सम्मोहन

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सम्मोहन विद्या भारतवर्ष की प्राचीनतम और सर्वश्रेष्ठ विद्या है जिसकी जड़ें सुदूर गहराईयों तक स्थित हैं। भारत वासीयों का जीवन अध्यात्म प्रधान रहा है और भारत वासीयों ने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में दर्शन और अध्यात्म को सर्वाधिक महत्व दिया है. इसीलिए सम्मोहन विद्या को भी प्राचीन समय से 'प्राण विद्या' या 'त्रिकालविद्या' के नाम से पुकारा जाता है.

भारतीय दर्शन और भारतीय अध्यात्म, योग और उसकी शक्तियों से जुड़ा हुआ है। योग शब्द का अर्थ ही 'जुड़ना' है, यदि इस शब्द को आध्यात्मिक अर्थ में लेते हैं तो इसका तात्पर्य आत्मा का परमात्मा से मिलन और दोनो का एकाकार हो जाना ही है। भक्त का भगवान से, मानव का ईश्वर से, व्यष्टि का समष्टि से, तथा पिण्ड का ब्रह्माण्ड से मिलन ही योग कहा गया है. हकीकत में देखा जाए तो यौगिक क्रियाओं का उद्देश्य मन को पूर्ण रूप से एकाग्र करके प्रभू के चरणों में समर्पित कर देना है। और इस समर्पण से जो शक्ति का अंश प्राप्त होता है, उसी को सम्मोहन कहते हैं।