अमिताभ बच्चन
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अमिताभ बच्चन, (11 अक्तूबर, 1942) भारतीय सिनेमा जगत के सबसे परिचित चेहरों में से हैं। वे फिल्म अभिनेता, निर्माता, पार्श्वगायक(आंशिक रूप से) है, और (star plus)के लोकप्रिय शो कौन बनेगा करोड़पति कार्यक्रम को प्रस्तुत करते थे। इनके पिता प्रसिद्ध हिन्दी कवि डॉ हरिवंश राय बच्चन थे एवं माता तेजी बच्चन है।
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[संपादित करें] जीवन
कलकत्ता की एक कंपनी में छह वर्ष अच्छी नौकरी करने के पश्चात वे फिल्मो में भाग्य आजमाने के लिए बंबई पहुंचे। ख्वाजा अहमद अब्बास की फ़िल्म "सात हिन्दुस्तानी" में काम करने के लिए सन १९७१ में चुने गए। यह फ़िल्म सफल नहीं हुई लेकिन उसी वर्ष हृषीकोश मुखर्जी द्वारा निर्मित फ़िल्म "आनंद" को जबर्दस्त सफलता मिली और इसमें अमिताभ बच्चन के अभिनय को भी भरपूर सराहा गया। इस फ़िल्म में उन्होंने तत्कालीन सुपरस्टार राजेश खन्ना के साथ काम किया था। इसके बाद उन्होंने एक के बाद एक कई असफल फ़िल्मों में काम किया। लेकिन इसके बाद सफल फ़िल्मों का तांता लग गया।
इनकी पत्नी जया भादुड़ी भी एक उत्तम अभिनेत्री हैं । जया और अमिताभ बच्चन को एक बेटी श्वेता और एक बेटा अभिषेक है। अभिषेक बच्चन भी बॉलीवुड में अभिनेता हैं।
अमिताभ कुछ समय के लिए भारतीय राजनिति मे भी सक्रिय रहें। सन १९८४ मे हुए आम चुनावों में अमिताभ बच्चन ने हेमवती नंदन बहुगुणा जैसे प्रभावशाली राजनेता को हराकर इलाहाबाद से लोकसभा का चुनाव भारी बहुमत से जीता। १९८६ में बोफ़ोर्स प्रकरण में उनका नाम आने की वजह से अमिताभ ने लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफ़ा देते हुए राजनीति से संन्यास ले लिया।
१९९० के आते-आते अमिताभ के फ़िल्मी सफ़र में ठहराव आया और उनकी कई फ़िल्में बॉक्स ऑफ़िस पर पिटने लगीं। उदारीकरण के दौर में अमिताभ बच्चन ने अमिताभ बच्चन कॉरपोरेशन लिमिटेड नाम की कंपनी की शुरूआत की लेकिन जल्द ही इसमें भी उन्हें असफलता हाथ लगी। टीवी चैनल स्टार प्लस पर प्रसारित कार्यक्रम कौन बनेगा करोड़पति से अमिताभ बच्चन को आशातीत सफलता हाथ लगी और व्यावसायिक तौर पर उन्हें इससे भारी लाभ हुआ।
[संपादित करें] फिल्मों मे संघर्ष
'मधुशाला' के रचयिता प्रसिद्ध कवि हरिवंशराय बच्चन के ज्येष्ठ पुत्र अमिताभ बच्चन ने अपने आरंभिक दिनों में अभिनय जगत में स्थापित होने के लिये बहुत संघर्ष किया है| फिल्मों में आने से पहले वे स्टेज आर्टिस्ट तथा रेडियो एनाउंसर भी रह चुके हैं| फिल्मों में काम करने के लिये उन्होंने कई बार आवेदन दिया पर हर बार उन्हें उनके ऊँचे कद के कारण अस्वीकार कर दिया जाता था| अंत में ख्वाज़ा अहमद अब्बास ने उन्हें अपनी फिल्म सात हिंदुस्तानी (1969) में अवसर दिया| पर फिल्म बुरी तरह पिट गई और अमिताभ बच्चन की ओर किसी का ध्यान ही नहीं गया|
उनकी आवाज से प्रभावित होकर उन्हें फिल्म भुवन सोम (1969) में 'नरेटर' (पार्श्व उद्घोषक) का कार्य दिया गया, भुवन सोम में उनकी आवाज अवश्य थी पर उन्हें परदे पर कहीं दिखाया नहीं गया था| ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म आनंद (1970) में अमिताभ बच्चन ने बहुत अच्छी भूमिका निभाई थी पर फिल्म की सफलता का सारा श्रेय राजेश खन्ना ले गये, ये तो सभी जानते हैं कि राजेश खन्ना उस समय के जाने माने स्थापित नायक थे|
ऋषि दा ने अपनी फिल्म गुड्डी में भी अतिथि कलाकार बनाया पर इससे अमिताभ को कुछ विशेष फायदा नहीं मिला| फिर उन्हें रवि नगाइच के फिल्म प्यार की कहानी (1971) में मुख्य भूमिका मिली| नायिका तनूजा और सह कलाकार अनिल धवन के होने के बावजूद भी फिल्म चल नहीं पाई और अमिताभ के संघर्ष के दिन जारी ही रहे| उन दिनों अमिताभ बच्चन को जैसा भी रोल मिलता था स्वीकार कर लेते थे| इसीलिये फिल्म परवाना (1971) में उन्होंने एंटी हीरो का रोल किया| परवाना में नवीन निश्चल की मुख्य भूमिका थी और नवीन निश्चल भी उस समय के स्थापित नायक थे अतः अमिताभ की ओर लोगों का ध्यान कम ही गया| सन् 1971 में ही उन्होंने संजोग, रेशमा और शेरा तथा पिया का घर (अतिथि कलाकार) फिल्मों में काम किया पर कुछ विशेष सफलता नहीं मिली|
सन् 1972 में आज के महानायक की फिल्में थीं - बंशी बिरजू, बांबे टू गोवा, एक नजर, जबान, बावर्ची (पार्श्व उद्घोषक) और रास्ते का पत्थर| बी.आर. इशारा की फिल्म एक नजर में उनके साथ हीरोइन जया भादुड़ी थीं| फिल्म एक नजर के संगीत को बहुत सराहना मिली पर फिल्म फ्लॉप हो गई| यहाँ यह उल्लेखनीय है कि फिल्म एक नजर के गाने आज भी संगीतप्रेमियों के जुबान पर आते रहते हैं खासकर 'प्यार को चाहिये क्या एक नजर.......', 'पत्ता पत्ता बूटा बूटा.......', 'पहले सौ बार इधर और उधर देखा है.......' आदि| इसी फिल्म से अमिताभ बच्चन और जया भादुड़ी एक दूसरे को चाहने लगे[तथ्य चाहिए]| ये जया भादुड़ी ही थीं जिन्होंने संघर्ष के दिनों में अमिताभ को संभाले रखा[तथ्य चाहिए]|
सन् 1973 में अमिताभ जी की फिल्में बंधे हाथ, गहरी चाल और सौदागर विशेष नहीं चलीं| पर प्रकाश मेहरा की फिल्म ज़ंजीर की अपूर्व सफलता और उनके एंग्री यंगमैन के रोल ने उन्हें विकास के रास्ते पर ला खड़ा किया| और फिल्म ज़ंजीर के बाद अमिताभ सफलता की राह में बढ़े।