एड्स

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एड्स

यह लाल पट्टी विश्वभर में एचआईवी संक्रमण और एड्स के संग जी रहे लोगों से एकात्मता का चिन्ह है।

एड्स यानि "अक्वायर्ड इम्यूनो डिफिसियेंसी सिंड्रोम" एचआईवी संक्रमण के बाद की स्थिति है, जिसमें मानव अपने प्राकृतिक प्रतिरक्षण क्षमता खो देता है। एड्स स्वयं कोई बीमारी नही है पर एड्स से पीड़ित मानव शरीर संक्रामक बीमारियों, जो कि बैक्टीरिया और वायरस आदि से होती हैं, के प्रति अपनी प्राकृतिक प्रतिरोधी शक्ति खो बैठता है क्योंकि एचआईवी रक्त में मौजूद प्रतिरोधी पदार्थ लिफ्मोसाईट्स पर हमला करता है। एड्स पीड़ित के शरीर में प्रतिरोधक क्षमता के क्रमशः क्षय होने से कोई भी अवसरवादी संक्रमण, यानि आम सर्दी जुकाम से ले कर टी.बी. जैसे रोग तक सहजता से हो जाते हैं और उनका इलाज करना कठिन हो जाता हैं। एचआईवी संक्रमण को एड्स की स्थिति तक पहुंचने में 8 से 10 वर्ष या इससे भी अधिक समय लग सकता है। एचआईवी से ग्रस्त व्यक्ति अनेक वर्षों तक संलक्षणों के बिना रह सकते हैं। [१]


एड्स वर्तमान युग की सबसे बड़ी स्वास्थ्य समस्याओं में से एक है। एड्स के संक्रमण के तीन मुख्य कारण हैं - यौन द्वारा, रक्त द्वारा तथा माँ-शिशु संक्रमण द्वारा। नेशनल एड्स कंट्रोल प्रोग्राम और यूएनएड्स दोनों ही यह मानते हैं कि भारत में 80 से 85 प्रतिशत संक्रमण असुरक्षित विषमलैंगिक (हेट्रोसेक्शुअल) यौन संबंधों से फैल रहा है।[२] माना जाता है कि सबसे पहले इस रोग का विषाणु एचआईवी अफ्रीका के खास प्राजाति की बंदर में पाया गया और वहीं से ये पूरी दुनिया में फैला[तथ्य चाहिए]। अभी तक इसे लाइलाज माना जाता है लेकिन दुनिया भर में इसका इलाज पर शोधकार्य चल रहे हैं। 1981 में एड्स की खोज से अब तक इससे लगभग 2.5 करोड़ लोग जान गंवा बैठे हैं।अनुक्रमणिका [छुपा] १ एड्स का प्रसार २ भारत में एड्स ३ एड्स से कैसे बचें ४ एड्स इन कारणों से नहीं फैलता ५ एड्स और एचआईवी में अंतर ६ एड्स के लक्षण ७ प्रगत अवस्था में एड्स के लक्षण ८ एड्स रोग का इलाज ९ एड्स ग्रसित लोगों के प्रति व्यवहार १० यह भी देखें ११ बाहरी कड़ियाँ १२ संदर्भ


[बदलें] एड्स का प्रसार

एड्स इन में से किसी भी कारण से फैल सकता है: असुरक्षित यौन संबंध दूषित खून लेने से संक्रमित माँ से उसके गर्भ में पल रहे बच्चे को। माँ के दूध से बच्चे को। संक्रमित सुई का प्रयोग करने से (मुख्यतः नशीले पदार्थो का सेवन करने वाले गुटों में)

दुनिया भर में इस समय लगभग चार करोड़ 20 लाख लोग एचआईवी का शिकार हैं। इनमें से दो तिहाई सहारा से लगे अफ़्रीकी देशों में रहते हैं और उस क्षेत्र में भी जिन देशों में इसका संक्रमण सबसे ज़्यादा है। वहाँ हर तीन में से एक वयस्क इसका शिकार है। दुनिया भर में लगभग 14,000 लोगों के प्रतिदिन इसका शिकार होने के साथ ही यह डर बन गया है कि ये बहुत जल्दी ही एशिया को भी पूरी तरह चपेट में ले लेगा। जब तक कारगर इलाज खोजा नहीं जाता, एड्स से बचना ही एड्स का सर्वोत्तम उपचार है।

