वाटिका

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वाटिका का अर्थ होता है बागीचा।

अनुक्रमणिका

[बदलें] उदाहरण

  • माता सीता से आज्ञा लेने के बाद हनुमान जी ने अशोक वाटिका के वृक्षों का फल खाया।

[बदलें] मूल

  • वाटिका संस्कृत मूल का शब्द है।

[बदलें] अन्य अर्थ

  • फुलवारी
  • बाग
  • उद्यान
  • पुष्प वाटिका
  • बागीचा
  • चमन

[बदलें] संबंधित शब्द

[बदलें] हिंदी में

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[बदलें] अन्य भारतीय भाषाओं में निकटतम शब्द

[बदलें] संबंधित अन्य

वाटिका ग्राम

[बदलें] *गायत्री शक्तिपीठ वाटिका

परम पूज्य गुरूदेव वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पंडित *श्री राम शर्मा आचार्य जी ने पावन नगरी वाटिका को प्रकाश स्तम्भ बनाने हेतु २३ दिसम्बर १९८० को यहॉ *गायत्री शक्तिपीठ की स्थापना की।

[बदलें] वाटिका ग्राम परिचय

गुलाबी नगर जयपुर से २५ कि. मी. दूर दक्षिण दिशा में लगभग २०० वर्ष पूर्वयह नगर बसा था। वाटिका जयपुर-कोटा राष्ट्रीय राजमार्ग से मात्र ६ कि.मी. दूर डामर की पक्की सड़क से जुड़ा हुआ है। वाटिका के लिये जयपुर शहर के अजमेरी गेट व नारायण सिंह सर्कल सेउपनगरीय बसे चलती है।

यह एक सुन्दर धार्मिक स्थान है।यहाँ हमेशा से विद्वान व तपस्वी लोग रहते आये है। २० वीं शताब्दी के आरम्भ में यहाँ श्री गणेश नारायण जी ने जन्म लिया था। वे संस्कृत व ज्योतिषके प्रकाण्ड विद्वान थे। प्राचीन समय में यहाँविद्याध्यन की पूर्ण सुविधा थी। यहाँ दूर दूर से मेधावी छात्र विद्याध्यनकरने आया करते थे। सभी के रहने खाने आदि की व्यवस्था का सारा खर्च यहाँ स्थित गुरुकुल द्वारा वहन किया जाता था। गुरुकुलके संचालक श्री गणेश नारायण जी महाराज थे। इन्होने गुरुकुल के साथ ही एक मंदिर भी बनवाया था। जिसमें रहकर छात्र वेद-उपनिषद, पुराण-शास्त्रों का अध्ययन किया करते है। श्री गणेश नारायण जी महाराजने दो छोटी-छोटी बगीचियां भी लगवाई थी जो रघुनाथ बाग व महाराज वाली बगीची के नाम से जानी जाती है। ऐसे ही एक सन्त पं श्री गोपीनाथ जी महाराज हुये। ये आयुर्वेद के प्रकाण्ड विद्वान थे। पं श्री गोपीनाथ जी नाड़ी देखकर ही रोग का निदान निःशुल्क करते थे। यहाँ की जनता की धार्मिक व आध्यात्मिक रुचि के कारण ही हर सम्प्रदाय के सन्त-महात्मा समय-समय पर आया करते थे।एक बार श्री १०८ श्री जुगलकिशोरजी महाराज पधारे थे। लम्बे समय तक रुक कर इन्होने एक बाग लगवाया जो जुगल बाग से जाना जाता है। एक सन्त ने श्री हनुमान जी का मंदिर बनवाया। एक बार यहाँ श्री छबीलदास जी महाराज पधारे थे। श्री छबीलदास जी महाराजकी बनवाई हुयी बगीची इन्ही के नाम से जानी जाती है।

[बदलें] संकल्प, मूर्ति स्थापना - प्राण प्रतिष्ठा व युग निर्माण सम्मेलन

बसंत पंचमी सन् १९८० को गायत्री तीर्थ शान्तिकुञ्ज, हरिद्वार में स्वयं परम् पूज्य गुरूदेव द्वारा स्व. श्री बंशीधर जी को वाटिका में एक गायत्री शक्तिपीठ बनवानें का संकल्प दिलवाया। ९ अगस्त १९८० को वाटिकाके धर्मप्राण बड़ाया दम्पत्ति के कर कमलों द्वारा विधि विधान से भूमि पूजन व मंदिर का शिलान्यास हुआ।उसके बाद गुरूदेव ने प्राण प्रतिष्ठाकी तिथियां घोषित की । मार्ग शीर्ष शुक्ल पूर्णिमा से पोष कृष्णा तृतीया संवत २०३७ तक तदनुसार दिनांक 21-12-1980 से 24-12-1980 तक वाटिका ग्राम में प्राण प्रतिष्ठा के साथ युग निर्माण सम्मेलनभी रखा ।

कलश यात्रा दिनांक 21-12-1980 को धूमधाम से निकाली गई ।

हरिद्वार से परम् पूज्य गुरूदेव का वाटिका ग्राम मेंआगमन दिनांक 22-12-1980 को(इन्द्र देव के साथ) हुआ ।गुरूदेवके साथ श्री लीलापति जी तथा हरिद्वार- मथुरा से और भी अन्य वरिष्ठ परिजन आये थे ।

दिनांक 22-12-1980 की सांय काल की सभा को पंडित जी श्री लीलापति जी ने संबोधित किया

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