ननु कालसच्चे किं प्रमाण... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
awph3m85fqv0t1rh1wc26alu26mpoac
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३५२
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Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ ________________ २८० न्यायलीलावती लिङ्गाभावात् । परापरादिषट्कं लिङ्गमिति चेत् , न, परापरत्वे(१) न्यायलीलावतीकण्ठाभरणम् नाद्य इति । कालेनाध्यक्षं प्रमाणमित्यर्थः । अर... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
go6ze4hagllznm2fsugjbn3qjvbvl8t
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३५३
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126550
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण-सविवृतिप्रकाशोनासिता २८१ तत्समवायितया वा लिङ्गं (१) तदसमवायितया (२) तन्निमित्ततया वा नायः । “दिकालयोः पञ्चगुणवत्त्व" मिति भाष्य (३) विरो ध... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
kztog08n08ps64usod1t0ur3qajwzhy
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३५४
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ २८२ न्यायलीलावती मित्तत्वात् न तृतीयोऽपि । सन्निकर्षा भावे ( १ ) सन्निकृष्टबुद्धेरस- वेन तत्सिद्ध्यर्थमवश्यं कालः स्वीकर्तव्य इति चेन्न, जगन्निमि- तभूतपरमेश्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
o2y16dsbv5lsn54z2huaq1jfjb5w1lz
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३५५
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126552
344241
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता २८३ रादि (१)द्वारेणैवोपपन्नमिति समयप्रतिबन्धस्यासिद्धेः । नच परत्वापरत्वसिद्धिरपि । बहुतरतपनपरिस्पन्दान्त... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
8er7y4wvvg2bguqakqm3mfslyif44hm
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३५६
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती परिस्पन्द भेदानां तत्तत्पदार्थसार्थे विशिष्टबुद्धिजनकत्वम् । ते च विशिष्टबुद्धिजनने स्वमत्यासत्तिमपेक्षन्ते । स्वरसतोऽप्रत्यासन्न- त्वे सत... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
rgtfkd624uxgx5i2pw5jxuvkivpr7hn
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३५७
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ स्यायलीलावतीकण्ठामरण सविवृतिप्रकाशोद्भासिता २८५ स्वरसप्रत्यासत्तिरहिताश्च (१) सम्बन्धे बाघकाभावात् परम्प रासम्बन्धिनश्च साक्षात्सम्बन्धविरहे सति सम्बन... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
ddejsgx1w1550u6ovi4pd6paiabd3vx
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३५८
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126555
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ २८६ न्यायलीलावती ष्टनीलत्ववत् ( १ ) | न चेतरेतराश्रयः | सति सम्बन्धेऽवच्छेद्या- न्यायलीलावत किण्ठाभरणम् कानात्मसमवतभावत्वादिति हेतुः । नीलत्ववदिति । घटनिष्ठन... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
72vkr1f2fndxsr0z4z0c5p4jgxhoppb
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३५९
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126556
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Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता २८७ वच्छेदक दृश्यतयैव (१) विशिष्टव्यवहारदर्शनात समवायाती न्यायलीलावतीकण्ठाभरणम् तापदेन विशेषणज्ञानमात्रमभ... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
pjxanughfrofhx544qfh1hgu7ty4lxq
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३६०
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Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ २८८ न्यायलीलावती न्यायलीलावतीप्रकाशः द्धिनिमित्तकारणमित्यदोषात् । अस्तु वा संयोग एव तथा तथाप्याका. शसंयोगस्यैवासमवाधिकारणत्व सम्भवेऽधिक मानाभावात् । अत्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
8ry61iykq2hxy77x0yedoiv4hklntzs
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३६१
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126558
344247
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Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता २८९ न्द्रियत्वे शीतलं जलमितिवत् । पिण्डतपनपरिस्पन्दयोश्च संयुक्त संयोगिसमवायात्मनि परम्परासम्बन्धेन तावत... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
