उशीनर
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एक बार देवराज इन्द्र एवं अग्निदेव राजा उशीनर की परीक्षा लेने हेतु क्रमशः बाज और कबूतर का रूप धर कर उनके पास आये। बाज (इन्द्र) कबूतर (अग्नि) का पीछा कर रहा था। कबूतर बचने के लिये राजा उशीनर की गोद में जा छुपा। इस पर बाज ने राजा उशीनर से कहा कि हे राजन्! यह कबूतर मेरा आहार है। आप कृपा करके इसे मुझे दे दीजिये जिससे कि मैं अपनी क्षुधा शांत कर सकूँ। इसके उत्तर में धर्मात्मा उशीनर ने कहा कि यह कबूतर मेरे शरण में आया है इसलिये मैं इसे तुम्हें नहीं दे सकता। इसके बदले में तुम कुछ और माँग लो। राजा के वचनों को सुनकर बाज बोला कि राजन्! मुझे तो अपनी क्षुधा शांत करनी है। यदि आप इस कबूतर को मुझे नहीं दे सकते तो इस कबूतर के वजन के बराबर अपना माँस मुझे दे दीजिये। राजा उशीनर इसके लिये तैयार हो गये। उन्होंने एक तराजू मँगाकर उसके एक पलड़े पर कबूतर को बैठा दिया और उसके दूसरे पलड़े पर अपना माँस काट-काट डालने लगे। किन्तु ज्यों-ज्यों वे अपना माँस डालते जाते थे त्यों-त्यों कबूतर का वजन बढ़ता जाता था। राजा उशीनर के शरीर का काफी माँस चढ़ जाने पर भी जब तराजू का पलड़ा बराबर न हो सका तो राजा उशीनर स्वयं तराजू के पलड़े पर बैठ गये। उनके इस कृत्य को देखकर इन्द्र और अग्निदेव अपना वास्तविक रूप धारण कर बोले कि राजन्! आपने अद्भुत कार्य किया है, आप धन्य हैं। हम दोनों इन्द्र और अग्निदेव हैं और आपकी परीक्षा लेने आये थे। हम आपको आशीर्वाद देते हैं कि आपको अक्षय लोकों की प्राप्ति होगी। इस प्रकार आशीर्वाद देकर दोनों देवता अपने-अपने लोकों को चले गये।
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सुखसागर के सौजन्य से