मंगलाचरण
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”’मंगलाचरण”’ समस्त वैदिक लेखनों मे सबसे पहले मंगलाचरण करने का प्रावधान मिलता है.मंगलाचरण में सर्वप्रथम श्री गणेशजी की स्तुति इसलिये करते हैं,कि वे जगत में साधन स्वरूप हैं,विश्व साधन कर्म का है,शरीर साधन विश्व का है,ज्ञान साधन जिज्ञासा का है,धर्म से विरति का साधन उपलब्ध होता है,विरति से जो भी और जिस प्रकार से विरति कारित की गई है,के फ़लों मे ज्ञान मिलता है,ज्ञान भौतिक रूप में धन और सम्पत्ति है,आध्यात्मिक रूप में विद्या है,विद्या से कोई भी भौतिक ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है,ज्ञान की सीमा नही है,ज्ञान प्राप्त होने के बाद मोक्ष यानी शांति मिल जाती है,तुलसीदासजी ने अपने रामचरितमानस में साफ़ तौर से लिखा भी है,धर्म से विरति,विरति से ज्ञाना। ज्ञान मोक्षप्रद वेद बखाना ॥
- गजाननं भूत गणादि सेवतं,कपित्थ जम्बू फ़ल चारु भक्षणम,
- उमा सुतं शोक विनाश कारकं,नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम ॥
श्री गणेशजी की महिमा का बखान करते वक्त जो भी स्मरण किया जाता है,उसमे भूत यानी पिछले इतिहास को याद करना जरूरी है,गण जो शरीर मे और संसार में सहायता देने के कारक हैं,साथ में अपना सहयोग देने को तत्पर हैं,भारत को जम्बू द्वीप के नाम से जाना जाता है,और जो भी फ़ल इस धरती पर हैं,उनको प्राप्त करने के लिये धर्म,अर्थ,काम,और मोक्ष रूपी सत,रज,और तम से मिश्रित साधनों के लिये उमा सुत यानी शक्ति पुत्र जो किसी भी प्रकार के तप्त साधन को सतुलित करने के बाद प्रयोगार्थ बनाते है,और किसी भी विघ्न को दूर करने के लिये शुरु से ही पाद यानी सबसे नीचे की श्रेणी से कार्य शुरु करने का उपक्रम मान लेना चाहिये.
- यस्योदये जगदिदं प्रतिबोधमेति,मध्यस्थिते प्रसरति प्रकॄतिक्रियासु।
- अस्तं गते स्वपिति चोच्छव्सितैकमात्रं,भावत्रये स जयति प्रकटप्रभाव: ॥
"जिसके उदय होने पर समस्त संसार जागॄत हो जाता है,तथा मध्याकाश में पहुंचने पर समस्त जगत अपने कर्मों मे लग जाता है,और अस्त होने पर केवल श्वास और प्रतिश्वास हे महशूस हो,यानी जगत सो जाये,इस तरह से जिस देवता का प्रभाव प्रकट है,ऐसे भगवान सूर्य की जय हो ॥ सारावली