बंग-भंग
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सन् १९०५ में लार्ड कर्जन ने मुस्लिम बहुल वाले प्रान्त का सृजन करने के उद्देश्य से बंगाल को दो भागों में बाँट दिया। यह अंग्रेजों की "फूट डालो - राज करो" वाली नीति का ही एक अंग था। अत: इसके विरोध में १९०८ ई. में सम्पूर्ण देश में `बंग-भंग' आन्दोलन शुरु हो गया। [१]
इस आंदोलन में देश के प्रसिद्ध कवियों और साहित्यकारों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस आंदोलन ने बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय के वंदेमातरम गीत को नई बुलंदियाँ प्रदान की । उस समय बंगाल को बाँट देने का अंग्रेजी कुचक्र तो टूटा ही, सारे देश में और विदेशों में इसे असाधारण ख्याति मिली । जर्मन और कनाडा जैसे देश भी इससे प्रभावित हुए । कामागाटामारू नामक जहाज के झंडे पर 'वन्दे मातरम्' अंकित किया गया था । तब से सन् १९३० के नमक सत्याग्रह और सन् १९४२ के 'भारत छोड़ो' आन्दोलन तक सभी सम्प्रदायों से उभरे युवा स्वतंत्रता संग्राम सैनिकों का सबसे प्रेरक और प्रिय नारा रहा 'वन्दे मातरम्' । भारत वासियों की अन्तर्भावना इसे नैतिक आधार पर भली प्रकार स्वीकार कर चुकी थी । [२]
[संपादित करें] संदर्भ
- ↑ महामना : एक विलक्षण व्यक्तित्व (पीएचपी)। अभ्यदय.ऑर्ग। अभिगमन तिथि: 28 जुलाई, 2007।
- ↑ वन्देमातरम् गीत को नैतिक एवं संवैधानिक दोनों मान्यताएँ प्राप्त हैं (पीएचपी)। प्रज्ञाभियान.इन्फ़ो। अभिगमन तिथि: 28 जुलाई, 2007।