नल-दमयन्ती
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निषध देश के राजा वीरसेन के पुत्र का नाम नल था। राजा नल को जुआ खेलने में बड़ी रुचि थी। उन दिनों विदर्भ देश में राजा भीष्मक राज्य करते थे। उनकी दमयन्ती नामक एक अत्यन्त रूपवती कन्या थी। एक दिन अपने उद्यान में घूमते हुये राजा नल ने अति सुन्दर हंस को उड़ते हुये देखा। राजा नल ने उस हंस को पकड़ लिया। इस पर हंस बोला कि हे राजन्! मैं राजकुमारी दमयन्ती का हंस हूँ, हमारी राजकुमारी उर्वशी नामक अप्सरा से भी अधिक सुन्दर हैं। वे आपके सर्वथा योग्य हैं। आप कृपा करके मुझे छोड़ दें। दमयन्ती की प्रशंसा सुन कर राजा नल अत्यन्त प्रसन्न हुये और उस हंस को मुक्त कर दिया। हंस उड़ता हुआ सीधे विदर्भ देश में पहुँचा और वहाँ पर दमयन्ती के पास जा कर राजा नल के रूप-गुण की प्रशंसा करने लगा। राजा नल के विषय में सुनकर दमयन्ती मन ही मन उनसे प्रेम करने लगीं। कुछ काल पश्चात् राजा भीष्मक ने अपनी पुत्री दमयन्ती का स्वयंवर रचाया जिसमें देश विदेश के अनेकों राजाओं के साथ ही साथ राजा नल भी पहुँचे। स्वयंवर में दमयन्ती ने राजा नल का वरण कर लिया।
"उस स्वयंवर को देखने इन्द्र, अग्नि, वरुण, यम आदि देवता भी आये थे। स्वयंवर की समाप्ति के पश्चात् जब इन्द्र वापस अपनी पुरी अमरावती जा रहे थे तो मार्ग में उनकी भेंट कलियुग से हुई। देवराज इन्द्र के पूछने पर कलियुग ने बताया कि वह राजकुमारी दमयन्ती से विवाह करने जा रहा है। इस पर इन्द्र ने मुस्कुराते हुये कहा कि कलियुग! तुम्हें देर हो चुकी है, दमयन्ती ने तो राजा नल का वरण कर लिया है। इन्द्र की बात सुनकर कलियुग को राजा नल पर अत्यन्त क्रोध आया और वह तत्काल निषध देश पहुँचा और राजा नल से प्रतिशोध लेने का अवसर खोजने लगा। राजा नल के धर्मात्मा तथा सदाचारी होने के कारण कलियुग उनके शरीर के भीतर प्रविष्ट नहीं हो पा रहा था। वह बारह वर्षों तक निरन्तर राजा नल से किसी प्रकार चूक होने की प्रतीक्षा करता रहा। इस बीच राजा नल के दमयन्ती से दो सन्तानें भी उत्पन्न हो गईं। एक दिन राजा नल लघुशंका के पश्चात् भूलवश बिना पैर धोये ही सन्ध्यावन्दन में लग गये। उसी अपवित्र अवस्था में कलियुग उनके शरीर में प्रविष्ट हो गया। उसी समय राजा नल के भाई पुष्कर ने राजा नल को जुआ खेलने का निमन्त्रण दिया। जुआ खेलते समय कलियुग अपने प्रभाव से चौसर के पासों को पुष्कर के पक्ष में करते जाता था और इस प्रकार राजा नल अपना समस्त राज-पाट, धन-सम्पत्ति आदि जुए में हार गये।
"सब कुछ हार जाने पर राजा नल ने दमयन्ती से कहा कि तुम अपने बच्चों के साथ अपने पिता के घर चले जाओ क्योंकि मैं वनवास के लिये जा रहा हूँ। दमयन्ती ने बच्चों को तो ननिहाल भेज दिया किन्तु स्वयं नल के साथ वन में रहने लगी। नल और दमयन्ती के शरीर पर केवल एक-एक धोती के सिवाय और कोई वस्त्र न था। दमयन्ती को इस प्रकार का जीवन व्यतीत करते देख कर राजा नल को अत्यन्त कष्ट होता था और वे सदैव उसे अपने पिता के घर चले जाने के लिये कहते थे किन्तु दमयन्ती को पति का साथ छोड़ देना कदापि स्वीकार नहीं था। एक दिन राजा नल ने दोनों की क्षुधा शांत करने की व्यवस्था हेतु कुछ पक्षियों को पकड़ने के लिये अपनी धोती को जाल बना कर फैलाया किन्तु पक्षी उसमें फँसने के बजाय उनकी धोती को ही लेकर उड़ गये। उस समय दमयन्ती सो रही थी। राजा नल ने सोती हुई दमयन्ती के शरीर से आधी धोती फाड़ ली और यह सोचकर कि मुझे न पाकर यह अपने पिता के घर चली जायेगी, दमयन्ती को वहीं अकेले छोड़कर चुपचाप वहाँ से चले गये। आँख खुलने के बाद दमयन्ती ने राजा नल को कहीं नहीं पाया। दमयन्ती ने राजा नल की बहुत खोज की किन्तु उन्हें पा न सकी। अन्ततः थक हार कर वह सौदागरों के एक दल के साथ चेदि देश के राजा सुबाहु के घर जा पहुँची। वहाँ के राजमाता को दमयन्ती की दशा पर तरस खाकर उसे अपने यहाँ दासी के रूप में रख लिया।
