जी शंकर कुरुप

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मलयाली भाषा के प्रसिद्ध कवि जी शंकर कुरुप का जन्म 3 जून 1901 में केरल के एक गाँव उजाड में एक छोटे से परिवार में हुआ था। 3 साल की उम्र से उनकी शिक्षा आरंभ हुई। 8 वर्ष तक की आयु में वे 'अमर कोश' 'सिद्धरुपम' 'श्रीरामोदन्तम' आदि ग्रन्थ कंठस्थ कर चुके थे और रघुवंश महाकाव्य के कई श्लोक पढ चुके थे। 11 वर्ष की आयु मे महाकवि कुंजिकुट्टन के गाँव आगमन पर वे कविता की ओर उन्मुख हुये । तिरुविल्वमला में अध्यापन कार्य करते हुये अंग्रेजी भाषा तथा साहित्य का अध्यन किया। अंग्रेजी साहित्य इनको गीति के आलोक की ओर ले गया। आपकी रचनाओं में 'सूर्यकान्ति' 'निमिषम'चेंकतिरुकल' 'सन्धा' 'मुत्तुकल' 'इत्तलुकलु' 'वनगायकन' 'पथिनटेपाट्टू' तथा 'अन्तर्दाहम प्रमुख हैं। उनकी प्रसिद्ध रचना "ओटक्कुलषल" अर्थात बाँसुरी हिन्दी के सर्वोच्च सम्मान ज्ञानपीठ द्वारा सम्मानित हुई। इनकी काव्य चेतना ने ऐतिहासिक तथा वैज्ञानिक युग बोध के प्रति सजग भाव रखा है। कुरुप बिम्बों और प्रतीकों के कवि हैं। इन्होंने परम्परागत छन्द विधान और संस्कृत निष्ठ भाषा को अपनाया परिमार्जित किया और अपने चिन्तन तथा काव्य प्रतिबिम्बों के अनुरुप उन्हें अभिव्यक्ति की नयी सामर्थ्य से पुष्ट किया।