अंधा कानून
विकिपीडिया, एक मुक्त ज्ञानकोष से
भारतीय कानून की देवी के हाथ मे तराजू है और आंखों पर पट्टी बन्धी है,हाथ मे तराजू का मतलब है,पक्षकार और विपक्षकार को आपस मे तौल कर उनमे कौन दोषी है और कौन निर्दोष ? बिना देखे केवल सुनकर और साक्ष्य को ही सबकुछ मानकर फ़ैसला दे दिया जाये,आंखों पर पट्टी बंधी होने के कारण ही कानून देख कर फ़ैसला नही करता है,वह सुनकर,समझकर,दलीलों को मानकर,पहले क्या क्या किया गया है,उसको सामने रखकर,फ़ैसला करता है,बकीलों की दलील,और पक्षकार-विपक्षकार की बहस,इन सब कारकों के द्वारा जब फ़ैसला दिया जाता है तो कानून का रूप अंधा हो जाता है.कितनी ही बार जो वास्तव मे दोषी है,वह ही अपनी अधिक से अधिक दलीले देकर अपने पक्ष मे फ़ैसला ले लेता है,जो दलीलें नही दे पाता है,वह अपराधी नही होते हुए भी अपराधी की श्रेणी मे आ जाता है. उदाहरण के लिये एक आदमी सडक पर जा रहा है,और उसको रोक कर बिना किसी कारण के कुछ अपशब्द या गाली दे दी जाये,तो कानूनी रूप से गाली देने वाला दोषी हो जाता है,और वही गाली देने वाला व्यक्ति अगर अपनी तरफ़ से दो अपने आदमियों को लेकर पास के पुलिस थाने मे जाकर जिसे गाली दी थी,उसके विरुद्ध ही रिपोर्ट दर्ज करवा देता है,या किसी अदालत मे जाकर इस्तगासा दायर कर देता है,और अपने आदमियों की गवाही दे देता है,तो जिसके साथ जुर्म किया गया था,वह ही कानूनी रूप से पहली नजर मे दोषी नही होते हुए भी दोषी बन जाता है,अपने को निर्दोष साबित करने के लिये अगर निर्दोष व्यक्ति किसी उच्च न्यायालय मे जाता है,और उसके पास अपने को निर्दोष साबित करने के लिये खूब सारा धन है,बकीलों को अपने माफ़िक कानून खोजने के लिये औकात है ,तो वह अपने को निर्दोष साबित कर सकता है,अन्यथा जुर्म होने के बाद भी वह दोषी होने की सजा भोगता है.