उपनिषद सूची
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आपली उपनिषदे उपनिषद् वर्ग वेद आरुणेय संन्यास सामवेद आत्मा सामान्य अथर्व वेद आत्मबोध सामान्य ऋग्वेद अध्यात्म सामान्य शुक्ल यजुर्वेद अद्वयतारक संन्यास शुक्ल यजुर्वेद ऐतरेय मुख्य ऋग्वेद अक्षमालिक शैव ऋग्वेद अक्षी सामान्य कृष्ण यजुर्वद अमृत-बिन्दु योग कृष्ण यजुर्वद अमृत-नाद** योग कृष्ण यजुर्वद अन्नपूर्ण शाक्त अथर्व वेद अथर्व-शिख शैव अथर्व वेद अथर्व-शिर शैव अथर्व वेद अवधूत संन्यास कृष्ण यजुर्वद अव्यक्त वैष्णव सामवेद बह्वृच शाक्त ऋग्वेद भावना शाक्त अथर्व वेद भस्म-जाबाल शैव अथर्व वेद भिक्षुक संन्यास शुक्ल यजुर्वेद बृहद् आरण्यक मुख्य शुक्ल यजुर्वेद बृहज्जाबाल शैव अथर्व वेद ब्रह्म संन्यास कृष्ण यजुर्वद ब्रह्मविद्या योग कृष्ण यजुर्वद छान्दोग्य मुख्य सामवेद दक्षिणामूर्ति शैव कृष्ण यजुर्वद दर्शन योग सामवेद दत्तात्रेय वैष्णव अथर्व वेद देवि ** शाक्त अथर्व वेद ध्यानबिन्दु योग कृष्ण यजुर्वद एकाक्षर सामान्य कृष्ण यजुर्वद गारुड वैष्णव अथर्व वेद गणपति शैव अथर्व वेद गर्भ सामान्य कृष्ण यजुर्वद गोपाल-तापनि वैष्णव अथर्व वेद हंस योग शुक्ल यजुर्वेद हयग्रीव वैष्णव अथर्व वेद ईश मुख्य शुक्ल यजुर्वेद जाबाल संन्यास शुक्ल यजुर्वेद जाबालदर्शन शैव सामवेद कालाग्निरुद्र शैव कृष्ण यजुर्वद कैवल्य शैव कृष्ण यजुर्वद कलि-संतरण वैष्णव कृष्ण यजुर्वद कठ मुख्य कृष्ण यजुर्वद कठरुद्र संन्यास कृष्ण यजुर्वद कौशितकि सामान्य ऋग्वेद केन मुख्य सामवेद कृष्ण वैष्णव अथर्व वेद क्षुरिक योग कृष्ण यजुर्वद कुण्डिक संन्यास सामवेद माण्डुक्य मुख्य अथर्व वेद मान्त्रिक सामान्य शुक्ल यजुर्वेद महानारायण वैष्णव अथर्व वेद महावाक्य योग अथर्व वेद महत् सामान्य सामवेद मैत्रायणि सामान्य सामवेद मैत्रेयि संन्यास सामवेद मण्डलब्राह्मण योग शुक्ल यजुर्वेद मुद्गल सामान्य ऋग्वेद मुक्तिक सामान्य शुक्ल यजुर्वेद मुण्डक मुख्य अथर्व वेद नाद-बिन्दु योग ऋग्वेद नारायण वैष्णव कृष्ण यजुर्वद निरालम्ब सामान्य शुक्ल यजुर्वेद निर्वाण संन्यास ऋग्वेद नृसिंहतापनी वैष्णव अथर्व वेद पाशुपत योग अथर्व वेद पैंगल सामान्य शुक्ल यजुर्वेद पञ्च-ब्रह्म शैव कृष्ण यजुर्वद परब्रह्म संन्यास अथर्व वेद परमहंस संन्यास शुक्ल यजुर्वेद परमहंस-परिव्राजक संन्यास अथर्व वेद नारदपरिव्राजक संन्यास अथर्व वेद प्राणाग्नि-होत्र सामान्य कृष्ण यजुर्वद प्रश्न ** मुख्य अथर्व वेद रामरहस्य वैष्णव अथर्व वेद रामतापणि वैष्णव अथर्व वेद रुद्राक्ष शैव सामवेद रुद्र-हृदय शैव कृष्ण यजुर्वद संन्यास संन्यास सामवेद सावित्रि सामान्य सामवेद सरस्वती-रहस्य शाक्त कृष्ण यजुर्वद सर्व-सार ** सामान्य कृष्णयजुर्वद सौभाग्य शाक्त ऋग्वेद शाण्डिल्य योग अथर्व वेद शारीरक सामान्य कृष्ण यजुर्वद शाट्यायनि संन्यास शुक्ल यजुर्वेद शरभ शैव अथर्व वेद शुक-रहस्य सामान्य कृष्ण यजुर्वद श्वेताश्वतर सामान्य कृष्ण यजुर्वद स्कन्द (त्रिपाद्विभूति) सामान्य कृष्ण यजुर्वद सीता शाक्त अथर्व वेद सुबाल सामान्य