निरंतर

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निरंतर हिन्दी चिट्ठाकारों के एक समूह द्वारा प्रकाशित एक जाल-पत्रिका है। यह विश्व की पहली ज्ञात हिन्दी ब्लॉगज़ीन है। यह पत्रिका गैरपेशेवर प्रकाशकों द्वारा निकाली जाती है और पाठकों को प्रकाशित लेखों पर त्वरित टिप्पणी करने का मौका देती है।

निरंतर की स्थापना 2005 में की गई, पहले यह पंकज नरूला द्वारा स्थापित अक्षरग्राम डोमेन के अंतर्गत प्रकाशित होता था परंतु संप्रति अपने ही डोमेन से प्रकाशित होता किया जाता है। जाल पर हिन्दी के बढ़ते प्रयोग के मद्देनज़र यह प्रयास शुरु किया। निरंतर से जुड़े लोग वैसे तो चिट्ठाकारी से जुड़े हैं पर यह पत्रिका उनके औपचारिक लेखन को प्रस्तुत करने का एक मंच बना है। अगस्त 2005 में निरंतर का प्रकाशन 6 अंकों के उपरांत बंद हो गया था। 1 साल बाद अगस्त 2006 में इसका प्रकाशन नये कलेवर में दुबारा शुरु हुआ।

निरंतर वैश्विक भारत के सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक पहलुओं पर दृष्टिपात करती पत्रिका है पर इसमें तकनीकि विषयों को हिन्दी में प्रस्तुत करने पर दिया जा रहा ज़ोर साफ दिखता है। पत्रिका का ज़ोर है कि वे क्लिष्ट हिन्दी का प्रयोग न कर, पारंपरिक और आधुनिक बोल चाल की हिन्दी का मेल प्रस्तुत करें। निरंतर के संस्थापक इसे एक गंभीर पत्रिका मानते हैं, उनका उद्देश्य है कि यह भारत की पहली सामुदायिक पत्रिका बने, हर कथा अंर्तजाल के हिन्दी पाठकों के कलेक्टिव विज़डम का निचोड़ हो। इसके लिये पत्रिका ने "निरंतर मित्र" समूह की स्थापना की है।

निरंतर की संरचना की एक विशेषता यह है कि इसके संपादक विश्व के विभिन्न कोने से साथ आ जुड़े हैं। निरंतर के मुख्य संपादक हैं अनूप शुक्ला। पत्रिका का प्रकाशन व प्रबंध संपादन इसके संस्थापक देबाशीष चक्रवर्ती करते हैं। निरंतर के कोर संपादन टीम में शामिल हैं डॉ सुनील दीपक, रविशंकर श्रीवास्तव, रमण कौल, अतुल अरोरा, प्रत्यक्षा, शशि सिंह, ईस्वामी, पंकज नरूला, जीतेन्द्र चौधरी और आलोक कुमार।

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