b7d5njfwuzgtsdcp5nz9ar0fvl2cq74
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३६२
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126559
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Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती काशात्मानौ तथा विशेषगुणवत्वात् पृथिवीवत् । न चात्रा- व्यापकत्वमुमाधिः | तुल्ययोगक्षेमयोरुपाध्युपाधिमद्भावानुपप- तेः । यदि च गगनमात्मा चान्यधर... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
cld3hghqyegbl6mo7q76vdol4nj6bh7
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३६३
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Srkris
3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता २९१ न्यायलीलावतीप्रकाशः ध्याव्याप्यत्ववत साध्यव्याप्याव्यापकत्वेनोपाधेरपि साध्याव्यापक. त्वसाधनादित्यर... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
e4345dp5rd4tfylxd6lllbnzx24g2e3
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३६४
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126561
344251
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ २९२ न्यायलीलावती न्यात् । न च कालेऽप्येष प्रसङ्गः | तस्यासिद्धावाश्रया सिद्धेः । सिद्धौ वा नियतपरधर्मोप संक्रामकत्वेनैव (१) सिद्धेः । एकस्यै- वोपाध्युपनयनसाम... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
ipk7jouqze2xkltylx839vae8dvh59a
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३६५
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण-सविवृतिप्रकाशोद्भासिता २९.३ स्त्विति चेन, तस्या [एवा ] असिद्धे: | सिद्धौ वा तदहेतुत्वेनैव सिद्धेः । ततस्तपनस्पन्द भेद पिण्डसंसर्गोपनायकः... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
koayhjd9fh7oll6ugyq9shiadxjs7oh
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३६६
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती ननु दिशोऽरूपत्वे (१) नानध्यक्षत्वाल्लिङ्गाभावाच्च कथं सि. द्धिः । [ननु] पूर्वापरादिदशप्रत्ययाः सन्ति लिङ्गं [तत्] कथं लिङ्गाभाव इति चेन्न, तेषां न... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
i4831aryi7jfvd5ovesrnt7stbxkae5
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३६७
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण-सचिवृतिप्रकाशांद्भासिता २९५ च्च । उपाधिमुखपिण्डीकारे तु तेनैव प्रत्ययानामन्यथासिद्धत्वा- त् | उपहितदिगवलम्बत्वेन च लिङ्गान्तरस्यास... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
6jvfrb228hpjsgumfhke6wpz29kuni3
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३६८
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ २९६ न्यायलीलावती अत्रोच्यते । कालस्य क्रियामात्रोपनायकत्वान्न संयोगो न्यायलीलावतीकण्ठाभरणम् दिति भावः | कालस्येति । सूर्थ्यपरिस्पन्दाल्पत्वादिविषयापेक्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
6ox3332ld0ovgx33c87hxyjvi3o1gr0
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३६९
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- -सविवृतिप्रकाशोद्भासिता २९७ पनायकत्वम् । नानापुरुषसाधारणप्रत्ययविषयवर्तमानायुपाध्युपना- यकत्वं ( १ ) च व्यापकं, न त्वसाधारणप्राच्याप... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
6wbcbyxxgch3go4pz08c3bdy9pl4n8v
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३७०
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती असाधारणो ह्ययमुपाधिः । प्राच्या एव पुरुषान्तरं प्रति (१) प्रती - चीत्वात् । दिशस्तु सिद्धौ नियततपन संयोगोपसर्पकत्वेनैव ( २ ) प्रस. जस्य बाधात् । अन्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
fxm04hrukgomfhsmpq3rp3eoc2mudtk
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३७१
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता २९९ पूर्वापरादि (१) प्रत्ययविषयसंयोगोपनायकत्वात्, न यदेवं न - न्यायलीलावती कण्ठाभरणम् दिक् सिद्धा तदा प्रसङ्गो... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
q6tnjoacd7nkxqebqxtqg3kl0bdtw5j
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३७२
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126569
