ज्योतिष विज्ञान
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भारतीय दर्शन के अनुसार कर्म तीन प्रकार के होते हैं,-१.संचित कर्म,२-प्राब्ध कर्म,३-क्रियमाण कर्म. वर्तमान तक किया गया कर्म संचित कर्म कहलाता है,वर्तमान मे जो कर्म हो रहा है,वह क्रियमाण है,संचित कर्म का जो भाग हम भोगते है,वह प्रारब्ध कहलाता है,लेकिन जब हम किसी बात को सोचते हैं तो कहते हैं,कि पीछे जो हम करके आये हैं,वह याद क्यों नही रहता है,तथा कल जो होने वाला हमें याद क्यों नही रहता है,प्रकति से हमारे सामने जो अभी है,वह ही हमे याद रहता है,कल हमने जो किया है,कल क्या होगा,यह हमे दूसरे दिन ही पता लगता है,जो व्यक्ति पीछे और आगे की बात को कहता है,उसके लिये ही ज्योतिष विज्ञान का निर्माण किया गया है,इस विज्ञान के द्वारा जन्म समय के जो भी तत्व सामने होते हैं,उनके प्रभाव का असर प्रकॄति के अनुसार जो भी पहले हुआ या इतिहास बताता है ,उन तत्वों का विवेचन करने के बाद ही ज्योतिष का कथन किया जाता है,ज्योतिश मे तीन प्रकार के कर्मों की व्याख्या बताई जाती है,पहला-सत,दूसरा-रज,और तीसरा-तम.उसी तरह से तीन प्रकार के शरीर भी बताये गये हैं-स्थूल शरीर,सूक्षम शरीर,कारण शरीर. १.स्थूल शरीर (Physical Body) जन्म के बाद जो शरीर सामने दिखाई देता है,वह स्थूल शरीर होता है,इसी स्थूल शरीर का नाम दिया जाता है,इसी के द्वारा संसारी कार्य किये जाते है,इसी शरीर को संसारी दुखों से गुजरना पडता है,और जो भी दुख होते हैं,उनके लिये केवल एक ही भाषा होती है कि हमारी कोई न कोई भूल होती है,जो भूलता है वही भुगतता है,इसी शरीर के अन्दर एक शरीर और होता है,जिसे सूक्ष्म शरीर कहते हैं. २.सूक्षम शरीर (Astral Body) हर भौतिक शरीर के अन्दर एक सूक्षम शरीर होता है,इस बात का पता पहले नही था,मगर जब से लोगों को पुनर्जनम और ॠषियों द्वारा दिये गये हजारों साल पहले के कारण,और आज के वैज्ञानिक युग मे आकर उनका दिखाई देना,जिनके बारे मे पहले कभी सोचा नही हो,वे सामने आयें,और उनको देख कर हम लोग यही कहें,कि यह तो बहुत पहले देखा था,या सुना था,मंगल की पूजा के लिये हनुमानजी की पूजा हजारों सालों से की जा रही है,और मंगल के लिये सभी ने पुराने वेदों की बातो के अनुसार ही उनका अभिषेक आदि करना चालू कर दिया था,मगर जब अमेरिका के नासा संस्थान ने वाइकिन्ग मंगल पर भेज कर मंगल का चेहरा प्रकाशित किया,तो लोगों का कौतूहल और जग गया कि,वेदों मे यह बात किस प्रकार से पता लगी थी कि मंगल का चेहरा एक बन्दर से मिलता है,और मंगल एक लाल ग्रह है,इस बात के लिये कितनी बातें जो हम पिछले समय से सुनते आ रहे है,"लाल देह लाली लसे,और धरि लाल लंगूर,बज्र देह दानव दलन,जय जय जय कपि सूर.",मंगल का रूप अंगारक,महाभान,अतिबक्र,लोहित और लोहित अंगोसे सुसज्जित शरीर की कामना बिना सूक्षम शरीर की उपस्थिति के पता नही चल सकती है. ३.कारण शरीर (Casual Body) जब कारण पैदा होता है,तभी शरीर सूर्य की तरह से उदय होता है,इस शरीर को जो भी कार्य संसार मे करने होते हैं,उन्ही के प्रति इस शरीर का संसार मे आना होता है,कार्यों के खत्म होते ही यह शरीर बिना किसी पूर्व सूचना के चल देता है,पानी मे मिल जाता है,मिट्टी मिट्टी मे मिल जाती है,हवा हवा मे मिल जाती है,आग आग मे मिल जाती है,और आत्मा अपनी यात्रा को दूसरे काम के लिये पुनर्जन्म लेने के लिये बाध्य हो जाती है,यही कारण रूपी शरीर की गति कहलाती है. ज्योतिष से व्यक्तित्व का विभाजन ज्योतिष के अनुसार व्यक्तित्व को दो भागों मे विभाजित किया है,पहला-बाह्य व्यक्तित्व,और दूसरा-आन्तरिक व्यक्तित्व.सौरमण्डल के सातों ग्रह उपरोक्त दोनों व्यक्तित्वओं को अपने अपने गुण धर्म के अनुसार प्रभावित करते हैं,सूर्य और चन्द्रमा का प्रत्यक्ष प्रभाव सॄष्टि पर द्रष्टिगोचर है,जिस परिस्थति के अनुसार जातक का जन्म होता है,उसी के अनुसार जातक का प्राकॄतिक स्वभाव बन जाता है,सूर्य के प्रभाव से जाडा,गर्मी,वर्षा ॠतुओं का आगमन होता है,और चन्द्र के अनुसार शरीर मे पानी का प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से देखा जा सकता है,समुद्र मे आने वाला ज्वार-भाटा चन्द्रमा के प्रभाव का प्रत्यक्ष कारण है.जीवन के भाव,विचार,रूप,व्यक्तित्व,यादें,प्रवॄत्ति,न्याय,अन्याय,सत्य,असत्य,प्रेम,कला,आदि जितने भी जीवन के कारण हैं,सब के सब ग्रहों के प्रभाव से ही बनते बिगडते रहते हैं,सात ग्रह तो प्रत्यक्ष है और दो छाया ग्रह हैं,इस प्रकार से वैदिक ज्योतिष मे नौ ग्रहों का विवेचन मिलता है.