प्राण वात

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[संपादित करें] प्राण वायु

यह वायु निरन्‍तर मुख में रहती है और इस प्रकार यह प्राणों को धारण करती है, जीवन प्रदान करती है और जीव को जीवित रखती है। इसी वायु की सहायता से खाया पिया अन्‍दर जाता है। जब यह वायु कुपित होती है तो हिचकी,श्‍वांस और इन अंगों से संबंधित विकार होते हैं।


[संपादित करें] सन्‍दर्भ ग्रन्‍थ:

चरक संहिता

सुश्रुत संहिता

वाग्‍भट्ट

चिकित्‍सा चन्‍द्रोदय


[संपादित करें] यह भी देखें

आयुर्वेद