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ ३०० तदेवं, यथा पृथिवी | न्यायलीलावती न्यायलीलावतीकण्ठाभरणम् र्द्धाधोव्यवहारकारणत्वसङ्ग्रहः । प्रत्येकं च एषां च व्यवहाराणां दिगितरभेदहेतुत्वमन्यथा तव वैय... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
le0nrxqooakwshafdsxv5ow9u4l95od
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३७३
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ स्थायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता ३०१ एवं सति पूर्वायुपाध्युपनायकत्वेनैव दिशो नियमादनेक. दिक्कल्पनापत्तिः, तद्वदनेककालकल्पनापत्तिश्चेति चेत... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
bjzclnze765j11iqkjqyq0seg6fhezu
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३७४
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती आत्मनामानन्स्येऽपि आत्मत्वेनोपसंग्रहवद विरोधात् । परम- महत्परिमाण सामान्यं वा (१) विशेषगुणशून्यद्रव्याधिकरणानेकव्य- तिवृत्ति परिमाणतारतम्य व... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
ase6vrpc98mwcco6awhz2jb7jr83qg0
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३७५
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण-सविवृतिप्रकाशोद्भासिता ३०३ चानन्त्यकल्पनम् | उक्तोत्तरत्वात् । परममहत्परिमाणं द्रव्यचतुष्ट. यवृत्ति नित्यपरिमाणत्वादिति [तु] बाधितम... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
a497l5dy1nvpobbddcqwq8cp4dv6saw
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३७६
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ ३०४ न्यायङीखावती मेखकेन वा द्रव्यचतुष्टयादत्तित्वात्(१)। न च मनसा सिद्धसाधनम् म्यायली खावतीकण्ठाभरणम् चुमाने विह्ेषशुणशचून्यतवाचष्रम्भात् कथञ्चिदा... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
0yyoco5sounfy4nce6ib36827q4hfrj
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३७७
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2022-08-17T10:11:22Z
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ Bernistered Accordina to Act XXV of 1807. (All Rights Reserwed.) March THE |CHOWKHAMBÁ SANSKRIT SERIES, A | COLLECTION OF RARE & EXTRAORDINARY SANSKRIT WORKS. NO. 387. न्यायलीलावती श्रीवल्लभाचार्यविरचिता 1930. श्रीभगीरथठक्कुरकृतविवृतिसनाथेन श्रीवर्धमानोपाध्या... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
9no70vrpvdkd9tzmdrmwummrnuvl99p
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३७८
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/* अपरिष्कृतम् */ * श्रीः आनन्दवनविद्योतिसुमनोभिः सुसंस्कृता । सुवर्णाङ्कितभव्याभशतपत्रपरिष्कृता || 11 चौखम्बा - संस्कृत ग्रन्थमाला मञ्जुलदर्शना | रसिकालिकुलं कुर्यादमन्दाऽऽम... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
8hvn94swg096i8evs4bcgj26bajcydu
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३७९
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126576
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2022-08-17T10:25:57Z
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता ३०५ तस्याणुत्वात् । न च कालकृतपरत्ववैलक्षण्यादस्य दिक्कृतत्व- म् | कालजन्यत्वेन तद्वैलक्षण्यसिद्धे: (१) । स्वर... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
1ado1xrqsah03mcfi17cj7ueil9mjcj
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३८०
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126577
344267
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ ३०६ न्यायलीलावती काळकृतेना ( १ ) परत्वेन व्यभिचारात् । विलक्षणदेशकालव्यव हारवलेन दिक्कालभेदकल्पनेति [तु] न वाच्यम् । व्यवहारविष यभेदे प्रत्ययं ( २ ) विना विचित्र... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
e7bawolv7gnqvvevi8yh3er2vtyngre
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३८१
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यांयलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृति प्रकाशोद्भासिता ३०७ तानि कर्माणि (१) निरवयत्रेन्द्रिय ग्राह्य विशेष गुणवज्जातीय (२) वर्जितसाधारणद्रव्याधिकरणजन्यानि कार्यत... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
lyv4x7vblmptduujd6qorhkj87p7esk
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३८२
