देविका रानी

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निःसंदेह भारतीय सिनेमा के लिये देविका रानी का अपूर्व योगदान रहा है और उनका यह योगदान के लिये हमेशा हमेशा याद रखा जायेगा| जिस जमाने में भारत की महिलायें घर की चारदीवारी के भीतर भी घूंघट में मुँह छुपाये रहती थीं, देविका रानी ने चलचित्रों में काम करके अदम्य साहस का प्रदर्शन किया था| उन्हें उनके अद्वितीय सुंदरता के लिये भी याद किया जाता रहेगा|

देविका रानी, भारतीय रजतपट की पहली नायिका, का जन्म वाल्टेयर (विशाखापटनम) में हुआ था| वे विख्यात कवि श्री रवीन्द्रनाथ टैगोर के वंश से सम्बंधित थीं, श्री टैगोर उनके चचेरे परदादा थे| देविका रानी के पिता कर्नल एम.एन. चौधरी मद्रास (अब चेन्नई) के पहले 'सर्जन जनरल' थे| उनकी माता का नाम श्रीमती लीला चौधरी था|

स्कूल की शिक्षा समाप्त करने के बाद 1920 के दशक के आरंभिक वर्षों में देविका रानी नाट्य शिक्षा ग्रहण करने के लिये लंदन चली गईं और वहाँ वे 'रॉयल एकेडमी आफ ड्रामेटिक आर्ट' (RADA) और रॉयल 'एकेडमी आफ म्युजिक' नामक संस्थाओं में भर्ती हो गईं| वहाँ उन्हें 'स्कालरशिप' भी प्रदान किया गया| उन्होंने 'आर्किटेक्चर', 'टेक्सटाइल' एवं 'डेकोर डिजाइन' विधाओं का भी अध्ययन किया और 'एलिजाबेथ आर्डन' में काम करने लगीं|

अध्ययन काल के मध्य देविका रानी की मुलाकात हिमांशु राय से हुई| हिमांशु राय ने देविका रानी को लाइट आफ एशिया नामक अपने पहले प्रोडक्शन के लिया सेट डिजाइनर बना लिया| सन् 1929 में उन दोनों ने विवाह कर लिया| विवाह के बाद हिमांशु राय को जर्मनी के प्रख्यात यू.एफ.ए. स्टुडिओ में 'ए थ्रो आफ डाइस' नामक फिल्म बनाने के लिये निर्माता का काम मिल गया और वे सपत्नीक जर्मनी आ गये|

भारत में भी उन दिनों चलचित्र निर्माण का विकास होने लग गया था अतः हिमांशु राय अपने देश में फिल्म बनाने का विचार करने लगे और वे देविका रानी के साथ स्वदेश वापस आ गये| भारत आकर उन्होंने फिल्में बनाना शुरू कर दिया और उनकी फिल्मों में देविका रानी नायिका का काम करने लगीं| सन् 1933 में उनकी फिल्म कर्मा प्रदर्शित हुई और इतनी लोकप्रिय हुई कि लोग देविका रानी को कलाकार के स्थान पर स्टार सितारा कहने लगे| इस तरह देविका रानी भारतीय सिनेमा की पहली महिला फिल्म स्टार बनीं|

देविका रानी और उनके पति हिमांशु राय ने मिलकर बांबे टाकीज़ स्टुडिओ की स्थापना की जो कि भारत के प्रथम फिल्म स्टुडिओं में से एक है| बांबे टाकीज़ को जर्मनी से मंगाये गये उस समय के अत्याधुनिक उकरणों से सुसज्जित किया गया| अशोक कुमार, दिलीप कुमार, मधुबाला जैसे महान कलाकारों ने बांबे टाकीज़ में काम कर चुके है। अछूत कन्या, किस्मत, शहीद, मेला जैसे अत्यंत लोकप्रिय फिल्मों का निर्माण वहाँ पर हुआ है| अछूत कन्या उनकी बहुचर्चित फिल्म रही है क्योंकि वह फिल्म एक अछूत कन्या और एक ब्राह्मण युवा के प्रेम प्रसंग पर आधारित थी|

सन् 1940 में देविका रानी विधवा हो गईं| बांबे टाकीज़ का सम्पूर्ण संचालन उनके पति हिमांशु राय किया करते थे| देविका रानी ने अपने स्टुडिओ बांबे टाकीज़ के संचालन के लिये जी जान लड़ा दिया परंतु सन् 1943 में सशधर और अशोक कुमार तथा अन्य विश्वसनीय लोगों के स्टुडिओ से नाता तोड़ लेने की वजह से वे असहाय हो गईं| उन लोगों ने बांबे टाकीज़ से सम्बंध समाप्त करके फिल्मिस्तान नामक नया स्टुडिओ बना लिया| परिणामस्वरूप देविका रानी को फिल्मों से अपना नाता तोड़ना पड़ा| उन्होंने रूसी चित्रकार स्वेतोस्लाव रोयरिच के साथ सन् 1945 में विवाह कर लिया और बेंगलोर में जाकर बस गईं|

भारत के राष्ट्रपति ने सन् 1958 में देविका रानी को पद्मश्री सम्मान प्रदान किया| उन्हें सन् 1970 में प्रथम बार दादा साहेब फाल्के पुरष्कार प्राप्त करने का गौरव भी मिला|

देविका रानी का अंतिम संस्कार सम्पूर्ण राजकीय सम्मान के साथ किया गया था|

संदर्भ - http://agoodplace4all.com

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