"इधर राजा नल दमयन्ती की आधी धोती पहनकर वन में व्याकुल घूमने लगे। अचानक वन में आग लग गई, किन्तु अग्नि के आशीर्वाद से राजा नल पर आग का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। उस वन में एक करकोटक नाग भी रहता था। राजा नल ने अग्नि से उसकी रक्षा की, किन्तु अग्नि-क्षेत्र से बाहर आते ही करकोटक नाग ने राजा नल को डस लिया और उसके विष के प्रभाव से राजा नल का पूरा शरीर काला पड़ गया। क्रोधित होकर राजा नल नाग से बोले कि रे मूर्ख! क्या मेरे उपकार का यही बदला है? इस पर करकोटक ने कहा कि राजन्! इसके लिये आप तनिक भी दुःखी मत होइये। मेरे विष को सहन न कर पाने के कारण आपके भीतर प्रविष्ट कलियुग कुछ ही काल में व्याकुल होकर आपको छोड़ देगा। साथ ही आपके शरीर का रंग बदल जाने के कारण आपको कोई पहचान भी न पायेगा। और फिर इस भयानक वन में मेरे विष के कारण आपको कोई हिंसक जन्तु खा भी नहीं पायेगा। अब आप अपना नाम बदल कर सीधे अयोध्या में ऋतुपर्ण के पास चले जाइये। ऋतुपर्ण द्यूतकला में अत्यन्त निपुण है। आप उसे अश्व विद्या सिखा कर बदले में उससे द्यूतकला की विशेषताएँ सीख लेना और पुनः पुष्कर से जुआ खेल कर अपना राज्य वापस प्राप्त कर लेना। मैं आपको एक वस्त्र भी प्रदान कर रहा हूँ, राज्य वापस प्राप्त कर लेने के पश्चात् इस वस्त्र के पहनने से आपके शरीर का रंग फिर से असली हो जायेगा। करकोटक नाग के कहे अनुसार राजा नल अयोध्या आ गये और ऋतुपर्ण के यहाँ बाहुक नाम से उनका सारथि बन कर रहने लगे।
"इधर विदर्भ के राजा भीष्मक को जब ज्ञात हुआ कि राजा नल जुए में अपना सब कुछ हार कर वन चले गये हैं तो उन्होंने अपनी पुत्री दमयन्ती का पता लगाने के लिये अनेक ब्राह्मणों को चारों दिशाओं में भेजा। सुदेव नामक एक ब्राह्मण ने चेदि देश में जाकर दमयन्ती को पहचान लिया और उन्हें अपने पिता के घर वापस ले आया। दमयन्ती ने सुदेव को राजा नल का पता लगाने का भार सौंपा। सुदेव को राजा ऋतुपर्ण के सारथि बाहुक पर राजा नल होने का सन्देह हुआ और उसने अपने इस सन्देह के विषय में दमयन्ती को बताया। इस पर दमयन्ती ने सुदेव से कहा कि तुम जाकर उससे कहना कि तुम अपनी पत्नी को निद्रा की अवस्था में क्यों छोड़ आये? सुदेव ने बाहुक के पास से वापस आकर दमयन्ती को बताया कि हे देवि! बाहुक ने कहा है कि कष्ट के समय मनुष्य अपनी पतिव्रता स्त्री को भी त्याग देता है। दमयन्ती ने अनेक प्रकार से बाहुक की और भी परीक्षायें लीं और उन्हें विश्वास हो गया कि बाहुक ही उनका पति नल है।
"अपने पति नल को वापस पाने के लिये दमयन्ती ने सुदेव के द्वारा ऋतुपर्ण के पास झूठा समाचार भिजवाया कि दमयन्ती का दूसरी बार स्वयंवर होने वाला है आप उसमें पधारें। ऋतुपर्ण ने अपने सारथि बाहुक के साथ विदर्भ के लिये प्रस्थान किया। बाहुक ने अश्वों को पवन की चाल से दौड़ा कर अत्यन्त अल्प काल में ही ऋतुपर्ण को अयोध्या से विदर्भ पहुँचा दिया। रंग परिवर्तित होने के बाद भी दमयन्ती ने नल को पहचान लिया। ऋतुपर्ण भी समझ गये कि दमयन्ती ने अपने पति को प्राप्त करने के लिये झूठा समाचार भेजा था। ऋतुपर्ण राजा नल की अश्व विद्या से अत्यन्त प्रभावित हुये और उनसे अश्व विद्या सीख कर उन्हें द्यूतकला की शिक्षा दे दी।
"उसके पश्चात् राजा नल ने पुष्कर से जुआ खेल कर उसका समस्त राज्य जीत लिया। सब कुछ हार जाने के पश्चात् पुष्कर को अपनी भूल के लिये पश्चाताप होने लगा अतएव नल ने अपना राज्य स्वयं रख कर पुष्कर का राज्य उसे लौटा दिया। तथा दमयन्ती के साथ सुखपूर्वक राज्य करने लगे।"
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सुखसागर के सौजन्य से
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