लूटविश विटगेनश्टाइन
विकिपीडिया, एक मुक्त ज्ञानकोष से
विट्गन्स्टाईन का सबसे बड़ा योगदान भाषा को दार्शनिक परिपेक्ष्य में रखने का है। आज कोई भी भाषा विज्ञान में जब दर्शन का उल्लेख करता है तो विट्गन्स्टाईन का नाम स्वतः स्मरण होता है।
विट्गन्स्टाईन के लेखन से काफी तर्क-वितर्क उपजा है, यहाँ तक कि कई बार विट्गन्स्टाईन के काम को दर्शनविपरीत भी कहा गया है, किन्तु ऐसा कहना इसलिये गलत होगा कि विट्गन्स्टाईन से पहले भी तर्कशास्त्रियों ने भाषा (जिसका उपयोग सत्य को निर्धारित करने के लिये किया जाता रहा है) के तार्किक विश्लेषण पर जोर डाला था। विट्गन्स्टाईन के गुरू बर्टरैंड रसल रहे हैं (जिनसे उन्होंने तर्क की शिक्षा ली थी) का तर्कशास्त्र को दर्शन में उचित स्थान दिलाने में भारी योगदान है।
विट्गन्स्टाईन का दार्शनिक जीवन काफी दिलचस्प है क्योंकि उन्होंने अपने बाद के कार्यों में अपने पुराने कार्यों का खंडन किया है। अपनी पहले की पु्स्तकों में विट्गन्स्टाईन सत्य के लिये भाषा का महत्व बताते नजर आते हैं किन्तु अपनी अन्तिम पुस्तक "philosophical investigations" में (जिसका सम्पादन मरणोपरांत हुआ) विट्गन्स्टाईन ने भाषा में व्याप्त बायस का विवरण किया है। विट्गन्स्टाईन का ये निष्कर्ष दार्शनिक जगत के लिये नूतन और महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ।
विट्गेन्स्टाइन ने एक प्रकार से इस विचार का प्रतिपादन किया कि भाषा से सत्य का विवरण नहीं बल्कि सत्य का निर्माण किया जाता है। समस्त पाश्चात्य दर्शन भाषा में ही निहित है, किन्तु भाषा हमें सत्य का एक रूप ही प्रदर्शित करती है, वह सत्य जो हम अपनी मान्यता या अनुभव से निर्मित करते हैं।
विट्गेन्स्टाइन बार बार एक भाषाक्रीडा का उल्लेख करते हैं, जिसमें भाग लेने वाले किसी सत्य की अभिव्यक्ति के लिये भाषा का निर्माण व उपयोग करते हैं। इस क्रीड़ा के माध्यम से विट्गेन्स्टइन भाषा से विविरत तथ्यों व सत्य में अंतर बताते हैं। अपनी निर्णात्मक पुस्तक "philosophical investigations" में वो कहते हैं कि " अधिकतर बार जब हम शब्द के "अर्थ" की बात करते हैं, तब हम केवल एक भाषा में उस शब्द के योजन की बात करते हैं "।