विश्व हिंदी सम्मेलन

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आठवें विश्व हिंदी सम्मेलन का प्रतीक चिह्न
आठवें विश्व हिंदी सम्मेलन का प्रतीक चिह्न

विश्व हिंदी सम्मेलन हिन्दी भाषा का सबसे बड़ा अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन है, जिसमें विश्व भर से हिंदी विद्वान, साहित्यकार, पत्रकार, भाषा विज्ञानी, विषय विशेषज्ञ तथा हिंदी प्रेमी जुटते हैं। पिछले कई वर्षों से यह प्रत्येक चौथे वर्ष आयोजित किया जाता है।

अनुक्रमणिका

[संपादित करें] उद्देश्य

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की राष्ट्रभाषा के प्रति जागरूकता पैदा करने, समय समय पर हिंदी की विकास यात्रा का आकलन करने, लेखक व पाठक दोनों के स्तर पर हिंदी साहित्य के प्रति सरोकारों को और दृढ़ करने, जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में हिंदी के प्रयोग को प्रोत्साहन देने तथा हिंदी के प्रति प्रवासी भारतीयों के भावुकतापूर्ण व महत्वपूर्ण रिश्ते को और गहराई व मान्यता प्रदान करने के लिहाज से 1975 में विश्व हिंदी सम्मेलनों की श्रृंखला शुरू हुई। इस बारे में पहल की थी पूर्व प्रधानमंत्री स्व. श्रीमती इंदिरा गांधी ने। पहला विश्व हिंदी सम्मेलन राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के सहयोग से नागपुर में संपन्न हुआ जिसमें विनोबाजी ने अपना बेबाक संदेश भेजा।

[संपादित करें] श्रृंखला

तब से अब तक सात विश्व हिंदी सम्मेलन और हो चुके हैं- मारीशस, नई दिल्ली, मारीशस, त्रिनिडाड व टोबेगो, लंदन और सूरीनाम में। आठवां विश्व हिंदी सम्मेलन 13 से 15 जुलाई 2007 तक न्यूयार्क में होना है।

विश्व हिंदी सम्मेलन श्रृंखलाएँ
क्रमांक तारीख स्थान टिप्पणी
10-14 जनवरी 1975 नागपुर, भारत
28-30 अगस्त 1976 पोर्ट लुई, मारीशस
28-30 अक्तूबर 1983 नई दिल्ली, भारत
2-4 दिसंबर 1993 पोर्ट लुई, मारीशस
4-8 अप्रैल 1996 त्रिनिडाड व टोबेगो
14-18 सितंबर 1999 लंदन, संयुक्त राजशाही
5-9 जून 2003 पारामरिबो, सूरीनाम
13-15 जुलाई 2007 न्यूयार्क, संयुक्त राज्य अमेरिका

न्यूयार्क चूंकि संयुक्त राष्ट्र का शहर है, इसलिए इस बार के सम्मेलन का महत्व काफी अधिक है। विशेषकर इसलिए कि हिंदीभाषियों और हिंदी प्रेमियों के मन में अपनी भाषा को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा बनाने की महत्वाकांक्षा है। चूंकि इस बार के सम्मेलन का उद्घाटन संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय भवन में ही होना है इसलिए यह सम्मेलन इस उद्देश्य के प्रति जागरूकता और हलचल जरूर पैदा करेगा।

[संपादित करें] विश्व हिन्दी सम्मेलन का इतिहास

पहला विश्व हिंदी सम्मेलन 10-14 जनवरी 1975 तक नागपुर में आयोजित किया गया। सम्मेलन का आयोजन राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के तत्वावधान में किया गया। सम्मेलन से संबंधित राष्ट्रीय आयोजन समिति के अध्यक्ष महामहिम उपराष्ट्रपति श्री बी.डी. जत्ती थे। राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के अध्यक्ष श्री मधुकर राव चौधरी महाराष्ट्र राज्य के वित्त, नियोजन तथा अल्प बचत मंत्री थे। पहले विश्व हिंदी सम्मेलनका बोधवाक्य था- वसुधैव कुटुम्बकम। सम्मेलन में मुख्य अतिथि मॉरीशस के प्रधानमंत्री श्री शिवसागर रामगुलाम थे जिनकी अध्यक्षता में मॉरीशस से आए एक प्रतिनिधिमंडल ने सम्मेलन में भाग लिया था। सम्मेलन में 30 देशों के 122 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। [१] सम्मेलन में पारित किए गए मंतव्य थे-

1- संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी को आधिकारिक भषा के रूप में स्थान दिया जाए।
2- वर्धा में विश्व हिंदी विद्यापीठ की स्थापना हो।
3- विश्व हिंदी सम्मेलनों को स्थायित्व प्रदान करने के लिए अत्यंत विचारपूर्वक एक योजना बनाई जाए।

दूसरे विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन मॉरीशस की धरती पर हुआ। राजधानी पोर्ट लुई में 28 से 30 अगस्त 1976 तक चले विश्व इस हिंदी सम्मेलन के आयोजक राष्ट्रीय आयोजन समिति के अध्यक्ष, मॉरीशस के प्रधानमंत्री डॉ. सर शिवसागर रामगुलाम थे। सम्मेलन में भारत से तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार नियोजन मंत्री डॉ. कर्ण सिंह के नेतृत्व में 23 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने भाग लिया। इसके अतिरिक्त सम्मेलन में 17 देशों के 181 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।[२]

तीसरे विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन भारत की राजधानी दिल्ली में 28 से 30 अक्तूबर 1983 को हुआ। सम्मेलन के लिए बनी राष्ट्रीय आयोजन समिति के अध्यक्ष तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष डॉ. बलराम जाखड़ थे। इसमें मॉरीशस से आए प्रतिनिधिमंडल ने भी हिस्सा लिया जिसके नेता श्री हरीश बुधू थे। सम्मेलन के आयोजन में राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा ने भी प्रमुख भूमिका निभाई। सम्मेलन में कुल 6,566 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया जिनमें 260 विदेशों से आए प्रतिनिधि शामिल थे। [३]


चौथे विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन दो से चार दिसंबर 1993 तक मॉरीशस की राजधानी पोर्ट लुई में आयोजित किया गया। सत्रह वर्ष बाद मॉरीशस में एक बार फिर विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा था। इस बार के आयोजन का उत्तरदायित्व मॉरीशस के कला, संस्कृति, अवकाश एवं सुधार संस्थान मंत्री श्री मुक्तेश्वर चुनी ने संभाला था, जिन्हें राष्ट्रीय आयोजन समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। इसमें भारत से गए प्रतिनिधिमंडल के नेता श्री मधुकर राव चौधरी और उपनेता थे तत्कालीन गृह उपमंत्री श्री रामलाल राही। सम्मेलन में मॉरीशस के अतिरिक्त लगभग 200 अन्य विदेशी प्रतिनिधियों ने भी भाग लिया। [४]


पांचवें विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन हुआ त्रिनिदाद एवं टोबेगो की राजधानी पोर्ट ऑफ स्पेन में। तिथियां थीं- चार से आठ अप्रैल 1996, और त्रिनिदाद एवं टोबेगो की आयोजक संस्था थी हिंदी निधि। सम्मेलन के प्रमुख संयोजक हिंदी निधि के अध्यक्ष श्री चंका सीताराम थे। भारत की ओर से इस सम्मेलन में भाग लेने वाले प्रतिनिधिमंडल के नेता अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल श्री माता प्रसाद थे। सम्मेलन का केंद्रीय विषय था- आप्रवासी भारतीय और हिंदी। जिन अन्य विषयों पर इसमें ध्यान केंद्रित किया गया, वे थे- हिंदी भाषा और साहित्य का विकास, कैरेबियाई द्वीपों में हिंदी की स्थिति, एवं कंप्यूटर युग में हिंदी की उपादेयता। सम्मेलन में भारत से 17 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने हिस्सा लिया। अन्य देशों के 257 अन्य प्रतिनिधियों ने भी इसमें भाग लिया।[५]


