अलंकार
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अलंकार कविता कामिनी के सौन्दर्य को बढ़ाने वाले तत्व होते हैं। जिस प्रकार आभूषण से नारी का लावण्य बढ़ जाता है, उसी प्रकार अलंकार से कविता की शोभा बढ़ जाती है।
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[बदलें] अलंकार के भेद
शब्दालंकारː जब शब्दों के द्वारा कविता के सौन्दर्य में निखार लाया जाता है तो उसे शब्दालंकार कहते हैं। अर्थालंकारː जब शब्दों के अर्थ के द्वारा कविता के सौन्दर्य को बढ़ाया जाता है तो उसे अर्थालंकार कहते हैं। उभयालंकारː जब शब्दों तथा शब्दों के अर्थ दोनों ही के द्वारा कविता की सुन्दरता में वृद्धि की जाती है तो उसे उभयालंकार कहते हैं।
[बदलें] प्रमुख अलंकारों का परिचय
[बदलें] अनुप्रास अलंकार
वर्णों की आवृत्ति को अनुप्रास कहते हैं। उदाहरण -
चारु चन्द्र की चंचल किरणें, खेल रहीं थीं जल-थल में। स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई थी, अवनि और अम्बरतल में॥
[बदलें] अनुप्रास के प्रकार
छेकानुप्रासː जब वर्णों की आवृत्ति एक से अधिक बार होती है तो वह छेकानुप्रास कहलाता है। उदाहरण -
मुद मंगलमय संत समाजू। जो जग जंगम तीरथराजू॥
वृत्यानुप्रासː जब एक ही वर्ण की आवृत्ति अनेक बार होती है तो वृत्यानुप्रास होता है। उदाहरण -
काम कोह कलिमल करिगन के।
लाटानुप्रासː जब एक शब्द या वाक्यखण्ड की आवृत्ति होती है तो लाटानुप्रास होता है। उदाहरण -
वही मनुष्य है, जो मनुष्य के लिये मरे।
अन्त्यानुप्रासː जब अन्त में तुक मिलता हो तो अन्त्यानुप्रास होता है। उदाहरण -
मांगी नाव न केवटु आना। कहहि तुम्हार मरमु मैं जाना॥
श्रुत्यानुप्रासː जब एक ही वर्ग के वर्णों की आवृत्ति होती है तो श्रुत्यानुप्रास होता है। उदाहरण -
दिनान्त था थे दिननाथ डूबते, सधेनु आते गृह ग्वाल बाल थे। (यहाँ पर त वर्ग के वर्णों अर्थात् त, थ, द, ध, न की आवृति हुई है।)
[बदलें] यमक अलंकार
जब एक शब्द का प्रयोग दो बार होता है और दोनों बार उसके अर्थ अलग-अलग होते हैं तब यमक अलंकार होता है। उदाहरण -
ऊँचे घोर मन्दर के अन्दर रहन वारी, ऊँचे घोर मन्दर के अन्दर रहाती हैं। (यहाँ पर मन्दर के अर्थ हैं अट्टालिका और गुफा।)
[बदलें] श्लेष अलंकार
जब किसी शब्द का प्रयोग एक बार ही किया जाता है पर उसके एक से अधिक अर्थ निकलते हैं तब श्लेष अलंकार होता है। उदाहरण -
पानी गये न ऊबरे, मोती मानुष चून।
[बदलें] उपमा अलंकार
जब किसी वस्तु की समता दूसरे समान गुण वाली वस्तु से की जाती है तब उपमा अलंकार होता है। उदाहरण -
राधा बदन चन्द्र सो सुन्दर।
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