भारत में एड्स संक्रमित लोगों की बढ़ती संख्या के संभावित कारण आम जनता को एड्स के विषय में सही जानकारी न होना एड्स तथा यौन रोगों के विषयों को कलंकित समझना पाठशालाओं में यौन शिक्षण व जागरूकता बढ़ाने वाले पाठ्यक्रम का अभाव कई धार्मिक संगठनों का कंडोम के प्रयोग को अनुचित ठहराना आदि।

[बदलें] भारत में एड्स

भारत में वास्तविक एड्स के शिकार लोगों की संख्या सूचित रोगीयों की संख्या से कहीं अधिक मानी जाती है। वर्ष 2003 के अंत में भारत में एड्स के अनुमानित रोगियों की सँख्या [तथ्य चाहिए]: वयस्क: 50,00,000 महिला: 19,00,000 बच्चे: 1,20,000 कुल :70,20,000

[बदलें] एड्स से कैसे बचें अपने जीवनसाथी के प्रति वफादार रहें। एक से अधिक व्यक्ति से यौनसंबंध ना रखें। यौन संबंध(मैथुन) के समय कंडोम का सदैव प्रयोग करें। यदि आप एचआईवी संक्रमित या एड्स ग्रसित हैं तो अपने जीवनसाथी से इस बात का खुलासा अवश्य करें। बात छुपाये रखनें तथा इसी स्थिती में यौन संबंध जारी रखनें से आपका साथी भी संक्रमित हो सकता है और आपकी संतान पर भी इसका प्रभाव पड़ सकता है। यदि आप एचआईवी संक्रमित या एड्स ग्रसित हैं तो रक्तदान कभी ना करें। रक्त ग्रहण करने से पेहले रक्त का एचआईवी परीक्षण कराने पर ज़ोर दें। यदि आप को एचआईवी संक्रमण होने का संदेह हो तो तुरंत अपना एचआईवी परीक्षण करा लें। उल्लेखनीय है कि अक्सर एचआईवी के कीटाणु, संक्रमण होने के 3 से 6 महीनों बाद भी, एचआईवी परीक्षण द्वारा पता नहीं लगाये जा पाते। अतः तीसरे और छठे महीने के बाद एचआईवी परीक्षण अवश्य दोहरायें।

[बदलें] एड्स इन कारणों से नहीं फैलता एचआईवी संक्रमित या एड्स ग्रसित व्यक्ति से हाथ मिलाने से एचआईवी संक्रमित या एड्स ग्रसित व्यक्ति के साथ रहने से या उनके साथ खाना खाने से। एक ही बर्तन या रसोई में स्वस्थ और एचआईवी संक्रमित या एड्स ग्रसित व्यक्ति के खाना बनाने से।

[बदलें] एड्स और एचआईवी में अंतर

एचआईवी यानी ह्युमन इम्मुनो डोफिशियंसी वायरस एक अतिसूक्ष्म वायरस यानि की़टाणु हैं जिसकी वजह से एड्स हो सकता है। एड्स स्वयं में कोई रोग नहीं है बल्की एक संलक्षण है। यह मनुष्य की अन्य रोगों से लड़ने की नैसर्गिक प्रतिरोधक क्षमता को घटा देता हैं। प्रतिरोधक क्षमता के क्रमशः क्षय होने से कोई भी अवसरवादी संक्रमण, यानि आम सर्दी जुकाम से ले कर निमोनिया, टीबी, डायरीया, कर्क रोग (कैंसर) जैसे रोग तक सहजता से हो जाते हैं और उनका इलाज करना कठिन हो जाता हैं और मरीज़ की मृत्यु भी हो सकती है। यही कारण है की एड्स परीक्षण महत्वपूर्ण है। सिर्फ एड्स परीक्षण से ही निश्चित रूप से संक्रमण का पता लगाया जा सकता है।

[बदलें] एड्स के लक्षण

अक्सर एचआईवी से संक्रमित लोगों में लम्बे समय तक एड्स के कोई लक्षण नहीं दिखते। दीर्घ समय तक ( 3, 6 महीने या अधिक ) तक एचआईवी कीटाणु भी औषधिक परीक्षा में नहीं उभरते। अधिकांशतः एड्स के मरीज़ों को फ्लू या वायरल बुखार हो जाता है पर इससे एड्स होने की पहचान नहीं होती। एड्स के कुछ प्रारम्भिक लक्षण हैं बुखार सिरदर्द थकान हैजा मतली (nausea) व भोजन से अरुचि लसीकाओं (Lymph nodes) में सूजन

