बसंत पंचमी

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नवीं शताब्दी के प्रथम दशक में जगदगुरु आदि शंकराचार्य ने बौद्धों के अतिक्रमण से बचाने हेतु मायाकुंड में छिपाकर रखी हुई भगवान हृषीकेश (भरत) की प्रतिमा को बसंत पंचमी के दिन मंदिर में पुनस्थार्पित किया, तब से ही निरंतर बसंत पंचमी के दिन हृषीकेश नारायण की उत्सव प्रतिमा को जुलूस के साथ गंगा स्नानार्थ ले जाया जाता है। इस उत्सव में सुदूर पर्वतीय अंचल से भक्तजन यहां पहुंचकर पुण्यलाभ अर्जन करते हैं। इस पर्व के उपलक्ष्य में यहां मेला लगता दूर-दूर से लोग इस मेले में आते हैं। इस दिन लोग भरत भगवान के दर्शन करके स्वयं को कृतार्थ करते हैं। लोग बसंती रंग के कपड़े पहनते हैं, खाने में पीले रंग(हल्दी) का उपयोग किया जाता है और इस दिन माता सरस्वती की भी पूजा की जाती है। हरिद्वार एवं कुछ अन्य जगहों पर पतंग भी उड़ाई जाती है।

बसंत पंचमीबसंत पंचमी को गायत्री परिवार अपने संस्थापक पं श्रीराम शर्मा आचार्य के आध्यात्मिक जन्म दिवस के रूप में भी मनाता है। पंद्रह वर्ष की आयु में वसंत पंचमी की वेला में सन् १९२६ में उनके घर की पूजास्थली में पं श्रीराम शर्मा आचार्य की अदृश्य छायाधारी गुरुसत्ता श्री सर्वेश्वरानंद जी ने प्रज्ज्वलित दीपक की लौ में से स्वयं को प्रकट कर उन्हें उनके द्वारा विगत कई जन्मों में सम्पन्न क्रिया-कलापों का दिग्दर्शन कराया तथा उन्हें बताया कि वे दुर्गम हिमालय से आये हैं एवं उनसे अनेकानेक ऐसे क्रियाकलाप कराना चाहते हैं, जो अवतारी स्तर की ऋषिसत्ताएँ उनसे अपेक्षा रखती हैं । इसके बाद ही उन्होने विशाल गायत्री परिवार की स्थापना की, इसी दिन अखण्ड ज्योति पत्रिका का प्रकाशन आरम्भ किया।

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