भदावरी ज्योतिष

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एशिया महाद्वीप मे भारत वर्ष के उत्तर प्रदेश प्रांत मे दुनिया के मशहूर जिला आगरा का नाम सबने सुना होगा.इस जिला की आखिरी सीमा पर एक छोटी सी तहसील बागी बेहड और बाह तहसील नाम से संसार मे प्रसिद्ध है.इसी तहसील के अन्तर्गत एक जिला इटावा,आगरा और भिंड की सीमाओं के बीच मे कोरथ गांव है.इस गांव मे पंडित ज्वाला प्रसाद पुरोहित का नाम ज्योतिष के लिये मशहूर माना जाता था,उनकी बताई गई भविष वाणी कभी असत्य नही होती थी,यहां तक कि वे जन्म से लेकर मौत आने तक का समय बताने मे माहिर थे,उनका जन्म का समय तो मुझे भी नही पता है,मगर वे जब मरे थे,तो उनके पोते श्री राकेश ने जो प्रतापपुरा बाह मे रहता था बताया था,कि वे अब इस दुनिया मे नहीं है.उनके बाद आसपास के गांवों की ज्योतिष का काम पंडित बाबूराम शर्मा ने सम्भाला,और आस पास के एरिया की पुरोहिताई उनके पास आगई ।

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संसार का कोई भी मनुष्य बिना कर्म के नही रह सकता कहावत भी है कि सकल पदार्थ है जग माही,कर्म हीन नर पावत नाहीं,जो कर्म नही करता है,उसे कुच भी नही मिल पाता है.वही व्यक्ति श्रेष्ठ होता है जो इन्द्रियों को वश मे रख कर अनाशक्त भाव सेकर्म करता है । जिस किसी ने जो किया है उसका फल उसको मिलेगा,यह सत्य है.कर्म फल के रूप मे हर आदमी को जो किया है उसका भुगतान तो देना ही पडेगा,अगर किसी ने किसी कारण से किये गये कर्म को भोग नही पाया तो उसके बच्चों को वह किया गया कर्म भोगना पडेगा,बाप ने अगर पाप किया है तो पुत्र को को उसका फल भोगना पडेगा.दशरथ ने श्रवण को मारा था,राम को उसका फल भोगना पडा था,राम ने तो कोई पाप नही किया था,मगर दशरथ मरण,सिया को हरण,वन में विपति परी,कर्म गति टारे नाहिं टरी.यह कर्म गति राजा दशरथ ने की थी,और कर्म फल श्री राम को भोगना पडा था.जब तक कर्म फ्हल पूरे नही होते तब तक इस जीवात्मा को पॄथ्वी पर जन्म लेना पडेगा,कर्म फल को पूरा करना पडेगा,और अगर किसी तरह से फिर भी कर्म पूरा नही हुआ तो फिर आना पडेगा,इस बात को भदावरी-ज्योतिष मे बॄहस्पति के द्वारा व्यक्त किया जाता है,जन्म के समय के बॄहस्पति को देख कर पता किया जाता है,कि कौन से कर्म बाकी थे जिन्हे पूरा करने के लिये जातक जमीन पर वापस जन्म लेकर आया है,और यही बॄहस्पति बताता है कितने दिन के लिये यह आया है और कितने समय के बाद यह वापस आराम करने लिये मॄत्यु को प्राप्त कर लेग

पुरुष की जीवात्मा का विवेचन बॄहस्पति से किया जाता है,और स्त्री की जीवात्मा का विवेचन शुक्र से किया जाता है,जीवात्मा किस भाव मे है उसके अनुसार ही पता लगाया जाता है कि उससे दसवें भाव में कौन सा घर है,और जो घर है उसका मालिक जीवात्मा की पकड मे है या नही है,अगर पकड मे है तो जीवात्मा कार्य को पूरा करेगी,और अगर पकड मे नही है,तो जीवात्मा उस कर्म को सामयिक करेगी,और बाकी समय मे फ़ालतू रहेगी,फ़ालतू समय मे वह उन कामों को करेगी,जिनसे कर्म फलों का इजाफ़ा होता रहेगा.इसी लिये कर्म फलों का इजाफ़ा नहीं हो,संत पुरुषों ने ध्यान समाधि आदि को प्रयोग करने के लिये कहा है.ध्यान समाधि के द्वारा कर्म फलों को बढने से रोका जाता है.।