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ ३०८ न्यायलीलावती त्वेन न तद्रहिताधारजन्यतेति चेन्न, घटादावसर्वज्ञ कर्तृ पूर्वक , त्वेन (१) सर्वज्ञकर्तृ पूर्वकतावदविरोधात् । अत एवात्रात्मनि ज्ञा- नम्, इह नीले... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३८३
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता ३०९ नन्वेवं सति प्रत्यक्षादिकं स्यात् । न स्यात्, अनुमानपा- रतन्त्र्येण तत्प्रवृत्ते : (१) । व्यवसाय[स्य]पारतन्त... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३८४
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ ३१० न्यायलीलावती मनःप्रवृत्तिवत् घाणजसुरभिज्ञानपारतन्त्र्येण त्वगिन्द्रियस्य गन्धे प्रवृत्तिवत् [वा] । अप्रतिसंहितानुमानानामपि इहेतिमतिदर्शनान्चैव- मित... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
gjr5d4anikasid3b1scdw3cwy3azqzw
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३८५
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता ३११ ति चेन्न, ध्वंसप्रागभावनिवृत्ते (१) र्वस्तुस्वभावत्वेन व्यावृत्तत्वा दनुगतावभासविषयताविरोधात् । अर्थ (२)... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३८६
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती अतीतानागतेष्वपि (१) बर्तमानप्रत्ययप्रसङ्गात् । तेषां स्वरूपतोऽयो- ग्यत्वे तत्र कारणत्वनिश्चयस्य भ्रान्तत्वप्रसङ्गात् । प्रमाणवेद्यत्व तदि- त... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३८७
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- ण-सविवृतिप्रकाशोद्भासिता ३१३ वशेनैव तदुपपत्तेः । विवादाध्यासितान्यव्यापकद्रव्याणि द्विशेषगुणशून्यैकद्रव्यसंसर्गीणि द्रव्यत्वात... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३८८
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती सुखोपादानमितरेभ्यो भिद्यते सुखोपादानत्वात् । न यदेवं न्याय लीलावतीकण्ठाभरणम् - ईश्वरस्य साधितत्वात् संसारिणमधिकृत्याह - सुखोपादानमिति । अत्र... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३८९
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण-सर्विवृतिप्रकाशोद्भासिता ३९५ न तदेवं यथा रूपम् । न चात्र रूपादिविषयपञ्चकमेवोपादानम् । आन्तराणां बाह्यानुपादानत्वात् । अन्यथा ज्ञानस... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३९०
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती स्येव (१) स्पष्टशाताद्याकारस्यापि, बाह्योपादानत्वात् । न चाना- दिसुखसन्ततिरुपादानम् । पूर्वमनुपलब्धेः । तदिन्द्रियविषय- बुद्धिदेहा (२) व्यतिरिच... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३९१
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ त्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता इति चेन्न, चितां साकारत्वेन प्रतिबन्धात् । अन्यथा सर्वत्र ज्ञानसु- खदुःखादिसन्ततेरेवानुवृत्ति (१) प्राप्तेः ।... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३९२
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती क्षणभङ्गित्वात्। तथा हि यत्पूर्वापरकालयोर्विरोधिसंसगिं तत् पूर्वा- पर (१) कालयोर्भिद्यते यथा [प्र] दीपः, तथा च विवादास्पदम् । न्यायलीलावतीकण्ठाभ... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३९३
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता ३१९ न चैतदसिद्धम् । प्रसङ्गतद्विपर्ययाभ्यां (१) तत्सिद्धेः । अजनकमपि सहकार्यभावात्समर्थमिति सन्दिग्धव्यतिर... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३९४
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती स्वभावानिरुक्तेः । तथा हि भावस्य कारकस्वभावत्वे सदा जन- नम् । अन्यथाऽजननमेव स्यात् । सहकारिसन्निधाने जनकत्वं, अजनकत्वं चान्यदेति स्वभाव इति चेन... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३९५
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- - सविवृतिप्रकाशोद्भासिता ३२१ स भावित्वं स्वभाव इति चेन्न, अस्यापि धर्मस्वभावत्वात् (१) । अत्रोच्यते । सहकारिसन्निधि (२) काले यः कार्य जनय... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३९६
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ ३२२ न्यायलीलावती समर्थमिति चेन्न, सहकारिविरहकाले याऽसद्रूपता [सा] सहका- रिसन्निधानकाले [sपि] विद्यते न वा । विद्यते चेत्स्वकाल एवा- सच्चप्रसङ्गः । न चेन्न तर्हि... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३९७
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता ३२३ र्भावः । यस्मिन् सहकारिणि ( १ ) सति कार्यमुत्पद्यते तस्यैव श- क्तपदवाच्यत्वात् ॥ [इति] आत्मा ॥ सुखप्रतीतिरिन्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३९८
