स्यावड़ माता
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स्यावड़ माता अन्न पैदा करने वाली देवीहै। स्यावड़ माता को राजस्थान के जाट किसान याद करने के पश्चात ही बाजरा बीजना प्रारंभ करते हैं। बैल के हल जोड़कर खेत के दक्षिण किनारे पर जाकर उत्तर की तरफ मुंह कर हळसोतिया कर प्रथम बीज डालने के साथ ही स्यावड़ माता को इस प्रकार याद किया जाता है:-
- स्यावड़ माता सत करी
- दाणा फाको भोत करी
- बहण सुहासणी कॅ भाग को देई
- चीड़ी कमेड़ी कॅ राग को देई
- राही भाई को देई
- ध्याणी जवाई को देई
- घर आयो साधु भूखो नी जा
- बामण दादो धाप कॅ खा
- सूना डांगर खा धापै
- चोर चकार लेज्या आपै
- कारुं आगै साथ नॅ देई
- मंगतां कॅ हाथ नॅ देई
- कीड़ी मकोड़ी कै भेलै नॅ देई
- राजाजी कै सहेलै नॅ देई
- सुणजै माता शूरी
- छतीस कौमां पूरी
- फेर तेरी बखारी मैं उबरै
- तो मेरै टाबरां नॅ भी देई
- स्यावड़ माता गी दाता
अर्थात सभी संबंधियों, जानवरों, साधु, देवी-देवताओं, राहगीरों, ब्रामण, राजा, चोर-चकार, भिखारी आदि सभी 36 कोमों के लिये अनाज मांगता है और बचे अनाज से घरवाले काम चलाते हैं।
[संपादित करें] संदर्भ
- Mansukh Ranwa (मनसुख रणवां): Kshatriya Shiromani Vir Tejaji (क्षत्रिय शिरोमणि वीर तेजाजी), 2001