रवांडा जनसंहार

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जनसंहार के बाद के अवशेष
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जनसंहार के बाद के अवशेष

रवांडा का नाम आते ही लोगो की स्मृति में उभरता है 1994 में दो महीने के भीतर वहाँ हुई एक लाख से भी ज्यादा हत्याएँ। 1994 में हुए ये क़त्ल हिरोशिमा और नागासाकी के परमाणु हत्याओं की याद दिलाता है। हुतू जाति के प्रभाव वाली सरकार जिसने इस जनसंहार को प्रायोजित किया था उनका उद्देश्य था विरोधी तुत्सी आबादी का देश से सफाया। इसमें न सिर्फ़ तुत्सी लोगों का कत्ल किया गया बल्कि तुत्सी लोगों के साथ किसी तरह की सहानुभूति दिखाने वाले लोगों को भी सरेआम मारा गया। मानवाधिकार की पैरोकार अधिकांश पश्चिमी देश इस पूरे मसले को खामोशी से देखते रहे। आधुनिक शोध इस बात पर बल देते हैं सामान्य जातीय तनाव इस नरसंहार की वजह न देकर इसकी वजह युरोपीय उपनिवेशवादी देशों अपने स्वार्थों के लिये हुतू और तुत्सी लोगों को कृत्रिम रूप से विभाजित किया जाना है। हत्या और बलात्कार की इन वीभत्स घटनाओं ने अफ्रीका की आबादी के बड़े हिस्से के मानस को बुरी तरह प्रभावित किया है।

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