ध्यान रहे कि ये समस्त लक्षण साधारण बुखार या अन्य सामान्य रोगों के भी हो सकते हैं। अतः एड्स की निश्चित रूप से पहचान केवल, और केवल, औषधीय परीक्षण (medical test) से ही की जा सकती है व की जानी चाहिये।

[बदलें] प्रगत अवस्था में एड्स के लक्षण तेज़ी से अत्याधिक वजन घटना सूखी खांसी लगातार ज्वर या रात के समय अत्यधिक/असाधारण मात्रा में पसीने छूटना जंघाना, कक्षे और गर्दन में लम्बे समय तक सूजी हुई लसिकायें एक हफ्ते से अधिक समय तक दस्त होना। लम्बे समय तक गंभीर हैजा। निमोनिया (फुफ्फुस प्रदाह) चमड़ी के नीचे, मुँह, पलकों के नीचे या नाक में लाल, भूरे, गुलाबी या बैंगनी रंग के धब्बे। निरंतर भुलक्कड़पन, लम्बे समय तक उदासी और अन्य मानसिक रोगों के लक्षण।

[बदलें] एड्स रोग का इलाज

औषधी विज्ञान में एड्स के इलाज पर निरंतर संशोधन जारी हैं। भारत, जापान, अमरीका, युरोपीय देश और अन्य देशों में इस के इलाज व इससे बचने के टीकों की खोज जारी है। हालांकी एड्स के मरीज़ों को इससे लड़ने और एड्स होने के बावजूद कुछ समय तक साधारण जीवन जीने में सक्षम हैं परंतु अंत में मौत निश्चित हैं। एड्स लाइलाज हैं। इसी कारण आज यह भारत में एक महामारी का रूप हासिल कर चुका है। भारत में एड्स रोग की चिकित्सा महंगी है, एड्स की दवाईयों की कीमत आम आदमी की आर्थिक पहुँच के परे है। कुछ विरल मरीजों में सही चिकित्सा से 10-12 वर्ष तक एड्स के साथ जीना संभव पाया गया है, किंतु यह आम बात नही है।

ऐसी दवाईयाँ अब उपलब्ध हैं जिन्हें ए.आर.टी यानि एंटी रेट्रोवाईरल थेरपी दवाईयों के नाम से जाना जाता है। सिपला की ट्रायोम्यून जैसी यह दवाईयाँ महँगी हैं, प्रति व्यक्ति सालाना खर्च तकरीबन 15000 रुपये होता है, और ये हर जगह आसानी से भी नहीं मिलती। इनके सेवन से बीमारी थम जाती है पर समाप्त नहीं होती। अगर इन दवाओं को लेना रोक दिया जाये तो बीमारी फ़िर से बढ़ जाती है, इसलिए एक बार बीमारी होने के बाद इन्हें जीवन भर लेना पड़ता है। अगर दवा न ली जायें तो बीमारी के लक्षण बढ़ते जाते हैं और एड्स से ग्रस्त व्यक्तियों की मृत्यु हो जाती है।

एक अच्छी खबर यह है कि सिपला और हेटेरो जैसे प्रमुख भारतीय दवा निर्माता एचआईवी पीड़ितों के लिये शीघ्र ही पहली थ्री इन वन मिश्रित फिक्स्ड डोज़ गोलियाँ बनाने जा रहे हैं जो इलाज आसान बना सकेगा (सिपला इसे वाईराडे के नाम से पुकारेगा)।[३] इन्हें यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन से भी मंजूरी मिल गई है। इन दवाईयों पर प्रति व्यक्ति सालाना खर्च तकरीबन 1 लाख रुपये होगा, संबल यही है कि वैश्विक कीमत से यह 80-85 प्रतिशत सस्ती होंगी।

[बदलें] एड्स ग्रसित लोगों के प्रति व्यवहार

एड्स का एक बड़ा दुष्प्रभाव है कि समाज को भी संदेह और भय का रोग लग जाता है। यौन विषयों पर बात करना हमारे समाज में वर्जना का विषय रहा है। निःसंदेह शतुरमुर्ग की नाई इस संवेदनशील मसले पर रेत में सर गाड़े रख अनजान बने रहना कोई हल नहीं है। इस भयावह स्थिति से निपटने का एक महत्वपूर्ण पक्ष सामाजिक बदलाव लाना भी है। एड्स पर प्रस्तावित विधेयक [४]को अगर भारतीय संसद कानून की शक्ल दे सके तो यह भारत ही नहीं विश्व के लिये भी एड्स के खिलाफ छिड़ी जंग में महती सामरिक कदम सिद्ध होगा।