अलग अलग भावों से जीवात्मा के बाकी जीवन का हिसाब


जीवात्मा का मालिक बॄहस्पति अगर पहले घर मे होता है,तो जीव के संसार मे आने के लिये यौनी का पलट कर मनुष्य शरीर मे आने की चेतना समझी,जाती है.। लगातार दुनियावी जद्दोजहद के चलते शरीर केवल धन के घर दूसरे घर मे जाने की चाहत रखता है,और जितने भी दुनियावी काम होते हैं,उनके अन्दर एक ही चाहत होती है,कि किस तरीके से दुनियावी माया को एकत्रित किया जाय,और उस एकत्रित माया से लोगों का भला किया जाये,वह भला परिवार के मोह से खुद के आस पास के लोगों का,और मोक्ष भाव मे किसी के रहने से उनके प्रति भला करने ी चाहत दिमाग मे रहती है,इस तरीके वह पहले घर की यात्रा पूरी करता है,बॄहस्पति अगर मेष राशि का है तो जीवन का सफर मंगल ग्रह पर निर्भर करता है,और जिस भाव मे मंगल होता है,वहीं से उस भाव का आठवां घर देख कर मौत के समय का पता किया जाता है,इसी प्रकार से अन्य भावो और ग्रहों के अनुसार भदावरी-ज्योतिष का कथन प्रकाशित किया जाता है.

भदावरी ज्योतिष के द्वारा खोले गये भेद,जिनके द्वारा कुंडली मे देखने पर जीवन के कर्मो का लेखा जोखा देखा जाता है,शनि ]]कर्म]] का दाता है और शनि ही कर्म करवाता है,जीव को केवल शनि ही आदेश देता है,अन्य ग्रह केवल सहारा देते हैं,कई तो कार्य को करने का सहारा देते हैं और कई कार्य को करने पर अंडचने तब लगाते हैं जब जीव अपने किये जाने वाले कर्मों को सही तरीके से करना नही जानता है, जो कर्म सही तरीके से नही किया जाता है तो जीव को कष्ट भी देने के लिये शनि अपने दो चेले राहु और केतु को सामने भेजते हैं,राहु का काम समाप्त करने का है,और केतु का काम भटकाने का है,जब जीव किसी तरह से भी समझ नही पाता है,और जो कर्म किया जाना है उसके प्रति जीव ने सही शिक्षा नही ली है तो शनि उसे सीखने के लिये फिर से जन्म लेने का अवसर प्रदान करता है,उस अवसर को लेने के लिये जीव को राहु के द्वारा समाप्त कर दिया जाता है,समाप्त करने मे राहु अपनी जन्म कुन्डली के अनुसार फ़लाफ़ल प्रदान करता है,जब राहु को अक्स्मात समाप्त करना होता है तो छुपे रूप से मंगल का सहारा लेता है और जीव के शरीर मे अन्जानी बीमारी प्रदान करता है,जब जीव उस अन्जानी बीमारी से गॄसित हो जाता है तो मंगल जो डाक्टर का रूप होता है,उसके लिये आपरेशन या दवा को प्रदान कर जीव की मॄत्यु निश्चित करता है,जीव को पता होता है कि उसके शरीर को ठीक किया जा रहा है मगर राहु अपनी तीन द्रिष्टियों का सहारा लेकर एक तरफ़ तो दवाई के रूप मे जीव को तीसरी नजर से हिम्मत देता है,जिससे जीव शरीर अपनी ताकत के अनुसार छोड सके,और पांचवी नजर से परिवार और संतान को अक्स्मात मिलने वाले दुख से निजात दिलाना चाहता है,जो कर्म जीव को करना था,उसके लिये जो भी शनि ने कर्म करने के लिये पहले से भुगतान करने के बाद एडवांस दिया था,वह डाक्टरी दवाइयों के रूप मे और इलाज आदि के बहाने खर्च करवाता है,जिससे जीव के पास वह जगह बदल कर जहाँ भी जन्म ले वहाँ पर शनि उसे दुबारा उतना ही दे सके,और जीव कर्म को करने के लिये प्रकॄति को दोष न दे पावे,राहु का दूसरा नाम शराब भी है,जीव जब कर्म मे असफ़ल हो जाता है तो जीव की इच्छा शराब आदि मे चली जाती है,वह अपने द्वारा या अपने परिवार के द्वारा जो कर्म किये जाने थे और वे कर्म वह जीव नही कर पाया तो वह शराब और ऐस आदि में धन को खर्च कर डालता है,धन के खर्चने के बाद जीव अपनी मौत का स्वयं जिम्मेदार हो जाता है,प्रकॄति जीव के खुद के द्वारा किये गये कर्मो के अनुसार ही फल प्रदान करती है.लेकिन प्रकॄति कभी भी अपने ऊपर जीव को समाप्त करने का दोष नही लेती है,और इसी बात का भदावरी-ज्योतिष में वॄतांत मिलता है,कि हिल्ले-रिजक-बहाने-मौत.