शुक्ल यजुर्वेद सूर्य सामान्य अथर्व वेद तारसार वैष्णव शुक्ल यजुर्वेद तैत्तिरीय मुख्य कृष्ण यजुर्वद तेजो-बिन्दु संन्यास कृष्ण यजुर्वद त्रिपुर शाक्त ऋग्वेद त्रिपुरातपनि शाक्त अथर्व वेद त्रि-शिखि योग शुक्ल यजुर्वेद तुरीयातीत संन्यास शुक्ल यजुर्वेद वासुदेव वैष्णव सामवेद वज्र-सूचि सामान्य सामवेद वराह संन्यास कृष्ण यजुर्वद याज्ञवल्क्य संन्यास शुक्ल यजुर्वेद योगचूडामणि योग सामवेद योग-कुण्डलिनि योग कृष्ण यजुर्वद योगशिखा योग कृष्ण यजुर्वद योगतत्त्व योग कृष्ण यजुर्वद |}
आपल्या प्राचीन वाङ्मयामध्ये उपनिषदांना फार महत्त्वाचे, म्हणजे प्रस्थानत्रयी मधील एक, असे स्थान आहे. काय असते उपनिषदांत ? पाणिनि धातुपाठामध्ये सद् धातूचा अर्थ दिला आहे " षद्लृ विशरणगत्यवसादनेषु ". सद् धातूचे विस्कळीत होणे, जाणे, नाश पावणे वा करणे इतके अर्थ होतात. या सद् धातूला निरनिराळे उपसर्ग लागून भिन्न भिन्न अर्थ होतात. ' उप ' व ' नि ' हे दोन उपसर्ग लागून हा उपनिषद् शब्द तयार झाला आहे. जवळ बसणे असा त्याचा केवळ शब्दार्थ झाला. जन्ममरणाचे निवारण करून ब्रह्मपदाला पोंचविणारी विद्या म्हणजे उपनिषद् असा उपनिषद् शब्दाचा अर्थ श्रीमत् शंकराचार्यांनी तैत्तिरीय भाष्यामध्ये दिला आहे. चार वेदांचे प्रत्येकी संहिता , ब्राह्मण व आरण्यके असे भाग आहेत. उपनिषदे ही तिन्ही प्रकारच्या ग्रंथांतून आढळतात (विशेष करून आरण्यकांमध्ये). प्राचिन काळी प्रत्येक वेदाच्या अनेक शाखा उपलब्ध होत्या त्यापैकी चारही वेदांच्या मिळून आता फक्त १३ शाखा उपलब्ध आहेत. पण एकेकाळी चार वेदांच्या हजारचे वर शाखा होत्या असे म्हणतात. प्रयेक शाखेचे एक उपनिषद म्हटले तरी हजारचे वर उपनिषदे होती हे ओघाने आलेच. पण सध्या प्रकाशित अशी जवळपास २२०-२२५ उपनिषदेच उपलब्ध आहेत. ह्याव्यतिरिक्त आणखी थोडेफार अप्रकाशित उपनिषदे असू शकतील. उपनिषदांची साधारण विभागणी आढळते ती अशी - १) प्रमुख उपनिषदे - ह्यांना दशोपनिषदे असेंही म्हणतात. यांत प्रामुख्याने 'ब्रह्म' विषयक विवेचन आढळते. व्यासांनी ब्रह्मसूत्रांमध्ये फक्त दश उपनिषदांचाच उल्लेख केलेला आढळतो तसेच आद्य शंकराचार्यांनी ह्या दहाही उपनिषदांवर भाष्य केलेले असल्यामुळे ह्या दश उपनिषदांचा प्रामुख्याने अभ्यास केला जातो. २) वैष्णव उपनिषदे - राम, कृष्ण इ. विष्णू अवतारांशी संबंधीत ३) शैव उपनिषदे ४) शाक्त उपनिषदे ५) संन्यास उपनिषदे ६) सामान्य उपनिषदे. वैष्णव-शैव-शाक्त यां नांवावरूनच कल्पना करूं शकतो कीं परमेश्वराच्या त्या त्या सगुणरुपासंबंधी ही उपनिषदें आहेत. संन्यास उपनिषदांमध्ये संन्यास ह्या चतुर्थ आश्रमाबद्दल विवेचन आढळते. १) ते ५) व्यतिरिक्त जी उपनिषदे आढळतात ती सामान्य वर्गांत मोडतात. उपलब्ध असलेल्या २२० उपनिषदांपैकीं प्रभु रामचंद्रांनी हनुमंतास १०८ उपनिषदांचा अभ्यास करण्याचे सुचविले आहे, म्हणून प्रस्तुत १०८ उपनिषदांचाच विचार करायचा आणि जमेल तसा त्यांचा मराठी अनुवाद करायचा मानस आहे. खालील १०८ उपनिषदांपैकी जेथे ** अशी खूण आढळेल ती मराठी भाषांतरीत असे समजणे -