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ऋग्वेद (संस्कृत ऋग् 'प्रशंसा' + वेद 'ज्ञान') सनातन धर्म अथवा हिन्दू धर्म उत्पतिको श्रोत, र संसारकै पहिलो धार्मिक ग्रन्थ हो [1]। यसमा १०१७ श्लोक छन्, जसमा देवताहरुको स्तुति छ। यसको रचना वैदिक संस्कृतमा गरिएको छ। ऋग्वेद १० किताब (मण्डला) हरुको श्रीङ्खला हो।
श्लोक १
अग्निमीळे पुरोहितं यज्ञस्य देवं रत्वीजम |
होतारं रत्नधातमम ||
अग्निः पूर्वेभिर्र्षिभिरीड्यो नूतनैरुत |
स देवानेह वक्षति ||
अग्निना रयिमश्नवत पोषमेव दिवे-दिवे |
यशसं वीरवत्तमम ||
अग्ने यं यज्ञमध्वरं विश्वतः परिभूरसि |
स इद्देवेषु गछति ||
अग्निर्होता कविक्रतुः सत्यश्चित्रश्रवस्तमः |
देवो देवेभिरा गमत ||
यदङग दाशुषे तवमग्ने भद्रं करिष्यसि |
तवेत तत सत्यमङगिरः ||
उप तवाग्ने दिवे-दिवे दोषावस्तर्धिया वयम |
नमो भरन्त एमसि ||
राजन्तमध्वराणां गोपां रतस्य दीदिविम |
वर्धमानंस्वे दमे ||
स नः पितेव सूनवे.अग्ने सूपायनो भव |
सचस्वा नः सवस्तये ||
श्लोक २
वायवा याहि दर्शतेमे सोमा अरंक्र्ताः |
तेषां पाहि शरुधी हवम ||
वाय उक्थेभिर्जरन्ते तवामछा जरितारः |
सुतसोमा अहर्विदः ||
वायो तव परप्र्ञ्चती धेना जिगाति दाशुषे |
उरूची सोमपीतये ||
इन्द्रवायू इमे सुता उप परयोभिरा गतम |
इन्दवो वामुशन्ति हि ||
वायविन्द्रश्च चेतथः सुतानां वाजिनीवसू |
तावा यातमुप दरवत ||
वायविन्द्रश्च सुन्वत आ यातमुप निष्क्र्तम |
मक्ष्वित्था धिया नरा ||
मित्रं हुवे पूतदक्षं वरुणं च रिशादसम |
धियं घर्ताचीं साधन्ता ||
रतेन मित्रावरुणाव रताव्र्धाव रतस्प्र्शा |
करतुं बर्हन्तमाशाथे ||
कवी नो मित्रावरुणा तुविजाता उरुक्षया |
दक्षं दधाते अपसम ||
श्लोक ३
अश्विना यज्वरीरिषो दरवत्पाणी शुभस पती |
पुरुभुजाचनस्यतम ||
अश्विना पुरुदंससा नरा शवीरया धिया |
धिष्ण्या वनतं गिरः ||
दस्रा युवाकवः सुता नासत्या वर्क्तबर्हिषः |
आ यातंरुद्रवर्तनी ||
इन्द्रा याहि चित्रभानो सुता इमे तवायवः |
अण्वीभिस्तना पूतासः ||
इन्द्रा याहि धियेषितो विप्रजूतः सुतावतः |
उप बरह्माणि वाघतः ||
इन्द्रा याहि तूतुजान उप बरह्माणि हरिवः |
सुते दधिष्वनश्चनः ||
ओमासश्चर्षणीध्र्तो विश्वे देवास आ गत |
दाश्वांसो दाशुषः सुतम ||
विश्वे देवासो अप्तुरः सुतमा गन्त तूर्णयः |
उस्रा इवस्वसराणि ||
विश्वे देवासो अस्रिध एहिमायासो अद्रुहः |
मेधं जुषन्त वह्नयः ||
पावका नः सरस्वती वाजेभिर्वाजिनीवती |
यज्ञं वष्टु धियावसुः ||
चोदयित्री सून्र्तानां चेतन्ती सुमतीनाम |
यज्ञं दधे सरस्वती ||
महो अर्णः सरस्वती पर चेतयति केतुना |
धियो विश्वा वि राजति ||
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