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती न्यायलीलावतीकण्ठाभरणम् साधनं सुखसाक्षात्काररूत्व गिन्द्रियभिन्नेन्दियजन्यः स्पर्शाविषय साक्षात्कारत्वात् गन्धसाक्षात्कारवादत्यत्र तात्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/३९९
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ भ्यायकीलावतरीकण्डामरण-सविन्रुतिध्रकारोद्धाखिता ३२५ न्यायलीखावतीश्रकाडः साधनमिति । मैवम् । खुखसाश्चात्कारः स्वमिन्दरिाचस्यसाघा- रणकारणताप्रततियोगिक... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/४००
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ ब्यायलीलावती वत् । न च शाता [था] कारो ज्ञानात्मैवेति वाच्यम्, नीलादि- बोधेऽपि तथाभावप्रसङ्गात् । कदाचित्ऋत्वान्नैवमिति चेतुल्यम त्रापि || वासनापरिपाककादाचित्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/४०१
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीखावतीकण्ठाभरण-सविष्तिप्रकाश्षोद्धासिता ३२७ व्ैतदपीति । सामग्रीसाजात्यं तत्र हेतुरिति चेन्न, एकदेश साजात्यस्य नीलादौ व्यभिचारात् । अन्यस्यासिद्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
pt8dc9shys2gwfifq46vx2r2mrhcqpb
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/४०२
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ ३२८ न्यायलीलावती नाप्ययं सन्दिग्धव्यभिचारः । इन्द्रियप्रतीतावप्रतीतौ च व्याघा- तात् । ततो यत्सुखोपलम्भकमिन्द्रियं तन्मनः । कथं पुनरितरभेदीदम् | मनस्त्वजात... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/४०३
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता ३२९ प्यसिद्धेः । अनारम्भकत्वात्तत्सिद्धिरिति(१) चेन्न, विषयदेहयो: न्यायलीलावतीकण्ठाभरणम् श्याह – अनारम्भकत्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/४०४
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती परमाण्वन्तरादप्युत्पत्ता (१) विन्द्रियतया च फलामावादन्यथासि द्धेः । पार्थिवाणोरपि कस्यचित्तादृशत्वापत्ते : (२)। न चेदेवं घ्राणमपि पार्थिवं न स्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/४०५
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता ३३१ स्थितम् | मैवम् । विभुविशेषगुणग्राहकेन्द्रियत्वेन मनसो मूर्त- चतुष्टयव्यावृत्तेः । पार्थिवस्य गन्धग्राह... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/४०६
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ ३३२ न्यायलीलावती घ्राणरसनयोरेक शेषापत्तेः । श्रोत्रमपि द्रव्यान्तरं स्यादिति चेन, तत्र शब्दासमवायात् | शब्दसमवाये वा तस्याकाशत्वात् । मन- सच ज्ञानासमवायिका... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/४०७
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता ३३३ त्वात् । स्पर्शवत्संयोगस्य स्पर्शवद्रव्यारम्भादौ सामर्थ्यात् । अमूर्तादपि भिद्यते, मूर्तत्वात् । तदसिद... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/४०८
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती यापत्तेः । एकदाऽनेकज्ञानानुत्पादस्य ज्ञानकारण (१) त्वेनैव समूहालम्बनबोध (२) वदुपपत्तेः 1 नानाविषयज्ञान (३) स्या- प्यत एवोत्पत्तेः । अन्यथा गुडादौ... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/४०९
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती कण्डाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता ३३५ सङ्गात् । सुखादिदेशनियामकत्वमपि सामग्रीदेशनियमस्यैव । अन्यथाऽणुमात्रदेशतापत्तेः । द्वित्रिश्च्छिन्न... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/४१०
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती ध्वेति चेत् | मैवम् | सुष्वाप (१) व्यासङ्गयोर्बहिरिन्द्रियमनःसम्बन्ध- न्यायलीलावतीकण्ठाभरणम् त्रिश्छिन्नेति। सुस्वापेति । सुप्तोऽहं न किञ्चिदश... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/४११
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ व्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता ३३७ न्यायलीलावतीकण्ठाभरणम् सन्निकृष्टेऽपि विषये ज्ञानाजनकत्वामेन्द्रियाणामिन्द्रियान्तरेण ज्ञान- जननावस... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/४१२
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती न्यायलीलावतीप्रकाशः नियामकाभावाचावद्विषय कैकज्ञानापत्तेः नच चाक्षुषत्वादिजाति सङ्करापत्तेकं ज्ञानं चित्ररूपवच्चाक्षुषादिविजातीयज्ञानोत... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/४१३