[बदलें] यह भी देखें कंडोम एचआईवी

[बदलें] बाहरी कड़ियाँ विश्व एड्स अभियान (UNAIDS) का हिन्दी पोर्टल एड्स से कैसे बचा जाए एड्स पर फिल्में : अच्छी शुरुवात सीधी बात कहने का क्या किसी में दम नहीं?

[बदलें] संदर्भ ↑ एचआईवी और एड्स क्या हैं? (asp)। UNAIDS। अभिगमन तिथि: 2007-03-02। ↑ भारत में एड्सः शतुरमुर्ग सा रवैया। निरंतर (2006-08-01)। ↑ Cipla launches new anti-HIV drug ViradayAdd to Clippings। हिंदुस्तान टाईम्स (2006-10-12)। ↑ Draft Law on HIV (asp)। Lawyers Collective।

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[संपादित करें] शीर्षक

[संपादित करें] शीर्षक<nowiki>असंरूपित मूल यहाँ निवेश करेंझूकी मूल'''मोटा मूलकड़ी शीर्षक</nowiki>

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www.nacoonline.org/ नेशनल एड्स कंट्रोल प्रोग्राम] और यूएनएड्स दोनों ही यह मानते हैं कि भारत में 80 से 85 प्रतिशत संक्रमण असुरक्षित विषमलैंगिक (हेट्रोसेक्शुअल) यौन संबंधों से फैल रहा है।[१] माना जाता है कि सबसे पहले इस रोग का विषाणु एचआईवी अफ्रीका के खास प्राजाति की बंदर में पाया गया और वहीं से ये पूरी दुनिया में फैला[तथ्य चाहिए]। अभी तक इसे लाइलाज माना जाता है लेकिन दुनिया भर में इसका इलाज पर शोधकार्य चल रहे हैं। 1981 में एड्स की खोज से अब तक इससे लगभग 2.5 करोड़ लोग जान गंवा बैठे हैं।

[संपादित करें] एड्स का प्रसार

एड्स इन में से किसी भी कारण से फैल सकता है:

  • असुरक्षित यौन संबंध
  • दूषित खून लेने से
  • संक्रमित माँ से उसके गर्भ में पल रहे बच्चे को।
  • माँ के दूध से बच्चे को।
  • संक्रमित सुई का प्रयोग करने से (मुख्यतः नशीले पदार्थो का सेवन करने वाले गुटों में)

दुनिया भर में इस समय लगभग चार करोड़ 20 लाख लोग एचआईवी का शिकार हैं। इनमें से दो तिहाई सहारा से लगे अफ़्रीकी देशों में रहते हैं और उस क्षेत्र में भी जिन देशों में इसका संक्रमण सबसे ज़्यादा है। वहाँ हर तीन में से एक वयस्क इसका शिकार है। दुनिया भर में लगभग 14,000 लोगों के प्रतिदिन इसका शिकार होने के साथ ही यह डर बन गया है कि ये बहुत जल्दी ही एशिया को भी पूरी तरह चपेट में ले लेगा। जब तक कारगर इलाज खोजा नहीं जाता, एड्स से बचना ही एड्स का सर्वोत्तम उपचार है।

भारत में एड्स संक्रमित लोगों की बढ़ती संख्या के संभावित कारण

  • आम जनता को एड्स के विषय में सही जानकारी न होना
  • एड्स तथा यौन रोगों के विषयों को कलंकित समझना
  • पाठशालाओं में यौन शिक्षण व जागरूकता बढ़ाने वाले पाठ्यक्रम का अभाव
  • कई धार्मिक संगठनों का कंडोम के प्रयोग को अनुचित ठहराना आदि।

[संपादित करें] भारत में एड्स

भारत में वास्तविक एड्स के शिकार लोगों की संख्या सूचित रोगीयों की संख्या से कहीं अधिक मानी जाती है। वर्ष 2003 के अंत में भारत में एड्स के अनुमानित रोगियों की सँख्या [तथ्य चाहिए]:

