पित्त
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[संपादित करें] पित्त दोष
शरीर में पित्त अग्नि का प्रतिनिधि है। भोजन का पाक और आहार के तत्वों का विघटन करके रस धातुओं आदि को रूप देता है, जिससे धातुयें पुष्ट होती है। पित्त द्वारा रक्त, त्वचा आदि अंगों को रंजक वर्ण प्रदान किया जाता है। पित्त हृदय पर स्थिति श्लेष्मा को दूर करता है। अपक्व अवस्था मे पित्त शरीर में अम्ल और अम्लपित्त जैसी तकलीफें पैदा करता है।
[संपादित करें] सन्दर्भ ग्रन्थ:
- चरक संहिता
- सुश्रुत संहिता
- वाग्भट्ट
- चिकित्सा चन्द्रोदय