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता ३३९ विच्छेदलक्षणयोर्विभुत्वे व्याकोपात् । दृष्टसाकल्येऽदृष्ट्वैगुण्य ( १ ) - स्याप्यसम्भवात् । अदृष्टाभावस्य... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/४१४
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ ३४० न्यायलीलावती सामग्रयाः फलानुमानस्य शक्तेश्चासिद्धि (१) प्रसङ्गात् । न च देशका- लादयोऽप्युपाधयः । सर्वसहकारिविरहे मनसोsध्यसिद्धेः । आत्म- न्यायलीलावतीकण्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
ijwk917exq4qdo2013zlw8swwcyal0x
पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/४१५
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण सविवृतिप्रकाशोन्द्भासिता ३४१ मनोयोगस्य च संयोगत्वेनानित्यत्वात् । अन्यथा विभागस्थापि नित्यतापत्तावपसिद्धान्तात् ( १ ) | नित्यत्वे च स... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/४१६
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/* अपरिष्कृतम् */ ३४२ न्यायलीलावती व्यङ्गयत्वानुपपत्तेः । अत एव यौगपद्यप्रत्ययाभिमानः (१) । गोधा- भुजगादौ तु वेगवत्खड्गाभिघातेन नानादेहावयवाश्रित वेगवत्प्राण- पवनसंयोगादेव क... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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text/x-wiki
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/४१७
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3283
/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता ३४३ संख्या तावन्नैकादि (१) व्यवहारहेतुत्वेन भिद्यते । न्यायलीलावतीकण्ठाभरणम् वच्छिन्न एवेति नियम इति भावः । इ... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/४१८
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Srkris
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती न्याय लीलावती कण्ठाभरणम् एकत्वादिपरार्द्धपर्य्यन्तव्यवहारहेतुत्वं कत्वादित्यत्र नैकस्या अपि सं. ख्याया इति स्वरूपासिद्धिः । प्रत्येकव्यवहा... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/४१९
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Srkris
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण- सविवृतिप्रकाशोद्भासिता ३४५ तस्य समुच्चितस्य (१) स्वरूपासिद्धेः । विपरीतस्य भागासिद्धेः । गणनासाधारणकारणत्वादिति चेन्न, एकद्वित्र्या... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/४२०
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Srkris
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती दोषात् । संख्यामात्रत्वे तस्यैवासिद्धेः । संख्याजातीयं तदिति चेन्न, जातेरप्यसिद्धेः । गणितशब्दप्रयोगात्तत्सिद्धिरिति चेन्न, हस्ततुलादिपरिम... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/४२१
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायठीलावतीकण्ठाभरण-सविन्रृतिप्रकारोद्धाशिता ३०७ हार(१)बदुपपत्तेः । विपक्षादव्थावृत्तेच । एकत्वद्वितवादीनां(२) सामान्यरूपसवेनेबोपपत्तेः । न च परापरभाव... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/४२२
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Srkris
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/* अपरिष्कृतम् */ ३४८ न्यायलीरावती वयङ्गयतवात् , योनिसम्बन्धनु दधि(१)त्राद्यणस्वत् । न चैकजाती- यकरारणान्नानाजात्य मावः । कारणेष्वपि तज्जातिक्तखात् सत्ता- वतर् । अन्यथा... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/४२३
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Srkris
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावतीकण्ठाभरण-सविवृतिप्रकाशोद्भासिता वत् | अन्यथा घट इतिवदेकत्रैवायं द्वावयं च द्वाविति प्रतीतिः न्यायलीलावतीकण्ठाभरणम् त्वं न घटवृत्तिजातिः घटेन... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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पृष्ठम्:न्यायलीलावती.djvu/४२४
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Srkris
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/* अपरिष्कृतम् */ न्यायलीलावती न्यायलीलावतीप्रकाशः च्यते तदपि न घटत्वादिसामान्यस्यापि घटान्यद्रव्याविषयकप्रती. त्यविषयत्वात् घटादेः स्वावयवाविषयसाक्षात्काराविषयत्वात्... नवीन पृष्ठं निर्मीत अस्ती
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