[संपादित करें] एड्स से कैसे बचें

  • अपने जीवनसाथी के प्रति वफादार रहें। एक से अधिक व्यक्ति से यौनसंबंध ना रखें।
  • यौन संबंध(मैथुन) के समय कंडोम का सदैव प्रयोग करें।
  • यदि आप एचआईवी संक्रमित या एड्स ग्रसित हैं तो अपने जीवनसाथी से इस बात का खुलासा अवश्य करें। बात छुपाये रखनें तथा इसी स्थिती में यौन संबंध जारी रखनें से आपका साथी भी संक्रमित हो सकता है और आपकी संतान पर भी इसका प्रभाव पड़ सकता है।
  • यदि आप एचआईवी संक्रमित या एड्स ग्रसित हैं तो रक्तदान कभी ना करें।
  • रक्त ग्रहण करने से पेहले रक्त का एचआईवी परीक्षण कराने पर ज़ोर दें।
  • यदि आप को एचआईवी संक्रमण होने का संदेह हो तो तुरंत अपना एचआईवी परीक्षण करा लें। उल्लेखनीय है कि अक्सर एचआईवी के कीटाणु, संक्रमण होने के 3 से 6 महीनों बाद भी, एचआईवी परीक्षण द्वारा पता नहीं लगाये जा पाते। अतः तीसरे और छठे महीने के बाद एचआईवी परीक्षण अवश्य दोहरायें।

[संपादित करें] एड्स इन कारणों से नहीं फैलता

  • एचआईवी संक्रमित या एड्स ग्रसित व्यक्ति से हाथ मिलाने से
  • एचआईवी संक्रमित या एड्स ग्रसित व्यक्ति के साथ रहने से या उनके साथ खाना खाने से।
  • एक ही बर्तन या रसोई में स्वस्थ और एचआईवी संक्रमित या एड्स ग्रसित व्यक्ति के खाना बनाने से।

[संपादित करें] एड्स और एचआईवी में अंतर

एचआईवी यानी ह्युमन इम्मुनो डोफिशियंसी वायरस एक अतिसूक्ष्म वायरस यानि की़टाणु हैं जिसकी वजह से एड्स हो सकता है। एड्स स्वयं में कोई रोग नहीं है बल्की एक संलक्षण है। यह मनुष्य की अन्य रोगों से लड़ने की नैसर्गिक प्रतिरोधक क्षमता को घटा देता हैं। प्रतिरोधक क्षमता के क्रमशः क्षय होने से कोई भी अवसरवादी संक्रमण, यानि आम सर्दी जुकाम से ले कर निमोनिया, टीबी, डायरीया, कर्क रोग (कैंसर) जैसे रोग तक सहजता से हो जाते हैं और उनका इलाज करना कठिन हो जाता हैं और मरीज़ की मृत्यु भी हो सकती है। यही कारण है की एड्स परीक्षण महत्वपूर्ण है। सिर्फ एड्स परीक्षण से ही निश्चित रूप से संक्रमण का पता लगाया जा सकता है।

[संपादित करें] एड्स के लक्षण

अक्सर एचआईवी से संक्रमित लोगों में लम्बे समय तक एड्स के कोई लक्षण नहीं दिखते। दीर्घ समय तक ( 3, 6 महीने या अधिक ) तक एचआईवी कीटाणु भी औषधिक परीक्षा में नहीं उभरते। अधिकांशतः एड्स के मरीज़ों को फ्लू या वायरल बुखार हो जाता है पर इससे एड्स होने की पहचान नहीं होती। एड्स के कुछ प्रारम्भिक लक्षण हैं

  • बुखार
  • सिरदर्द
  • थकान
  • हैजा
  • मतली (nausea) व भोजन से अरुचि
  • लसीकाओं (Lymph nodes) में सूजन

ध्यान रहे कि ये समस्त लक्षण साधारण बुखार या अन्य सामान्य रोगों के भी हो सकते हैं। अतः एड्स की निश्चित रूप से पहचान केवल, और केवल, औषधीय परीक्षण (medical test) से ही की जा सकती है व की जानी चाहिये।

