हरिशंकर परसाई
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हरिशंकर परसाईं (जन्म: 22 अगस्त¸ 1924-1995) हिंदी के प्रसिद्ध कवि और लेखक थे। उनका जन्म जमानी¸ होशंगाबाद¸ मध्य प्रदेश मे हुआ था।
वे हिंदी के पहले रचनाकार है¸ जिन्होंने व्यंग्य को विधा का दरजा दिलाया और उसे हल्के–फुल्के मनोरंजन की परंपरागत परिधि से उबारकर समाज के व्यापक प्रश्नों से जोड़ा है। उनकी व्यंग्य रचनाएँ हमारे मन में गुदगुदी पैदा नहीं करतीं¸ बल्कि हमें उन सामाजिक वास्तविकताओं के आमने–सामने खड़ा करती है¸ जिनसे किसी भी व्यक्ति का अलग रह पाना लगभग असंभव है। लगातार खोखली होती जा रही हमारी सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था में पिसते मध्यमवर्गीय मन की सच्चाइयों को उन्होंने बहुत ही निकटता से पकड़ा है। सामाजिक पाखंड और रूढ़िवादी जीवन–मूल्यों की खिल्ली उड़ाते हुए उन्होंने सदैव विवेक और विज्ञान–सम्मत दृष्टि को सकारात्मक रूप में प्रस्तुत किया है। उनकी भाषा–शैली में खास किस्म का अपनापा है¸ जिससे पाठक यह महसूस करता है कि लेखक उसके सामने ही बैठा है।
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[बदलें] शिक्षा
उन्होने नागपुर विश्वविद्यालय से हिन्दी में एम•ए• किया।
[बदलें] जीवन
18 वर्ष की उम्र में जंगल विभाग में नौकरी। खण्डवा में 6 महीने अध्यापक। दो वर्ष (1941–43 में) जबलपुर में स्पेस ट्रेनिंग कालिज में शिक्षण कार्य का अध्ययन। 1943 से वहीं माडल हाई स्कूल में अध्यापक। 1952 में यह सरकारी नौकरी छोड़ी। 1953 से 1957 तक प्राइवेट स्कूलों में नौकरी। 1957 में नौकरी छोड़कर स्वतन्त्र लेखन की शुरूआत। जबलपुर से 'वसुधा' नाम की साहित्यिक मासिकी निकाली¸ नई दुनिया में 'सुनो भइ साधो'¸ नयी कहानियों में 'पाँचवाँ कालम'¸ और 'उलझी–उलझी' तथा कल्पना में 'और अन्त में' इत्यादि। कहानियाँ¸ उपन्यास एवं निबन्ध–लेखन के बावजूद मुख्यत: व्यंग्यकार के रूप में विख्यात।
[बदलें] पूछिये परसाई से
परसाई जी जबलपुर रायपुर से निकलने वाले अखबार देशबंधु में पाठकों के प्रश्नों के उत्तर देते थे। स्तम्भ का नाम था-पूछिये परसाई से। पहले हल्के इश्किया और फिल्मी सवाल पूछे जाते थे । धीरे-धीरे परसाईजी ने लोगों को गम्भीर सामाजिक-राजनैतिक प्रश्नों की ओर प्रवृत्त किया। दायरा अंतर्राष्ट्रीय हो गया। यह सहज जन शिक्षा थी।लोग उनके सवाल-जवाब पढ़ने के लिये अखबार का इंतजार करते थे।
[बदलें] प्रमुख रचनाएं
कहानी–संग्रह: हँसते हैं रोते हैं¸ जैसे उनके दिन फिरे।
उपन्यास: रानी नागफनी की कहानी¸ तट की खोज।
लेख संग्रह: तब की बात और थी¸ भूत के पाँव पीछे¸ बेइमानी की परत¸ वैष्णव की फिसलन¸ पगडण्डियों का जमाना¸ शिकायत मुझे भी है¸ सदाचार का ताबीज¸ विकलांग श्रद्धा का दौर¸ तुलसीदास चंदन घिसैं¸ हम एक उम्र से वाकिफ हैं।
[बदलें] सम्मान
'विकलांग श्रद्धा का दौर' के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित।
[बदलें] यह भी देखे
[बदलें] बाहरी कड़ियाँ
- अभिव्यक्ति पे हरिशंकर परसाई
- फ़ुरसतिया पे परसाई जी का लेख - ‘गर्दिश के दिन’
- फ़ुरसतिया पे परसाई जी का लेख - 'सदाचार का ताबीज’
- फ़ुरसतिया पे हरिशंकर परसाई- विनम्र श्रद्धांजलि
- व्यंग्य के प्रतिमान और परसाई