भारतीय संगीत
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वेदों को संगीत का मूल स्रोत माना जाता है। ऐसा मानना है कि ब्रह्मा ने नारद मुनि को संगीत वरदान में दिया था।
वैदिक काल में सामवेद के मंत्रों का उच्चारण उस समय के वैदिक सप्तक या सामगान के अनुसार सातों स्वरों के प्रयोग के साथ किया जाता था। गुरू शिष्य परंपरा के अनुसार, शिष्य को गुरू से वेदों का ज्ञान मौखिक ही प्राप्त होता था व उन में किसी प्रकार के परिवर्तन की संभावना से मनाही थी। इस तरह प्राचीन समय में वेदों व संगीत का कोई लिखित रूप न होने के कारण उनका मूल स्वरूप लुप्त होता गया।
अनुक्रमणिका |
[बदलें] संगीत के सात सुर
- षडज् (सा)
- ऋषभ (रे)
- गान्धार (ग)
- मध्यम (म)
- पंचम (प)
- धैवत् (ध)
- निषाद (नि)
[बदलें] संगीत के प्रकार
भारतीय संगीत को सामान्यत: ३ भागों में बाँटा जा सकता है:
- शास्त्रीय संगीत
- उपशास्त्रीय संगीत
- सुगम संगीत
[बदलें] शास्त्रीय संगीत
भारतीय संगीत का अभिन्न अंग है भारतीय शास्त्रीय संगीत। भरतमुनि द्वारा रचित भरत नाटयशास्त्र, भारतीय संगीत के इतिहास का प्रथम लिखित प्रमाण माना जाता है. इसकी रचना के समय के बारे में कई मतभेद हैं। आज के भारतीय शास्त्रीय संगीत के कई पहलुओं का उल्लेख इस प्राचीन ग्रंथ में मिलता है। भरतमुनि के नाटयशास्त्र के बाद शारंगदेव रचित संगीत रत्नाकर, ऐतिहासिक दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ माना जाता है। बारहवीं सदी के पूर्वार्द्ध में लिखे सात अध्यायों वाले इस ग्रंथ में संगीत व नृत्य का विस्तार से वर्णन है।
संगीत रत्नाकर में कई तालों का उल्लेख है व इस ग्रंथ से पता चलता है कि प्राचीन भारतीय पारंपरिक संगीत में बदलाव आने शुरू हो चुके थे व संगीत पहले से उदार होने लगा था मगर मूल तत्व एक ही रहे। 11वीं और 12वीं शताब्दी में मुस्लिम सभ्यता के प्रसार ने उत्तर भारतीय संगीत की दिशा को नया आयाम दिया। राजदरबार संगीत के प्रमुख संरक्षक बने और जहां अनेक शासकों ने प्राचीन भारतीय संगीत की समृद्ध परंपरा को प्रोत्साहन दिया वहीं अपनी आवश्यकता और रुचि के अनुसार उन्होंने इसमें अनेक परिवर्तन भी किए। इसी समय कुछ नई शैलियाँ भी प्रचलन में आईं जैसे खयाल, गज़ल आदि और भारतीय संगीत का कई नये वाद्यों से भी परिचय हुआ जैसे सरोद, सितार इत्यादि। उत्तर भारत में मुगल राज्य ज्यादा फैला हुआ था जिस कारण उत्तर भारतीय संगीत पर मुसलिम संस्कृति व इस्लाम का प्रभाव ज्यादा महसूस किया गया। जबकि दक्षिण भारत में प्रचलित संगीत किसी प्रकार के मुस्लिम प्रभाव से अछूता रहा।
बाद में सूफी आंदोलन ने भी भारतीय संगीत पर अपना प्रभाव जमाया। आगे चलकर देश के विभिन्न हिस्सों में कई नई पद्धतियों व घरानों का जन्म हुआ। ब्रिटिश शासनकाल के दौरान कई नये वाद्य प्रचलन में आए पाश्चात्य संगीत से भी भारतीय संगीत का परिचय हुआ। आम जनता में लोकप्रिय आज का वाद्य हारमोनियम, उसी समय प्रचलन में आया। इस तरह भारतीय संगीत के उत्थान व उसमें परिवर्तन लाने में हर युग का अपना महत्वपूर्ण योगदान रहा। भारतीय शास्त्रीय संगीत की दो प्रमुख पद्धतियां हैं
- हिन्दुस्तानी संगीत - जो उत्तर भारत में प्रचलित हुआ।
- कर्नाटक संगीत - जो दक्षिण भारत में प्रचलित हुआ।
हिन्दुस्तानी संगीत मुगल बादशाहों की छत्रछाया में विकसित हुआ और कर्नाटक संगीत दक्षिण के मन्दिरों में। इसी कारण दक्षिण भारतीय कृतियों में भक्ति रस अधिक मिलता है और हिन्दुस्तानी संगीत में श्रृंगार रस।
[बदलें] उपशास्त्रीय संगीत
इसमें ठुमरी, टप्पा, होरा अदि आते हैं।
[बदलें] सुगम संगीत
जनसाधारण में प्रचलित है जैसे
- फ़िल्म संगीत,
- ग़ज़ल,
- पॉप (Pop) संगीत, और
- लोक संगीत