[संपादित करें] प्रगत अवस्था में एड्स के लक्षण

  • तेज़ी से अत्याधिक वजन घटना
  • सूखी खांसी
  • लगातार ज्वर या रात के समय अत्यधिक/असाधारण मात्रा में पसीने छूटना
  • जंघाना, कक्षे और गर्दन में लम्बे समय तक सूजी हुई लसिकायें
  • एक हफ्ते से अधिक समय तक दस्त होना। लम्बे समय तक गंभीर हैजा।
  • निमोनिया (फुफ्फुस प्रदाह)
  • चमड़ी के नीचे, मुँह, पलकों के नीचे या नाक में लाल, भूरे, गुलाबी या बैंगनी रंग के धब्बे।
  • निरंतर भुलक्कड़पन, लम्बे समय तक उदासी और अन्य मानसिक रोगों के लक्षण।

[संपादित करें] एड्स रोग का इलाज

औषधी विज्ञान में एड्स के इलाज पर निरंतर संशोधन जारी हैं। भारत, जापान, अमरीका, युरोपीय देश और अन्य देशों में इस के इलाज व इससे बचने के टीकों की खोज जारी है। हालांकी एड्स के मरीज़ों को इससे लड़ने और एड्स होने के बावजूद कुछ समय तक साधारण जीवन जीने में सक्षम हैं परंतु अंत में मौत निश्चित हैं। एड्स लाइलाज हैं। इसी कारण आज यह भारत में एक महामारी का रूप हासिल कर चुका है। भारत में एड्स रोग की चिकित्सा महंगी है, एड्स की दवाईयों की कीमत आम आदमी की आर्थिक पहुँच के परे है। कुछ विरल मरीजों में सही चिकित्सा से 10-12 वर्ष तक एड्स के साथ जीना संभव पाया गया है, किंतु यह आम बात नही है।

ऐसी दवाईयाँ अब उपलब्ध हैं जिन्हें ए.आर.टी यानि एंटी रेट्रोवाईरल थेरपी दवाईयों के नाम से जाना जाता है। सिपला की ट्रायोम्यून जैसी यह दवाईयाँ महँगी हैं, प्रति व्यक्ति सालाना खर्च तकरीबन 15000 रुपये होता है, और ये हर जगह आसानी से भी नहीं मिलती। इनके सेवन से बीमारी थम जाती है पर समाप्त नहीं होती। अगर इन दवाओं को लेना रोक दिया जाये तो बीमारी फ़िर से बढ़ जाती है, इसलिए एक बार बीमारी होने के बाद इन्हें जीवन भर लेना पड़ता है। अगर दवा न ली जायें तो बीमारी के लक्षण बढ़ते जाते हैं और एड्स से ग्रस्त व्यक्तियों की मृत्यु हो जाती है।

एक अच्छी खबर यह है कि सिपला और हेटेरो जैसे प्रमुख भारतीय दवा निर्माता एचआईवी पीड़ितों के लिये शीघ्र ही पहली थ्री इन वन मिश्रित फिक्स्ड डोज़ गोलियाँ बनाने जा रहे हैं जो इलाज आसान बना सकेगा (सिपला इसे वाईराडे के नाम से पुकारेगा)।[२] इन्हें यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन से भी मंजूरी मिल गई है। इन दवाईयों पर प्रति व्यक्ति सालाना खर्च तकरीबन 1 लाख रुपये होगा, संबल यही है कि वैश्विक कीमत से यह 80-85 प्रतिशत सस्ती होंगी।

[संपादित करें] एड्स ग्रसित लोगों के प्रति व्यवहार

एड्स का एक बड़ा दुष्प्रभाव है कि समाज को भी संदेह और भय का रोग लग जाता है। यौन विषयों पर बात करना हमारे समाज में वर्जना का विषय रहा है। निःसंदेह शतुरमुर्ग की नाई इस संवेदनशील मसले पर रेत में सर गाड़े रख अनजान बने रहना कोई हल नहीं है। इस भयावह स्थिति से निपटने का एक महत्वपूर्ण पक्ष सामाजिक बदलाव लाना भी है। एड्स पर प्रस्तावित विधेयक [३]को अगर भारतीय संसद कानून की शक्ल दे सके तो यह भारत ही नहीं विश्व के लिये भी एड्स के खिलाफ छिड़ी जंग में महती सामरिक कदम सिद्ध होगा।

[संपादित करें] यह भी देखें

[संपादित करें] बाहरी कड़ियाँ

[संपादित करें] संदर्भ

  1. भारत में एड्सः शतुरमुर्ग सा रवैया। निरंतर (2006-08-01)।
  2. Cipla launches new anti-HIV drug ViradayAdd to Clippings। हिंदुस्तान टाईम्स (2006-10-12)।
  3. Draft Law on HIV (asp)। Lawyers Collective।