छठा विश्व हिंदी सम्मेलन लंदन में 14 से 18 सितंबर 1999 तक आयोजित किया गया। यूके हिंदी समिति, गीतांजलि बहुभाषी समुदाय और बर्मिंघम और भारतीय भाषा संगम, यॉर्क द्वारा इसके लिए राष्ट्रीय आयोजन समिति का गठन किया गया जिसके अध्यक्ष डॉ. कृष्ण कुमार और संयोजक डॉ. पद्मेश गुप्त थे। सम्मेलन का केंद्रीय विषय था- हिंदी और भावी पीढ़ी। सम्मेलन में विदेश राज्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे के नेतृत्व में भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने भाग लिया। प्रतिनिधिमंडल के उपनेता प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. विद्यानिवास मिश्र थे। इस सम्मेलन का ऐतिहासिक महत्व है इसलिए है क्योंकि यह हिंदी को राजभाषा बनाए जाने के 50वें वर्ष में आयोजित किया गया। यही वर्ष संत कबीर की छठी जन्मशती का भी था। सम्मेलन में 21 देशों के 700 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। इनमें भारत से 350 और ब्रिटेन से 250 प्रतिनिधि शामिल थे। [६]


सातवें विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन हुआ सुदूर सूरीनाम की राजधानी पारामारिबो में। तिथियां थीं- पांच से नौ जून 2003। इक्कीसवीं सदी में आयोजित यह पहला विश्व हिंदी सम्मेलन था। सम्मेलन के आयोजक थे श्री जानकीप्रसाद सिंह, और यह जिस केंद्रीय विषय (थीम) पर केंद्रित रहा, वह था- विश्व हिंदी- नई शताब्दी की चुनौतियां। सम्मेलन में हिस्सा लेने वाले भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व विदेश राज्य मंत्री श्री दिग्विजय सिंह ने किया। सम्मेलन में भारत से दो सौ प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। इसमें बारह से अधिक देशों के हिंदी विद्वान और अन्य हिंदी सेवी सम्मिलित हुए। सम्मेलन का उद्घाटन पांच जून को हुआ था और कुछ दशक पहले इसी दिन सूरीनामी नदी के तट पर भारतवंशियों ने पहला कदम रखा था। [७]


आठवाँ विश्व हिंदी सम्मेलन 13 जुलाई 2007 से 15 जुलाई 2007 तक संयुक्त राज्य अमेरिका की राजधानी न्यू यॉर्क में मनाया जा रहा है। इस सम्मेलन का केंद्रीय विषय है- विश्व मंच पर हिंदी। इसका आयोजन भारत सरकार के विदेश मंत्रालय द्वारा किया गया है तथा सम्मेलन से संबंधित समन्वय का कार्य वही संभाल रहा है। न्यूयॉर्क में सम्मेलन के आयोजन से संबंधित व्यवस्था अमेरिका की हिंदी सेवी संस्थाओं के सहयोग से भारतीय विद्या भवन संभाल रहा है।



  1. जब साथ आए दो प्रधानमंत्री (एचटीएम)। विश्व हिंदी। अभिगमन तिथि: 13 जुलाई, 2007
  2. मॉरीशस के प्रधानमंत्री थे आयोजक (एचटीएम)। विश्व हिंदी। अभिगमन तिथि: 13 जुलाई, 2007
  3. इंदिराजी का वह ओजस्वी भाषण (एचटीएम)। विश्व हिंदी। अभिगमन तिथि: 13 जुलाई, 2007
  4. विश्व हिंदी सम्मेलन फिर लौटा मॉरीशस (एचटीएम)। विश्व हिंदी। अभिगमन तिथि: 13 जुलाई, 2007
  5. सुदूर त्रिनिदाद में प्रवासी भारतीयों के बीच (एचटीएम)। विश्व हिंदी। अभिगमन तिथि: 13 जुलाई, 2007
  6. यादगार हुई हिंदी को राजभाषा बनाए जाने की स्वर्ण जयंती (एचटीएम)। विश्व हिंदी। अभिगमन तिथि: 13 जुलाई, 2007
  7. इक्कीसवीं सदी का पहला विश्व हिंदी सम्मेलन (एचटीएम)। विश्व हिंदी। अभिगमन तिथि: 13 जुलाई, 2007

[संपादित करें] वेबसाइट

सम्मेलन की वेबसाइट का 19 अप्रैल को उद्घाटन हुआ जिसे प्रभासाक्षी.कॉम के समूह संपादक बालेन्दु शर्मा दाधीच के नेतृत्व वाले प्रकोष्ठ ने विकसित किया है।

[संपादित करें] बाहरी कडियाँ