चुनी हुई कविताएं

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एक घटना

तेरी यादें

बहुत दिन बीते

जलावतन हुईं

जीतीं हैं या मर गयीं-

कुछ पता नहीं

सिर्फ एक बार एक घटना हुई थी

ख्यालों की रात बड़ी गहरी थी

और इतनी स्तब्ध थी

कि पत्ता भी हिले

तो बरसों के कान चौंक जाते..

फिर तीन बार लगा

जैसे कोई छाती का द्वार खटखटाये

और दबे पांव छत पर चढ़ता कोई

और नाखूनों से पिछली दीवार को कुरेदता…..

तीन बार उठ कर

मैंने सांकल टटोली

अंधेरे को जैसे एक गर्भ पीड़ा थी

वह कभी कुछ कहता

और कभी चुप होता

ज्यों अपनी आवाज को दांतों में दबाता

फिर जीती जागती एक चीज

और जीती जागती आवाज

“मैं काले कोसों से आयी हूं

प्रहरियों की आंख से इस बदन को चुराती

धीमे से आती

पता है मुझे कि तेरा दिल आबाद है

पर कहीं वीरान सूनी कोई जगह मेरे लिये?”

“सूनापन तो बहुत है,

पर तूं जलावतन है, कोई जगह नहीं,

मैं ठीक कहती हूं कोई जगह नहीं तेरे लिये,

यह मेरे मस्तक,

मेरे आका का हुक्म है!”

और फिर जैसे सारा अंधेरा कांप जाता है

वह पीछे को लौटी

पर जाने से पहले कुछ पास आयी

और मेरे वजूद को एक बार छुआ

धीरे से

ऐसे, जैसे कोई वतन की मिट्टी को छूता है…..